बुधवार, 9 अगस्त 2023

विंध्याचल की यात्रा

विंध्याचल की यात्रा

आज यात्रा का तीसरा दिन था, दो दिन प्रयागराज में स्नान एवं भर्मण के बाद आज का कार्यक्रम विंध्याचल में माँ विंध्यवासिनी का दर्शन करने का था, सुबह उठकर गंगा जी में स्नान करने के बाद चाय पीकर मिश्रा जी  से आज्ञा लेकर हम लोग (मैं और श्री मती जी) पैदल ही चल दिये, रास्ते मे कोई साधन नही मिला और हम लोग पैदल ही टैक्सी स्टैंड पर पहुंच गए, वहाँ से ऑटो पकड़ कर नैनी पुल पर आ गए जहाँ से विन्ध्याचल के लिए बस मिलती है,  करीब 45 मिनट के बाद बस मिली और हम लोग उसमे सवार हो गए, संयोग से खिड़की वाली सीट मिल गयी थी जिससे बस के बाहर की प्राकृतिक सुंदरता को देखने का आनंद मिल रहा था।  दो  घंटे की बस यात्रा के बाद हम लोग माँ विंध्यवासिनी के द्वार पर पहुंच गए ,  मुख्य मार्ग पर बस से उतरने के बाद हम लोग पैदल ही माता के दरबार के लिए चल दिए।  यह विन्ध्याचल आने का जीवन में दूसरा अवसर था, एक बार सन 1990 में  एक परीछा देने के लिए यहाँ आना हुआ था तब माँ का दर्शन हुआ था  उस समय की धुंधली यादे आज दिखाई पड़ रही थी।  

एक दुकान पर प्रसाद आदि लिया गया एवं अपना सामान भी वही रख कर माँ के दर्शन के लिए निकल पड़े, मंदिर परिसर के बाहर ज्यादा भीड़ नहीं थी लेकिन वहाँ के स्थानीय पंडो ने ऐसा माहौल बना रखा था की बस मंदिर बंद होने वाला है और न चाहते हुए भी दर्शन कराने के लिए पीछे पड़  गए, हम लोगों ने कहा की भैया हम लोग दर्शन कर लेंगे लेकिन पीछे पड़े रहे और  जैसे ही  हम लोगों ने माँ  को प्रसाद चढ़ाया तुरंत बाहर कर दिया की आप लोग चलिए मै प्रसाद लेकर आ रहा हू।  कुछ देर के बाद चार - छ लोगो का प्रसाद लिए हुए बाहर आये और 1100 - 1100 रूपये मांगने लगे, हम लोग तो अपने आप को ठगा सा महसूस करने लगे,  अंततोगत्वा 51 रुपया देने के बाद छुटकारा मिला, मंदिर की परिक्रमा आदि करने के बाद एक रेस्टोरेंट में नाश्ता किया गया और चाय पी गई।  अब तक लगभग 11 बज चुके थे, हम लोगों ने जिस दुकान से प्रसाद खरीदा था वही पर अपना सामान भी रख दिया I 

दोस्तों इस प्रयागराज की यात्रा ब्लॉग का पार्ट 2 तो हमने पहले लिख लिया था और तीसरा यह विंध्याचल का जो पार्ट है यह लिखने में काफी समय लगा पता नहीं क्यों इच्छा ही नहीं कर रही थी कि कुछ लिखें मन कही डाइवर्ट हो गया था, चलिए अब इसे फिर पूरा करते हैं और इसके बाद भी हमने बहुत सारी यात्राएं की उसको भी नहीं लिखा, उसके बाद में जो भी यात्राएं हमने की है वह सारे ब्लॉग आपको पढ़ने को मिलेंगे तो  लिखने में देरी हुई उसके लिए हम आप सभी से क्षमा चाहते हैंI

माँ काली खोह


अब हम लोगों की इच्छा माँ काली खोह, अष्ट भुजा देवी मंदिर और जो बाकी अन्य स्थल है उनको देखने की थी तो हम लोगों ने वहीं से ऑटो रिक्शा किया और सीधे माँ काली खोह मंदिर जा पहुंचे I हम लोग जब वहां पहुचे तो उस समय मंदिर बंद था और बाहर भीड़ लगी हुई थी, पता चला मंदिर थोड़ी देर में खुलेगा तो हम लोग भी प्रसाद लेकर के लाइन में लग गए और करीब आधे घंटे के बाद मंदिर का कपाट खुल गया और हम लोग मंदिर में दर्शन के लिए अंदर गए I दोस्तों आप लोग जब भी विंध्याचल में दर्शन करने आए तो साथ में कुछ खुले पैसे जरूर रखें क्योंकि यहां जो पण्डे पुजारी है हर जगह आपसे पैसा चढ़ाने का आग्रह करते हैं तो खुले पैसे रहेंगे तो ठीक रहेगा I हम लोगों ने मां काली खोह का दर्शन किया और मंदिर के पीछे जो प्रांगण है उसी में एक कुआं है हम लोगों ने  प्यास लगी थी तो जल पिया  उसके बाद और पीछे जो मंदिर है वहां दर्शन किया और बाहर आ गए I

