प्रयागराज की यात्रा भाग -1
यात्रा का दिनाँक 12 फरवरी 2021
कॅरोना काल से ही कही यात्रा पर जाने की बहुत इच्छा थी, परन्तु संयोग नहीं बन पा रहा था, जनवरी मे झाँसी जाने का कार्यक्रम बना था लेकिन मेरे सह यात्री राम प्रकाश शुक्ला जी की चाची का देहांत हो जाने के कारण ओ यात्रा निरस्त हो गयी। फिर भी मैंने जनवरी में अयोध्या जी की यात्रा कर ली जिसका विवरण मैंने इसके पहले वाले ब्लॉग में दिया हुआ है, तो आईये चलते हैं प्रयागराज की यात्रा पर।
प्रयागराज जाने का कार्यक्रम भी कई बार बना और कई बार निरस्त हुआ, परन्तु मैंने सोच लिया था कि संगम में स्नान करने के लिए तो जाना ही है। इसके लिए मैंने अपना और श्री मती जी का आरक्षण ट्रेन में लखनऊ से प्रयागराज के लिए 12 फरवरी 2021 को करवा लिया था। शाम को ऑफिस से आने के बाद एक बैग में कपड़ा और एक मे दो कम्बल रखकर घर से 9 बजे चार बाग स्टेशन के लिए निकल गया। ऑटो पकड कर करीब साढ़े 10 बजे स्टेशन पहुँच गए और ट्रेन 11 बजे की थी जो 2 नम्बर प्लेट फॉर्म पर आने वाली थी, खाना वगैरह सब घर से खाकर निकले थे तो बस ट्रेन की ही प्रतीक्षा थी जो अपने नियत समय से 10 मिनट की देरी से आ गई। ट्रेन में एस 2 बोगी में दोनों मिडिल बर्थ मिली थी। अपना अपना कम्बल बिछा कर और 3 बजे का अलार्म लगा कर लेट गए। रास्ते मे ट्रेन लेट होने के कारण करीब साढ़े 4 बजे प्रयाग राज स्टेशन पहुंची।
प्रयागराज जाने के पहले ही हमारे मुहल्ले के मिश्रा जी जो की शाखा के कार्यवाह भी रह चुके है उनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि मैं 9 फरवरी से 18 फरवरी तक प्रयागराज में रहूँगा। स्टेशन पर उतरने के बाद हम लोग पैदल ही संगम के लिये चल दिये। मिश्रा जी से बात हुई तो उन्होंने बताया कि ओ 5 नम्बर पुलिया के पास विनोद पंडा के यहाँ ठहरे हुए हैं।
प्रयागराज आने का जीवन में ये दूसरा अवसर था, पहली बार जब अर्ध कुंभ लगा हुआ था तब आये थे और दूसरी बार आज। पूछते पूछते हम लोग विनोद पंडा के यहाँ पहुँच गए, मिश्रा जी गेट के बाहर ही प्रतीक्षा करते हुए मिल गए और अपने टेन्ट की ओर ले गए। वहाँ पहुँच कर हम लोगोँ ने सामान रखा और नित्य कर्म के बाद गंगा स्नान के लिए मिश्रा जी के साथ चल दिये। गंगा जी का घाट वहाँ से मुश्किल से 300 मीटर पर था। गंगा जी के घाट पर पहुंच कर मन ही मन में प्रणाम किया और फिर स्नान पूजा आदि करने के बाद अपने टेन्ट में आ गए। चाय पीने के बाद मैं स्थनीय भर्मण पर निकल गया, जगह जगह भजन कीर्तन एवं प्रवचन का कार्यक्रम चल रहा था ये सब देखकर मन बहुत प्रसन्न हुआ और फिर उन लोगों के बारे में सोचने लगा जो पूरा एक महीना वहा रहकर कल्पवास करते है। कितना आनन्द आता होगा सोचकर ही मन खुश हो गया। हमारे सनातन परंपरा में इस तरह की यात्रायें करना बहुत पुण्य का कार्य माना जाता है जिसमें पुण्य के अलावा
आत्मिक शांति और सुख कितना मिलता है। इसका अनुभव वहाँ पर जाने वाला ही कर सकता है। इसका अनुभव उन लोगों के लिए करना बहुत मुश्किल है जो दिन रात एक करके पैसा कमाने में लगे रहते हैं और ऐसी यात्राओं
