बुधवार, 26 नवंबर 2025

“मेरी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा: IGI दिल्ली से Phuket Thailand तक”

 “मेरी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा: IGI दिल्ली से Phuket Thailand तक”

 एक सपना जो सालों से पल रहा था

ज़िंदगी में कुछ पल ऐसे होते हैं जो हमारे दिल की गहराइयों में हमेशा के लिए बस जाते हैं। ऐसे पल, जिनकी हम वर्षों तक कल्पना करते हैं, सपने देखते हैं… और जब वह सपना सच होता है, तो दिल की धड़कनें भी जैसे एक नई लय में धड़कने लगती हैं।

मेरे लिए मेरी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा—दिल्ली से फुकेत—ऐसा ही एक सपना था।
यह सिर्फ एक यात्रा नहीं थी, बल्कि एक भावनात्मक सफर था, एक अनुभव था जिसने मुझे दुनिया को एक नई दृष्टि से देखने का मौका दिया।

इस व्लॉग में मैं आपको साथ लेकर चलूँगा—
घर से निकलने की घबराहट, IGI एयरपोर्ट की चमक, इमिग्रेशन का अनुभव, टेकऑफ का रोमांच, बादलों के बीच उड़ते हुए मेरे एहसास, और आखिरकार… थाईलैंड की उस धरती तक, जहाँ पहली बार विदेशी हवा ने मेरा स्वागत किया।

साथ बने रहिए… यह कहानी सिर्फ मेरी नहीं, हर यात्रा प्रेमी की कहानी है जिसे पहली बार आसमान के पार जाने का मौका मिलता है।

सफर की शुरुआत: रात की नमी में दबी उत्सुकता

उस रात मेरी नींद वैसे भी पूरी नहीं हुई थी।
मन में सिर्फ एक ही बात घूम रही थी—
“कल मैं अपने जीवन की पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान भरने वाला हूँ।”

मैंने एक बार फिर अपने बैग चेक किए—पासपोर्ट, टिकट, ID, चार्जर, कैमरा, ट्राइपॉड… सब कुछ जैसे परीक्षा देने जा रहा हूँ।

लेकिन दिल के अंदर कहीं न कहीं हल्की सी घबराहट थी।

पहली विदेश यात्रा… और दिल में लाखों सवाल।

सब कुछ समेटकर जैसे ही मैं घर से बाहर निकला, रात की वह ठंडी हवा चेहरे से टकराई।
एक एहसास आया—
“हाँ, अब यह सफर शुरू हो चुका है।”

रास्ते का उत्साह: दिल्ली की सड़कों पर चलती कार

रात के करीब 3 बजे थे।
सड़कों पर ट्रैफिक कम था, लेकिन मेरे मन में भावनाओं का ट्रैफिक भरा पड़ा था।
कार की खिड़की से बाहर देखते हुए ऐसा लगता था जैसे दिल्ली शहर भी मेरे साथ जाग रहा हो।

हर मोड़ पर मन कह रहा था—
“अब बस IGI पहुँच जाऊँ, फिर असली मज़ा शुरू होगा।”

मैंने YouTube पर कई वीडियो देखे थे—
“पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा कैसे करें”,
“इमिग्रेशन में क्या होता है”,
“फ्लाइट टेकऑफ कैसा लगता है”…

लेकिन आज मैं खुद उसे अनुभूत करने वाला था।

Indira Gandhi International Airport का पहला दृश्य

जैसे ही कार IGI के गेट की ओर मुड़ी, सामने जो चमक दिखाई दी, वह दिल में उतर गई।
बड़ा–सा प्रवेश द्वार, लाइटों की चमक, विदेशी टैक्सियाँ, लगेज ट्रॉलियाँ, और अलग-अलग देशों से आए लोग…

पहली बार यह सब देखते हुए मैं कुछ पल के लिए चुप हो गया।
सोचा—
“यही है वह जगह, जहाँ से सपने उड़ान भरते हैं।”

Terminal 3 का विशाल भवन, उसकी काँच की दीवारें, और अंदर दिखाई देता नीला-पीला प्रकाश…
सच कहूँ तो, पहली झलक ही दिल जीत ले गई।

मैंने अपने कैमरे को ऑन किया और व्लॉग रिकॉर्डिंग शुरू की—
"दोस्तों, आज मेरी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा शुरू हो रही है… और मैं पहुँच चुका हूँ IGI एयरपोर्ट दिल्ली। आज मैं जा रहा हूँ फुकेत, थाईलैंड।"