माँ अष्ट भुजा देवी


बाहर आने के बाद हम लोगों ने एक ऑटो रिक्शा पकडा और उसके बाद वहां से हम लोग अष्टभुजा देवी मंदिर आ गए यहां भी प्रसाद लेकर हम लोगों ने भी चढ़ाई शुरू कर दी, मंदिर तक पहुचने के लिए दी ढाई सौ सीधी की चढ़ाई है थोड़ी देर के बाद मंदिर के नजदीक पहुच गए I  भीड़ बहुत बढ़ गयी थी  मंदिर प्रबंधन अगर चाहे तो भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कुछ व्यवस्था कर सकते हैं लेकिन उसके लिए कोई व्यवस्था यहां नहीं दिखी सभी लोग  एक दूसरे को धकियाते  हुए दर्शन के लिए आगे बढ़ रहे थे फिर हम लोगों ने भी मां अष्टभुजा देवी जी का दर्शन किया I  दोस्तों अष्ट भुजा देवी श्री कृष्ण जी की वही बहन है  जिसको कंस ने मारने की कोशिश की थी वही यहां विंध्याचल में आकर के अष्ट भुजा  देवी के रूप में विराजमान है I हम लोग अष्टभुजा देवी का दर्शन करके बाहर आ गए और उतरते समय दाहिने हाथ की तरफ बाग जैसा है तो उधर चले गए वहां हमने देखा कि कुछ लोग बाटी चोखा बना रहे थे और यहां आपको बाटी चोखा बनाने के लिए जो भी सामग्री होती है वह सारी सामग्री यहां मिल जाती है लोग सहयोग भी करते हैं पैसा देना पड़ता है तो हम लोग भी वहां कुछ देर बैठे रहे और थोड़ा बहुत कुछ खाया पिया और उसके बाद हम लोग वापस चल दिए विंध्याचल के लिए विंध्याचल में माता रानी का दर्शन तो हो ही गया था I हम लोग अपना सामान जहां से हमने प्रसाद लिया था वही रख दिया था और एक छोटा बैग लेकर के आए थे, हम लोगों ने सोचा कि चलो अभी समय है और चलते हैं माँ गंगा के किनारे बैठते हैं और हम लोग पैदल ही वहां से गंगा नदी के किनारे पहुच गए I  इस समय माघ के महीने में  पानी काफी ज्यादा था,  हम लोग करीब डेढ़ घंटे गंगा नदी के किनारे बैठे रहे और पतीत पावनी मां गंगा का दर्शन किया और उनका आशीर्वाद लिया और अब शाम हो चुका था लगभग 6:30 बजे हुए थे और हम लोगों की ट्रेन रात में 10:30 बजे थी त्रिवेणी एक्सप्रेस I हम लोग रेलवे स्टेशन चले आये और वहीं बैठ करके  आराम किया और ट्रेन का इंतजार करते रहे I 8 बजे मैं होटल से खाना  पैक करा लाया और स्टेशन पर बैठ कर ही हमने खाना खाया I त्रिवेणी एक्सप्रेस अक्सर लेट हो जाती है आने का समय उसका 10:30 बजे है लेकिन यह आई लगभग 1:30 बजे रात में और तब तक हम लोग इंतजार करते रहे ठंडक भी बढ़ गई थी और ट्रेन आने के बाद हम लोग अपने बर्थ पर चद्दर बिछा करके और अपना कम्बल ओढ़ करके सो गएI सुबह जब नीद खुली तो ट्रेन रायबरेली से चल रही थी दोस्तों लगभग 9:30 बजे हम लोग लखनऊ पहुंच गए जबकि त्रिवेणी एक्सप्रेस का टाइम लखनऊ पहुंचने का 8:00 बजे का होता है I वहां से हम लोगों ने एक ऑटो बुक किया और अपने घर पहुंच गए तो दोस्तों यह रहा हम लोगों का लखनऊ से प्रयागराज और विंध्याचल  की यात्रा का ब्लॉग हम लोगों की  यात्रा बहुत ही सुखद और सुंदर हुई इसमें हमारे परम आदरणीय मिश्रा जी का भी विशेष योगदान था जिनके साथ हम लोगों ने दो दिन निवास किया और उन्ही के साथ गंगा स्नान किया I




सोमवार, 26 अप्रैल 2021

प्रयागराज की यात्रा भाग -2

 प्रयागराज की यात्रा भाग -2


आज यात्रा का दूसरा दिन था, सुबह उठकर गंगा जी मे स्नान, पूजा आदि करने के बाद मिश्रा जी ने कहा कि आज श्री सोमेश्वर महादेव मंदिर चलते हैं, जो यमुना नदी (नैनी का पुल ) पार कर अरैल गांव में पड़ता है। यहाँ के लोगों में श्री सोमेश्वर महादेव की बड़ी मान्यता है, ऐसा माना जाता है कि इस शिव लिंग की स्थापना स्वयं चंद्र देव ने अपने छय रोग से मुक्ति के लिये की थी और  उसके बाद भगवान शिव की घोर तपस्या की, चन्द्र देव की तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और दक्ष प्रजापति के श्राप से मुक्त किया, तभी से  यहाँ भगवान सोमेश्वर महादेव की पूजा अर्चना में लोगों की बड़ी आस्था  हैं। 

मिश्रा जी ने एक ऑटो वाले से 1000 रूपये में बात करके चलना तय किया, हम सभी 10 लोग थे और इस हिसाब से एक आदमी का 100 रूपये का खर्चा हुआ, कुछ देर बाद ऑटो वाला आ गया और सभी लोग उसमे सवार होकर भगवन सोमेश्वर का दर्शन करने के लिए चल दिए I ऑटो वाला मेला परिसर से निकल कर प्रयागराज की सडकों से होता हुआ नैनी के पुल से गुजरने लगा, नैनी का पुल अपने आप में एक उच्च तकीनीकी का उदहारण है जिसके बीच में कोई पिलर नहीं है और जो ह्य्द्रोलिक तारों से जुड़ा हुआ है, चूकी मै प्रयागराज दूसरी बार आया था और नैनी का पुल पहली बार देख रहा था तो मेरे लिए बड़े उत्सुकता का विषय था , 

