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बुधवार, 30 जुलाई 2025

"धूप की छाँव"

 

                          (एक विवाहित यात्री और उसकी अविवाहित प्रेमिका की त्रासद कहानी)




प्रेम... एक ऐसा शब्द जो इंसान के दिल की गहराइयों से निकलता है, पर जब वह परिस्थितियों की दीवारों से टकराता है, तो सिर्फ खामोशी और दर्द पीछे रह जाता है।

यह कहानी है आरव और सिया की।

एक विवाहित पुरुष और एक अविवाहित युवती की, जिनका प्यार किसी उपन्यास से कम नहीं था, लेकिन उनका अंत... बेहद त्रासद और यादों में जज़्ब हो जाने वाला।
जयपुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले आरव की शादी को 17 साल हो चुके थे। पत्नी स्मिता एक घरेलू महिला थीं, और उनका 15 साल का बेटा आदित्य पढ़ाई में अच्छा था। सब कुछ "ठीक" चल रहा था लेकिन सिर्फ बाहर से।
उन दोनों की तन्हाई, उनका शौक और बातें धीरे-धीरे एक ऐसे रिश्ते में बदलने लगीं जो समाज की परिभाषाओं में "गलत" थी, लेकिन उनकी आत्माओं के लिए "सही"।
अगर अगले जन्म में हम मिले... तो मैं तुम्हें खोने नहीं दूँगा।
आरव और सिया की कहानी गलत नहीं थी, बस पूरी नहीं हो सकी

आरव शर्मा, 42 वर्ष के एक अनुभवी ट्रैवल ब्लॉगर थे। उन्होंने भारत के हर कोने की यात्रा की थी पहाड़, समुद्र, मरुस्थल, किलों और जंगलों में।

आरव का दिल धीरे-धीरे अकेला हो गया था। यात्राओं में वह खुद को तलाशता था, लेकिन कहीं न कहीं एक खालीपन उसके जीवन में था, जिसे कोई नहीं भर पाया।

मनाली की बर्फ़ से ढकी वादियों में, आरव एक नई ट्रैवल सीरीज़ की शूटिंग कर रहे थे। उसी समय, एक लड़की कैमरे के सामने मुस्कराते हुए खड़ी थी सिया, उम्र 26 वर्ष, फोटोग्राफर और पर्वतीय पर्यटन की शौकीन।

"आप आरव शर्मा हैं ना? मैंने आपके लेह-लद्दाख वाले वीडियो देखे हैं," – सिया ने मुस्कराते हुए कहा।

वो मुस्कान, उस क्षण आरव को कुछ ऐसा महसूस करवा गई जो सालों से खो गया था।

धीरे-धीरे, उनके बीच बातें बढ़ीं कैमरे, ट्रैवल गियर, मौसम, पहाड़, और फिर... ज़िंदगी की बातों तक।

 

आरव और सिया की मुलाकातें बढ़ने लगीं। वे साथ-साथ ट्रेकिंग करते, कैम्प फायर में कहानियाँ बाँटते और फोटोग्राफ़ी के क्षणों में एक-दूसरे को समझने लगे।

सिया को पता था कि आरव शादीशुदा हैं। लेकिन वो भी अकेली थी। उसका अतीत उसे रिश्तों से दूर कर चुका था।

एक रात, कसोल की एक ढाबे में दोनों बैठे थे। बाहर बारिश हो रही थी, और ढाबे की खिड़की से आती रौशनी में सिया की आँखें चमक रही थीं।

"क्या आपको कभी लगता है कि आप अकेले हैं?" सिया ने पूछा।

आरव ने हल्की मुस्कान दी — “हर वो इंसान जो हर दिन हँसता है, कहीं न कहीं सबसे ज्यादा टूटा होता है।

उस रात, उन्होंने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा। कोई शब्द नहीं बोले, कोई वादा नहीं किया... लेकिन उस स्पर्श में एक पूरी दुनिया थी।

जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ी, उनका रिश्ता और गहरा होता गया। लेकिन हर बार जब आरव घर लौटते, उनका दिल दो हिस्सों में बँट जाता एक जो सिया की तरफ खिंचता था, और एक जो स्मिता और बेटे की ज़िम्मेदारियों से बँधा था।

सिया भी जानती थी कि यह रिश्ता स्थायी नहीं हो सकता।

"मैं नहीं चाहती कि किसी और का घर टूटे," – सिया कहती।

लेकिन दिल... कहाँ समाज की सीमाओं को मानता है?