वह वाक्य बोलते समय खुद पर भरोसा ही नहीं हो रहा था कि यह सब सच में हो रहा है।

Terminal 3 का रोमांच

जैसे ही मैं अंदर गया, सामने विशाल हॉल दिखा—
नीचे चमकती टाइल्स, ऊपर लटकी सुनहरी कला-कृतियाँ, और चारों ओर यात्रियों की चहल-पहल।

हर कोई अपने-अपने गंतव्य की ओर जा रहा था—
कोई दुबई, कोई लंदन, कोई न्यूयॉर्क…
और मैं…
Phuket, Thailand ❤️

चेक-इन काउंटर पर पहुँचते ही मेरा दिल थोड़ा तेज़ धड़कने लगा।
पासपोर्ट पहली बार अंतरराष्ट्रीय काउंटर पर जा रहा था।

“Sir, where are you travelling?”
"Phuket, Thailand," मैंने गर्व से कहा।

उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरा पासपोर्ट, टिकट, और बैग चेक किया।
कुछ मिनटों बाद मेरे हाथ में बोर्डिंग पास था।

बोर्डिंग पास हाथ में आने का वह एहसास…
जैसे किसी सैनिक को जीत का प्रतीक मिल गया हो।

मैंने कैमरे की ओर देखते हुए कहा—
“दोस्तों, अब असली सफर शुरू… चलिए चलते हैं इमिग्रेशन की तरफ।”

इमिग्रेशन: सबसे अहम चरण

इमिग्रेशन काउंटर की लंबी लाइन देखते ही थोड़ी घबराहट हुई।
सब लोग शांत खड़े थे, कोई मोबाइल पर बात कर रहा था, कोई कागज़ तैयार कर रहा था।

मैं भी लाइन में लगा।
जब मेरी बारी आई तो अधिकारी ने पूछा—
"Is this your first international trip?"
मैंने मुस्कुराकर कहा, "Yes, sir."

उन्होंने पासपोर्ट देखा, कुछ पल के लिए कंप्यूटर स्क्रीन पर टाइप किया…
और फिर — मुट्ठ की आवाज़ जैसी मुहर की आवाज़
THPP
पासपोर्ट पर पहली विदेशी मुहर लग चुकी थी।

मैंने मन में कहा —
“हाँ! यह हो गया… मैं अब सचमुच इंटरनेशनल ट्रैवलर हूँ।”

कैमरे में मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
“दोस्तों, पासपोर्ट पर पहली मुहर लग चुकी है… और यह एहसास बताने लायक नहीं।”

सिक्योरिटी चेक और Departure Gate

अगला चरण था सिक्योरिटी चेक।
सब बहुत तेज़ी से हुआ।

जैसे ही मैं आगे बढ़ा, सामने Duty-Free Shops की चमक दिखाई दी।
परफ्यूम, घड़ियाँ, चॉकलेट्स, लग्जरी ब्रांड्स…

यह सब देखकर अहसास हुआ कि यह जगह हर यात्री के लिए एक छोटा–सा संसार है।

Gate number स्क्रीन पर देखकर मैं अपनी फ्लाइट की ओर बढ़ा।
सामने खड़ी थी—मेरी पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान।
वह विमान मानो मुझे बुला रहा था—
“चलो… अब दुनिया बदलने वाली है तुम्हारी।”

विमान में बैठने का जादुई पल

जब बोर्डिंग शुरू हुई, मैं लाइन में खड़ा हुआ।
दरवाजे से अंदर कदम रखते ही एयरहोस्टेस की मुस्कुराहट ने डर को आधा कम कर दिया।

मुझे खिड़की वाली सीट मिली थी—मेरी सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो गई।

मैं बैठा और बाहर देखा—
रनवे की रोशनी, टैक्सी करती गाड़ियाँ, और दूर खड़ी बड़ी-बड़ी फ्लाइट्स…
यह सब मुझे सपने जैसा लग रहा था।

सीट बेल्ट बाँधते ही दिल धड़कने लगा।
यह वही पल था जिसके बारे में मैंने वर्षों से सोचा था।

टेकऑफ: जब धरती पीछे छूटने लगी

फ्लाइट धीरे–धीरे रनवे पर आगे बढ़ने लगी।
एक क्षण ऐसा आया जब उसने रफ्तार पकड़ी—
और अचानक…
आकाश में उड़ान भर ली।