नैनी का पुल पार करने के करीब पांच किलोमीटर आगे अरैल गाँव है जहाँ भगवन सोमेश्वर महादेव का मंदिर है , करीब एक घंटे की यात्रा के बाद हम लोग वहां पहुच गए, सभी लोगों ने प्रसाद और जल लेकर भगवान सोमेश्वर का दर्शन और पूजन किया, भगवन सोमेश्वर के साथ यहाँ माँ लक्ष्मी - भगवन गणेश, हनुमान जी , नाग नागेश्वर, नंदी एवं माँ काली की भी प्रतिमाये है, हम लोगों ने सभी देवताओ का पूजन, अर्चन एवं ध्यान किया और थोड़ी देर वहां विश्राम किया, शरीर एवं मन की सारी थकान दूर हो गई,  वहां से आने की इच्छा तो नहीं हो रही थी लेकिन ऑटो वाले को देर हो रही थी तो हम लोग श्री  सोमेश्वर को प्रणाम करके वापस चल दिए 

यही पर एक और मंदिर दिखा त्रिवेणी धाम, माँ  गंगा , माँ यमुना और माँ सरस्वती जी का मंदिर, यहाँ भी हम लोगों ने पूजा अर्चना किया और उसके बाद वापसी के लिए ऑटो में बैठ कर चल दिए ,  आते समय हम लोगों ने नैनी के पुल को ठीक से नहीं देखा था तो विचार बना की वापसी में इसको ठीक से देखा जायेगा , पुल पर पहुच कर ऑटो वाले को रुकने का निर्देश दिया और फिर फोटो आदि खीचा उसके बाद फिर ऑटो में बैठ कर चल दिए , वापसी में माँ आलोपी का भी दर्शन किया गया और अंत में अपने तम्बू में आ गए 

भोजन आदि करके कुछ देर विश्राम किया गया , मिश्रा जी ने बताया की पीछे की तरफ शाम चार बजे से सात बजे तक बहुत अछी कथा होती है वहां चला जायेगा, शाम को हम लोग फिर अपने तम्बू से निकल कर मुख्य सड़क तक आये, मैंने मिश्रा जी से कहा की हम लोग नाग वासुकी जी का दर्शन करना चाहते है तो उन्होंने कहा ठीक है आप लोग पांच नंबर पुल पार करके सीधे दाहिने हाथ की तरफ चले जाईये करीब एक किलोमीटर पर नाग वासुकी का मंदिर है, मै और श्री मती  जी पैदल ही चल दिए और करीब पैतालीस मिनट की यात्रा के बाद नागवासुकी मंदिर पहुच गए

नाग वासुकी मंदिर की महिमा 

यह एक प्राचीन मंदिर है जिसमे शेषनाग और नागों के राजा  वासुकी जी की मूर्ति विराजमान  है, ऐसी मान्यता है की प्रयागराज आने वाला हर व्यक्ति जब तक नाग वासुकी का दर्शन नहीं कर लेता तब तक उसका प्रयाग दर्शन अधुरा माना जाता है, जन श्रुति के अनुसार जब औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था तब ओ यहाँ भी आया था और जैसे ही उसने तलवार चलाई तो नागो के राजा वासुकी का भयानक रूप सामने आ गया जिसे देखकर ओ बेहोश हो गया, यह एक अति प्राचीन मंदिर है, जो यहाँ आकर दर्शन कर लेता है ओ कालसर्प दोष से मुक्त हो जाता है, श्रावण मॉस में तो यहाँ भारी  भीड़ होती है और बहुत सारे लोग कालसर्प दोष की पूजा आदि करवाते है 

हम लोगों ने बाहर से ही मंदिर का दर्शन किया क्योकि उस समय मंदिर का गर्भ गृह बंद था, बाहर से ही शेषनाग और नाग वासुकी जी का दर्शन किया और मन में ही  पूजन किया और काफी देर तक वहां बैठ कर ध्यान किया, मंदिर परिसर से कुम्भ मेला का दृश्य बड़ा ही सुन्दर दिख रहा था, गर्भ गृह की परिकर्मा आदि की और वहा स्थित अन्य मंदिरों का भी दर्शन किया , परिसर के बगल में ही भीष्म जी की शर शैया पर लेटी हुई प्रतिमा है उसका भी दर्शन किया गया, अब तक अँधेरा हो गया था और अब अपने तम्बू में जाने का समय था तो हम लोगों ने  फिर एक बार  शेषनाग और नाग वासुकी  जी को प्रणाम किया और जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए छमा  मांगी और फिर वापस माँ गंगा के तट पर लगे तम्बू की तरफ चल दिए, करीब एक घंटा की यात्रा के बाद हम लोग अपने तम्बू में पहुच गए, इस बीच मैंने उन लोगों को बहुत करीब से देखा जो  लोग महीने भर से कल्पवास कर रहे थे और सारे मोह माया से मुक्त हो कर माँ गंगा के पावन  तट पर रह कर भगवत भाव से भजन कीर्तन करते है, बड़ा सुन्दर जीवन है उनका, मैंने भी मन ही मन में निश्चय किया की मै भी आने वाले समय में कल्पवास करूँगा और इस सुख का अनुभव करूँगा 

तम्बू में पहुच कर भोजन आदि किया गया और उसके बाद मै मुख्य मार्ग पर टहलने आ गया जहा एक जगह भगवान राम की सुन्दर कथा चल रही थी , करीब एक घंटा कथा सुनने के बाद पुनः तम्बू में आ गया और इस प्रकार दूसरे दिन की यात्रा पूरी हुई