2022 की सर्दियों में, उन्होंने साथ में स्पीति वैली की यात्रा की योजना बनाई। यह उनकी आख़िरी यात्रा थी हालांकि उन्होंने तब तक यह नहीं जाना था।

हिमालय की ऊँचाइयों पर, सफेद बर्फ़ के बीच, दोनों ने अपने जीवन की सबसे खूबसूरत तस्वीरें लीं। सिया ने एक वीडियो बनाया — “Love in the Lost Mountains” — जिसमें उसने अपने दिल के भाव व्यक्त किए।

उसी रात, आरव ने सिया से कहा — “मैं सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ।

सिया की आँखों में आँसू थे।

नहीं आरव... जो सिर्फ़ दिल से सही हो, वो ज़िंदगी से सही नहीं हो सकता।

यात्रा के अंतिम दिन, जब वे कीलॉन्ग से मनाली लौट रहे थे, उनका वाहन एक बर्फीले मोड़ पर फिसल गया। गाड़ी खाई में गिर गई।

जब लोगों ने रेस्क्यू किया सिया की मौत हो चुकी थी

आरव गंभीर घायल थे।

आरव ने महीनों अस्पताल में बिताए। वह टूट चुके थे। न केवल हड्डियाँ, बल्कि आत्मा भी।

घर लौटने पर स्मिता ने कुछ नहीं पूछा। वह सब समझ चुकी थीं शायद आरव की आँखों में छिपी सिया की परछाई पढ़ चुकी थीं।

आरव ने ट्रैवल ब्लॉगिंग छोड़ दी।

सिया की याद में उसने एक किताब लिखी धूप की छाँव, जिसमें उन्होंने सब कुछ लिखा सच्चाई, ग़लती, प्रेम, अपराधबोध औरविछोह।

अब आरव पहाड़ों में नहीं जाते, लेकिन हर साल 15 दिसंबर को वो एक चिट्ठी लिखते हैं सिया के नाम।

सिया, तुम धूप की तरह मेरी ज़िंदगी में आईं, और छाँव की तरह छीन ली गईं।

प्रेम हमेशा नैतिकता और समाज की सीमाओं के बीच फँसा रहता है।



बुधवार, 9 अगस्त 2023

विंध्याचल की यात्रा

विंध्याचल की यात्रा

आज यात्रा का तीसरा दिन था, दो दिन प्रयागराज में स्नान एवं भर्मण के बाद आज का कार्यक्रम विंध्याचल में माँ विंध्यवासिनी का दर्शन करने का था, सुबह उठकर गंगा जी में स्नान करने के बाद चाय पीकर मिश्रा जी  से आज्ञा लेकर हम लोग (मैं और श्री मती जी) पैदल ही चल दिये, रास्ते मे कोई साधन नही मिला और हम लोग पैदल ही टैक्सी स्टैंड पर पहुंच गए, वहाँ से ऑटो पकड़ कर नैनी पुल पर आ गए जहाँ से विन्ध्याचल के लिए बस मिलती है,  करीब 45 मिनट के बाद बस मिली और हम लोग उसमे सवार हो गए, संयोग से खिड़की वाली सीट मिल गयी थी जिससे बस के बाहर की प्राकृतिक सुंदरता को देखने का आनंद मिल रहा था।  दो  घंटे की बस यात्रा के बाद हम लोग माँ विंध्यवासिनी के द्वार पर पहुंच गए ,  मुख्य मार्ग पर बस से उतरने के बाद हम लोग पैदल ही माता के दरबार के लिए चल दिए।  यह विन्ध्याचल आने का जीवन में दूसरा अवसर था, एक बार सन 1990 में  एक परीछा देने के लिए यहाँ आना हुआ था तब माँ का दर्शन हुआ था  उस समय की धुंधली यादे आज दिखाई पड़ रही थी।  

