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गुरुवार, 14 अगस्त 2025

अधूरे सपने "राज और अनु की अधूरी प्रेम कहानी"

राज और अनु की अधूरी प्रेम कहानी



राज, एक लगभग 37 वर्षीय पुरुष, अपनी उम्र से कुछ अधिक थका हुआ और अनुभवों से परिपक्व दिखता था। वह एक छोटे से गाँव के पास स्थित निजी विद्यालय में शिक्षक था। वहाँ की ज़िंदगी साधारण थीसुबह स्कूल जाना, बच्चों को पढ़ाना, शाम को खेतों की सैर करना और रात को परिवार के साथ चुपचाप बैठकर भोजन करना।

राज की शादी को 16 साल हो चुके थे। उसकी पत्नी सविता एक सधी हुई गृहिणी थी। 
उनके दो बच्चे थेएक बेटा जो बारहवी कक्षा में पढ़ता था और एक बेटी जो दसवीं में थी।
घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी, लेकिन राज के भीतर एक खालीपन था, जिसे न वह 
किसी से कह सकता था और न ही समझा सकता था।
राज का सपना था कि वह आगे की पढाई पूरी करे। कभी पारिवारिक जिम्मेदारियों के 

कारण पढ़ाई अधूरी रह गई थी। लेकिन अब वह एक बार फिर अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरा करना चाहता था, क्योंकि पढ़ाई पूरी होने के बाद उसे अपने विद्यालय में तरक्की मिलने की संभावना थी एवं ट्यूशन में भी पैसा बढ़ सकता था, वैसे भी उसकी बचपन से इच्छा थी कि वह उच्च शिक्षा ले कर अपना भविष्य बनाएगा। अब जब बच्चे थोड़े बड़े हो गए थे और घर की

जिम्मेदारियाँ थोड़ी कम हुईं, तो राज ने ठान लिया कि अब वह अपनी अधूरी पढ़ाई को 
पूरा करेगा।

कुछ ही दिनों में उसने एक नज़दीकी शहर के कॉलेज में प्रवेश ले लिया। वहाँ का माहौल उसके गाँव से बिल्कुल अलग थाभीड़-भाड़, युवा ऊर्जा, तेज़ रफ्तार ज़िंदगी।

कॉलेज के पहले ही दिन राज की नज़र अनु पर पड़ी। अनु एक तेज़-तर्रार, हँसमुख और बेहद आकर्षक युवती थी। उसकी उम्र लगभग 25 वर्ष रही होगी। वह भी उसी कक्षा में थी, जहाँ राज ने दाखिला लिया था। दोनों की दुनिया बिल्कुल अलग थी, लेकिन भाग्य ने उन्हें एक ही राह पर ला खड़ा किया।

पहली बार जब अनु ने राज से सवाल पूछा था, तब राज थोड़ा झिझका था। लेकिन अनु की सहजता ने उसे खोल दिया। दोनों की बातों का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ।

राज और अनु की दोस्ती धीरे-धीरे गहराने लगी। अनु को राज का सरल स्वभाव, जीवन के प्रति गहराई और उसकी आँखों में छिपा दर्द बहुत आकर्षित करता था। वहीं, राज को अनु की मासूमियत, जिज्ञासा और जीवन के प्रति उत्साह ने खींच लिया था।

कॉलेज के प्रोजेक्ट, लाइब्रेरी की पढ़ाई, और फिर चाय की दुकानों पर बैठ कर दुनिया की बातें करनायह सब अब रोज़ की दिनचर्या बन चुका था। धीरे-धीरे उनके रिश्ते में कुछ ऐसा जुड़ने लगा था जो सिर्फ दोस्ती से कहीं ज़्यादा था।

समय बीतता गया। राज और अनु अब लगभग हर दिन एक-दूसरे के साथ समय बिताने लगे थे। क्लास के बाद लाइब्रेरी में घंटों साथ पढ़ना, फिर कॉलेज कैंटीन में बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ जीवन की बातें करना उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया था।

एक दिन दोनों साथ-साथ कॉलेज से निकलकर पास ही स्थित नदी किनारे जा पहुँचे। वहाँ बहती ठंडी हवा, शाम का सुनहरा आसमान और आसपास के शांत वातावरण में दोनों की बातचीत पहले से भी अधिक भावुक और आत्मीय हो गई।

अनु ने पूछा,
राज सर... आपको कभी ये नहीं लगता कि आपने अपनी ज़िंदगी बहुत जल्दी तय कर ली थी?”