दिल में एक चुभन–सी हुई, आँखें हल्की सी नम हुईं।
नीचे दिल्ली पीछे छूट रही थी—इमारतें छोटी हो रही थीं…
और मेरे सपने बड़े।

जब विमान बादलों को चीरकर ऊँचाई पर पहुँचा, मैंने कैमरा खिड़की की ओर घुमाया—
बाहर रूई जैसे बादल थे, सूरज हल्का नारंगी…
जैसे स्वर्ग नीचे बिछा हो।

मैंने खुद से कहा—
“यह मेरे जीवन के सबसे खूबसूरत पलों में से एक है।”

आसमान में 4 घंटे: शांति, सौंदर्य, और अनंत आकाश

फ्लाइट में भोजन मिला, मैंने खाया।
कुछ देर बाद फ्लाइट की लाइट्स धीमी हो गईं।

मैंने खिड़की से बाहर देखा—
नीचे बादलों की चादर…

मन में एक ही विचार आया—
“ज़िंदगी में कम से कम एक बार ऐसा सफर जरूर करना चाहिए।”


थाईलैंड का पहला दृश्य:  समंदर

करीब 4 घंटे बाद सामने समुद्र दिखाई दिया।
नीला पानी…
उसके बीच टापू…
और आसमान में सूरज का हल्का सुनहरा रंग…

यह दृश्य देखकर ऐसा लगा मानो किसी ने एक पेंटिंग को जीवन दे दिया हो।

मैंने कैमरे में कहा—
“दोस्तों… स्वागत है थाईलैंड में, यह सब मैं कभी नहीं भूलूँगा।”

Phuket International Airport की धरती पर पहली बार कदम

जैसे ही विमान उतरा, मैं खिड़की से बाहर देखता ही रह गया।
सामने नारियल के पेड़, साफ़ हवा, और विदेशी माहौल।

जब विमान का दरवाजा खुला और मैंने सीढ़ियाँ उतरीं—
वह हवा…
वह महक…

एक पूरी तरह नई दुनिया का स्वागत थी।

पहली Entry stamp लगवाते समय मेरे चेहरे पर मुस्कान थी।

मैंने मन में कहा—
“यह सिर्फ शुरुआत है…”

Thailand की हवा, चेहरे, और माहौल

एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही मन खुश हो गया—
मस्कुराते लोग, अंग्रेजी–थाई भाषा की आवाजें, समुद्री हवा…

हर चीज अलग थी।
हर चीज खूबसूरत।

इस यात्रा ने मुझे क्या सिखाया?

यह यात्रा सिर्फ घूमने की नहीं थी—
यह जीवन का एक पाठ थी।

मैंने सीखा—
● सपनों को पूरा किया जा सकता है
● दुनिया बहुत बड़ी और खूबसूरत है
● यात्रा हमें बदल देती है
● डर सिर्फ शुरुआती बाधा है
● आकाश की कोई सीमा नहीं—हमारी क्यों हो?

समापन: मेरी कहानी, मेरी यात्रा

यह मेरी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा थी—
दिल्ली से Phuket तक।

और आज जब मैं इस व्लॉग को रिकॉर्ड कर रहा हूँ, मन में बस एक ही बात है—
“सफर जितना बाहर का होता है, उतना ही अंदर का भी।”

आप सबका धन्यवाद,
जो मेरे साथ इस कहानी के हर पल में जुड़े रहे।


रविवार, 2 नवंबर 2025

धोखे की उड़ान – अमित और किंजल की अधूरी दास्तान

 

💔 “धोखे की उड़ान – अमित और किंजल की अधूरी दास्तान”



लखनऊ का रहने वाला अमित मिश्रा, उम्र 29 साल, एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है जो पिछले पाँच सालों से बैंगलोर में एक बड़ी आईटी कंपनी में नौकरी कर रहा है।
अमित एक सरल, इमोशनल और परिवार से गहराई से जुड़ा हुआ इंसान है। ऑफिस में उसकी अपनी एक पहचान है— मेहनती, सच्चा और शांत स्वभाव वाला लड़का।

उसके माता-पिता अब उसकी शादी की बात करने लगे थे। घरवालों को लगता था कि अब बेटा बस जाए।
अमित को भी कोई एतराज़ नहीं था, बस उसकी एक छोटी सी शर्त थी — “जिससे शादी करूँ, उससे दिल से जुड़ाव हो।”


