“पर्वतों की अधूरी मोहब्बत”
(एक ट्रैजिक लव स्टोरी)
हिमालय की ऊँची चोटियों के बीच बसा एक छोटा-सा गाँव था – लाचुंग, सिक्किम की पहाड़ियों में।
यहाँ के घर लकड़ी और पत्थर से बने थे। सर्दियों में जब बर्फ़ गिरती, तो पूरा गाँव सफेद चादर ओढ़ लेता।
यहीं रहता था अभिषेक, उम्र 28 साल।
गाँव का स्कूल टीचर।
सादा जीवन, सादा पहनावा, और गहरी आँखें जिनमें पहाड़ों जैसी गहराई छुपी थी।
अभिषेक का जीवन दिनचर्या में बंधा हुआ था।
सुबह बच्चों को पढ़ाना, दोपहर को खेतों में बुजुर्गों की मदद करना, और शाम को नदी किनारे बैठकर किताबें पढ़ना।
लेकिन उसके दिल में हमेशा एक खालीपन रहता।
वह अक्सर आसमान को देखकर सोचता –
“क्या मेरे लिए भी कोई है… जो इन पहाड़ों से होकर मेरे पास आएगा?”
एक दिन गाँव में एक नई बस्ती बसी।
कुछ लोग गंगटोक से आकर यहाँ रहने लगे।
उनमें थी कनिका, उम्र 24 साल।
कनिका का परिवार शहर की भागदौड़ से थककर शांति की तलाश में पहाड़ों में आया था।
कनिका का चेहरा बिल्कुल साफ़ झरने जैसा था – मासूम, शांत और गहरी आँखों वाला।
पहली बार जब अभिषेक ने कनिका को देखा, वह नदी किनारे बैठी थी।
हाथ में एक डायरी, और आँखों में बेचैनी।
अभिषेक ने सहजता से पूछा –
“तुम लिखती हो?”
कनिका ने हल्की मुस्कान के साथ कहा –
“हाँ… शायद अपने दिल की बातें।
पहाड़ सुनते हैं, लोग नहीं।”
अभिषेक उस दिन से उसके शब्दों में खो गया।
दिन बीतने लगे।
कनिका और अभिषेक की मुलाक़ातें बढ़ने लगीं।
कभी स्कूल के बच्चों को पढ़ाने में कनिका मदद करती, तो कभी दोनों गाँव की पगडंडियों पर साथ-साथ चलते।
एक दिन शाम को, जब बादल घाटी में उतर आए थे, अभिषेक ने कहा –
“इन पहाड़ों की ख़ामोशी में अजीब जादू है।
कभी-कभी लगता है, ये हमारी धड़कनों को सुन लेते हैं।”
कनिका ने धीमे स्वर में जवाब दिया –
“और अगर इन पहाड़ों की कोई धड़कन होती… तो वो तुम्हारे जैसी होती।”
उस पल दोनों की आँखें मिलीं।
पहाड़ जैसे गवाह बन गए उनकी बढ़ती मोहब्बत के।
कनिका का एक शौक़ था – लोकगीत गाना।
गाँव में जब भी कोई त्योहार होता, वह मंद स्वर में गाती।
एक रात तीज का त्योहार था।
आसमान में चाँद, और घाटी में दीपक जल रहे थे।
कनिका ने गाना शुरू किया –
"नदी के पार से बुलाए कोई,
हवा में गूंजे उसका नाम,
पलकों में बसी तस्वीर वही,
जिसे चाहे मेरा अरमान…"
गाना सुनकर अभिषेक की आँखें भीग गईं।
उसे लगा, जैसे हर शब्द उसी के लिए था।
लेकिन किस्मत हमेशा प्रेमियों पर मेहरबान नहीं होती।
एक दिन कनिका को उसके पिता ने बुलाया।
उन्होंने कहा –
“बेटी, तुम्हारी शादी शहर के एक अच्छे परिवार में तय कर दी है।
यहाँ पहाड़ों में रहकर तुम्हारा भविष्य सुरक्षित नहीं है।”
कनिका के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
उसकी आँखों में आँसू थे।
वह अभिषेक के पास गई और रोते हुए बोली –
“अभिषेक, मैं चाह कर भी तुम्हारी नहीं हो सकती।
मेरे परिवार की जिद्द… मेरे सपनों से बड़ी है।”
अभिषेक ने उसका हाथ थामकर कहा –
“अगर तुम चली भी गई… तो मेरा दिल हमेशा यहीं रहेगा, तुम्हारे साथ।”
शादी से पहले का दिन।
गाँव में भारी बारिश हो रही थी।
बादल गरज रहे थे, जैसे आसमान भी रो रहा हो।
अभिषेक और कनिका नदी किनारे आखिरी बार मिले।
अभिषेक ने कहा –
“कनिका, जब भी हवाएँ तेज़ चलेंगी… तुम्हें मेरी आवाज़ सुनाई देगी।
मैं इन्हीं पहाड़ों पर रहूँगा, तुम्हारा इंतज़ार करते हुए।”
कनिका ने रोते हुए कहा –
“अभिषेक, तुम मेरी अधूरी मोहब्बत हो।
काश ये पहाड़ हमें जोड़ पाते…”
फिर वह चली गई।
गाँव की गलियों से, अभिषेक की ज़िंदगी से।
वर्षों बीत गए।
कनिका शहर में बस गई। शादी कर ली, लेकिन दिल के किसी कोने में अभिषेक हमेशा ज़िंदा रहा।
अभिषेक?
वह कभी शादी नहीं कर पाया।
वह हर शाम पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर बैठता… और क्षितिज को ताकता।
गाँव वाले कहते –
“जब हवाएँ घाटी से गुजरती हैं, उनमें एक नाम गूँजता है… कनिका।”
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