❤️ Love Now Days – एक आधुनिक प्रेमकहानी
दिल्ली का ठंडा जनवरी महीना था। मेट्रो स्टेशन पर लोगों की भीड़ लगी हुई थी। हर किसी के हाथ में मोबाइल था—कोई इंस्टाग्राम स्क्रॉल कर रहा था, कोई रील बना रहा था, तो कोई कॉल पर बिज़ी था। इसी भीड़ में खड़ा था **आरव**, 27 साल का एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर।
आरव की दुनिया बहुत साधारण थी—ऑफिस, घर और कभी-कभार दोस्तों से मिलने का समय। लेकिन मोबाइल की स्क्रीन उसके जीवन का सबसे बड़ा हिस्सा बन चुकी थी। इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप, लिंक्डइन—सब जगह वह मौजूद था, मगर असल ज़िंदगी में बेहद अकेला।
एक दिन उसने यूँ ही इंस्टाग्राम पर स्क्रॉल करते हुए देखा कि उसके कॉलेज की एक पुरानी जान-पहचान वाली लड़की, **सिया**, की प्रोफ़ाइल सामने आ गई। सिया अब मुंबई में जर्नलिस्ट थी।
आरव ने सोचा—
*"कितना बदल गई है ये… कॉलेज में तो कितनी चुप रहती थी। अब देखो, कितनी कॉन्फिडेंट और पब्लिक फिगर जैसी लग रही है।"*
उसने हिम्मत करके एक *‘Hi’* भेज दिया। जवाब तुरंत नहीं आया। लेकिन रात को करीब 11 बजे फोन पर नोटिफिकेशन बजा—
**सिया: Hi Aarav, long time! How are you?**
बस, वहीं से कहानी की शुरुआत हुई।
शुरू-शुरू में औपचारिक बातें हुईं—*“कहाँ हो?”, “क्या कर रहे हो?”, “परिवार कैसा है?”*।
लेकिन धीरे-धीरे ये बातें लंबी रातों तक खिंचने लगीं।
सिया अक्सर रात को ऑफिस से लौटकर आरव से बातें करती।
वो कहती—
*"दिनभर न्यूज़, पॉलिटिक्स और ब्रेकिंग स्टोरीज़ में दिमाग उलझा रहता है… लेकिन तुम्हारे साथ चैट करने पर लगता है कोई अपना है।"*
आरव हँसते हुए लिखता—
*"मुझे लगता है कि मैं तुम्हें फिर से जान रहा हूँ… पहले वाली सिया से बिलकुल अलग।"*
आजकल के प्यार की यही शुरुआत होती है—ना तो मोहल्ले की छत पर नज़रें मिलना, ना कॉलेज की कैंटीन में चुपके से बातें करना। बल्कि मोबाइल स्क्रीन और टाइप होते हुए ब्लू टिक ही इशारे बन जाते हैं।
दिन बीतते गए। दोनों की चैट कॉल्स में बदलीं, फिर वीडियो कॉल्स में।
आरव को लगता जैसे अब उसकी ज़िंदगी रंगीन हो गई हो। ऑफिस से लौटकर मोबाइल पर सिया का चेहरा देखना उसकी दिनचर्या का सबसे प्यारा हिस्सा था।
सिया ने एक दिन मज़ाक में कहा—
*"देखो आरव, हमें मिले हुए कितने साल हो गए। लेकिन अब लगता है हम रोज़ साथ रहते हैं।"*
आरव ने हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया—
*"हाँ, पर फर्क बस इतना है कि साथ मोबाइल स्क्रीन में है, हकीकत में नहीं।"*
दोनों के बीच एक अजीब सा खिंचाव था। मगर किसी ने सीधे-सीधे 'प्यार' शब्द नहीं कहा था।