दीपावली आने वाली थी। अमित ने तीन दिन की छुट्टी ली और फ्लाइट से लखनऊ जाने का प्लान बनाया।
फ्लाइट मुंबई से होकर जाती थी — बैंगलोर ✈️ मुंबई ✈️ लखनऊ।

वो सुबह जल्दी एयरपोर्ट पहुँचा। सामान चेक-इन कराया और गेट नंबर 12 पर बैठ गया। मोबाइल में माँ का मैसेज आया —

“बेटा, पहुँचते ही कॉल करना। और हाँ, इस बार एक लड़की दिखाने की बात भी पक्की है। लड़की मुंबई में जॉब करती है, बहुत अच्छी फैमिली है।”

अमित ने मुस्कुराते हुए रिप्लाई किया —

“ठीक है माँ, जैसा आप कहें।”


फ्लाइट ने मुंबई एयरपोर्ट पर टेकऑफ़ से पहले थोड़ी देर के लिए रुकना था। अमित की सीट विंडो वाली थी — 17A
जब यात्रियों की अदला-बदली हो रही थी, तभी एक लड़की आई — हाथ में लैपटॉप बैग, बाल खुले हुए, आँखों में तेज़ और चेहरे पर आत्मविश्वास।
उसका टिकट भी 17A का ही था।

लड़की ने सीट नंबर देखा और बोली —

“Excuse me! यह मेरी सीट है।”

अमित ने मुस्कुराते हुए कहा —

“नहीं, ये मेरी है। देखिए टिकट।”

दोनों ने टिकट दिखाए — और कमाल की बात यह कि दोनों के टिकट पर एक ही सीट नंबर था।

एयर होस्टेस को बुलाया गया, उसने सिस्टम चेक किया और बोली —

“Sir, आपके पास 17A है, और मैडम का 17B। शायद printing mistake हो गई।”

अमित ने हँसते हुए कहा —

“कोई बात नहीं, आप window seat ले लीजिए, मुझे बीच में भी चलेगा।”

लड़की मुस्कुराई —

“Thank you, लेकिन आपको भी तो बाहर देखने का मन होगा!”

अमित बोला —

“मैं रोज़ कोडिंग में इतना बाहर नहीं देख पाता कि अब clouds क्या दिखेंगे!”

दोनों हँस पड़े।


फ्लाइट उड़ान भर चुकी थी। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद बातचीत शुरू हुई।
लड़की का नाम किंजल  था — लखनऊ  की रहने वाली, और मुंबई में एक MNC कंपनी में HR के पद पर काम करती थी।

बहुत आत्मनिर्भर, खुशमिज़ाज और खुली सोच वाली लड़की।

बातचीत में धीरे-धीरे अपनापन आने लगा।

अमित: “तो आप लखनऊ क्यों जा रही हैं?”
किंजल (हँसते हुए): “वही वजह जो शायद आपकी भी होगी।”
अमित: “मतलब?”
किंजल: “शादी के लिए लड़का देखने।”

अमित चौक गया —

“अरे! सच में? मैं भी तो अपनी शादी के लिए जा रहा हूँ!”

दोनों हँस पड़े।
फ्लाइट की सीट अब एक कहानी की शुरुआत बन चुकी थी।


फ्लाइट लखनऊ लैंड कर चुकी थी। दोनों ने एक-दूसरे को मुस्कुराकर अलविदा कहा।

अमित: “Good luck for your meeting.”
किंजल: “Same to you, Mr. Software Engineer.”

अमित घर पहुँचा तो माँ ने बताया कि दो दिन बाद “लड़की देखने” का प्रोग्राम है।
अमित ने पूछा — “कहाँ?”
माँ ने जवाब दिया — “अलीगंज में, लड़की का नाम किंजल है।”

अमित के होंठों पर मुस्कान थी —

“किंजल… कहीं वही तो नहीं?”


रविवार की सुबह थी। अमित अपने माता-पिता के साथ तय पते पर पहुँचा।
दरवाज़ा खुला — और सामने वही चेहरा!
किंजल, वही जो फ्लाइट में मिली थी, वही मुस्कान, वही आँखें।

दोनों कुछ पल के लिए हैरान रह गए।
किंजल की माँ बोली — “अरे, आप दोनों पहले से एक-दूसरे को जानते हैं क्या?”

