बुधवार, 29 अप्रैल 2020

उज्जैन, ओंकारेश्वर एवं ममलेश्वर की यात्रा भाग 3



यात्रा का तीसरा दिन 12/08/2018

ओंकारेश्वर एवं ममलेश्वर महादेव की यात्रा


आज यात्रा का तीसरा दिन था, जिसके लिए हम लोगों ने कल ही ओंकारेश्वर जाने के लिए बस में आरक्षण करा लिया था। आज सवेरे जल्दी उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर नीचे सड़क पर स्थित एक दुकान पर चाय पिया गया, बस वाले ने साढ़े आठ बजे का समय दिया था तो अभी करीब हम लोगों के पास डेढ़ घंटे का समय था, तो इसका सदुपयोग करने के लिए हम लोग पैदल ही हरि सिद्धी माता के मंदिर चले गए, माता हरि सिद्धी देवी के बारे में कहा जाता है कि ये विक्रमादित्य जी की कुल देवी थी, यहां पर उन्होंने माता की घोर तपस्या की थी एवं 11 बार अपना सिर काट कर माता के चरणों में चढ़ाया था। इस प्रकार इस मंदिर का विशेष महत्व है, मंदिर परिसर में ही दो दीप स्तंभ है जिसमें रात्रि के समय दीपक जलाया जाता है, उस समय यहां की छटा निराली होती है। मंदिर परिसर में कोने में एक बावड़ी है, वहां वैठने पर असीम शान्ति का अनुभव होता है, इस मंदिर के पीछे सन्तोषी माता एवं अगस्तेश्वर महादेव जी का मंदिर है, वैसे स्कन्द पुराण में भी इस मंदिर का उल्लेख है। माता का दर्शन करने के बाद सीधे सड़क पर चलते हुए बायें हाथ की तरफ ढलान से नीचे उतरने के बाद राम घाट की तरफ इशारा करते हुए एक बोर्ड लगा हुआ था, एवं कुछ आगे बढ़ने पर दाहिने हाथ में एक बहुत सुंदर मंदिर दिखाई पड़ा, हम लोग भी उसी तरफ चले गए। मंदिर बहुत ही सुंदर और विशाल था अन्दर जा कर दर्शन किया गया एवं भर्मण किया गया, अब तक 8 बज चुके थे, यहां से बस मिलने का स्थान थोड़ा दूर था तो हम लोग बस पकड़ने के लिए चल दिये, करीब 20 मिनट में हम लोग बस मिलने के स्थान पर पहुंच गए परंतु अभी वहां बस का पता ही नहीं था, बस वाले को फोन किया तो बताया दस मिनट में पहुंच रहा है, तब तक नजर सामने स्थिति एक रेस्टोरेंट पर पड़ी सोचा गया जब तक बस आ रही है तब तक कुछ नास्ता कर लिया जाय। रेस्टोरेंट में जाकर सभी लोगों ने अपने अपने पसंद का नास्ता किया । बस करीब 9 बजे आई और हम लोगों ने उसमें अपना स्थान ग्रहण कर लिया, सवा नौ बजे बस ओंकारेश्वर के लिए चल दी ।