एक दुकान पर प्रसाद आदि लिया गया एवं अपना सामान भी वही रख कर माँ के दर्शन के लिए निकल पड़े, मंदिर परिसर के बाहर ज्यादा भीड़ नहीं थी लेकिन वहाँ के स्थानीय पंडो ने ऐसा माहौल बना रखा था की बस मंदिर बंद होने वाला है और न चाहते हुए भी दर्शन कराने के लिए पीछे पड़  गए, हम लोगों ने कहा की भैया हम लोग दर्शन कर लेंगे लेकिन पीछे पड़े रहे और  जैसे ही  हम लोगों ने माँ  को प्रसाद चढ़ाया तुरंत बाहर कर दिया की आप लोग चलिए मै प्रसाद लेकर आ रहा हू।  कुछ देर के बाद चार - छ लोगो का प्रसाद लिए हुए बाहर आये और 1100 - 1100 रूपये मांगने लगे, हम लोग तो अपने आप को ठगा सा महसूस करने लगे,  अंततोगत्वा 51 रुपया देने के बाद छुटकारा मिला, मंदिर की परिक्रमा आदि करने के बाद एक रेस्टोरेंट में नाश्ता किया गया और चाय पी गई।  अब तक लगभग 11 बज चुके थे, हम लोगों ने जिस दुकान से प्रसाद खरीदा था वही पर अपना सामान भी रख दिया I 

दोस्तों इस प्रयागराज की यात्रा ब्लॉग का पार्ट 2 तो हमने पहले लिख लिया था और तीसरा यह विंध्याचल का जो पार्ट है यह लिखने में काफी समय लगा पता नहीं क्यों इच्छा ही नहीं कर रही थी कि कुछ लिखें मन कही डाइवर्ट हो गया था, चलिए अब इसे फिर पूरा करते हैं और इसके बाद भी हमने बहुत सारी यात्राएं की उसको भी नहीं लिखा, उसके बाद में जो भी यात्राएं हमने की है वह सारे ब्लॉग आपको पढ़ने को मिलेंगे तो  लिखने में देरी हुई उसके लिए हम आप सभी से क्षमा चाहते हैंI

माँ काली खोह


अब हम लोगों की इच्छा माँ काली खोह, अष्ट भुजा देवी मंदिर और जो बाकी अन्य स्थल है उनको देखने की थी तो हम लोगों ने वहीं से ऑटो रिक्शा किया और सीधे माँ काली खोह मंदिर जा पहुंचे I हम लोग जब वहां पहुचे तो उस समय मंदिर बंद था और बाहर भीड़ लगी हुई थी, पता चला मंदिर थोड़ी देर में खुलेगा तो हम लोग भी प्रसाद लेकर के लाइन में लग गए और करीब आधे घंटे के बाद मंदिर का कपाट खुल गया और हम लोग मंदिर में दर्शन के लिए अंदर गए I दोस्तों आप लोग जब भी विंध्याचल में दर्शन करने आए तो साथ में कुछ खुले पैसे जरूर रखें क्योंकि यहां जो पण्डे पुजारी है हर जगह आपसे पैसा चढ़ाने का आग्रह करते हैं तो खुले पैसे रहेंगे तो ठीक रहेगा I हम लोगों ने मां काली खोह का दर्शन किया और मंदिर के पीछे जो प्रांगण है उसी में एक कुआं है हम लोगों ने  प्यास लगी थी तो जल पिया  उसके बाद और पीछे जो मंदिर है वहां दर्शन किया और बाहर आ गए I