करीब दो महीने बाद, सिया दिल्ली आई।
उसने मज़ाक करते हुए कहा—
*"चलो देखते हैं कि इंस्टाग्राम वाला आरव असल में कैसा दिखता है।"*
आरव बेहद नर्वस था। आजकल के प्यार में मिलने से पहले इंसान हजार बार सोचता है—*“वो मुझे देखकर निराश तो नहीं होगी? क्या असलियत में भी वैसा ही कनेक्शन होगा जैसा ऑनलाइन है?”*
उन्होंने कनॉट प्लेस में मिलने का तय किया।
जब सिया सामने आई—काले कोट में, खुले बालों के साथ—तो आरव कुछ पल के लिए बस देखता ही रह गया।
*"Hi,"* सिया ने मुस्कुराकर कहा।
*"Hi…,"* आरव की आवाज़ हल्की काँप रही थी।
दोनों ने कॉफी पी, घंटों बातें कीं। पुराने कॉलेज की यादें, नए सपने, काम की परेशानियाँ—सब कुछ।
और सबसे खास बात—दोनों ने यह महसूस किया कि स्क्रीन के बाहर भी वही जादू बरकरार है।
लेकिन ज़िंदगी हमेशा इंस्टाग्राम रील्स की तरह आसान नहीं होती।
सिया का करियर मुंबई में था, आरव का दिल्ली में। दोनों ही अपने-अपने परिवार की उम्मीदों से बँधे हुए थे।
सिया कहती—
*"मुझे नहीं पता आरव… ये रिश्ता कहाँ जाएगा। मैं करियर छोड़ नहीं सकती, और तुम भी यहाँ सब छोड़कर आ नहीं सकते।"*
आरव चुप रहता।
उसे लगता कि आजकल के प्यार की सबसे बड़ी परेशानी यही है—**दूरी और व्यावहारिकता**।
कॉफी शॉप से बाहर निकलते हुए आरव और सिया दोनों चुप थे।
भीड़भाड़ वाली सड़क, हॉर्न बजाते ऑटो, चमचमाती लाइट्स—सब कुछ उनके बीच की खामोशी को और गहरा कर रहे थे।
सिया ने आखिरकार कहा—
*"आरव, तुम जानते हो ना… आजकल रिश्तों को निभाना पहले जैसा आसान नहीं है। करियर, परिवार, टाइम… सबकुछ बीच में आ जाता है।"*
आरव ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया—
*"जानता हूँ, लेकिन अगर चाहो तो रास्ता हमेशा निकल ही आता है।"*
सिया ने उसकी ओर देखा, आँखों में एक चमक और थकान दोनों साथ थीं।
उनकी मुलाक़ात भले ही छोटी रही, मगर असर गहरा था।
वापस मुंबई लौटने के बाद सिया और भी ज़्यादा चैट करने लगी।
वीडियो कॉल पर वह कहती—
*"तुम्हें पता है, मैं आज ऑफिस में कितनी थक गई थी… लेकिन जैसे ही तुम्हें देखती हूँ, लगता है सब ठीक है।"*
आरव हँसकर जवाब देता—
*"तो फिर मेरे बिना तुम जी ही नहीं पाओगी।"*
और दोनों खिलखिला कर हँस पड़ते।
लेकिन यही हँसी, यही मीठी बातें धीरे-धीरे चिंता में बदलने लगीं।
एक दिन सिया ने मैसेज किया—
*"मम्मी-पापा मेरी शादी की बात करने लगे हैं। कहते हैं कि अब 28 की हो गई हूँ, तो और देर क्यों?"*
आरव के दिल में हलचल मच गई।
उसने लिखा—
*"और तुमने क्या कहा?"*
सिया: *"मैंने कह दिया कि अभी करियर पर ध्यान देना है। लेकिन सच बताऊँ तो मैं भी कंफ्यूज़ हूँ आरव। पता नहीं हम दोनों का रिश्ता कहाँ तक जाएगा।"*