    
















शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

प्रयागराज की यात्रा भाग -1

प्रयागराज की यात्रा भाग -1

यात्रा का दिनाँक 12 फरवरी 2021

कॅरोना काल से ही कही यात्रा पर जाने की बहुत इच्छा थी, परन्तु संयोग नहीं बन पा रहा था, जनवरी मे झाँसी जाने का कार्यक्रम बना था लेकिन मेरे सह यात्री राम प्रकाश शुक्ला जी की चाची का देहांत हो जाने के कारण ओ यात्रा निरस्त हो गयी। फिर भी मैंने जनवरी में अयोध्या जी की यात्रा कर ली जिसका विवरण मैंने इसके पहले वाले ब्लॉग में दिया हुआ है, तो आईये चलते हैं प्रयागराज की यात्रा पर।
प्रयागराज जाने का कार्यक्रम भी कई बार बना और कई बार निरस्त हुआ, परन्तु मैंने सोच लिया था कि संगम में स्नान करने के लिए तो जाना ही है। इसके लिए मैंने अपना और श्री मती जी का आरक्षण ट्रेन में लखनऊ से प्रयागराज के लिए 12 फरवरी 2021 को करवा लिया था। शाम को ऑफिस से आने के बाद एक बैग में कपड़ा और एक मे दो कम्बल रखकर घर से 9 बजे चार बाग स्टेशन के लिए निकल गया। ऑटो पकड कर करीब साढ़े 10 बजे स्टेशन पहुँच गए और ट्रेन 11 बजे की थी जो 2 नम्बर प्लेट फॉर्म पर आने वाली थी, खाना वगैरह सब घर से खाकर निकले थे तो बस ट्रेन की ही प्रतीक्षा थी जो अपने नियत समय से 10 मिनट की देरी से आ गई। ट्रेन में एस 2 बोगी में दोनों मिडिल बर्थ मिली थी। अपना अपना कम्बल बिछा कर और 3 बजे का अलार्म लगा कर लेट गए। रास्ते मे ट्रेन लेट होने के कारण करीब साढ़े 4 बजे प्रयाग राज स्टेशन पहुंची।

प्रयागराज जाने के  पहले ही हमारे मुहल्ले के मिश्रा जी जो की शाखा के कार्यवाह भी रह चुके है उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि मैं 9 फरवरी से 18 फरवरी तक प्रयागराज में रहूँगा। स्टेशन पर उतरने के बाद हम लोग पैदल ही संगम के लिये चल दिये। मिश्रा जी से बात हुई तो उन्होंने बताया कि ओ 5 नम्बर पुलिया के पास विनोद पंडा के यहाँ ठहरे हुए हैं।
प्रयागराज आने का जीवन में ये दूसरा अवसर था, पहली बार जब अर्ध कुंभ लगा हुआ था तब आये थे और दूसरी बार आज। पूछते पूछते हम लोग विनोद पंडा के यहाँ पहुँच गए, मिश्रा जी गेट के बाहर ही प्रतीक्षा करते हुए मिल गए और अपने टेन्ट की ओर ले गए। वहाँ पहुँच कर हम लोगोँ ने सामान रखा और नित्य कर्म के बाद गंगा स्नान के लिए मिश्रा जी के साथ चल दिये। गंगा जी का घाट वहाँ से मुश्किल से 300 मीटर पर था। गंगा जी के घाट पर पहुंच कर मन ही मन में प्रणाम किया और फिर स्नान पूजा आदि करने के बाद अपने टेन्ट में आ गए। चाय पीने के बाद मैं स्थनीय भर्मण पर निकल गया, जगह जगह भजन कीर्तन एवं प्रवचन का कार्यक्रम चल रहा था ये सब देखकर मन बहुत प्रसन्न हुआ और फिर उन लोगों के बारे में सोचने लगा जो पूरा एक महीना वहा रहकर कल्पवास करते है। कितना आनन्द आता होगा सोचकर ही मन खुश हो गया। हमारे सनातन परंपरा में इस तरह की यात्रायें करना बहुत पुण्य का कार्य माना जाता है जिसमें पुण्य के अलावा
आत्मिक शांति और सुख कितना मिलता है। इसका अनुभव वहाँ पर जाने वाला ही कर सकता है। इसका अनुभव उन लोगों के लिए करना बहुत मुश्किल है जो दिन रात एक करके पैसा कमाने में लगे रहते हैं और ऐसी यात्राओं 
पर जाने वालों को पैसा और समय बर्बाद करने वाला समझते हैं। 
वापस आकर भोजन करने के बाद मिश्रा जी ने कहा की आज किला चलते हैं और संगम में स्नान भी कर लेते हैं, डेरे से निकलते  ही एक ऑटो मिल गया जिसने संगम पर लाकर छोड़ दिया। एक बार फिर स्नान किया गया और प्राचीन किले में स्थित बट वृक्ष का दर्शन किया गया। उसके बाद लेटे हुए हनुमान जी का दर्शन किया गया एवं प्रसाद चढ़ाया गया।
हनुमान जी का दर्शन करने के बाद मिश्रा जी ने कहा कि बिना बेनी माधव जी का दर्शन किये प्रयागराज की यात्रा  पूर्ण नही मानी जाती हैं, तो उसके बाद हम सभी लोग बेनी माधव जी का दर्शन करने के लिए चले गए। उसी बीच मेरे मामा का लड़का जो कि प्रयागराज में रह कर तैयारी करता है उसका फोन आ गया। मिश्रा जी सपत्निक दर्शन करने के बाद डेरे की ओर चले गए और मैं सपत्निक माता अलोपी का दर्शन करने चला गया। अलोपी मंदिर प्रयागराज का एक प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर में दर्शन पूजन किया गया तब तक मामा जी का लड़का पंकज भी आ गया, वही चाय नास्ता किया गया और फिर प्रयागराज में स्थित अन्य मंदिरों का दर्शन करने के लिए चल दिया।
मामा जी का लड़का जो कि चार साल से प्रयागराज में रहकर पढाई कर रहा है उसे वहाँ स्थिति सभी प्रमुख मंदिरों की जानकारी है। 
सबसे पहले हम लोग नौ ग्रह मंदिर गए, यह एक आधुनिक तरीके से बना हुआ बहुत सुन्दर मंदिर है जिसमें एक बहुत बड़े हाल में नौ ग्रह की मूर्तियां एवं उनका संक्षिप्त परिचय लिखा हुआ है, मंदिर में चित्र खीचना वर्जित है जिसके कारण अन्दर का चित्र नही ले पाये। नौ ग्रह मंदिर बाहर से देखने में भी बहुत खूबसूरत है। मंदिर में दर्शन पूजन के बाद कुछ देर विश्राम किया गया, उसके बाद परिसर में कुछ फोटो खीचा गया।
अब अगला पड़ाव थोड़ी दूरी पर स्थित हनुमान जी का मंदिर था वहाँ भी दर्शन पूजन किया गया एवं कुछ देर वहाँ बैठे रहे उसके बाद पंकज ने बताया कि नैनी पुल के पास मनकामेश्वर मंदिर है जो कि शंकर जी का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है और सोमवार को तो वहाँ बहुत भीड़ होती हैं। वहाँ से हम लोग ऑटो पकड़ कर मनकामेश्वर मंदिर गए और दर्शन पूजन किया गया, मंदिर बहुत पुराना एवं सुंदर है, मंदिर परिसर के बगल से ही गंगा जी बहती है और वहाँ से गंगा जी बहुत सुंदर दिखाई देती हैं। कुछ देर तक वहाँ बैठकर भगवान शिव का ध्यान किया गया और चढ़ाया हुआ प्रसाद खाकर पानी पिया गया। अब तक अँधेरा हो चला था। मंदिर से निकल कर कुछ देर चलने के बाद एक ऑटो मिल गया जिसने मेला स्थल तक छोड़ दिया, इसी बीच मिश्रा जी का फोन भी आ गया कि कहां है आप लोग उनको यथा स्थिति से अवगत कराने के बाद पैदल ही घूमते हुए हम लोग भी डेरे पर पहुंच गए और इस तरह आज की यात्रा समाप्त हुई।





