राज मुस्कराया, लेकिन उसकी मुस्कान में एक अधूरापन था।
हर किसी की ज़िंदगी में कुछ अधूरा रह ही जाता है, अनु। शायद मेरी ज़िंदगी की अधूरी चीज़ें अब तुम्हारे सवालों में मुझे घूरती हैं।

अनु चुप हो गई। लेकिन उसकी आँखें बोल रही थींबहुत कुछ।

अनु को राज के साथ एक अजीब-सी मानसिक शांति मिलती थी और राज को अनु की मौजूदगी में फिर से जीने का अहसास होता था।

अनु रोज़ स्कूटी से कॉलेज आती थी और छुट्टी होने के बाद वह राज को स्कूटी पर अपने पीछे बैठाकर पूरा शहर घुमाती, उसी स्कूटी से वे दोनों कभी कहीं नदी के किनारे या कहीं पार्क में जाकर बैठते और एक-दूसरे को महसूस करते।

एक शाम, नदी के किनारे बैठकर दोनों चुपचाप बहते पानी को देख रहे थे। वह क्षण ऐसा था जब शब्दों की ज़रूरत नहीं थी। अनु ने कहा, “राज, क्या आपने कभी महसूस किया है कि हम दोनों जब साथ होते हैं तो समय रुक सा जाता है?”

धीरे-धीरे दोनों को यह अहसास हुआ कि यह रिश्ता अब सिर्फ दोस्ती तक सीमित नहीं रहा। अनु के मन में राज की परिपक्वता, उसके जीवन के अनुभव और उसका शांत स्वभाव दिल में जगह बना चुका था। वहीं राज को अनु की सादगी, मासूम मुस्कान और उम्मीदों से भरी बातें किसी खोए हुए स्वप्न की तरह लगती थीं।

एक शाम, जब सूरज ढल रहा था और चारों तरफ़ हलकी पीली रौशनी फैली हुई थी, अनु ने राज की आँखों में देखा और कहा, "आपसे बात करके लगता है जैसे मैं खुद को जानने लगी हूँ।"

राज की आँखें भर आईं उसने पहली बार किसी से महसूस किया कि उसे समझा गया है।

राज जानता था कि वह विवाहित है। यह समाज, उसकी जिम्मेदारियाँ, उसका परिवारयह सब उसे अनु से दूर रहने के लिए कहता था। लेकिन दिल कहाँ मानता है?

राज ने देखा, उसकी आँखों में वही सवाल था, जो वर्षों से उसकी आत्मा में बसा हुआ था, पर जो उसने कभी पूछा नहीं। उसने धीरे से कहा, “हाँ, और कभी-कभी मुझे डर लगता है कि ये सब सपना है... जो एक दिन टूट जाएगा।

पर यह दुनिया इतनी सरल नहीं होती। राज का विवाहित होना, उम्र का अंतर, और समाज की सीमाएँ ये सब उन्हें अक्सर भीतर से कचोटते थे। अनु को यह मालूम था, फिर भी वह हर दिन राज से जुड़ती गई।

एक दिन जब दोनों मंदिर गए, तो अनु ने बिना कुछ कहे राज के हाथ में हाथ रख दिया। राज की आँखें नम हो गईं। उसने सिर्फ इतना कहा,

ये साथ अगर पाप है, तो मैं इसे हर जनम दोहराना चाहूँगा।

अब राज और अनु के बीच वह सब कुछ था, जो एक गहरे प्रेम संबंध में होता हैसम्मान, स्नेह, संवाद और मौन समझ।