आरव देर तक टाइप करता रहा लेकिन कुछ लिख नहीं पाया।
आजकल के प्यार की यही विडंबना है—दिल 'हाँ' कहता है लेकिन दिमाग 'शायद'।
आरव ने देखा कि सिया अक्सर अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर नए-नए लोगों के साथ तस्वीरें डालती है—कभी ऑफिस पार्टी, कभी किसी इवेंट में सेलिब्रिटी इंटरव्यू।
एक रात उसने हिम्मत करके पूछ लिया—
*"तुम इतने लोगों के साथ हो, कहीं तुम्हें किसी और से… मतलब…"*
सिया ने तुरंत जवाब दिया—
*"आरव, प्लीज़! मेरी दुनिया सिर्फ स्क्रीन पर मत देखो। हाँ, मैं सबके साथ काम करती हूँ, हँसती हूँ, तस्वीरें खिंचवाती हूँ, लेकिन दिल में सिर्फ तुम हो।"*
आरव को चैन मिला, मगर मन में जलन का छोटा बीज फिर भी रह गया।
आजकल के रिश्तों में ये जलन और शक बहुत आम है—क्योंकि दुनिया का हर पल सबके सामने लाइव दिखता है।
करीब छह महीने बाद, सिया फिर दिल्ली आई।
इस बार उन्होंने दो दिन साथ बिताए।
कनॉट प्लेस की गलियों में घूमे, इंडिया गेट पर देर रात तक बैठे, और ढाबे पर छोले-भटूरे खाए।
उन पलों में दोनों ने महसूस किया कि उनका रिश्ता सिर्फ स्क्रीन का नहीं, हकीकत का भी है।
सिया ने धीमे से कहा—
*"आरव, काश हम इसी तरह हमेशा साथ रह पाते।"*
आरव ने उसकी हथेली थामते हुए कहा—
*"तो कौन रोक रहा है?"*
लेकिन अगले ही पल दोनों ने एक-दूसरे की आँखों में झाँककर देखा—
रोकने वाला कोई और नहीं, उनकी अपनी परिस्थितियाँ थीं।
वापस लौटने से पहले, सिया ने कहा—
*"आरव, हमें सच का सामना करना होगा।
हो सकता है मैं किसी दिन मजबूरी में शादी के लिए हाँ कह दूँ। और तुम… तुम्हारे माता-पिता भी तो उम्मीद करते होंगे कि तुम शादी करोगे।"*
आरव चुप रहा।
वह जानता था कि यह सच है।
आजकल का प्यार अक्सर करियर और परिवार की दीवारों से टकरा जाता है।
उस मुलाक़ात के बाद उनके बीच बातें कम होने लगीं।
पहले जो चैट रात-दिन चलती थी, अब दिन में एक-दो मैसेज तक सीमित रह गई।
वीडियो कॉल्स भी कम हो गए।
आरव जब मैसेज करता, तो कभी-कभी घंटों जवाब नहीं आता।
और जब आता, तो बस इतना—
*"Sorry, बहुत बिज़ी थी।"*
आरव समझ गया कि धीरे-धीरे दूरी बढ़ रही है।
लेकिन उसका दिल मानने को तैयार नहीं था।
एक दिन आरव ने देखा कि सिया ने इंस्टाग्राम पर किसी इवेंट की तस्वीर डाली थी—एक साथी पत्रकार के साथ।
कैप्शन था: *“Great evening with colleagues”*।
आरव ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके भीतर एक तूफ़ान चल रहा था।
वह सोचने लगा—
*"क्या मैं बस उसकी लाइफ का एक चैप्टर हूँ? या सच में उसकी कहानी का हिस्सा?"*
आजकल का प्यार अक्सर इन्हीं सवालों में उलझकर रह जाता है।