रविवार, 23 अगस्त 2020

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 3

 

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 


यात्रा का पाँचवाँ  दिन 01   अक्टूबर  2009 दिन गुरुवार 

आज यात्रा का अंतिम दिन था, जिसमे शिव खोड़ी की यात्रा के बाद वापस जम्मू से ट्रैन पकड़ना था।  सुबह जल्दी उठकर फ्रेश होकर गाड़ी वाले को फ़ोन किया तो ओ बोला की मै रास्ते में हू और पांच मिनट में पहुंच जाऊँगा।  हम लोगों ने सामान पहले ही पैक कर लिया था और अब कमरे से निकल कर रिसेप्शन पर आ गए, होटल वाले का बिल भुगतान किया उसके बाद सड़क पर आ गए, कुछ ही देर में गाड़ी भी आ गई।  सभी लोग गाड़ी में सामान रखने  के बाद बैठ गए, उसके बाद गाड़ी कटरा बस अड्डा होते हुए शिव खोड़ी जाने वाले मार्ग  पर पहुंच गई।  कुछ देर बाद पहाड़ी रास्तो पर गाड़ी चलने लगी और सभी लोग पहाड़ पर चलते हुए रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर - सुन्दर पहाड़ों को देख कर रोमांचित होने लगे।  

कटरा से शिव खोड़ी की दूरी लगभग 75 किलोमीटर है  जो जम्मू के रियासी जिले में पड़ता है और रास्ता भी पहाड़ी और रोमांच से भरपूर है, वैसे तो इस यात्रा में लगभग दो घंटे लगते है, किन्तु हम लोग रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर दृश्यों का आनंद लेते और मंदिरो के दर्शन करते हुए चल रहे थे इसलिए समय ज्यादा  लग रहा था।  सबसे पहले बाबा अगहर जित्तो की  मूर्ति के पास रुके, उसके बाद बाबा धनसार में रुके, उसके बाद   हम लोग एक प्रमुख मंदिर नौ देवी में रुके, जिसके बारे में मान्यता है की यहाँ नौ देविया एक  साथ विराजमान है, और  एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है, मंदिर के नीचे ही एक पतली सी जलधारा बहती है जिसका पानी बहुत स्वच्छ और साफ है, गुफा काफी सकरी है जिसमें अंदर एक साथ दो तीन लोग ही जा पाते है, हम लोगों ने भी प्रसाद लेकर जलधारा में पैर धोया और उसके बाद दर्शन किये। 
   