अमित ने हल्की हँसी में कहा —

“जी, हमारी मुलाक़ात आसमान में हुई थी।”

कमरे में सब हँस पड़े।


दोनों को अकेले में बात करने का मौका दिया गया।
अमित ने कहा —

“कभी सोचा नहीं था कि फ्लाइट में मिली लड़की मेरी शादी की लिस्ट में होगी।”

किंजल ने जवाब दिया —

“किस्मत भी कभी-कभी बहुत क्रिएटिव होती है।”

दोनों ने बातें कीं — पसंद, करियर, सोच, परिवार।
सब कुछ सामान्य और सहज लगा।

किंजल: “शादी एक ज़िम्मेदारी है, मैं चाहती हूँ कि हम एक-दूसरे को थोड़ा समय दें।”
अमित: “मुझे भी जल्दी नहीं है, मैं समझता हूँ प्यार को पनपने का समय देना चाहिए।”

परिवार वाले भी खुश थे। सबने तय किया —

“छह महीने तक एक-दूसरे को समझिए, फिर फैसला कीजिए।”


आने वाले हफ्तों में अमित और किंजल रोज़ बातें करने लगे — कॉल, वीडियो चैट, मैसेज…
किंजल बहुत हँसमुख थी, अमित के दिन अब हँसी से भरे थे।
कभी ऑफिस के बाद वे लंबी कॉल पर अपने-अपने बचपन की कहानियाँ साझा करते।

अमित को लगता था कि उसने अपनी “जीवनसंगिनी” पा ली है।


छह महीने बाद, दोनों परिवारों ने शादी तय कर दी।
शादी लखनऊ के एक बड़े होटल में धूमधाम से हुई।
अमित और किंजल अब पति-पत्नी थे।

पहली रात — सुहागरात — किंजल ने गंभीर होकर कहा —

“अमित, मैं तुमसे एक बात कहना चाहती हूँ। मुझे थोड़ा समय चाहिए, मैं अभी mentaly ready नहीं हूँ physical relation के लिए। क्या तुम मुझे थोड़ा वक्त दोगे?”

अमित ने धीरे से कहा —

“किंजल, प्यार जबरदस्ती नहीं होता, मैं तुम्हारा इंतज़ार कर सकता हूँ… जितना चाहे उतना।”

किंजल ने राहत की साँस ली और बोली —

“तुम बहुत अच्छे हो अमित।”


शादी को तीन महीने हो चुके थे। सब कुछ ठीक था — या शायद दिखाई दे रहा था।
किंजल का व्यवहार थोड़ा बदलने लगा था। वह अक्सर मोबाइल में बिज़ी रहती, किसी “ऑफिस फ्रेंड” से लंबे चैट करती थी।
अमित ने कई बार पूछा —

“किससे बात कर रही हो?”
किंजल ने मुस्कुराकर टाल दिया — “ऑफिस के प्रोजेक्ट की बात है।”

अमित ने सोचा — शायद सच हो, आखिर वह HR है, लोगों से बात तो करनी ही होती है।

लेकिन अंदर ही अंदर एक शक का बीज अंकुरित हो चुका था।


शादी के चार महीने बीत चुके थे।
अमित अब भी वही पुराना स्नेही पति था, लेकिन किंजल का रवैया बदल चुका था।
वो अक्सर ऑफिस का बहाना बनाकर देर से घर लौटती, कभी-कभी छुट्टी के दिन भी कहती —

“आज मीटिंग है, जाना ज़रूरी है।”

अमित को अजीब लगता, मगर वो शक नहीं करता था।
वो सोचता — “किंजल मॉडर्न लड़की है, शायद काम का दबाव हो।”

लेकिन हर रोज़, हर रात कुछ न कुछ ऐसा होता जो अमित के मन में अनकहे सवाल छोड़ जाता।


एक रात किंजल सोई हुई थी, मोबाइल साइलेंट मोड पर था।
अमित पानी पीने उठा तो मोबाइल पर “Rahul calling…” चमका।
दिल धड़क उठा।
वो कॉल मिस हो गया, लेकिन तुरंत एक मैसेज आया —

“Good night baby 😘, miss you.”

अमित का दिल सन्न रह गया।
वो कुछ देर तक मोबाइल को देखता रहा, फिर धीरे से रख दिया।
उसने कुछ नहीं कहा, बस तकिये की तरफ़ मुंह फेरकर लेट गया।

उसकी आँखों में अब नींद नहीं थी, बस सवाल थे।


सुबह अमित ने खुद को सामान्य दिखाया।
किंजल किचन में चाय बना रही थी। अमित ने सहज लहजे में पूछा —

“कल रात कोई कॉल आया था तुम्हारे मोबाइल पर, शायद राहुल?”