कुछ दिनों बाद, देर रात कॉल पर सिया ने कहा—
*"आरव, मुझे तुमसे कुछ कहना है।"*
*"क्या?"*
*"मेरे घरवाले फिर से शादी का दबाव डाल रहे हैं। और इस बार… शायद मैं उन्हें मना न कर पाऊँ।"*
आरव की साँसें रुक सी गईं।
*"मतलब…?"*
सिया चुप रही। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, स्क्रीन पर धुंधले दिखाई दे रहे थे।
फोन पर लंबे समय तक खामोशी छाई रही।
आरव चाहकर भी कुछ कह नहीं पा रहा था।
सिया की आवाज़ काँप रही थी—
*"आरव, प्लीज़ मुझे गलत मत समझना। मैंने जितना हो सका घरवालों को रोका, लेकिन… मम्मी बीमार रहती हैं, पापा का कहना है कि अब मुझे ज़िंदगी की स्थिरता चाहिए।"*
आरव ने धीरे से कहा—
*"और मैं? मैं तुम्हारे लिए क्या हूँ?"*
सिया की आँखें भर आईं।
*"तुम… तुम मेरे दिल के सबसे करीब हो। लेकिन कभी-कभी दिल से ज़्यादा दिमाग को सुनना पड़ता है।"*
उस रात के बाद से दोनों के बीच एक अदृश्य दीवार खड़ी हो गई।
चैट पर वही 'गुड मॉर्निंग' और 'टेक केयर' जैसे औपचारिक शब्द रह गए।
आरव अक्सर उसके ऑनलाइन आने का इंतज़ार करता, लेकिन सिया शायद जानबूझकर कम ऑनलाइन रहने लगी।
आरव सोचता—
*"आजकल का प्यार शायद इसी को कहते हैं—जहाँ लोग दिल से जुड़े रहते हैं, लेकिन हालात उन्हें अलग करने लगते हैं।"*
एक शाम आरव अपने पुराने दोस्त कबीर से मिलने गया।
कबीर ने उसके चेहरे को देखकर ही समझ लिया कि कुछ गड़बड़ है।
*"भाई, तू इतना चुप क्यों है? सब ठीक तो है?"*
आरव ने पूरी कहानी कबीर को सुना दी।
कबीर ने लंबी साँस लेकर कहा—
*"यार, प्यार आज के दौर में आसान नहीं है। हर किसी के पास हज़ार जिम्मेदारियाँ हैं। लेकिन अगर तू सच में सिया से प्यार करता है, तो उसे खोने से पहले लड़ाई लड़नी चाहिए।"*
आरव ने सोचा—
*"शायद कबीर सही कह रहा है। मैं कोशिश तो कर सकता हूँ।"*
अगले ही दिन आरव ने सिया को कॉल किया।
*"सिया, मैं तुमसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ।
क्या तुम मुझसे शादी करना चाहती हो?"*
सिया कुछ पल चुप रही, फिर बोली—
*"आरव, चाहती तो हूँ… लेकिन चाहना और करना दो अलग बातें हैं।"*
*"तो कर लो न! मैं दिल्ली छोड़कर मुंबई आ जाऊँगा। नई नौकरी ढूँढ लूँगा। बस तुम हाँ कह दो।"*
सिया की आँखों से आँसू बह निकले।
*"तुम इतना सब मेरे लिए क्यों करोगे?"*
*"क्योंकि आजकल के इस शोर-शराबे वाली दुनिया में तुम ही तो मेरी सच्चाई हो।"*
सिया ने कुछ नहीं कहा। कॉल कट हो गई।
अगले कई दिन तक सिया का कोई मैसेज नहीं आया।
उसकी प्रोफ़ाइल भी प्राइवेट हो गई।
आरव बेचैन था। हर पल लगता—*“क्या उसने मुझे ब्लॉक कर दिया?”*
वह दिनभर इंस्टाग्राम खोलता, फिर बंद करता।