माँ अष्ट भुजा देवी


बाहर आने के बाद हम लोगों ने एक ऑटो रिक्शा पकडा और उसके बाद वहां से हम लोग अष्टभुजा देवी मंदिर आ गए यहां भी प्रसाद लेकर हम लोगों ने भी चढ़ाई शुरू कर दी, मंदिर तक पहुचने के लिए दी ढाई सौ सीधी की चढ़ाई है थोड़ी देर के बाद मंदिर के नजदीक पहुच गए I  भीड़ बहुत बढ़ गयी थी  मंदिर प्रबंधन अगर चाहे तो भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कुछ व्यवस्था कर सकते हैं लेकिन उसके लिए कोई व्यवस्था यहां नहीं दिखी सभी लोग  एक दूसरे को धकियाते  हुए दर्शन के लिए आगे बढ़ रहे थे फिर हम लोगों ने भी मां अष्टभुजा देवी जी का दर्शन किया I  दोस्तों अष्ट भुजा देवी श्री कृष्ण जी की वही बहन है  जिसको कंस ने मारने की कोशिश की थी वही यहां विंध्याचल में आकर के अष्ट भुजा  देवी के रूप में विराजमान है I हम लोग अष्टभुजा देवी का दर्शन करके बाहर आ गए और उतरते समय दाहिने हाथ की तरफ बाग जैसा है तो उधर चले गए वहां हमने देखा कि कुछ लोग बाटी चोखा बना रहे थे और यहां आपको बाटी चोखा बनाने के लिए जो भी सामग्री होती है वह सारी सामग्री यहां मिल जाती है लोग सहयोग भी करते हैं पैसा देना पड़ता है तो हम लोग भी वहां कुछ देर बैठे रहे और थोड़ा बहुत कुछ खाया पिया और उसके बाद हम लोग वापस चल दिए विंध्याचल के लिए विंध्याचल में माता रानी का दर्शन तो हो ही गया था I हम लोग अपना सामान जहां से हमने प्रसाद लिया था वही रख दिया था और एक छोटा बैग लेकर के आए थे, हम लोगों ने सोचा कि चलो अभी समय है और चलते हैं माँ गंगा के किनारे बैठते हैं और हम लोग पैदल ही वहां से गंगा नदी के किनारे पहुच गए I  इस समय माघ के महीने में  पानी काफी ज्यादा था,  हम लोग करीब डेढ़ घंटे गंगा नदी के किनारे बैठे रहे और पतीत पावनी मां गंगा का दर्शन किया और उनका आशीर्वाद लिया और अब शाम हो चुका था लगभग 6:30 बजे हुए थे और हम लोगों की ट्रेन रात में 10:30 बजे थी त्रिवेणी एक्सप्रेस I हम लोग रेलवे स्टेशन चले आये और वहीं बैठ करके  आराम किया और ट्रेन का इंतजार करते रहे I 8 बजे मैं होटल से खाना  पैक करा लाया और स्टेशन पर बैठ कर ही हमने खाना खाया I त्रिवेणी एक्सप्रेस अक्सर लेट हो जाती है आने का समय उसका 10:30 बजे है लेकिन यह आई लगभग 1:30 बजे रात में और तब तक हम लोग इंतजार करते रहे ठंडक भी बढ़ गई थी और ट्रेन आने के बाद हम लोग अपने बर्थ पर चद्दर बिछा करके और अपना कम्बल ओढ़ करके सो गएI सुबह जब नीद खुली तो ट्रेन रायबरेली से चल रही थी दोस्तों लगभग 9:30 बजे हम लोग लखनऊ पहुंच गए जबकि त्रिवेणी एक्सप्रेस का टाइम लखनऊ पहुंचने का 8:00 बजे का होता है I वहां से हम लोगों ने एक ऑटो बुक किया और अपने घर पहुंच गए तो दोस्तों यह रहा हम लोगों का लखनऊ से प्रयागराज और विंध्याचल  की यात्रा का ब्लॉग हम लोगों की  यात्रा बहुत ही सुखद और सुंदर हुई इसमें हमारे परम आदरणीय मिश्रा जी का भी विशेष योगदान था जिनके साथ हम लोगों ने दो दिन निवास किया और उन्ही के साथ गंगा स्नान किया I