किंजल का चेहरा पलभर को सफेद पड़ गया, फिर बोली —

“अरे वो राहुल… ऑफिस का दोस्त है, मजाक में ऐसा बोल देता है।”

अमित ने मुस्कुरा कर कहा —

“ठीक है, मजाक तो अच्छे दोस्त करते ही हैं।”

लेकिन भीतर कुछ टूट चुका था।


अब अमित चुपके से किंजल को observe करने लगा।
वो देखता कि जब भी राहुल का नाम मोबाइल पर आता, किंजल थोड़ा घबरा जाती।
कभी मुस्कुरा कर मोबाइल छिपा लेती, कभी तुरंत स्क्रीन बंद कर देती।

एक रात उसने तय किया कि अब सच्चाई जाननी ही होगी।
किंजल के सो जाने के बाद उसने मोबाइल अनलॉक किया।

वहाँ व्हाट्सएप चैट में पढ़ा —

राहुल: “अब कब तक उसे मूर्ख बनाए रखोगी?”
किंजल: “बस थोड़ा और समय दो, फिर सब आसान होगा।”
राहुल: “याद है, हमारा प्लान? एक natural तरीका चुनना होगा।”
किंजल: “हाँ, मैं तैयार हूँ, बस सही वक्त का इंतज़ार है।”

अमित के हाथ काँपने लगे।
उसने आगे स्क्रॉल किया — पुरानी तस्वीरें, दिल वाले इमोजी, और ऐसे मेसेज जो सब कुछ कह रहे थे।

“काश हमारे घरवाले समझ पाते।”
“अब जब तुम उसकी हो, तो जल्दी खत्म करो ये नाटक।”

अमित की आँखों में आँसू आ गए।
वो धीरे से उठकर बालकनी में चला गया।
रात के तीन बजे का सन्नाटा था, लेकिन उसके भीतर तूफान मच चुका था।


अगले दिन अमित ने तय किया कि वो कुछ कहेगा नहीं — बस सब कुछ जानने की कोशिश करेगा।
उसने  एक दोस्त प्राइवेट डिटेक्टिव मनीष से मदद ली।
मनीष साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट भी था।
अमित ने कहा —

“मुझे बस ये जानना है कि ये राहुल कौन है, कहाँ काम करता है, और मेरी पत्नी से उसका क्या रिश्ता है।”

मनीष ने कहा —

“ठीक है, दो दिन का वक्त दो।”

दो दिन बाद मनीष ने अमित को एक रिपोर्ट दी।
रिपोर्ट पढ़कर अमित का सिर घूम गया —

“राहुल सिंह – मुंबई निवासी, बेरोजगार। चार साल पहले किंजल के साथ रिलेशन में था। किंजल के घरवालों ने रिश्ता तोड़ दिया क्योंकि राहुल काम नहीं करता था। लेकिन दोनों अब भी गुपचुप कॉन्टैक्ट में हैं।”


अमित अब समझ चुका था कि जिस लड़की को उसने इतना सम्मान, समय और प्यार दिया — वही उसकी पीठ पीछे किसी और के साथ साजिश कर रही है।
वो हर रात सोचता — “क्या मुझसे कोई गलती हुई थी?”

लेकिन जवाब सिर्फ़ एक था — “नहीं… गलती सिर्फ़ भरोसा करने की थी।”


एक दिन अमित के ऑफिस में एक पार्टी थी। उसने सोचा —

“आज किंजल को साथ ले चलता हूँ, शायद माहौल बदल जाए।”

किंजल बहुत खुश दिख रही थी। उसने लाल रंग की ड्रेस पहनी थी, बाल खुले हुए थे।
दोस्तों ने अमित से कहा —

“अरे मिश्रा, आज तो अपनी वाइफ के लिए कुछ गाना सुनाओ!”

अमित मुस्कुराया और गाना शुरू किया —
🎶 “तू मिले दिल खिले… और जीने को क्या चाहिए…” 🎶

सभी तालियाँ बजा रहे थे।
किंजल की आँखों में आँसू आ गए — शायद शर्म, शायद पछतावा, या शायद डर।

पार्टी के बाद दोनों घर लौटे।
अमित ने कुछ नहीं कहा। लेकिन उस रात उसने दोबारा मोबाइल चेक किया — और पाया कि किंजल ने राहुल को मैसेज किया था —

“वो कुछ समझ गया है, हमें जल्दी कुछ करना होगा।”

अब अमित ने तय कर लिया — “बस अब खेल खत्म।”


अगली सुबह अमित ने खुद को बेहद शांत दिखाया।
उसने किंजल से कहा —

“किंजल, मुझे अब सब पता चल चुका है।”

किंजल के चेहरे का रंग उड़ गया।

“क्या मतलब?”