व्हाट्सऐप पर 'लास्ट सीन' देखता।
आजकल के प्यार की सबसे बड़ी परीक्षा यही है—डिजिटल सन्नाटा।
करीब एक महीने बाद, दिल्ली एयरपोर्ट पर आरव अपने ऑफिस टूर के लिए खड़ा था।
वहीं सामने उसने देखा—सिया।
वो जल्दी-जल्दी गेट की ओर बढ़ रही थी, हाथ में लगेज और आँखों पर धूप का चश्मा।
आरव ने हिम्मत जुटाकर पुकारा—
*"सिया!"*
सिया ठिठक गई। धीरे-धीरे उसने चश्मा उतारा।
उसकी आँखें लाल थीं, जैसे रोते-रोते थक गई हो।
*"आरव… तुम यहाँ?"*
*"हाँ, और तुम?"*
सिया ने गहरी साँस ली—
*"मैं… शादी के लिए लड़के से मिलने जा रही हूँ।"*
आरव के कदम वहीं जम गए।
आरव ने मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसकी आँखें सब कह रही थीं।
*"तो… बधाई हो,"* उसने किसी तरह कहा।
सिया की आँखों से आँसू टपक पड़े।
*"मैं मजबूर हूँ आरव। लेकिन एक सच बताऊँ? अगर जिंदगी में कभी किसी से दिल से प्यार किया है, तो वो सिर्फ तुम हो।"*
आरव का गला भर आया।
*"और मैं… शायद हमेशा तुम्हें ही चाहता रहूँगा।"*
इसी बीच फ्लाइट की अनाउंसमेंट हुई।
सिया ने अपना बैग उठाया, आखिरी बार आरव की ओर देखा और गेट के अंदर चली गई।
आरव देर तक उसी जगह खड़ा रहा।
लोग आते-जाते रहे, पर उसकी दुनिया जैसे ठहर गई थी।
उसने सोचा—
*"शायद यही आजकल के प्यार की हकीकत है। लोग दिल से जुड़ते हैं, पर हालात उन्हें जुदा कर देते हैं।"*
एयरपोर्ट की उस मुलाक़ात के बाद आरव की ज़िंदगी जैसे बदल गई।
उसके लिए अब सुबह की चाय, ऑफिस की भाग-दौड़, दोस्तों की बातें—सबकुछ खाली-खाली लगने लगा।
वह अक्सर खुद से सवाल करता—
*"क्या यही प्यार है? या यह सिर्फ एक खूबसूरत याद बनकर रह गया?"*
दिल के दर्द को भूलने के लिए आरव ने खुद को काम में झोंक दिया।
सुबह से देर रात तक लैपटॉप पर कोड लिखना, मीटिंग्स अटेंड करना और रिपोर्ट्स तैयार करना।
लेकिन जितना ज़्यादा वह काम में डूबता, उतना ही सिया की यादें सतातीं।
कभी अचानक नोटिफिकेशन की आवाज़ आती तो लगता—*“शायद सिया का मैसेज है।”*
लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगती।
एक दिन हिम्मत करके उसने सिया की प्रोफ़ाइल खोजी।
अब वह प्राइवेट नहीं थी।
उसने देखा—सिया ने अपनी सगाई की तस्वीर डाली थी।
उसकी मुस्कान में खुशी थी, लेकिन आँखों में वही पुराना खालीपन।
आरव देर तक उस तस्वीर को घूरता रहा।
फिर फोन बंद कर दिया।
*"शायद यही आजकल का प्यार है—लोग इंस्टाग्राम पर मुस्कुराते हैं, लेकिन दिल में आँसू छुपा लेते हैं।"*
आरव ने कभी सिया से फिर बात नहीं की।
लेकिन उसके दिल में कई सवाल रह गए—
*"क्या उसने सच में मुझे भुला दिया?
क्या उसने मजबूरी में शादी की हाँ की?