सोमवार, 26 अप्रैल 2021

प्रयागराज की यात्रा भाग -2

 प्रयागराज की यात्रा भाग -2


आज यात्रा का दूसरा दिन था, सुबह उठकर गंगा जी मे स्नान, पूजा आदि करने के बाद मिश्रा जी ने कहा कि आज श्री सोमेश्वर महादेव मंदिर चलते हैं, जो यमुना नदी (नैनी का पुल ) पार कर अरैल गांव में पड़ता है। यहाँ के लोगों में श्री सोमेश्वर महादेव की बड़ी मान्यता है, ऐसा माना जाता है कि इस शिव लिंग की स्थापना स्वयं चंद्र देव ने अपने छय रोग से मुक्ति के लिये की थी और  उसके बाद भगवान शिव की घोर तपस्या की, चन्द्र देव की तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और दक्ष प्रजापति के श्राप से मुक्त किया, तभी से  यहाँ भगवान सोमेश्वर महादेव की पूजा अर्चना में लोगों की बड़ी आस्था  हैं। 

मिश्रा जी ने एक ऑटो वाले से 1000 रूपये में बात करके चलना तय किया, हम सभी 10 लोग थे और इस हिसाब से एक आदमी का 100 रूपये का खर्चा हुआ, कुछ देर बाद ऑटो वाला आ गया और सभी लोग उसमे सवार होकर भगवन सोमेश्वर का दर्शन करने के लिए चल दिए I ऑटो वाला मेला परिसर से निकल कर प्रयागराज की सडकों से होता हुआ नैनी के पुल से गुजरने लगा, नैनी का पुल अपने आप में एक उच्च तकीनीकी का उदहारण है जिसके बीच में कोई पिलर नहीं है और जो ह्य्द्रोलिक तारों से जुड़ा हुआ है, चूकी मै प्रयागराज दूसरी बार आया था और नैनी का पुल पहली बार देख रहा था तो मेरे लिए बड़े उत्सुकता का विषय था , 

नैनी का पुल पार करने के करीब पांच किलोमीटर आगे अरैल गाँव है जहाँ भगवन सोमेश्वर महादेव का मंदिर है , करीब एक घंटे की यात्रा के बाद हम लोग वहां पहुच गए, सभी लोगों ने प्रसाद और जल लेकर भगवान सोमेश्वर का दर्शन और पूजन किया, भगवन सोमेश्वर के साथ यहाँ माँ लक्ष्मी - भगवन गणेश, हनुमान जी , नाग नागेश्वर, नंदी एवं माँ काली की भी प्रतिमाये है, हम लोगों ने सभी देवताओ का पूजन, अर्चन एवं ध्यान किया और थोड़ी देर वहां विश्राम किया, शरीर एवं मन की सारी थकान दूर हो गई,  वहां से आने की इच्छा तो नहीं हो रही थी लेकिन ऑटो वाले को देर हो रही थी तो हम लोग श्री  सोमेश्वर को प्रणाम करके वापस चल दिए 

यही पर एक और मंदिर दिखा त्रिवेणी धाम, माँ  गंगा , माँ यमुना और माँ सरस्वती जी का मंदिर, यहाँ भी हम लोगों ने पूजा अर्चना किया और उसके बाद वापसी के लिए ऑटो में बैठ कर चल दिए ,  आते समय हम लोगों ने नैनी के पुल को ठीक से नहीं देखा था तो विचार बना की वापसी में इसको ठीक से देखा जायेगा , पुल पर पहुच कर ऑटो वाले को रुकने का निर्देश दिया और फिर फोटो आदि खीचा उसके बाद फिर ऑटो में बैठ कर चल दिए , वापसी में माँ आलोपी का भी दर्शन किया गया और अंत में अपने तम्बू में आ गए 