उनके प्रेम में गहराई थी, लेकिन इसके साथ ही एक दीवार भी थी सामाजिक बंधन और नैतिक मर्यादा। राज शादीशुदा था। उसकी पत्नी और बच्चे थे। अनु इस सच्चाई से अंजान नहीं थी, लेकिन दिल पर किसी का ज़ोर नहीं चलता।

एक ओर वे एक-दूसरे को महसूस करते थे, दूसरी ओर उन्हें समाज की सख़्त सीमाएँ बार-बार याद दिलाती थीं कि उनका रिश्ता कभी पूर्ण नहीं हो सकता।

छुट्टियों में वे पास के किसी पार्क में मिलते, कभी नदियों के किनारे बैठते, कभी मंदिरों में घंटों तक चुपचाप बैठ जाते। वहाँ न कोई सवाल होते, न जवाबबस एक साथ होने की तसल्ली होती।

अनु ने राज के लिए एक डायरी लिखनी शुरू की थी, जिसमें वह हर दिन उसके बारे में अपने भावनाएँ दर्ज करती थी। और राज? वह अपनी पुरानी कविताएँ अनु को पढ़कर सुनाता थावे कविताएँ जो उसने कभी किसी को नहीं सुनाईं।

दोनों ने तीन साल के भीतर डिग्री पूरी कर ली थी। अब राज के लिए कॉलेज आने का कोई बहाना नहीं था, राज को वापस अपने गाँव लौटना था अनु अब आगे एम.ए. करना चाहती थी। उनके रास्ते अलग थे... लेकिन उनके दिल अभी भी एक-दूसरे के साथ थे।

राज अक्सर सप्ताहांत में अनु से मिलने आता। अनु भी कभी-कभी उसके शहर के नज़दीक किसी मेला, पुस्तक मेला या सांस्कृतिक कार्यक्रम में जाती, जहाँ वे चुपचाप मिलते और चंद घंटों के लिए एक-दूसरे की दुनिया बन जाते।

लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, उनके रिश्ते की वास्तविकता ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया। अनु के माता-पिता अब उसके विवाह की चर्चा करने लगे थे। वहीं राज को समाज में कुछ लोगों की निगाहें चुभने लगी थीं।

एक दिन अनु ने राज से कहा,
क्या हम हमेशा यूँ ही मिलते रहेंगे, या कभी साथ रह भी पाएँगे?”

राज ने गहरी साँस ली और कहा,
अगर मेरा बस चलता, तो मैं सारी दुनिया से लड़कर तुम्हें अपना बना लेता। लेकिन मैं वो व्यक्ति नहीं जो किसी को छोड़कर किसी और के साथ नई शुरुआत कर सके। मैं अधूरा हूँ, अनु। और मैं तुम्हें भी अधूरा नहीं बनाना चाहता।

तीन साल हो चुके थे। अनु अब अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी और 
दूसरे शहर में उसकी नौकरी भी लग चुकी थी, एक स्कूल मैं  टीचर 

बन गई थी, घरवालों ने उसका रिश्ता एक अच्छे परिवार में तय कर दिया था। शादी की तारीख भी तय हो गई थी।

एक दिन, अनु ने राज से कहा — "हमें अब रुक जाना चाहिए। यह रिश्ता जितना खूबसूरत है, उतना ही दर्द भी देता है। मैं अब खुद को खोती जा रही हूँ।"

राज चुप रहा। वह जानता था कि अनु सही कह रही है। उसने कहा — "शायद हम इस जन्म में साथ नहीं, पर हर जन्म में तुझे ढूंढता रहूँगा।"

शादी से एक दिन पहले अनु और राज एक बार आखिरी बार मिले। वही पुराना मंदिर, वही नदी किनारा... और वही चुप्पी।

वे घंटों चुप बैठे रहे। फिर अनु ने मुस्कुराते हुए कहा — "आपका साथ एक सपना था, जो अब मेरी यादों में हमेशा के लिए बस गया है।"

राज ने उसकी आँखों को देखा एक उम्र बीत गई उस पल में। वे दोनों अलग हो गए, लेकिन उनका प्रेम कभी समाप्त नहीं हुआ। वह हमेशा जीवित रहा उन ख़ामोश रास्तों में, उन पुरानी किताबों के पन्नों में, उन मंदिर की घंटियों में, और उस नदी की बहती धार में।