या फिर… मैं ही उसके लिए कभी काफ़ी नहीं था?"*
इन सवालों के जवाब शायद कभी नहीं मिलते।
और शायद यही इस रिश्ते की असली कसक थी।
एक रात कबीर उससे मिलने आया।
*"भाई, तू अभी भी उसी में उलझा हुआ है?"*
आरव ने चुपचाप सिर हिलाया।
कबीर बोला—
*"देख, आजकल के प्यार की यही सच्चाई है। सबकुछ तेज़ी से बदलता है। कल कोई है, आज कोई और। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि तेरा प्यार झूठा था। जो तूने महसूस किया, वो असली था। बस उसका अंत वैसा नहीं हुआ जैसा तू चाहता था।"*
आरव ने गहरी साँस ली।
*"शायद तू सही कह रहा है। लेकिन दिल मानना इतना आसान नहीं है।"*
धीरे-धीरे समय बीतता गया।
आरव ने खुद को सँभालना शुरू किया।
वह जिम जाने लगा, नई किताबें पढ़ने लगा, और कुछ नए दोस्तों से भी मिला।
कभी-कभी ऑफिस की पार्टी में कोई लड़की उससे बात करती, तो वह मुस्कुरा देता।
लेकिन उसके दिल के किसी कोने में अब भी सिया ही बसी थी।
एक शाम जब बारिश हो रही थी, आरव ने खिड़की से बाहर देखते हुए अपने फोन में पुरानी चैट खोली।
वो सारे मैसेज—*“Good night Aarav”, “Take care”, “Miss you”*—फिर से आँखों के सामने तैरने लगे।
उसकी आँखें भर आईं।
*"आजकल का प्यार भी अजीब है…
लोग चले जाते हैं, लेकिन उनकी चैट और तस्वीरें हमेशा ज़िंदा रहती हैं।"*
करीब एक साल बाद, आरव मुंबई ऑफिस के प्रोजेक्ट पर भेजा गया।
वह कॉफी शॉप में बैठा लैपटॉप पर काम कर रहा था कि अचानक सामने से एक जानी-पहचानी आवाज़ आई—
*"आरव?"*
उसने नज़र उठाई—वो सिया थी।
अब वह शादीशुदा थी, लेकिन चेहरे पर वही पुरानी चमक थी।
कुछ पल दोनों बस एक-दूसरे को देखते रहे।
*"कैसे हो?"* सिया ने पूछा।
*"ठीक हूँ… और तुम?"*
*"ठीक हूँ,"* सिया ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, लेकिन उसकी आँखें फिर वही कहानी कह रही थीं।
दोनों ने कॉफी ऑर्डर की और बातें करने लगे।
सिया ने कहा—
*"ज़िंदगी वैसी नहीं है जैसी मैंने सोची थी।
जिम्मेदारियाँ हैं, घर है, सबकुछ है… लेकिन कहीं न कहीं एक खालीपन भी है।"*
आरव चुपचाप सुनता रहा।
*"और तुम?"* सिया ने पूछा।
आरव ने धीरे से कहा—
*"मैं अभी भी तुझे याद करता हूँ।"*
सिया की आँखों से आँसू छलक पड़े।
*"काश ज़िंदगी हमें थोड़ा और वक्त देती…"*
कॉफी खत्म हुई।
दोनों उठे।
सिया ने कहा—
*"आरव, मुझे अब जाना होगा। लेकिन एक बात याद रखना—चाहे हालात जैसे भी रहे, तू हमेशा मेरी सबसे बड़ी सच्चाई रहेगा।"*
आरव ने उसकी ओर देखा।
*"और तू… मेरी अधूरी मोहब्बत।"*
दोनों ने बिना कुछ और कहे अलविदा कहा।
भीड़भाड़ वाली सड़क पर चलते-चलते दोनों अलग दिशाओं में खो गए।
सिया से मुंबई में हुई उस मुलाक़ात ने आरव की ज़िंदगी फिर से हिला दी।
वह सोच रहा था कि वक्त ने सब घाव भर दिए हैं, लेकिन सिया को देखकर सारे जज़्बात ताज़ा हो गए।
