बुधवार, 9 अगस्त 2023

विंध्याचल की यात्रा

विंध्याचल की यात्रा

आज यात्रा का तीसरा दिन था, दो दिन प्रयागराज में स्नान एवं भर्मण के बाद आज का कार्यक्रम विंध्याचल में माँ विंध्यवासिनी का दर्शन करने का था, सुबह उठकर गंगा जी में स्नान करने के बाद चाय पीकर मिश्रा जी  से आज्ञा लेकर हम लोग (मैं और श्री मती जी) पैदल ही चल दिये, रास्ते मे कोई साधन नही मिला और हम लोग पैदल ही टैक्सी स्टैंड पर पहुंच गए, वहाँ से ऑटो पकड़ कर नैनी पुल पर आ गए जहाँ से विन्ध्याचल के लिए बस मिलती है,  करीब 45 मिनट के बाद बस मिली और हम लोग उसमे सवार हो गए, संयोग से खिड़की वाली सीट मिल गयी थी जिससे बस के बाहर की प्राकृतिक सुंदरता को देखने का आनंद मिल रहा था।  दो  घंटे की बस यात्रा के बाद हम लोग माँ विंध्यवासिनी के द्वार पर पहुंच गए ,  मुख्य मार्ग पर बस से उतरने के बाद हम लोग पैदल ही माता के दरबार के लिए चल दिए।  यह विन्ध्याचल आने का जीवन में दूसरा अवसर था, एक बार सन 1990 में  एक परीछा देने के लिए यहाँ आना हुआ था तब माँ का दर्शन हुआ था  उस समय की धुंधली यादे आज दिखाई पड़ रही थी।  

एक दुकान पर प्रसाद आदि लिया गया एवं अपना सामान भी वही रख कर माँ के दर्शन के लिए निकल पड़े, मंदिर परिसर के बाहर ज्यादा भीड़ नहीं थी लेकिन वहाँ के स्थानीय पंडो ने ऐसा माहौल बना रखा था की बस मंदिर बंद होने वाला है और न चाहते हुए भी दर्शन कराने के लिए पीछे पड़  गए, हम लोगों ने कहा की भैया हम लोग दर्शन कर लेंगे लेकिन पीछे पड़े रहे और  जैसे ही  हम लोगों ने माँ  को प्रसाद चढ़ाया तुरंत बाहर कर दिया की आप लोग चलिए मै प्रसाद लेकर आ रहा हू।  कुछ देर के बाद चार - छ लोगो का प्रसाद लिए हुए बाहर आये और 1100 - 1100 रूपये मांगने लगे, हम लोग तो अपने आप को ठगा सा महसूस करने लगे,  अंततोगत्वा 51 रुपया देने के बाद छुटकारा मिला, मंदिर की परिक्रमा आदि करने के बाद एक रेस्टोरेंट में नाश्ता किया गया और चाय पी गई।  अब तक लगभग 11 बज चुके थे, हम लोगों ने जिस दुकान से प्रसाद खरीदा था वही पर अपना सामान भी रख दिया I 

दोस्तों इस प्रयागराज की यात्रा ब्लॉग का पार्ट 2 तो हमने पहले लिख लिया था और तीसरा यह विंध्याचल का जो पार्ट है यह लिखने में काफी समय लगा पता नहीं क्यों इच्छा ही नहीं कर रही थी कि कुछ लिखें मन कही डाइवर्ट हो गया था, चलिए अब इसे फिर पूरा करते हैं और इसके बाद भी हमने बहुत सारी यात्राएं की उसको भी नहीं लिखा, उसके बाद में जो भी यात्राएं हमने की है वह सारे ब्लॉग आपको पढ़ने को मिलेंगे तो  लिखने में देरी हुई उसके लिए हम आप सभी से क्षमा चाहते हैंI

माँ काली खोह


अब हम लोगों की इच्छा माँ काली खोह, अष्ट भुजा देवी मंदिर और जो बाकी अन्य स्थल है उनको देखने की थी तो हम लोगों ने वहीं से ऑटो रिक्शा किया और सीधे माँ काली खोह मंदिर जा पहुंचे I हम लोग जब वहां पहुचे तो उस समय मंदिर बंद था और बाहर भीड़ लगी हुई थी, पता चला मंदिर थोड़ी देर में खुलेगा तो हम लोग भी प्रसाद लेकर के लाइन में लग गए और करीब आधे घंटे के बाद मंदिर का कपाट खुल गया और हम लोग मंदिर में दर्शन के लिए अंदर गए I दोस्तों आप लोग जब भी विंध्याचल में दर्शन करने आए तो साथ में कुछ खुले पैसे जरूर रखें क्योंकि यहां जो पण्डे पुजारी है हर जगह आपसे पैसा चढ़ाने का आग्रह करते हैं तो खुले पैसे रहेंगे तो ठीक रहेगा I हम लोगों ने मां काली खोह का दर्शन किया और मंदिर के पीछे जो प्रांगण है उसी में एक कुआं है हम लोगों ने  प्यास लगी थी तो जल पिया  उसके बाद और पीछे जो मंदिर है वहां दर्शन किया और बाहर आ गए I