राज ने अनु को उसकी डायरी वापस दी, जिसे वह हमेशा अपने पास रखता था।

अनु की आँखों से आँसू रुक नहीं रहे थे। उसने राज से बस इतना कहा,
आप मेरे पहले और आखिरी प्यार हैं। मैं कभी आपको भुला नहीं पाऊँगी।

राज ने अनु की ओर देखा और कहा,
मैं अधूरा था, अधूरा ही रहूँगा। लेकिन तुम्हारा प्यार मुझे पूरा बना गया।

अनु की शादी हो चुकी थी। अब वह एक नए शहर में अपने पति के साथ बस चुकी थी। और जीवन किसी भी सामान्य स्त्री की तरह उसने भी समझौतों और आदतों में ढलना सीख लिया था।

वहीं दूसरी ओर, राज भी अपने गाँव लौट चुका था। वही पुराना स्कूल, वही बच्चे, वही दिनचर्या... पर अब कुछ अलग था। पहले वह शाम को बच्चों को पढ़ाने के बाद मंदिर जाता था, अब वह नदी किनारे जाकर चुपचाप बैठा करता।

समय बीतता रहा, लेकिन न राज ने अनु को भुलाया, और न अनु कभी राज की यादों से बाहर निकली।

राज ने कई बार अनु को पत्र लिखे, लेकिन कभी भेज नहीं सका। वह जानता था कि अनु अब किसी और की पत्नी थी। वही अनु, जिसके साथ उसने सपने देखे थे। जिन रास्तों पर वे साथ चले थे, वहाँ अब सिर्फ यादें रह गई थीं।

उधर अनु ने भी अपनी डायरी लिखना बंद नहीं किया था। उसके हर पन्ने में राज थाउसकी हँसी, उसकी आँखों की उदासी, उसकी बातें, और सबसे ज़्यादा उसकी चुप्पी।

उसने एक बार अपने पति से कहा भी था,
क्या आपको कभी ऐसा महसूस हुआ है कि कोई और अब भी आपके दिल में ज़िंदा है?”
पति मुस्कराया था, शायद वह कुछ समझ गया था, या शायद नहीं।

दस  साल बीत चुके थे।

एक बार राज को पास के शहर में एक शिक्षक सम्मेलन में बुलाया गया। सम्मेलन के बाद उसने सोचा कुछ देर शहर के मेलों में घूम ले। वह किताबों की एक प्रदर्शनी में गया।

वहीं, अनु अपने पति और बच्चे के साथ उसी प्रदर्शनी में आई थी।

राज एक किताब उलट रहा था, तभी किसी ने पीछे से आवाज़ दी
राज सर...?”

राज पलटा, उसकी आँखें अनु से मिलीं। वक़्त जैसे थम गया।

अनु के हाथ में एक छोटी बच्ची थी, और उसके पति पास में खड़े थे। लेकिन उस क्षण जैसे सब अदृश्य हो गया।

राज के होंठ थरथरा उठे,
तुम...?”

अनु ने मुस्कुराकर कहा,
मैं जानती थी, एक दिन ज़रूर मिलेंगे।

अनु ने अपने पति से इशारा किया और कहा,
आप बच्ची को लेकर थोड़ी देर वहाँ बैठिए, मैं सर से बात करके आती हूँ।

राज और अनु पास के एक पेड़ के नीचे बैठे।

आप पहले जैसे ही हैं,” अनु ने कहा।

और तुम... पहले से भी सुंदर,” राज ने धीरे से उत्तर दिया।

कुछ पल दोनों चुप रहे।

राज ने पूछा,
कैसी हो?”