अमित ने कहा —

“राहुल के बारे में सब जानता हूँ। लेकिन मैं कोई झगड़ा नहीं चाहता। तुम चाहो तो मैं तुम्हें डिवोर्स दे दूँ। आधी प्रॉपर्टी तुम्हारे नाम कर दूँ। बस मुझसे एक आखिरी बार राहुल से मिलवा दो।”

किंजल ने अविश्वास से उसकी तरफ देखा —

“तुम सच में ऐसा करोगे?”
अमित: “हाँ, अगर तुम खुश हो जाओगी तो मुझे कोई ग़म नहीं।”

किंजल ने राहुल को मैसेज किया —

“वो तैयार है, मिलो।”


अगली सुबह  की हवा कुछ अलग थी।
अमित ने तय कर लिया था — आज सब कुछ खत्म होगा, लेकिन अपने तरीके से।
वो अब भी सामान्य दिख रहा था, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

किंजल अब भी थोड़ा डरी हुई थी, पर अमित की शांति देखकर उसे लगा कि शायद वो वाकई मान गया है।
वो सोच रही थी —

“शायद सब आसान हो जाएगा। बस एक बार राहुल आ जाए…”


अमित ने  फ्लाइट टिकटें बुक कीं  ।
फिर किंजल से कहा —

“मैं चाहता हूँ कि मैं और राहुल आमने-सामने बैठकर बात करें।
मुझे न कोई बदला चाहिए, न झगड़ा। बस सच्चाई और एक शांत अंत।”

किंजल को भी यही लगा कि अमित की “पागलपंती” अब खत्म हो गई है।
वो तुरंत राज़ी हो गई और राहुल को कॉल किया —

“राहुल, सब ठीक है, अमित मान गया है। वो आधी प्रॉपर्टी देने को तैयार है, बस तुम आ जाओ।”

राहुल ने कहा —

“वाह! आखिर मेरी किंजल जीत गई।”


तीन दिन बाद राहुल बैंगलोर आया।
अमित ने खुद उसे एयरपोर्ट से रिसीव किया।
राहुल ने मुस्कुरा कर कहा —

“भाई, तुम तो बहुत समझदार निकले।”

अमित ने भी हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया —

“समझदारी में ही तो सच्चा इंसान दिखता है।”

दोनों साथ में कार से घर पहुँचे।
किंजल अंदर ही अंदर बेचैन थी।
वो सोच रही थी — “अब सब हमारे नाम हो जाएगा।”


अमित ने अपने स्टडी रूम में बैठकर फाइल खोली।
उसमें बैंक बॉन्ड, प्रॉपर्टी के पेपर, और एक लीगल डीड रखी थी।

अमित: “देखो राहुल, ये दस करोड़ के बॉन्ड हैं, और ये फ्लैट मेरे नाम पर है।
यहाँ मैंने सब पर साइन कर दिए हैं। अब ये तुम्हारे नाम होंगे।”

राहुल की आँखों में लालच चमक उठा।
उसने कहा —

“वाह! भाई, तुम तो दिलदार निकले। इतना पैसा, इतनी प्रॉपर्टी!
मैं तो सोच भी नहीं सकता था।”

किंजल अब भी थोड़ा नर्वस थी।
अमित ने मुस्कुरा कर कहा —

“लेकिन एक छोटी-सी शर्त है।”

राहुल ने कहा —

“बोलो भाई, कैसी शर्त?”

अमित ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा —

“तुम्हें किंजल को छोड़ना होगा।”


राहुल पहले तो हँस पड़ा —

“अरे भाई, मज़ाक मत करो। ये सब तो किंजल की वजह से ही मिला है।”

अमित ने कहा —

“कोई मज़ाक नहीं कर रहा। ये सब तुम्हारे नाम होगा, लेकिन किंजल अब तुम्हारी नहीं रहेगी।”

राहुल कुछ पल चुप रहा, फिर हँसते हुए बोला —

“इतने पैसों के लिए? हाँ भाई, मैं 1 नहीं 10 किंजल छोड़ सकता हूँ!
मुझे ऐसी बहुत मिल जाएँगी।”

ये सुनते ही किंजल के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
वो काँपती आवाज़ में बोली —

“राहुल… ये क्या कह रहे हो तुम?”