ओंकारेश्वर की यात्रा

संयोग से मुझे खिड़की वाली सीट मिली थी, वैसे यात्रा चाहे बस की हो या ट्रेन की मेरा प्रयास खिड़की वाली सीट पाना होता है क्योंकि कोई भी घुमक्कड़ इस सुख से वंचित नहीं होना चाहता, घूमने के लिए हम जिस स्थान पर जाते हैं वहाँ तक पहुंचने का सफर का भी अपना आनंद होता है।
हम लोगों की बस रफ्तार पकड़ चुकी थी और मैं बाई तरफ खिड़की के किनारे बैठा अवंतिकापुरी का दर्शन कर रहा था, हममे से बहुत से लोगों ने टाइम मशीन के बारे सुना होगा जिसके द्वारा इंसान भूत में पहुंच जाता है, मैंने भी आँखे बंद करके भूत में जाने का प्रयास किया औऱ अभी कुछ ही दूर गया था कि ड्राइवर द्वारा लगाए गए ब्रेक के झटके के साथ वापस अपनी सीट पर आ गया। इस समय तक बस उज्जैन इंदौर मुख्य मार्ग पर दौड़ रही थी, बस के बाहर सुंदर दृश्य दिखाई दे रहे थे, बीच बीच में मैं अपना मोबाइल निकाल कर कभी फोटो खीचता और कभी वीडियो बनाता, कभी आँखे बन्द करके विक्रमादित्य जी के समय में जाने का प्रयास करता, और कभी सोने का भी प्रयास करता, इस तरह मेरी बस ने यात्रा का आधा रास्ता पार कर लिया, अब ओ एक ढाबे पर खड़ी थी सभी यात्री उतर कर फ्रेश होने के बाद ढाबे की तरफ कुछ खाने के लिए जा रहे थे, हम लोग भी वहाँ लगी कुर्सियों पर बैठ गए और अपने अपने पसंद का नास्ता मंगाने लगे, वैसे इस ढाबे पर खाने पीने की चीजें कुछ महँगी थी लेकिन उसकी क्वालिटी बढिया थी, मैंने भी अपने एवं अपने साथ के लोगों के लिए समोसा, खस्ता एवं लस्सी मँगाया, नास्ता करने के बाद सभी लोग फिर बस में सवार हो गए।
बस अपने पूरे वेग से चल रही थी और अब पहाडी रास्ता शुरू हो चुका था, कहीं कहीं सकरे रास्तों से गुजरती बस और किनारे पड़ने वाली खाई को देखकर मन में रोमांच पैदा हो जाता, हम मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए रास्ते में पहाड़ का दृश्य आते ही प्रकृत के अनुपम सौंदर्य का आनन्द दिलों दिमाग पर छाने लगता है और व्यक्ति उस छंटा को अपने मन मस्तिष्क में बसा लेना चाहता है। सुन्दर सुन्दर दृश्यों को देखते हुए हम लोग अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे और अब ओंकारेश्वर से  कुछ ही दूर रह गए थे, काफी देर से बस में बैठने के कारण शरीर में अकड़न सी हो गई थी और अब मन यही चाह रहा था कि जल्दी से जल्दी अपने गंतव्य तक पहुंच जाए, कुछ देर की यात्रा के बाद हम लोग ओंकारेश्वर बस स्टेशन पर पहुंच गए, अब तक लगभग डेढ़ बज चुके थे और ड्राइवर ने उतरने के पहले ही हिदायत दे दी की आप लोग 4 बजे तक हर हाल में वापस आ जाये, क्योंकि बस 4 बजे वापसी के लिए प्रस्थान कर देगी,बस से उतरने के बाद ऑटो पकड़ कर हम लोग मंदिर तक पहुँचे, चूँकि ये यहाँ की पहली यात्रा थी इसलिए बहुत जानकारी नही थी, कुछ लोगों से पूछने पर पता चला कि पहले ममलेश्वर जी का मन्दिर पड़ता है और पुल पार कर उस पार ओंकारेश्वर जी का, तो पहले हम लोगों ने ममलेश्वर जी के दर्शन का सोच कर नीचे उतर गए और कुछ ही देर में मंदिर के समीप पहुंच गए। मंदिर के बाहर बने प्रसाद की दुकान से प्रसाद लिया गया और अपना सामान उसी दुकान पर रख दिया गया, मंदिर के अंदर पहुँचने पर एक पंडित जी ने पकड़ लिया और पूजा आदि कराने के लिए कहने लगे, हम लोगों ने भी सोचा कि पूजा तो करना ही है तो क्यों न इन्ही से करा लिया जाय, बात करने के बाद पंडित जी हम लोगों को मंदिर के अंदर लेकर गए और पूजा कराया, हम लोगों ने भगवान का दर्शन पूजन किया और गर्भ गृह से बाहर निकल आये। अब बारी थी मंदिर की भव्यता और वास्तुकला कला के अवलोकन की, मंदिर देखने में ही वहुत प्राचीन लगता है, वैसे ममलेश्वर का दूसरा नाम अमरेश्वर महादेव मंदिर भी है, यह एक पाँच मंजिला मंदिर है, मंदिर में बने दीवारों पर शिव स्त्रोत लिखा हुआ है तथा वहां 1063 AD अंकित है, वहां के लोगों से पूछने पर पता चला कि यह बहुत प्राचीन मंदिर है और इस समय पुरातत्व विभाग के अधीन है।
 ममलेश्वर जी का दर्शन करने के बाद हम लोग ओंकारेश्वर जी का दर्शन करने के लिए चल दिये इसके लिए पुल पार कर उस पार जाना पड़ता है, पुल के पास पहुंचे तो पता चला कि पुलिस वाले इधर से नही जाने दे रहे हैं, सिर्फ उधर से आने के लिए खुला है, ओंकारेश्वर जाने के लिए आगे से जाकर दूसरे पुल से जाने के लिये कह रहे थे, कुछ लोग पुलिस वालों के इधर उधर देखते ही  घुस के निकल जा रहे थे, हम लोगों ने भी प्रयास किया लेकिन सफलता नही मिली और कुछ देर बाद हम लोग दूसरे पुल की तरफ चल दिये जो कि वहां से लगभग एक किलोमीटर दूर था, नर्मदा नदी के किनारे चलते हुए दूसरे पुल तक पहुंचने में करीब आधा घंटा लग गया।