अनु ने आँखें नीची कर लीं,
ठीक हूँ... पर अधूरी।

राज की आँखें भर आईं,
मैं भी।

अनु ने एक छोटा सा लिफाफा राज को दिया।

इसमें मेरी आखिरी डायरी के कुछ पन्ने हैं। जो तुमसे कहना चाहा, पर कह नहीं पाई।

राज ने वह लिफाफा धीरे से अपने दिल से लगाया।

क्या हम फिर मिलेंगे?” राज ने पूछा।

अनु ने सिर हिला दिया,
अब नहीं... शायद अगले जन्म में। लेकिन अगर मिलें, तो अधूरे न रहना।

राज ने पहली बार अनु का हाथ धीरे से थामा, और कहा,
अधूरा था, तुमसे मिला, थोड़ी देर के लिए ही सही... पूरा महसूस किया।

अनु उठी, उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन मुस्कान भी थी।

राज उसी रात गाँव लौट आया। अब वह पहले से अधिक गहरा और शांत हो गया था। अनु की आखिरी डायरी उसके जीवन की सबसे कीमती धरोहर बन गई थी।

वहीं अनु भी, अपने जीवन की गाड़ी में, सब कुछ निभा रही थीपर राज की यादों का हिस्सा बनकर।

समाज की जंजीरें उन्हें बाँध नहीं सकीं, क्योंकि जो रिश्ता आत्मा से जुड़ता है, वह कागज़ों पर नहीं लिखा जा सकता।

वे अधूरे थे, लेकिन उनके बीच जो थावह प्रेम था। और प्रेम कभी अधूरा नहीं होता।


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रविवार, 3 अगस्त 2025

"दो साल का इंतज़ार – एक कर्मचारी की अंतरवेदना"

 

                                          "दो साल का इंतज़ार एक कर्मचारी की अंतरवेदना"

 




 

हर सुबह समय पर दफ्तर पहुँचना, बॉस के ताने सुनना, लक्ष्य पूरा करना, और फिर उम्मीद करना कि शायद इस बार सैलरी बढ़ेगी यह कहानी किसी एक कर्मचारी की नहीं, बल्कि उस तबके की है जो अपना जीवन दफ्तर की चारदीवारी में खपा देता है, पर बदले में सम्मान, प्रगति या संवेदनाएं बहुत कम पाता है।
आज की यह कहानी है राजेश की एक मध्यमवर्गीय कर्मचारी जिसकी तनख्वाह दो सालों से नहीं बढ़ी और दिल में सुलगती रही एक अनकही वेदना...


राजेश कुमार एक सामान्य कार्यालय सहायक था दिल्ली के करोल बाग़ में स्थित "गोयल एंड संस ट्रे़डिंग कंपनी" में काम करता था। उम्र करीब 38 साल की थी। शादी को आठ साल हो चुके थे और एक छह साल की बेटी थी तन्वी।

राजेश सुबह 7 बजे उठता, बेटी को स्कूल भेजता, और 9 बजे तक ऑटो पकड़कर ऑफिस पहुँच जाता।
उसका काम था फ़ाइलें सहेजना, दस्तावेज़ों की फोटोकॉपी कराना, मेल्स चेक करना, और जब-जब मालिक बुलाएँ दौड़कर जाना।
वो न कभी देर से आता, न छुट्टी लेता। एक तरह से दफ्तर में सबका भरोसेमंद आदमी बन चुका था।

लेकिन सच्चाई यह थी कि उसकी मासिक तनख्वाह अब भी 14,500 रुपये ही थी वही जो दो साल पहले थी।

घर में बेटी बड़ी हो रही थी, स्कूल की फीस, दूध, किराया, सिलेंडर, मोबाइल रिचार्ज, दवा सबका खर्च बढ़ चुका था।
लेकिन तनख्वाह वही पुरानी।

राजेश ने पहली बार 2023 में तनख्वाह बढ़ाने का निवेदन किया था।

उस दिन वह मालिक के केबिन में गया
"सर, दो साल हो गए, तनख्वाह में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। घर का खर्च बहुत बढ़ गया है।"

मालिक ने चश्मा नीचे खिसकाते हुए कहा
"राजेश, कंपनी भी अभी घाटे में चल रही है। तुम्हें पता है ना, कोरोना का असर अब तक गया नहीं। थोड़ा और इंतज़ार करो।"