यह चित्र मंदिर के द्वार का है जो गूगल से लिया गया है 


इस तरह हम लोग 10 बजे रनसू पहुंच गए, यहाँ से शिव खोड़ी की पैदल यात्रा साढ़े तीन किलोमीटर की है, सामान  हम लोगों ने गाड़ी में ही छोड़ दिया, एक छोटे से बैग में मतलब भर का सामान लेकर बाबा के दर्शन के लिए चल दिए। यहाँ से जब शिवखोड़ी के लिए आगे बढ़ते हैं, तो रास्ते में एक नदी पड़ती है। नदी का जल दूध जैसा सफेद होने की वजह से इसे दूध गंगा भी कहते हैं। करीब दो घंटे की यात्रा के बाद हम लोग बाबा के भवन तक पहुंचे, शिवखोड़ी स्थान पर पहुँचते ही सामने एक गुफ़ा दिखाई देती है। गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए लगभग 60 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। गुफ़ा में प्रवेश करते ही लोगों के मुख से  बरबस ही जय बाबा  बर्फानी और ॐ नमः शिवाय का उद्घोष  होने लगता है।   वहां पर हाथ पैर धोने के बाद सामान एक दुकान पर रख दिए और लाइन में लग गए।  थोड़ी ही देर में उस जगह पहुंच गए जहाँ से बाबा की गुफा  प्रारम्भ होती है।  गुफ़ा का मुहाना काफ़ी बड़ा है। यह 20 फीट चौड़ा और 25  फीट ऊँचा है। गुफ़ा के मुहाने पर शेषनाग की आकृति के दर्शन होते है और यहाँ पर भी अमरनाथ की तरह कबूतरों का जोड़ा दिख जाता है, हम  सभी लोग एक जगह पर बैठ गए, इस समय इतनी शांति मिली की जिसका वर्णन करना बहुत मुश्किल है, जीवन में पहली बार इस तरह का एहसास हुआ,  सारी थकान जैसे पल भर में दूर हो गई और मन में एक नई ऊर्जा का संचार हो गया।  

कुछ देर रुकने के बाद हम लोगों ने भी गुफा  में प्रवेश किया, ये एक 800 फिट  लम्बी, 3  फिट  चौड़ी और लगभग 6  से 8  फिट  ऊँची गुफा है, जिसमे जगह जगह से पानी की बूंदे गिरती रहती है, कमजोर दिल वाले अंदर जाने से घबराते  है, उनके लिए बाहर  से एक रास्ता बनाया गया है, जिसमे बिना गुफा में प्रवेश किये ही वे अन्दर मुख्य हाल तक पहुंच जाते है, गुफा से प्रवेश करने वालों का निकास द्वार भी वही रास्ता है।  हम लोग भोले शंकर का जै कारा लगाते  हुए गुफा में प्रवेश कर गए शुरू में डर लग रहा था लेकिन ॐ नमः शिवाय का जप करते हुए  चलते रहे और सारा डर समाप्त हो गया  और अंदर हाल में पहुंचने के बाद तो सब भूल गया, गुफा की भव्यता अकथनीय और अकल्पनीय है।  वहाँ पुजारी जी बता रहे थे , गुफा में  भगवान शंकर का 4 फीट ऊँचा शिवलिंग है। इसके ठीक ऊपर गाय के चार थन बने हुए हैं, जिन्हें कामधेनु के थन कहा जाता है। इनमें से निरंतर जल गिरता रहता है।


शिवलिंग के बाईं ओर माता पार्वती की आकृति है। यह आकृति ध्यान की मुद्रा में है। माता पार्वती की मूर्ति के साथ ही में गौरी कुण्ड है, जो हमेशा पवित्र जल से भरा रहता है। शिवलिंग के बाईं ओर ही भगवान कार्तिकेय की आकृति भी साफ़ दिखाई देती है। कार्तिकेय की प्रतिमा के ऊपर भगवान गणेश की पंचमुखी आकृति है। शिवलिंग के पास ही में राम दरबार है। गुफ़ा के अन्दर ही हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृति बनी हुई है। गुफ़ा के ऊपर की ओर छहमुखी शेषनाग, त्रिशूल आदि की आकृति साफ़ दिखाई देती है। साथ-ही-साथ सुदर्शन चक्र की गोल आकृति भी स्‍पष्‍ट दिखाई देती है। गुफ़ा के दूसरे हिस्से में महालक्ष्मी, महाकाली, सरस्वती के पिण्डी रूप में दर्शन होते हैं। हम लोग लगभग आधा घंटा गुफा में रहे उसके बाद बाहर निकल आये। 

बाहर आकर दुकान से सामान लिया और  दुकान पर बैठ कर चाय पिया गया और नास्ता  किया उसके बाद वापस रनसू की   की ओर वापस चल दिए। बीच में दूध गंगा नदी के पास रुके और बच्चो ने पानी में खूब आनंद लिया, हम लोग भी पानी में घुसकर एक बड़े पत्थर पर बैठ कर पानी में तैरती मछलियों को काफी देर तक देखते रहे, उसके बाद फिर रंसू की ओर चल दिए और लगभग 2 बजे रन सू पहुंच गए। अब हम लोगों को जम्मू जाना था जो यहां से लगभग 100 किलोमीटर था, गाड़ी के ड्राईवर ने कहा कि रास्ते में एक दो मंदिर और पड़ेंगे वहां भी दर्शन करते हुए आपको शाम तक जम्मू स्टेशन पहुंचा देंगे। इस  प्रकार शाम को पांच बजे हम लोग जम्मू पहुंच गए, सभी लोग थके हुए थे तो जिस प्लेट फार्म पर ट्रेन आने वाली थी उसी पर एक बेंच पर डेरा जमाया गया और कुछ लोग नीचे चद्दर बिछा कर आराम किए, ट्रेन अपने निर्धारित समय से 15 मिनट देरी से जम्मू से चल दी और अगले दिन शाम तक हम लोग अपने घर पहुंच गए,  इस तरह हम लोगों की मा वैष्णो देवी की यात्रा समाप्त हुई। ये यात्रा मैंने 2009 में की थी लेकिन लिखने का मौका अब मिला क्योंकि उस समय मै  ब्लॉग नहीं लिखता था, ब्लॉग लिखना मैंने 2019 में शुरू किया और मार्च से लेकर अब तक कोई यात्रा नहीं हो पाई थी सोचा कि जो यात्राएं पहले की गई है क्यों न उनको लिखा जाए, फोटो कुछ उस समय मोबाइल से लिए गए थे और कुछ गूगल से, लॉक डाउन के बाद होने वाली यात्रा भी जल्दी ही आएगी।