अब आइये थोड़ा ओंकारेश्वर महादेव के बारे में जान लेते हैं, यह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में चौथे स्थान पर आता है, ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान शिव सारे ब्रह्माण्ड का भर्मण करने के बाद रात्रि शयन करने के लिए आते हैं, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का कई पुराणों में भी उल्लेख मिलता है, नर्मदा नदी के बीच में ॐ टापू पर बसे होंने के कारण ओम्कारेश्वर के नाम से जाना जाता हैं, ऐसा भी कहा जाता है कि ऊपर से देखने पर ॐ के आकार का दिखाई देता है, यहाँ ओम्कारेश्वर महादेव के अतिरिक्त और भी कई मंदिर है, या यूं कहें कि मंदिरों का समूह है, यहाँ आने वाले कुछ लोग यहाँ की परिक्रमा भी करते हैं, लगभग 16 किलोमीटर का परिक्रमा पथ है, और परिक्रमा करने पर लगभग सभी मंदिरों के दर्शन हो जाते हैं, कहीं कहीं गर्भ गृह की परिक्रमा की जाती है और कही कही पूरे पवित्र क्षेत्र का किया जाता है।
 ओंकारेश्वर महादेव का मंदिर भी एक पाँच मंजिला भवन है।
हम लोग पुल पार करके ओम्कारेश्वर जी पहुंचे और सीधे दर्शन के लिए लाइन में लग गए, भीड ज्यादा होने के कारण लाइन बहुत दूर से लगी थी, कुछ देर तक तो लाइन बढ़ती रही लेकिन मंदिर से थोड़ा पहले जाकर रुक गई, पता किया गया तो मालुम हुआ कि अब मंदिर बंद हो चुका है और अब ये 4 बजे खुलेगा, अभी लगभग पौने तीन बजे थे और 4 बजे तक हम लोगों को बस स्टैंड पर पहुचना था क्योंकि ड्राइवर ने पहले ही वापसी का समय बता दिया था, अब तो दर्शन हो पाना मुश्किल लग रहा था, कुछ देर खड़े रहने के बाद लाइन से बाहर आ गए, इस बीच कई पंडों ने 300 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से दर्शन कराने का प्रस्ताव दिया, लेकिन सभी लोगों का एक राय ना हो पाने के कारण ओ भी नहीं हो पाया। आज भगवान के द्वार पर आकर दर्शन न कर पाने का बहुत दुख हो रहा था, और इन सब के पीछे का कारण समय का सही तरीके से प्रबंधन ना हो पाना था, सभी लोगों ने अपने आराध्य देव को मन ही मन में प्रणाम किया और फिर कभी आने का निश्चय करके वहां से वापस हो लिए, वापसी में कुछ लोगों की इच्छा नर्मदा नदी में स्नान करने की थी लेकिन गन्दगी को देखते हुए सबने स्थगित कर दिया, कुछ देर हम लोग नदी के किनारे बैठ कर नौका विहार कर रहे लोगों को देखते रहे, इस बीच मोबाइल से कुछ फोटो भी खीचा गया, घड़ी की सूई धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी और इस समय साढ़े तीन बज रहे थे, अब हम लोगों को बस स्टैंड पहुचना था क्योंकि यहाँ से वहाँ जाने में आधे घंटे लग ही जाने थे, हम लोगों ने एक बार और ओंकारेश्वर जी का ध्यान किया और दर्शन ना कर पाने के लिए क्षमा मांगी और बस स्टैंड की तरफ चल दिये, पुल पार करने के बाद ऑटो पकड़ा और कुछ ही देर में बस के पास पहुंच गए। इस यात्रा में हम लोगों से गलती ये हुई कि पहले यदि हम लोग ओंकारेश्वर जी का दर्शन कर लेते उसके बाद ममलेश्वर जी का दर्शन करते तो दोनों जगह आराम से दर्शन मिल जाता, क्योंकि ममलेश्वर जी का मंदिर दिन में नहीं बंद होता है, लेकिन ये बात हम लोगों को पहले नही था, खैर जैसी प्रभु की इच्छा, हमारे बस के अन्य यात्रियों ने ऐसा ही किया था।
बस में बैठने के कुछ ही देर बाद बस चल दी, वापसी में हम लोगों के मन में दर्शन ना कर पाने का बहुत दुख था इस कारण सभी लोग अपनी अपनी सीट पर बैठ कर चुप चाप चलती हुई बस से दिखने वाले दृश्यों को देखकर अपने दुख को कम करने की कोशिश कर रहे थे, वापसी में बस फिर उसी ढाबे पर रुकी, चाय नास्ता करने के बाद फिर बस में सवार हुए और इस प्रकार
हम लोगों की बस करीब साढ़े सात बजे हरि सिद्धी माता के मंदिर के पास पहुंच गई सब लोग वहीं उतर गए क्योंकि हम लोगों का धर्मशाला यहां से पास था, बस से उतर कर हम लोग अपने कमरे पर आ गए और फ्रेस हो कर आज के यात्रा के बारे में में बात चीत करने लगे, कुछ देर आराम करने के बाद लगभग नौ बजे हम लोग खाना खाने नीचे स्थित होटल में गये, वहाँ सभी लोगों ने अपना मन पसन्द भोजन किया और वापस कमरे पर आकर सोने की तैयारी करने लगे, इसी बीच कल के दिन की यात्रा के बारे में भी विचार विमर्श हुआ, कल उज्जैन में स्थित बाकी मंदिरों का दर्शन करने का कार्यक्रम बना, इस प्रकार तीसरे दिन की यात्रा समाप्त हुई।

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