राजेश चुप हो गया। बाहर आकर वह उसी कॉफी मशीन के पास खड़ा हो गया, जहाँ उसकी जेब में एक 10 रुपये का सिक्का बाकी था एक चाय और एक पैकेट पार्ले-जी के लिए।

धीरे-धीरे ऑफिस में नए चेहरे आने लगे।
ऋचाएक नई अकाउंट असिस्टेंट आई, जिसकी शुरुआती तनख्वाह 25,000 रुपये थी।
अंकित, एक मैनेजमेंट ट्रेनी – ₹30,000 लेकर आया।

राजेश सब कुछ देखता रहा। वह जानता था कि वह इतना पढ़ा-लिखा नहीं, पर उसके अनुभव, मेहनत और वफादारी को आखिर कोई कीमत क्यों नहीं?

एक दिन वह ऋचा से बोला
"आपकी सीट के नीचे जो पुरानी LAN वायरें हैं, उनमें से एक टूट चुकी है, कल IT वालों को बुलवा दूँगा।"
ऋचा मुस्कुरा कर बोली – "सर आप तो सब जानते हैं। आप इतने सालों से हैं ना यहाँ?"

राजेश मुस्कराया, लेकिन उस मुस्कान के पीछे एक आह थी – "हाँ, इतने सालों से हूँशायद इसलिए ही सब कुछ सह रहा हूँ।"

राजेश की पत्नी, नीलिमा, एक घरेलू महिला थी। कभी शिकायत नहीं करती थी, लेकिन हर महीने की 28 तारीख़ को वह धीरे से पूछती
"इस बार कुछ बढ़ा क्या?"

राजेश हँसकर टाल देता – "नहीं, पर अगली बार पक्का।"

वह जानता था कि अगली बार कभी नहीं आती

एक दिन बेटी तन्वी बोली
"पापा, इस बार मेरे बर्थडे पर हम स्कूल में चॉकलेट बाँटेंगे ना? सोहम ने पाँच-पाँच डेयरी मिल्क दी थी सबको।"

राजेश का गला भर आया। उसने हँसते हुए कहा
"बिलकुल, इस बार तेरे लिए बड़ी वाली चॉकलेट लाएँगे।"

वह जानता था कि इसके लिए उसे अगले हफ्ते की राशन लिस्ट से कुछ सामान कम करना पड़ेगा।

एक दिन ऑफिस में एक मीटिंग बुलाई गई कंपनी ने कुछ लोगों की सैलरी में बढ़ोतरी की घोषणा की।
राजेश का नाम उसमें नहीं था।

उसने खुद को शांत रखने की कोशिश की, लेकिन जब मालिक ऑफिस से निकल रहे थे, तो वह पूछ बैठा
"सर, मेरी सैलरी दो साल से नहीं बढ़ी, क्या मेरी मेहनत में कमी है?"

मालिक ने चौंक कर देखा
"अरे राजेश! तुमसे कौन नाराज़ है? पर तुम्हारे जैसे लोग तो कंपनी की रीढ़ हैं, तुम चलते रहो... बाकी सब देख लेंगे।"

राजेश ने सिर झुका लिया। यह जवाब नहीं था बस एक मीठा धोखा था।

उसी रात, राजेश छत पर बैठा था। आसमान में चाँद था, और दिल में गुस्सा, दर्द और एक टूटती उम्मीद।
उसने मन ही मन लिखा

जब सबकी तनख्वाह बढ़ी, मेरी नहीं
शायद मैं इतना अनमोल हूँ कि मेरी कीमत तय नहीं हो सकती।
या शायद मैं इतना साधारण हूँ कि कोई देखता ही नहीं।

उसने कागज़ को मोड़ा और जेब में रख लिया।

अगले दिन राजेश ने तय कर लिया वह अब खुद को और नहीं सताएगा

उसने एक पुराना कंप्यूटर कोर्स सर्च किया, जिसे वह ऑनलाइन रात में सीख सकता था
हर दिन ऑफिस से आकर वह एक घंटा सीखता, नोट्स बनाता।

तीन महीने बाद उसने एक नई कंपनी में डाटा एंट्री ऑपरेटर की जॉब के लिए आवेदन किया।

इंटरव्यू में पूछा गया
"आपका अनुभव?"
राजेश बोला – "10 साल का ऑफिस मैनेजमेंट, फाइलिंग, ईमेल, ग्राहक संवाद, और अब डाटा बेसिक स्किल्स।"

उसे जॉब मिल गई ₹21,000 की सैलरी पर।

राजेश ने इस्तीफा दिया।
मालिक चौंके
"तुम जा रहे हो? अचानक?"