भोजन आदि करके कुछ देर विश्राम किया गया , मिश्रा जी ने बताया की पीछे की तरफ शाम चार बजे से सात बजे तक बहुत अछी कथा होती है वहां चला जायेगा, शाम को हम लोग फिर अपने तम्बू से निकल कर मुख्य सड़क तक आये, मैंने मिश्रा जी से कहा की हम लोग नाग वासुकी जी का दर्शन करना चाहते है तो उन्होंने कहा ठीक है आप लोग पांच नंबर पुल पार करके सीधे दाहिने हाथ की तरफ चले जाईये करीब एक किलोमीटर पर नाग वासुकी का मंदिर है, मै और श्री मती  जी पैदल ही चल दिए और करीब पैतालीस मिनट की यात्रा के बाद नागवासुकी मंदिर पहुच गए

नाग वासुकी मंदिर की महिमा 

यह एक प्राचीन मंदिर है जिसमे शेषनाग और नागों के राजा  वासुकी जी की मूर्ति विराजमान  है, ऐसी मान्यता है की प्रयागराज आने वाला हर व्यक्ति जब तक नाग वासुकी का दर्शन नहीं कर लेता तब तक उसका प्रयाग दर्शन अधुरा माना जाता है, जन श्रुति के अनुसार जब औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था तब ओ यहाँ भी आया था और जैसे ही उसने तलवार चलाई तो नागो के राजा वासुकी का भयानक रूप सामने आ गया जिसे देखकर ओ बेहोश हो गया, यह एक अति प्राचीन मंदिर है, जो यहाँ आकर दर्शन कर लेता है ओ कालसर्प दोष से मुक्त हो जाता है, श्रावण मॉस में तो यहाँ भारी  भीड़ होती है और बहुत सारे लोग कालसर्प दोष की पूजा आदि करवाते है 

हम लोगों ने बाहर से ही मंदिर का दर्शन किया क्योकि उस समय मंदिर का गर्भ गृह बंद था, बाहर से ही शेषनाग और नाग वासुकी जी का दर्शन किया और मन में ही  पूजन किया और काफी देर तक वहां बैठ कर ध्यान किया, मंदिर परिसर से कुम्भ मेला का दृश्य बड़ा ही सुन्दर दिख रहा था, गर्भ गृह की परिकर्मा आदि की और वहा स्थित अन्य मंदिरों का भी दर्शन किया , परिसर के बगल में ही भीष्म जी की शर शैया पर लेटी हुई प्रतिमा है उसका भी दर्शन किया गया, अब तक अँधेरा हो गया था और अब अपने तम्बू में जाने का समय था तो हम लोगों ने  फिर एक बार  शेषनाग और नाग वासुकी  जी को प्रणाम किया और जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए छमा  मांगी और फिर वापस माँ गंगा के तट पर लगे तम्बू की तरफ चल दिए, करीब एक घंटा की यात्रा के बाद हम लोग अपने तम्बू में पहुच गए, इस बीच मैंने उन लोगों को बहुत करीब से देखा जो  लोग महीने भर से कल्पवास कर रहे थे और सारे मोह माया से मुक्त हो कर माँ गंगा के पावन  तट पर रह कर भगवत भाव से भजन कीर्तन करते है, बड़ा सुन्दर जीवन है उनका, मैंने भी मन ही मन में निश्चय किया की मै भी आने वाले समय में कल्पवास करूँगा और इस सुख का अनुभव करूँगा 

तम्बू में पहुच कर भोजन आदि किया गया और उसके बाद मै मुख्य मार्ग पर टहलने आ गया जहा एक जगह भगवान राम की सुन्दर कथा चल रही थी , करीब एक घंटा कथा सुनने के बाद पुनः तम्बू में आ गया और इस प्रकार दूसरे दिन की यात्रा पूरी हुई

    

















शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

प्रयागराज की यात्रा भाग -1

प्रयागराज की यात्रा भाग -1

यात्रा का दिनाँक 12 फरवरी 2021

कॅरोना काल से ही कही यात्रा पर जाने की बहुत इच्छा थी, परन्तु संयोग नहीं बन पा रहा था, जनवरी मे झाँसी जाने का कार्यक्रम बना था लेकिन मेरे सह यात्री राम प्रकाश शुक्ला जी की चाची का देहांत हो जाने के कारण ओ यात्रा निरस्त हो गयी। फिर भी मैंने जनवरी में अयोध्या जी की यात्रा कर ली जिसका विवरण मैंने इसके पहले वाले ब्लॉग में दिया हुआ है, तो आईये चलते हैं प्रयागराज की यात्रा पर।
प्रयागराज जाने का कार्यक्रम भी कई बार बना और कई बार निरस्त हुआ, परन्तु मैंने सोच लिया था कि संगम में स्नान करने के लिए तो जाना ही है। इसके लिए मैंने अपना और श्री मती जी का आरक्षण ट्रेन में लखनऊ से प्रयागराज के लिए 12 फरवरी 2021 को करवा लिया था। शाम को ऑफिस से आने के बाद एक बैग में कपड़ा और एक मे दो कम्बल रखकर घर से 9 बजे चार बाग स्टेशन के लिए निकल गया। ऑटो पकड कर करीब साढ़े 10 बजे स्टेशन पहुँच गए और ट्रेन 11 बजे की थी जो 2 नम्बर प्लेट फॉर्म पर आने वाली थी, खाना वगैरह सब घर से खाकर निकले थे तो बस ट्रेन की ही प्रतीक्षा थी जो अपने नियत समय से 10 मिनट की देरी से आ गई। ट्रेन में एस 2 बोगी में दोनों मिडिल बर्थ मिली थी। अपना अपना कम्बल बिछा कर और 3 बजे का अलार्म लगा कर लेट गए। रास्ते मे ट्रेन लेट होने के कारण करीब साढ़े 4 बजे प्रयाग राज स्टेशन पहुंची।