राहुल ने बेशर्मी से कहा —

“अब क्या चाहिए? जो चाहिए था वो मिल गया। अब तुम अपने अमित जी के साथ रहो।”

किंजल की आँखों से आँसू गिरने लगे।
उसने गुस्से में कहा —

“तुम धोखेबाज़ हो राहुल! मैंने तुम्हारे लिए सबकुछ दाँव पर लगा दिया था।”

राहुल ने ठंडे स्वर में कहा —

“तुम्हारी गलती है, बेवकूफी मतलब प्यार नहीं होता।”


तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।
दो पुलिसवाले अंदर आए।
अमित ने कहा —

“इंस्पेक्टर साहब, यही है राहुल सिंह।”

राहुल चौक गया —

“ये क्या मज़ाक है?”

इंस्पेक्टर ने कहा —

“हमने तुम्हारी कॉल रिकॉर्डिंग और चैट्स ट्रेस कर ली हैं।
 अमित मिश्रा की हत्या की साजिश का केस तुम्हारे खिलाफ़ दर्ज है।”

राहुल चिल्लाया —

“नहीं! ये झूठ है!”

अमित ने कहा —

“सच का वक्त हमेशा आता है, राहुल।
प्यार धोखे पर नहीं, भरोसे पर टिकता है।”

पुलिस राहुल को हथकड़ी लगाकर ले गई।
किंजल फूट-फूटकर रो रही थी।


किंजल ज़मीन पर बैठी थी।
वो बड़बड़ाई —

“मैंने सब खो दिया… राहुल भी, और तुम भी।”

अमित की आँखों में आँसू थे, लेकिन चेहरे पर दृढ़ता थी।
उसने कहा —

“किंजल, मैं तुमसे सच्चा प्यार करता था।
लेकिन अब तुमसे उतनी ही नफ़रत करूँगा जितना पहले प्यार करता था।
तुम मेरे घर में रह सकती हो अगर चाहो,
लेकिन मेरा भरोसा और मेरा दिल अब तुम्हारे लिए कभी नहीं खुलेगा।”

किंजल ने रोते हुए कहा —

“क्या तुम मुझे माफ़ नहीं कर सकते?”

अमित ने गहरी सांस ली —

“माफ़ कर दूँगा… लेकिन भूल नहीं पाऊँगा।”


कुछ महीनों बाद किंजल ने खुद को अमित से अलग कर लिया।
वो मुंबई वापस चली गई, और वहाँ से विदेश नौकरी के लिए निकल गई।

अमित फिर से अपने काम में लौट गया — लेकिन अब उसकी मुस्कान के पीछे एक दर्द था।
वो अक्सर बालकनी में बैठकर आसमान की ओर देखता और सोचता —

“जिस उड़ान में मुलाक़ात हुई थी, वही ज़िंदगी की सबसे बड़ी गिरावट बन गई…”

धीरे-धीरे उसने अपनी ज़िंदगी को सँवारा।
प्यार अब भी उसके दिल में था, लेकिन वो जान चुका था —
“सच्चा प्यार वो नहीं जो साथ दे,
बल्कि वो है जो धोखे के बाद भी किसी को बुरा नहीं चाहता।”


एक साल बाद, लखनऊ के उसी एयरपोर्ट पर, अमित ने फिर एक उड़ान पकड़ी —
लेकिन इस बार बिना किसी उम्मीद, बिना किसी डर के।

उसने अपने मोबाइल में किंजल का पुराना मैसेज देखा —

“Good luck for your meeting.”

अमित मुस्कुरा दिया और खुद से कहा —

“हाँ किंजल, आज भी एक meeting है… अपने अतीत से, अपने आप से।”

फ्लाइट आकाश में उड़ चली।
नीचे शहर की बत्तियाँ चमक रही थीं,
और ऊपर आसमान में सिर्फ़ सन्नाटा था —
जैसे खुद ज़िंदगी कह रही हो —

“कुछ रिश्ते मुकम्मल नहीं होते,
पर उनकी यादें हमेशा ज़िंदा रहती हैं।”



“दूर कहीं उजाला”

  कहानी: “दूर कहीं उजाला” (एक दीर्घ, मर्मस्पर्शी और मानवीय कथा) पहाड़ों की तलहटी में बसा था बरगड़िया गाँव —टूटी-फूटी गलियों वाला, मिट्टी...