पर जाने वालों को पैसा और समय बर्बाद करने वाला समझते हैं।
वापस आकर भोजन करने के बाद मिश्रा जी ने कहा की आज किला चलते हैं और संगम में स्नान भी कर लेते हैं, डेरे से निकलते ही एक ऑटो मिल गया जिसने संगम पर लाकर छोड़ दिया। एक बार फिर स्नान किया गया और प्राचीन किले में स्थित बट वृक्ष का दर्शन किया गया। उसके बाद लेटे हुए हनुमान जी का दर्शन किया गया एवं प्रसाद चढ़ाया गया।
हनुमान जी का दर्शन करने के बाद मिश्रा जी ने कहा कि बिना बेनी माधव जी का दर्शन किये प्रयागराज की यात्रा पूर्ण नही मानी जाती हैं, तो उसके बाद हम सभी लोग बेनी माधव जी का दर्शन करने के लिए चले गए। उसी बीच मेरे मामा का लड़का जो कि प्रयागराज में रह कर तैयारी करता है उसका फोन आ गया। मिश्रा जी सपत्निक दर्शन करने के बाद डेरे की ओर चले गए और मैं सपत्निक माता अलोपी का दर्शन करने चला गया। अलोपी मंदिर प्रयागराज का एक प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर में दर्शन पूजन किया गया तब तक मामा जी का लड़का पंकज भी आ गया, वही चाय नास्ता किया गया और फिर प्रयागराज में स्थित अन्य मंदिरों का दर्शन करने के लिए चल दिया।
मामा जी का लड़का जो कि चार साल से प्रयागराज में रहकर पढाई कर रहा है उसे वहाँ स्थिति सभी प्रमुख मंदिरों की जानकारी है।
सबसे पहले हम लोग नौ ग्रह मंदिर गए, यह एक आधुनिक तरीके से बना हुआ बहुत सुन्दर मंदिर है जिसमें एक बहुत बड़े हाल में नौ ग्रह की मूर्तियां एवं उनका संक्षिप्त परिचय लिखा हुआ है, मंदिर में चित्र खीचना वर्जित है जिसके कारण अन्दर का चित्र नही ले पाये। नौ ग्रह मंदिर बाहर से देखने में भी बहुत खूबसूरत है। मंदिर में दर्शन पूजन के बाद कुछ देर विश्राम किया गया, उसके बाद परिसर में कुछ फोटो खीचा गया।
अब अगला पड़ाव थोड़ी दूरी पर स्थित हनुमान जी का मंदिर था वहाँ भी दर्शन पूजन किया गया एवं कुछ देर वहाँ बैठे रहे उसके बाद पंकज ने बताया कि नैनी पुल के पास मनकामेश्वर मंदिर है जो कि शंकर जी का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है और सोमवार को तो वहाँ बहुत भीड़ होती हैं। वहाँ से हम लोग ऑटो पकड़ कर मनकामेश्वर मंदिर गए और दर्शन पूजन किया गया, मंदिर बहुत पुराना एवं सुंदर है, मंदिर परिसर के बगल से ही गंगा जी बहती है और वहाँ से गंगा जी बहुत सुंदर दिखाई देती हैं। कुछ देर तक वहाँ बैठकर भगवान शिव का ध्यान किया गया और चढ़ाया हुआ प्रसाद खाकर पानी पिया गया। अब तक अँधेरा हो चला था। मंदिर से निकल कर कुछ देर चलने के बाद एक ऑटो मिल गया जिसने मेला स्थल तक छोड़ दिया, इसी बीच मिश्रा जी का फोन भी आ गया कि कहां है आप लोग उनको यथा स्थिति से अवगत कराने के बाद पैदल ही घूमते हुए हम लोग भी डेरे पर पहुंच गए और इस तरह आज की यात्रा समाप्त हुई।




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