सोमवार, 3 अगस्त 2020

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग – 1

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग – 1

यात्रा का दिनांक 27 सितम्बर 2009 दिन रविवार

ये यात्रा मैंने बहुत पहले की थी और जब से करोना के कारण लाक डाउन हुआ तब से कोई भी यात्रा नहीं हो पाई तो सोचा की जो यात्राये पहले की जा चुकी है उन्ही को क्यों न स्मृतियों के आधार पर करोना काल में लिखकर यात्रा का आनंद लिया जाय I
बात उन दिनो की है जब मैं गोरखपुर में रहता था, माँ वैष्णो देवी के बारे में बहुत लोगों से सुना था लेकिन अभी तक दर्शन का सौभाग्य नहीं मिला था, बहुत दिनों से विचार बन रहा था की माता के दर्शन करने के लिए जाये, कई लोगों से वहा जाने एवं दर्शन करने के बारे में जानकारिया इकट्ठा  की और अंत में फाइनल हो गया की अब माँ के दर्शन के लिए जाना है, नौ जून 2009 को सबका रिजेर्वशन हो गया और एक भारी  भरकम समूह तैयार हो गया जिसमे मेरे माता पिता, मै मेरी पत्नी और तीनों बच्चे मेरे मामा मामी मेरी मौसी और मेरी माँ की बुवा जी कुल  मिलाकर 11 लोग यात्रा के लिए तैयार हो गए और 27 सितम्बर का गोरखपुर से जम्मू का रेजेर्वशन  हो गया I
अभी यात्रा में बहुत समय था और इस बीच बहुत सारे परिवर्तन हुए पहला ये की मै गोरखपुर से लखनऊ आ गया और एक नई कंपनी में नौकरी ज्वाइन कर ली, बहुत दिनों से प्रयास रत था की लखनऊ में नौकरी मिल जाये तो बच्चो की पढाई लिखाई के लिए अच्छा रहेगा और माँ वैष्णो देवी के आशीर्वाद से जुलाई में ही मै लखनऊ आ गया, नौकरी अभी नई थी इसलिए मै अकेला ही लखनऊ में रहकर नौकरी करने लगा और महीने में एक दो बार छुट्टी मिलने पर गोरखपुर चला जाता था इस प्रकार समय का पहिया घूमता रहा और कुछ दिनों तक माँ के दरबार में जाने का ध्यान ही नहीं रहा, सितम्बर के पहले हफ्ते में मेरे मामा जी ने याद दिलाया तो ध्यान आया की अरे हम लोगों को तो 27 तारीख को ट्रेन पकडनी है I
चूकी मै एकाउंट्स सेक्शन में था इसलिए सितम्बर का महीना हम लोगों के लिए बड़ा व्यस्त होता है 30 सितम्बर बैलेंस शीट बनाने की आखिरी तारीख होती है और ये काम अक्सर आखिरी समय में ही होता है, मेरे लिए इस समय छुट्टी मिलना बड़ा मुस्किल लग रहा था, ऑफिस के अन्य कर्मचारियो से पूछने पर पता चला की छुट्टी मिलना बड़ा मुस्किल है फिर भी आप एक बार एप्लीकेशन देकर देख सकते हो, मेरे एक डायरेक्टर शुक्ल जी है एक दिन मैंने उनसे चर्चा किया तो उन्होंने कहा पहले आप एप्लीकेशन तो दीजिये छुट्टी मिलना या न मिलना तो बाद की बात है, फिर मैंने 20 तारीख को 5 दिनों की छुट्टी का एप्लीकेशन लगा दिया और अगले ही दिन हमारे दूसरे  डायरेक्टर सिद्दकी साहब ने मेरा एप्लीकेशन अप्रूव कर दिया इस बीच मैंने अपने C. A. साहब रस्तोगी जी से मिलकर बैलेंस शीट का सारा काम निपटा दिया, C. A. साहब के  सहयोगी चन्द्र भाल शुक्ल जी का भी इसमें बड़ा सहयोग रहा उन्होंने समय रहते सारा काम पूरा कर दिया I      
25 सितम्बर को याद आया की एक बार ट्रेन का स्टेटस चेक कर ले तो पता चला की ओ ट्रेन गोरखपुर से चलकर बुढ्वल से सीतापुर होकर निकलती है, मतलब ये की ये ट्रेन लखनऊ होकर नहीं जाएगी, अच्छा हुआ की दो दिन पहले ही मैंने देख लिया नहीं तो मै यहाँ लखनऊ में इंतजार करता और ट्रेन सीतापुर होते हुए जम्मू निकल जाती I ट्रेन का समय 27 तारीख को शाम 8 बजे सीतापुर में था, मै लखनऊ से 1 बजे ही बस द्वारा सीतापुर के लिए निकल गया और बाकी सारे लोगों ने गोरखपुर से ट्रेन पकड़ ली, सीतापुर मै काफी पहले पहुच गया था तो स्टेशन के बाहर ही घूम टहल कर समय काटा, ट्रेन अपने निर्धारित समय से 1 घंटा देरी से सीतापुर पहुची और मै अपने आरछित बोगी में जाकर परिवार वालों से मिला, रात हो गया था थोड़ी देर बात चीत के बाद घर से बनाकर लाया हुआ खाना खाया गया और उसके बाद अपने बर्थ पर सोने का प्रयास करने लगे, कुछ देर बाद नीद आ गयी I


