मंगलवार, 11 अगस्त 2020

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 2


यात्रा का तीसरा  दिन 29  सितम्बर 2009 दिन मंगलवार 

हम लोग कमरे से करीब सात बजे माँ के दरबार में जाने के लिए निकले, माँ का जयकारा लगाते हुए और भजन गाते हुए पूरे उत्साह में हम लोगों की टोली चल रही थी जिसमे बच्चे सबसे आगे चल रहे थे, कुछ दूर चलने के बाद थकान महसूस होने लगी तो एक दुकान से सभी लोगों ने डंडा लिया जिसके सहारे चढ़ाई करने में आसानी होती है और डंडे के सहारे चलते हुए बाणगंगा नदी पर पहुंच गए, चेक पोस्ट पर सिक्योरिटी चेक होने के बाद आगे बढे,  बाणगंगा नदी के किनारे बैठकर नदी के जल को निहारते हुए असीम सुख का आनंद महसूस हुआ कुछ बच्चों ने वहाँ नहाया भी और जी भरकर अठखेलिया की उसके बाद फिर आगे की यात्रा शुरू हो गयी, चूकि हम लोगों की टोली में महिलाये और बच्चे ज्यादा थे तो ओ जगह - जगह रुकते हुए चल रहे थे, बीच - बीच में थकान होने पर कुछ देर कही अच्छी जगह देखकर बैठ जाते और आराम करने लगते इसलिए चढ़ाई में समय ज्यादा  लग रहा था ।

हम लोग 4 बजे अर्धकुमारी पहुंचे और सबसे पहले दर्शन की  पर्ची ली गई, इस समय सभी लोग बहुत थक चुके थे तो फ्रेश होकर हाल के बाहर एक जगह चद्दर बिछा कर आराम करने लगे, वही पर सभी लोगों ने होटल में जाकर खाना खाया और आराम करते करते सो गए, शाम को 6 बजे नींद खुली तब तक अर्द्धकुमारी में दर्शन का समय भी हो गया था, माँ का दर्शन किया गया और थोड़ी देर बाद लगभग साढ़े सात बजे भवन की ओर प्रस्थान किया गया, अर्द्धकुमारी से भवन तक की चढ़ाई हम लोगों ने साढ़े तीन घंटे में पूरी  कर ली और लगभग ग्यारह बजे माता के भवन तक पहुँच गए, सभी लोग काफी थके  हुए थे तो रात्रि में विश्राम कर सुबह 4 बजे दर्शन का निर्णय लिया गया, पास में ही स्थित दुकान से छोला पूड़ी, कढ़ी चावल और राजमा चावल खाया गया और स्टोर से कम्बल लेकर एक जगह देखकर बिछाकर सो गए, सुबह 4 बजे उठे और नहा धोकर तैयार  होने के बाद सामान रखने के लिए लॉकर की तलाश हुई, लॉकर में सामान रखने के बाद प्रसाद लिया गया उसके बाद  लिए लाइन में लग गए, अब तक लगभग साढ़े 6 बज चुके थे। 

सुबह के समय दर्शन करने के लिए भीड़ कुछ ज्यादा  थी, सभी लोग पूर्ण श्रद्धा भाव से माता का जैकारा लगाते हुए आगे बढ़ते रहे और करीब आठ बजे गुफा के बाहर लगी माँ की विशाल प्रतिमा के दर्शन हुए, लाइन  धीरे चलने लगी किन्तु अब कोई जल्दी नहीं थी, हर कोई माँ का गुणगान करता हुआ मन में माँ की प्रतिमा को वसा लेना चाहता था, कुछ देर बाद हम लोग भी गुफा में प्रवेश किये अब तो भक्तो का उत्साह दुगना हो चुका  था और मुझे तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे शरीर की  सारी थकान दूर हो चुकी है, एक ऐसी अलौकिक शीतलता का आभास हुआ जिसका  शब्दो में बर्णन  कर पाना संभव नहीं है, कुछ देर बाद माँ की पिंडी के पास पहुंच गए पुजारी जी ने बताया की ये  माँ महाकाली (दाएं), माँ महासरस्वती  (मध्य) और मां महालक्ष्मी (बाएं) विराजमान  है कुछ सेकण्ड ही दर्शन हुआ उसके बाद आगे बढ़ा दिए गए, माँ के पिंडी की अलौकिक छटा को आँखों में बसाते हुए आगे बढ़ गए, उसके बाद मंदिर परिसर से निकलते समय प्रसाद और नारियल लिया गया और नीचे स्थित दाहिने तरफ  अन्य मंदिरो का दर्शन किया गया, जिसमे शिव लिंग जिस पर प्राकृतिक रूप से पहाड़ी से जल गिरता रहता था अपने आप में अद्भुत था।
 