प्रयागराज जाने के  पहले ही हमारे मुहल्ले के मिश्रा जी जो की शाखा के कार्यवाह भी रह चुके है उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि मैं 9 फरवरी से 18 फरवरी तक प्रयागराज में रहूँगा। स्टेशन पर उतरने के बाद हम लोग पैदल ही संगम के लिये चल दिये। मिश्रा जी से बात हुई तो उन्होंने बताया कि ओ 5 नम्बर पुलिया के पास विनोद पंडा के यहाँ ठहरे हुए हैं।
प्रयागराज आने का जीवन में ये दूसरा अवसर था, पहली बार जब अर्ध कुंभ लगा हुआ था तब आये थे और दूसरी बार आज। पूछते पूछते हम लोग विनोद पंडा के यहाँ पहुँच गए, मिश्रा जी गेट के बाहर ही प्रतीक्षा करते हुए मिल गए और अपने टेन्ट की ओर ले गए। वहाँ पहुँच कर हम लोगोँ ने सामान रखा और नित्य कर्म के बाद गंगा स्नान के लिए मिश्रा जी के साथ चल दिये। गंगा जी का घाट वहाँ से मुश्किल से 300 मीटर पर था। गंगा जी के घाट पर पहुंच कर मन ही मन में प्रणाम किया और फिर स्नान पूजा आदि करने के बाद अपने टेन्ट में आ गए। चाय पीने के बाद मैं स्थनीय भर्मण पर निकल गया, जगह जगह भजन कीर्तन एवं प्रवचन का कार्यक्रम चल रहा था ये सब देखकर मन बहुत प्रसन्न हुआ और फिर उन लोगों के बारे में सोचने लगा जो पूरा एक महीना वहा रहकर कल्पवास करते है। कितना आनन्द आता होगा सोचकर ही मन खुश हो गया। हमारे सनातन परंपरा में इस तरह की यात्रायें करना बहुत पुण्य का कार्य माना जाता है जिसमें पुण्य के अलावा
आत्मिक शांति और सुख कितना मिलता है। इसका अनुभव वहाँ पर जाने वाला ही कर सकता है। इसका अनुभव उन लोगों के लिए करना बहुत मुश्किल है जो दिन रात एक करके पैसा कमाने में लगे रहते हैं और ऐसी यात्राओं 
पर जाने वालों को पैसा और समय बर्बाद करने वाला समझते हैं। 
वापस आकर भोजन करने के बाद मिश्रा जी ने कहा की आज किला चलते हैं और संगम में स्नान भी कर लेते हैं, डेरे से निकलते  ही एक ऑटो मिल गया जिसने संगम पर लाकर छोड़ दिया। एक बार फिर स्नान किया गया और प्राचीन किले में स्थित बट वृक्ष का दर्शन किया गया। उसके बाद लेटे हुए हनुमान जी का दर्शन किया गया एवं प्रसाद चढ़ाया गया।
हनुमान जी का दर्शन करने के बाद मिश्रा जी ने कहा कि बिना बेनी माधव जी का दर्शन किये प्रयागराज की यात्रा  पूर्ण नही मानी जाती हैं, तो उसके बाद हम सभी लोग बेनी माधव जी का दर्शन करने के लिए चले गए। उसी बीच मेरे मामा का लड़का जो कि प्रयागराज में रह कर तैयारी करता है उसका फोन आ गया। मिश्रा जी सपत्निक दर्शन करने के बाद डेरे की ओर चले गए और मैं सपत्निक माता अलोपी का दर्शन करने चला गया। अलोपी मंदिर प्रयागराज का एक प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर में दर्शन पूजन किया गया तब तक मामा जी का लड़का पंकज भी आ गया, वही चाय नास्ता किया गया और फिर प्रयागराज में स्थित अन्य मंदिरों का दर्शन करने के लिए चल दिया।
मामा जी का लड़का जो कि चार साल से प्रयागराज में रहकर पढाई कर रहा है उसे वहाँ स्थिति सभी प्रमुख मंदिरों की जानकारी है। 
सबसे पहले हम लोग नौ ग्रह मंदिर गए, यह एक आधुनिक तरीके से बना हुआ बहुत सुन्दर मंदिर है जिसमें एक बहुत बड़े हाल में नौ ग्रह की मूर्तियां एवं उनका संक्षिप्त परिचय लिखा हुआ है, मंदिर में चित्र खीचना वर्जित है जिसके कारण अन्दर का चित्र नही ले पाये। नौ ग्रह मंदिर बाहर से देखने में भी बहुत खूबसूरत है। मंदिर में दर्शन पूजन के बाद कुछ देर विश्राम किया गया, उसके बाद परिसर में कुछ फोटो खीचा गया।
अब अगला पड़ाव थोड़ी दूरी पर स्थित हनुमान जी का मंदिर था वहाँ भी दर्शन पूजन किया गया एवं कुछ देर वहाँ बैठे रहे उसके बाद पंकज ने बताया कि नैनी पुल के पास मनकामेश्वर मंदिर है जो कि शंकर जी का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है और सोमवार को तो वहाँ बहुत भीड़ होती हैं। वहाँ से हम लोग ऑटो पकड़ कर मनकामेश्वर मंदिर गए और दर्शन पूजन किया गया, मंदिर बहुत पुराना एवं सुंदर है, मंदिर परिसर के बगल से ही गंगा जी बहती है और वहाँ से गंगा जी बहुत सुंदर दिखाई देती हैं। कुछ देर तक वहाँ बैठकर भगवान शिव का ध्यान किया गया और चढ़ाया हुआ प्रसाद खाकर पानी पिया गया। अब तक अँधेरा हो चला था। मंदिर से निकल कर कुछ देर चलने के बाद एक ऑटो मिल गया जिसने मेला स्थल तक छोड़ दिया, इसी बीच मिश्रा जी का फोन भी आ गया कि कहां है आप लोग उनको यथा स्थिति से अवगत कराने के बाद पैदल ही घूमते हुए हम लोग भी डेरे पर पहुंच गए और इस तरह आज की यात्रा समाप्त हुई।





















"धूप की छाँव"

                            ( एक विवाहित यात्री और उसकी अविवाहित प्रेमिका की त्रासद कहानी) प्रेम... एक ऐसा शब्द जो इंसान के दिल की गहराइयो...