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मंगलवार, 11 अगस्त 2020

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 2


यात्रा का तीसरा  दिन 29  सितम्बर 2009 दिन मंगलवार 

हम लोग कमरे से करीब सात बजे माँ के दरबार में जाने के लिए निकले, माँ का जयकारा लगाते हुए और भजन गाते हुए पूरे उत्साह में हम लोगों की टोली चल रही थी जिसमे बच्चे सबसे आगे चल रहे थे, कुछ दूर चलने के बाद थकान महसूस होने लगी तो एक दुकान से सभी लोगों ने डंडा लिया जिसके सहारे चढ़ाई करने में आसानी होती है और डंडे के सहारे चलते हुए बाणगंगा नदी पर पहुंच गए, चेक पोस्ट पर सिक्योरिटी चेक होने के बाद आगे बढे,  बाणगंगा नदी के किनारे बैठकर नदी के जल को निहारते हुए असीम सुख का आनंद महसूस हुआ कुछ बच्चों ने वहाँ नहाया भी और जी भरकर अठखेलिया की उसके बाद फिर आगे की यात्रा शुरू हो गयी, चूकि हम लोगों की टोली में महिलाये और बच्चे ज्यादा थे तो ओ जगह - जगह रुकते हुए चल रहे थे, बीच - बीच में थकान होने पर कुछ देर कही अच्छी जगह देखकर बैठ जाते और आराम करने लगते इसलिए चढ़ाई में समय ज्यादा  लग रहा था ।

हम लोग 4 बजे अर्धकुमारी पहुंचे और सबसे पहले दर्शन की  पर्ची ली गई, इस समय सभी लोग बहुत थक चुके थे तो फ्रेश होकर हाल के बाहर एक जगह चद्दर बिछा कर आराम करने लगे, वही पर सभी लोगों ने होटल में जाकर खाना खाया और आराम करते करते सो गए, शाम को 6 बजे नींद खुली तब तक अर्द्धकुमारी में दर्शन का समय भी हो गया था, माँ का दर्शन किया गया और थोड़ी देर बाद लगभग साढ़े सात बजे भवन की ओर प्रस्थान किया गया, अर्द्धकुमारी से भवन तक की चढ़ाई हम लोगों ने साढ़े तीन घंटे में पूरी  कर ली और लगभग ग्यारह बजे माता के भवन तक पहुँच गए, सभी लोग काफी थके  हुए थे तो रात्रि में विश्राम कर सुबह 4 बजे दर्शन का निर्णय लिया गया, पास में ही स्थित दुकान से छोला पूड़ी, कढ़ी चावल और राजमा चावल खाया गया और स्टोर से कम्बल लेकर एक जगह देखकर बिछाकर सो गए, सुबह 4 बजे उठे और नहा धोकर तैयार  होने के बाद सामान रखने के लिए लॉकर की तलाश हुई, लॉकर में सामान रखने के बाद प्रसाद लिया गया उसके बाद  लिए लाइन में लग गए, अब तक लगभग साढ़े 6 बज चुके थे। 

सुबह के समय दर्शन करने के लिए भीड़ कुछ ज्यादा  थी, सभी लोग पूर्ण श्रद्धा भाव से माता का जैकारा लगाते हुए आगे बढ़ते रहे और करीब आठ बजे गुफा के बाहर लगी माँ की विशाल प्रतिमा के दर्शन हुए, लाइन  धीरे चलने लगी किन्तु अब कोई जल्दी नहीं थी, हर कोई माँ का गुणगान करता हुआ मन में माँ की प्रतिमा को वसा लेना चाहता था, कुछ देर बाद हम लोग भी गुफा में प्रवेश किये अब तो भक्तो का उत्साह दुगना हो चुका  था और मुझे तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे शरीर की  सारी थकान दूर हो चुकी है, एक ऐसी अलौकिक शीतलता का आभास हुआ जिसका  शब्दो में बर्णन  कर पाना संभव नहीं है, कुछ देर बाद माँ की पिंडी के पास पहुंच गए पुजारी जी ने बताया की ये  माँ महाकाली (दाएं), माँ महासरस्वती  (मध्य) और मां महालक्ष्मी (बाएं) विराजमान  है कुछ सेकण्ड ही दर्शन हुआ उसके बाद आगे बढ़ा दिए गए, माँ के पिंडी की अलौकिक छटा को आँखों में बसाते हुए आगे बढ़ गए, उसके बाद मंदिर परिसर से निकलते समय प्रसाद और नारियल लिया गया और नीचे स्थित दाहिने तरफ  अन्य मंदिरो का दर्शन किया गया, जिसमे शिव लिंग जिस पर प्राकृतिक रूप से पहाड़ी से जल गिरता रहता था अपने आप में अद्भुत था।
 