ऑफिस लौटकर भी वह बार-बार उसी कॉफी शॉप का ख्याल करता रहा—जहाँ दोनों ने फिर से एक-दूसरे की आँखों में छिपी नमी देखी थी।
कई दिनों तक दोनों ने एक-दूसरे से कोई संपर्क नहीं किया।
लेकिन उनके दिलों में एक गहरा बोझ था।
आरव ने डायरी में लिखा—
*"आजकल का प्यार अजीब है।
यह हमें जोड़ता भी है और तोड़ता भी।
हमारे पास मोबाइल हैं, सोशल मीडिया है, हर तरह की कनेक्टिविटी है…
लेकिन दिल का फासला कोई तकनीक मिटा नहीं सकती।"*
करीब दो हफ्ते बाद, एक रात अचानक आरव को व्हाट्सऐप पर सिया का मैसेज आया—
*"जाग रहे हो?"*
आरव का दिल धड़कने लगा।
*"हाँ, तुम?"*
*"हाँ… नींद नहीं आ रही। बस सोचा तुमसे बात कर लूँ।"*
उस रात दोनों ने घंटों बातें कीं।
सिया ने स्वीकार किया—
*"आरव, मेरी शादी से मुझे सबकुछ मिला, लेकिन दिल का सुकून नहीं।
पता नहीं क्यों, लेकिन मैं अब भी तुम्हारे बारे में सोचती हूँ।"*
आरव के लिए यह सुनना किसी मरहम जैसा था, लेकिन साथ ही दर्द भी था।
अगले दिन ऑफिस में आरव बार-बार यही सोचता रहा—
*"क्या हमारे बीच अब भी कोई संभावना है?
या यह बस एक अधूरी चाहत है जिसे पूरा करना असंभव है?"*
उसने खुद से सवाल किया—
*"क्या मैं सिया की ज़िंदगी में दखल दे रहा हूँ? या फिर यह प्यार इतना सच्चा है कि हक़दार है एक और मौका मिलने का?"*
आजकल के रिश्तों में यही सबसे बड़ा संघर्ष है—दिल और दिमाग की जंग।
कुछ समय बाद दोनों फिर से मिले—इस बार समुद्र किनारे, जुहू बीच पर।
लहरें किनारे से टकरा रही थीं, जैसे उनके दिलों की बेचैनी को आवाज़ दे रही हों।
सिया ने धीरे से कहा—
*"आरव, काश हम किसी और दौर में मिले होते। शायद तब ज़िंदगी आसान होती।"*
आरव ने उसकी ओर देखा—
*"लेकिन हमने तो अपना दौर खुद ही चुना है… मोबाइल, सोशल मीडिया, करियर, सबकुछ।
शायद यही आजकल का प्यार है—जहाँ लोग एक-दूसरे को पाकर भी खो देते हैं।"*
दोनों लंबे समय तक चुप बैठे रहे।
जब रात गहराने लगी, सिया उठ खड़ी हुई।
*"मुझे अब जाना होगा,"* उसने कहा।
आरव ने पूछा—
*"क्या यह हमारी आखिरी मुलाक़ात है?"*
सिया कुछ पल चुप रही।
फिर बोली—
\*"शायद… या शायद नहीं। ज़िंदगी का पता नहीं, आरव।"
उसने हाथ बढ़ाया। आरव ने थाम लिया।
दोनों की आँखों में आँसू थे, लेकिन होठों पर हल्की मुस्कान भी।
आरव उसे जाते हुए देखता रहा।
भीड़ में उसका चेहरा धीरे-धीरे गायब हो गया, लेकिन उसके दिल में उसकी मौजूदगी और गहरी होती चली गई।
उस रात आरव ने डायरी में लिखा—
*"आजकल का प्यार पूरा भी है और अधूरा भी।
यह हमें जोड़ता है, लेकिन हमें आज़माता भी है।
सिया मेरी ज़िंदगी से गई या नहीं, यह मैं नहीं जानता…
लेकिन इतना तय है कि वह हमेशा मेरी कहानी का हिस्सा रहेगी।
शायद किसी दिन हम फिर मिलेंगे, या शायद नहीं।
लेकिन यही प्यार की खूबसूरती है—इसका कोई अंत नहीं होता।"*