राजेश शांत स्वर में बोला
"सालों से सोच रहा था, आज हिम्मत जुटाई है। धन्यवाद, आपने बहुत कुछ सिखाया, पर अब खुद को भी कुछ देना चाहता हूँ।"

वह चला गया बिना नाराज़गी के, बिना तकरार के। सिर्फ एक आत्म-सम्मान और सीख लेकर।

यह कहानी सिर्फ राजेश की नहीं, हर उस व्यक्ति की है जो वर्षों तक बिना शिकायत काम करता है, सिर्फ इस उम्मीद में कि शायद कोई उसकी मेहनत देखेगा।

पर याद रखिए
अगर आप खुद को नहीं पहचानते, तो कोई और क्यों पहचानेगा?
सम्मान माँगा नहीं जाता, कमाया जाता है पर कभी-कभी उसके लिए जगह भी बदलनी पड़ती है।

 

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बुधवार, 30 जुलाई 2025

"धूप की छाँव"

 

                          (एक विवाहित यात्री और उसकी अविवाहित प्रेमिका की त्रासद कहानी)




प्रेम... एक ऐसा शब्द जो इंसान के दिल की गहराइयों से निकलता है, पर जब वह परिस्थितियों की दीवारों से टकराता है, तो सिर्फ खामोशी और दर्द पीछे रह जाता है।

यह कहानी है आरव और सिया की।

एक विवाहित पुरुष और एक अविवाहित युवती की, जिनका प्यार किसी उपन्यास से कम नहीं था, लेकिन उनका अंत... बेहद त्रासद और यादों में जज़्ब हो जाने वाला।
जयपुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले आरव की शादी को 17 साल हो चुके थे। पत्नी स्मिता एक घरेलू महिला थीं, और उनका 15 साल का बेटा आदित्य पढ़ाई में अच्छा था। सब कुछ "ठीक" चल रहा था लेकिन सिर्फ बाहर से।
उन दोनों की तन्हाई, उनका शौक और बातें धीरे-धीरे एक ऐसे रिश्ते में बदलने लगीं जो समाज की परिभाषाओं में "गलत" थी, लेकिन उनकी आत्माओं के लिए "सही"।
अगर अगले जन्म में हम मिले... तो मैं तुम्हें खोने नहीं दूँगा।
आरव और सिया की कहानी गलत नहीं थी, बस पूरी नहीं हो सकी

आरव शर्मा, 42 वर्ष के एक अनुभवी ट्रैवल ब्लॉगर थे। उन्होंने भारत के हर कोने की यात्रा की थी पहाड़, समुद्र, मरुस्थल, किलों और जंगलों में।

आरव का दिल धीरे-धीरे अकेला हो गया था। यात्राओं में वह खुद को तलाशता था, लेकिन कहीं न कहीं एक खालीपन उसके जीवन में था, जिसे कोई नहीं भर पाया।

मनाली की बर्फ़ से ढकी वादियों में, आरव एक नई ट्रैवल सीरीज़ की शूटिंग कर रहे थे। उसी समय, एक लड़की कैमरे के सामने मुस्कराते हुए खड़ी थी सिया, उम्र 26 वर्ष, फोटोग्राफर और पर्वतीय पर्यटन की शौकीन।

"आप आरव शर्मा हैं ना? मैंने आपके लेह-लद्दाख वाले वीडियो देखे हैं," – सिया ने मुस्कराते हुए कहा।