यात्रा का दूसरा दिन 28 सितम्बर 2009 दिन सोमवार

सुबह जब नीद खुली तो ट्रेन अम्बाला स्टेशन पर खड़ी  थी, नित्य कर्म के बाद  घर का बना हुआ नमकीन एवं चाय का नास्ता हुआ और अब ट्रेन से दिखने वाले दृश्यों का आनंद लेने का समय था, चलती ट्रेन में बैठ कर ऐसा लगता है जैसे मै बैठा हू और पेड़, सड़के एवं ट्रेन के बाहर दिखने वाली हर वस्तु चलाय मान है, जंगले के किनारे बैठ कर अपनों से बात चीत करते हुए समय कब निकल जाता है  पता ही नहीं चलता, दोपहर में घर का बना हुआ कुछ खाया गया और शाम 3 बजे के करीब हम लोग   जम्मू रेलवे स्टेशन पहुच गए, स्टेशन से बाहर निकल कर कटरा के लिए बस पकड़ा गया जो की 50 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से लिया और अब जम्मू से कटरा की यात्रा प्रारंभ हो गई, यह यात्रा भी काफी रोमांचक थी चूँकि बहुत दिनों बाद यात्रा का सौभाग्य मिला था और ओ भी माता के दरबार का तो मन पूरी तरह से उत्साहित था सभी लोग यात्रा का पूरा आनंद उठाना चाह रहे थे, बस में सवार होते समय सबका प्रयास खिड़की के पास बैठने का होता है लेकिन ऐसा कहा संभव होता है, कुछ ही लोगों को खिड़की वाली सीट मिल पाती है और मै उन लोगों में से एक था, जम्मू से बस शुरू होकर शहर से गुजरते हुए पहाड़ी की ओर बढती है और जब पहाड़ दिखते है तो मन बल्लियों उछलने लगता है, यही मन करता है की ये रास्ते कभी समाप्त न हो और मै ऐसे ही उन्हें देखता रहू I
कुछ देर बस पहाडों के बीच चलने के बाद एक स्थान पर रूकती है और वहा सबके सामानों की बारीकी से जाँच की जाती है और उसके बाद बस कटरा की तरफ बढती है, कुछ देर तक पहाड़ी रास्तों का आनंद लेते हुए बस कटरा नगर में प्रवेश करती है और अपने स्टॉप पर रुक जाती है सभी लोग अपना – अपना सामना लेकर नीचे उतरते है और एक बार जोर से माता का जय कारा लगाते है I बस से उतरने के बाद रात्रि विश्राम के लिए एक धर्मशाला  की तलाश की जाती है और जहाँ तक मुझे याद है उस समय हम लोगों को 500 रूपये में एक हाल मिल गया था, सभी लोगों ने अपना सामान रखने के बाद नहाया धोया और थोड़ी देर विश्राम किया, अब तक लगभग 7 बज चुके थे यात्रा पर्ची के लिए बस स्टैंड पर गए तो नवरात्री का समय होने के कारण बहुत भीड़ थी और थके होने के कारण बहुत देर तक पर्ची के लिए धक्का मुक्की करना संभव नहीं था तो ये तै हुआ की चलो रात्रि में सोया जाय और सुबह 3 बजे उठकर पर्ची के लिए फिर लाइन लगाया जायेगा, वापसी में एक होटल पर सभी लोगों ने खाना खाया और कटरा घूमते हुए अपने कमरे पर आ गए I
सुबह 3 बजे उठकर पर्ची के लिए फिर लाइन लगाया गया इस समय भीड़ थोड़ी कम थी, करीब साढ़े 5 बजे हम लोग पर्ची पाने में सफल हुए उसके बाद कमरे पर आकर नहा धोकर थोडा बहुत सामान एक छोटे बैग में रखकर माता के भवन की यात्रा प्रारंभ हुई I


मै ट्रैन में 

                                                                 
                                                             माता के भवन जाते समय रास्ते में
                                                               

                                                             बादल और पहाड़


रास्ते में 

नीचे से दिखती पहाड़ी



क्रमशः 

माँ वैष्णों देवी यात्रा भाग - 2 

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