अब तक लगभग नौ बज चुके थे,  वहां से दर्शन करने के पश्चात एक दुकान पर बैठ कर जलपान किया गया और उसके बाद लाकर से सामान निकाल कर ऊपर आ गए जहाँ  से भैरो घाटी की चढ़ाई शुरु होती है,  ऐसी मान्यता है की जब तक भैरो बाबा के दर्शन नहीं किये जाते है तब तक माँ वैष्णो देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है, भवन से भैरो घाटी की दूरी वैसे तो साढ़े तीन किलोमीटर की है परन्तु ये खड़ी चढ़ाई है इसलिए इसमें थकान ज्यादा होती है, हम लोगों ने दस बजे चढ़ाई शुरु की और करीब एक बजे भैरो घाटी पहुच गए, थोड़ी देर आराम करने के बाद हाथ मुह धोकर प्रसाद लेकर बाबा भैरो नाथ का दर्शन किया गया और दर्शन के बाद दोपहर का भोजन भी वही किया गया और कुछ देर तक मोबाइल से फोटोग्राफी की गयी 

यात्रा का चौथा   दिन 30  सितम्बर 2009 दिन बुधवार 

भैरो घाटी से करीब तीन बजे वापसी की यात्रा प्रारंभ हुई और लगभग सात बजे हम लोग अर्ध्कुमारी पहुच गए, चूकी हम लोगों के साथ बच्चे और महिलाये थी इसलिए हम लोग बहुत आराम से चल रहे थे, अब तक सभी लोग बहुत थक चुके  थे और ये निर्णय लिया गया की रात यही रुका जाये और सुबह यहाँ से चला जायेगा, किराये पर कम्बल लेकर एक साफ सुथरी जगह देखकर डेरा जमाया गया, जिसको जो खाना था खाया और फिर सो गए, अगले दिन सुबह चार बजे उठने के बाद फ्रेश होकर कम्बल आदि जमा करने के बाद 6 बजे अर्ध्कुमारी से नीचे की यात्रा शुरु हुई और रुकते चलते 11 बजे तक हम लोग कटरा पहुच गए, और नहा धोकर खाना खाकर सो गए, शाम को 4 बजे उठने  के बाद कटरा नगर घूमने  गए, कटरा की गलियों में घूमते हुए कुछ सामानों की खरीददारी की गयी और कल शिवखोड़ी जाने के लिए एक गाड़ी भी 2500 रूपये में तय कर ली गयी जो कल सुबह 6 बजे तक आ जायेगी और शिवखोड़ी दर्शन कराने के बाद जम्मू स्टेशन पर छोड़ देगी, जहाँ  से रात में हम लोगों की वापसी की ट्रेन है  

कटरा में ऐसे कई लोग मिले जो अपने यहाँ से जाकर वहां  की प्राकृतिक सुन्दरता से प्रभावित होकर वही बस गए है और अपना रोजी रोजगार कर रहे है, ऐसे ही एक कानपुर के दूबे  जी मिले जो वहां ट्रेवल एजेंसी चलाते है, हम लोगों ने उन्ही की गाड़ी हायर की थी, काफी मिलन सार  और सहयोगी व्यक्ति थे, कटरा बाज़ार घूमते और खरीददारी करते करीब 9 बज गए, उसके बाद हम लोग एक होटल पर खाना खाकर अपने कमरे पर आ गए और कल की तैयारी करने के बाद सो गए 






 





सोमवार, 3 अगस्त 2020

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग – 1

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग – 1

यात्रा का दिनांक 27 सितम्बर 2009 दिन रविवार

ये यात्रा मैंने बहुत पहले की थी और जब से करोना के कारण लाक डाउन हुआ तब से कोई भी यात्रा नहीं हो पाई तो सोचा की जो यात्राये पहले की जा चुकी है उन्ही को क्यों न स्मृतियों के आधार पर करोना काल में लिखकर यात्रा का आनंद लिया जाय I
बात उन दिनो की है जब मैं गोरखपुर में रहता था, माँ वैष्णो देवी के बारे में बहुत लोगों से सुना था लेकिन अभी तक दर्शन का सौभाग्य नहीं मिला था, बहुत दिनों से विचार बन रहा था की माता के दर्शन करने के लिए जाये, कई लोगों से वहा जाने एवं दर्शन करने के बारे में जानकारिया इकट्ठा  की और अंत में फाइनल हो गया की अब माँ के दर्शन के लिए जाना है, नौ जून 2009 को सबका रिजेर्वशन हो गया और एक भारी  भरकम समूह तैयार हो गया जिसमे मेरे माता पिता, मै मेरी पत्नी और तीनों बच्चे मेरे मामा मामी मेरी मौसी और मेरी माँ की बुवा जी कुल  मिलाकर 11 लोग यात्रा के लिए तैयार हो गए और 27 सितम्बर का गोरखपुर से जम्मू का रेजेर्वशन  हो गया I
अभी यात्रा में बहुत समय था और इस बीच बहुत सारे परिवर्तन हुए पहला ये की मै गोरखपुर से लखनऊ आ गया और एक नई कंपनी में नौकरी ज्वाइन कर ली, बहुत दिनों से प्रयास रत था की लखनऊ में नौकरी मिल जाये तो बच्चो की पढाई लिखाई के लिए अच्छा रहेगा और माँ वैष्णो देवी के आशीर्वाद से जुलाई में ही मै लखनऊ आ गया, नौकरी अभी नई थी इसलिए मै अकेला ही लखनऊ में रहकर नौकरी करने लगा और महीने में एक दो बार छुट्टी मिलने पर गोरखपुर चला जाता था इस प्रकार समय का पहिया घूमता रहा और कुछ दिनों तक माँ के दरबार में जाने का ध्यान ही नहीं रहा, सितम्बर के पहले हफ्ते में मेरे मामा जी ने याद दिलाया तो ध्यान आया की अरे हम लोगों को तो 27 तारीख को ट्रेन पकडनी है I

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

मेरी धार्मिक यात्राये

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·     विन्ध्याचल की यात्रा   

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