वो मुस्कान, उस क्षण आरव को कुछ ऐसा महसूस करवा गई जो सालों से खो गया था।

धीरे-धीरे, उनके बीच बातें बढ़ीं कैमरे, ट्रैवल गियर, मौसम, पहाड़, और फिर... ज़िंदगी की बातों तक।

 

आरव और सिया की मुलाकातें बढ़ने लगीं। वे साथ-साथ ट्रेकिंग करते, कैम्प फायर में कहानियाँ बाँटते और फोटोग्राफ़ी के क्षणों में एक-दूसरे को समझने लगे।

सिया को पता था कि आरव शादीशुदा हैं। लेकिन वो भी अकेली थी। उसका अतीत उसे रिश्तों से दूर कर चुका था।

एक रात, कसोल की एक ढाबे में दोनों बैठे थे। बाहर बारिश हो रही थी, और ढाबे की खिड़की से आती रौशनी में सिया की आँखें चमक रही थीं।

"क्या आपको कभी लगता है कि आप अकेले हैं?" सिया ने पूछा।

आरव ने हल्की मुस्कान दी — “हर वो इंसान जो हर दिन हँसता है, कहीं न कहीं सबसे ज्यादा टूटा होता है।

उस रात, उन्होंने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा। कोई शब्द नहीं बोले, कोई वादा नहीं किया... लेकिन उस स्पर्श में एक पूरी दुनिया थी।

जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ी, उनका रिश्ता और गहरा होता गया। लेकिन हर बार जब आरव घर लौटते, उनका दिल दो हिस्सों में बँट जाता एक जो सिया की तरफ खिंचता था, और एक जो स्मिता और बेटे की ज़िम्मेदारियों से बँधा था।

सिया भी जानती थी कि यह रिश्ता स्थायी नहीं हो सकता।

"मैं नहीं चाहती कि किसी और का घर टूटे," – सिया कहती।

लेकिन दिल... कहाँ समाज की सीमाओं को मानता है?

2022 की सर्दियों में, उन्होंने साथ में स्पीति वैली की यात्रा की योजना बनाई। यह उनकी आख़िरी यात्रा थी हालांकि उन्होंने तब तक यह नहीं जाना था।

हिमालय की ऊँचाइयों पर, सफेद बर्फ़ के बीच, दोनों ने अपने जीवन की सबसे खूबसूरत तस्वीरें लीं। सिया ने एक वीडियो बनाया — “Love in the Lost Mountains” — जिसमें उसने अपने दिल के भाव व्यक्त किए।

उसी रात, आरव ने सिया से कहा — “मैं सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ।

सिया की आँखों में आँसू थे।

नहीं आरव... जो सिर्फ़ दिल से सही हो, वो ज़िंदगी से सही नहीं हो सकता।

यात्रा के अंतिम दिन, जब वे कीलॉन्ग से मनाली लौट रहे थे, उनका वाहन एक बर्फीले मोड़ पर फिसल गया। गाड़ी खाई में गिर गई।

जब लोगों ने रेस्क्यू किया सिया की मौत हो चुकी थी

आरव गंभीर घायल थे।

आरव ने महीनों अस्पताल में बिताए। वह टूट चुके थे। न केवल हड्डियाँ, बल्कि आत्मा भी।

घर लौटने पर स्मिता ने कुछ नहीं पूछा। वह सब समझ चुकी थीं शायद आरव की आँखों में छिपी सिया की परछाई पढ़ चुकी थीं।

आरव ने ट्रैवल ब्लॉगिंग छोड़ दी।

सिया की याद में उसने एक किताब लिखी धूप की छाँव, जिसमें उन्होंने सब कुछ लिखा सच्चाई, ग़लती, प्रेम, अपराधबोध औरविछोह।

अब आरव पहाड़ों में नहीं जाते, लेकिन हर साल 15 दिसंबर को वो एक चिट्ठी लिखते हैं सिया के नाम।

सिया, तुम धूप की तरह मेरी ज़िंदगी में आईं, और छाँव की तरह छीन ली गईं।

प्रेम हमेशा नैतिकता और समाज की सीमाओं के बीच फँसा रहता है।

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