अब तक लगभग नौ बज चुके थे,  वहां से दर्शन करने के पश्चात एक दुकान पर बैठ कर जलपान किया गया और उसके बाद लाकर से सामान निकाल कर ऊपर आ गए जहाँ  से भैरो घाटी की चढ़ाई शुरु होती है,  ऐसी मान्यता है की जब तक भैरो बाबा के दर्शन नहीं किये जाते है तब तक माँ वैष्णो देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है, भवन से भैरो घाटी की दूरी वैसे तो साढ़े तीन किलोमीटर की है परन्तु ये खड़ी चढ़ाई है इसलिए इसमें थकान ज्यादा होती है, हम लोगों ने दस बजे चढ़ाई शुरु की और करीब एक बजे भैरो घाटी पहुच गए, थोड़ी देर आराम करने के बाद हाथ मुह धोकर प्रसाद लेकर बाबा भैरो नाथ का दर्शन किया गया और दर्शन के बाद दोपहर का भोजन भी वही किया गया और कुछ देर तक मोबाइल से फोटोग्राफी की गयी 

यात्रा का चौथा   दिन 30  सितम्बर 2009 दिन बुधवार 

भैरो घाटी से करीब तीन बजे वापसी की यात्रा प्रारंभ हुई और लगभग सात बजे हम लोग अर्ध्कुमारी पहुच गए, चूकी हम लोगों के साथ बच्चे और महिलाये थी इसलिए हम लोग बहुत आराम से चल रहे थे, अब तक सभी लोग बहुत थक चुके  थे और ये निर्णय लिया गया की रात यही रुका जाये और सुबह यहाँ से चला जायेगा, किराये पर कम्बल लेकर एक साफ सुथरी जगह देखकर डेरा जमाया गया, जिसको जो खाना था खाया और फिर सो गए, अगले दिन सुबह चार बजे उठने के बाद फ्रेश होकर कम्बल आदि जमा करने के बाद 6 बजे अर्ध्कुमारी से नीचे की यात्रा शुरु हुई और रुकते चलते 11 बजे तक हम लोग कटरा पहुच गए, और नहा धोकर खाना खाकर सो गए, शाम को 4 बजे उठने  के बाद कटरा नगर घूमने  गए, कटरा की गलियों में घूमते हुए कुछ सामानों की खरीददारी की गयी और कल शिवखोड़ी जाने के लिए एक गाड़ी भी 2500 रूपये में तय कर ली गयी जो कल सुबह 6 बजे तक आ जायेगी और शिवखोड़ी दर्शन कराने के बाद जम्मू स्टेशन पर छोड़ देगी, जहाँ  से रात में हम लोगों की वापसी की ट्रेन है  

कटरा में ऐसे कई लोग मिले जो अपने यहाँ से जाकर वहां  की प्राकृतिक सुन्दरता से प्रभावित होकर वही बस गए है और अपना रोजी रोजगार कर रहे है, ऐसे ही एक कानपुर के दूबे  जी मिले जो वहां ट्रेवल एजेंसी चलाते है, हम लोगों ने उन्ही की गाड़ी हायर की थी, काफी मिलन सार  और सहयोगी व्यक्ति थे, कटरा बाज़ार घूमते और खरीददारी करते करीब 9 बज गए, उसके बाद हम लोग एक होटल पर खाना खाकर अपने कमरे पर आ गए और कल की तैयारी करने के बाद सो गए 






 





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