माँ अष्ट भुजा देवी


बाहर आने के बाद हम लोगों ने एक ऑटो रिक्शा पकडा और उसके बाद वहां से हम लोग अष्टभुजा देवी मंदिर आ गए यहां भी प्रसाद लेकर हम लोगों ने भी चढ़ाई शुरू कर दी, मंदिर तक पहुचने के लिए दी ढाई सौ सीधी की चढ़ाई है थोड़ी देर के बाद मंदिर के नजदीक पहुच गए I  भीड़ बहुत बढ़ गयी थी  मंदिर प्रबंधन अगर चाहे तो भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कुछ व्यवस्था कर सकते हैं लेकिन उसके लिए कोई व्यवस्था यहां नहीं दिखी सभी लोग  एक दूसरे को धकियाते  हुए दर्शन के लिए आगे बढ़ रहे थे फिर हम लोगों ने भी मां अष्टभुजा देवी जी का दर्शन किया I  दोस्तों अष्ट भुजा देवी श्री कृष्ण जी की वही बहन है  जिसको कंस ने मारने की कोशिश की थी वही यहां विंध्याचल में आकर के अष्ट भुजा  देवी के रूप में विराजमान है I हम लोग अष्टभुजा देवी का दर्शन करके बाहर आ गए और उतरते समय दाहिने हाथ की तरफ बाग जैसा है तो उधर चले गए वहां हमने देखा कि कुछ लोग बाटी चोखा बना रहे थे और यहां आपको बाटी चोखा बनाने के लिए जो भी सामग्री होती है वह सारी सामग्री यहां मिल जाती है लोग सहयोग भी करते हैं पैसा देना पड़ता है तो हम लोग भी वहां कुछ देर बैठे रहे और थोड़ा बहुत कुछ खाया पिया और उसके बाद हम लोग वापस चल दिए विंध्याचल के लिए विंध्याचल में माता रानी का दर्शन तो हो ही गया था I हम लोग अपना सामान जहां से हमने प्रसाद लिया था वही रख दिया था और एक छोटा बैग लेकर के आए थे, हम लोगों ने सोचा कि चलो अभी समय है और चलते हैं माँ गंगा के किनारे बैठते हैं और हम लोग पैदल ही वहां से गंगा नदी के किनारे पहुच गए I  इस समय माघ के महीने में  पानी काफी ज्यादा था,  हम लोग करीब डेढ़ घंटे गंगा नदी के किनारे बैठे रहे और पतीत पावनी मां गंगा का दर्शन किया और उनका आशीर्वाद लिया और अब शाम हो चुका था लगभग 6:30 बजे हुए थे और हम लोगों की ट्रेन रात में 10:30 बजे थी त्रिवेणी एक्सप्रेस I हम लोग रेलवे स्टेशन चले आये और वहीं बैठ करके  आराम किया और ट्रेन का इंतजार करते रहे I 8 बजे मैं होटल से खाना  पैक करा लाया और स्टेशन पर बैठ कर ही हमने खाना खाया I त्रिवेणी एक्सप्रेस अक्सर लेट हो जाती है आने का समय उसका 10:30 बजे है लेकिन यह आई लगभग 1:30 बजे रात में और तब तक हम लोग इंतजार करते रहे ठंडक भी बढ़ गई थी और ट्रेन आने के बाद हम लोग अपने बर्थ पर चद्दर बिछा करके और अपना कम्बल ओढ़ करके सो गएI सुबह जब नीद खुली तो ट्रेन रायबरेली से चल रही थी दोस्तों लगभग 9:30 बजे हम लोग लखनऊ पहुंच गए जबकि त्रिवेणी एक्सप्रेस का टाइम लखनऊ पहुंचने का 8:00 बजे का होता है I वहां से हम लोगों ने एक ऑटो बुक किया और अपने घर पहुंच गए तो दोस्तों यह रहा हम लोगों का लखनऊ से प्रयागराज और विंध्याचल  की यात्रा का ब्लॉग हम लोगों की  यात्रा बहुत ही सुखद और सुंदर हुई इसमें हमारे परम आदरणीय मिश्रा जी का भी विशेष योगदान था जिनके साथ हम लोगों ने दो दिन निवास किया और उन्ही के साथ गंगा स्नान किया I




विंध्याचल की यात्रा

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