मेरी यात्रायें
यात्रा एक ऐसा शब्द है जिसका नाम आते ही एक जगह से दूसरी जगह जाने का एहसास होता है, परन्तु यदि गहराई से सोचा जाए तो हर प्राणी अपनी यात्रा पर है, या यूँ कहा जाए की यात्रा एक प्राणी के जीवन का शाश्वत सत्य है जो कभी रुकता नहीं निरन्तर चलता रहता है, प्राणी के जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा लौकिक जीवन की एक पूर्ण यात्रा मानी जाती है। मेरी इस यात्रा ब्लॉग में मेरे द्वारा की गयी छोटी - छोटी यात्राओं के संग्रह का एक छोटा सा प्रयास है, हरि गोविन्द मिश्र - 7985126489
बुधवार, 9 अगस्त 2023
विंध्याचल की यात्रा
सोमवार, 26 अप्रैल 2021
प्रयागराज की यात्रा भाग -2
आज यात्रा का दूसरा दिन था, सुबह उठकर गंगा जी मे स्नान, पूजा आदि करने के बाद मिश्रा जी ने कहा कि आज श्री सोमेश्वर महादेव मंदिर चलते हैं, जो यमुना नदी (नैनी का पुल ) पार कर अरैल गांव में पड़ता है। यहाँ के लोगों में श्री सोमेश्वर महादेव की बड़ी मान्यता है, ऐसा माना जाता है कि इस शिव लिंग की स्थापना स्वयं चंद्र देव ने अपने छय रोग से मुक्ति के लिये की थी और उसके बाद भगवान शिव की घोर तपस्या की, चन्द्र देव की तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और दक्ष प्रजापति के श्राप से मुक्त किया, तभी से यहाँ भगवान सोमेश्वर महादेव की पूजा अर्चना में लोगों की बड़ी आस्था हैं।
मिश्रा जी ने एक ऑटो वाले से 1000 रूपये में बात करके चलना तय किया, हम सभी 10 लोग थे और इस हिसाब से एक आदमी का 100 रूपये का खर्चा हुआ, कुछ देर बाद ऑटो वाला आ गया और सभी लोग उसमे सवार होकर भगवन सोमेश्वर का दर्शन करने के लिए चल दिए I ऑटो वाला मेला परिसर से निकल कर प्रयागराज की सडकों से होता हुआ नैनी के पुल से गुजरने लगा, नैनी का पुल अपने आप में एक उच्च तकीनीकी का उदहारण है जिसके बीच में कोई पिलर नहीं है और जो ह्य्द्रोलिक तारों से जुड़ा हुआ है, चूकी मै प्रयागराज दूसरी बार आया था और नैनी का पुल पहली बार देख रहा था तो मेरे लिए बड़े उत्सुकता का विषय था ,
नैनी का पुल पार करने के करीब पांच किलोमीटर आगे अरैल गाँव है जहाँ भगवन सोमेश्वर महादेव का मंदिर है , करीब एक घंटे की यात्रा के बाद हम लोग वहां पहुच गए, सभी लोगों ने प्रसाद और जल लेकर भगवान सोमेश्वर का दर्शन और पूजन किया, भगवन सोमेश्वर के साथ यहाँ माँ लक्ष्मी - भगवन गणेश, हनुमान जी , नाग नागेश्वर, नंदी एवं माँ काली की भी प्रतिमाये है, हम लोगों ने सभी देवताओ का पूजन, अर्चन एवं ध्यान किया और थोड़ी देर वहां विश्राम किया, शरीर एवं मन की सारी थकान दूर हो गई, वहां से आने की इच्छा तो नहीं हो रही थी लेकिन ऑटो वाले को देर हो रही थी तो हम लोग श्री सोमेश्वर को प्रणाम करके वापस चल दिए
यही पर एक और मंदिर दिखा त्रिवेणी धाम, माँ गंगा , माँ यमुना और माँ सरस्वती जी का मंदिर, यहाँ भी हम लोगों ने पूजा अर्चना किया और उसके बाद वापसी के लिए ऑटो में बैठ कर चल दिए , आते समय हम लोगों ने नैनी के पुल को ठीक से नहीं देखा था तो विचार बना की वापसी में इसको ठीक से देखा जायेगा , पुल पर पहुच कर ऑटो वाले को रुकने का निर्देश दिया और फिर फोटो आदि खीचा उसके बाद फिर ऑटो में बैठ कर चल दिए , वापसी में माँ आलोपी का भी दर्शन किया गया और अंत में अपने तम्बू में आ गए
भोजन आदि करके कुछ देर विश्राम किया गया , मिश्रा जी ने बताया की पीछे की तरफ शाम चार बजे से सात बजे तक बहुत अछी कथा होती है वहां चला जायेगा, शाम को हम लोग फिर अपने तम्बू से निकल कर मुख्य सड़क तक आये, मैंने मिश्रा जी से कहा की हम लोग नाग वासुकी जी का दर्शन करना चाहते है तो उन्होंने कहा ठीक है आप लोग पांच नंबर पुल पार करके सीधे दाहिने हाथ की तरफ चले जाईये करीब एक किलोमीटर पर नाग वासुकी का मंदिर है, मै और श्री मती जी पैदल ही चल दिए और करीब पैतालीस मिनट की यात्रा के बाद नागवासुकी मंदिर पहुच गए
नाग वासुकी मंदिर की महिमा
यह एक प्राचीन मंदिर है जिसमे शेषनाग और नागों के राजा वासुकी जी की मूर्ति विराजमान है, ऐसी मान्यता है की प्रयागराज आने वाला हर व्यक्ति जब तक नाग वासुकी का दर्शन नहीं कर लेता तब तक उसका प्रयाग दर्शन अधुरा माना जाता है, जन श्रुति के अनुसार जब औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था तब ओ यहाँ भी आया था और जैसे ही उसने तलवार चलाई तो नागो के राजा वासुकी का भयानक रूप सामने आ गया जिसे देखकर ओ बेहोश हो गया, यह एक अति प्राचीन मंदिर है, जो यहाँ आकर दर्शन कर लेता है ओ कालसर्प दोष से मुक्त हो जाता है, श्रावण मॉस में तो यहाँ भारी भीड़ होती है और बहुत सारे लोग कालसर्प दोष की पूजा आदि करवाते है
हम लोगों ने बाहर से ही मंदिर का दर्शन किया क्योकि उस समय मंदिर का गर्भ गृह बंद था, बाहर से ही शेषनाग और नाग वासुकी जी का दर्शन किया और मन में ही पूजन किया और काफी देर तक वहां बैठ कर ध्यान किया, मंदिर परिसर से कुम्भ मेला का दृश्य बड़ा ही सुन्दर दिख रहा था, गर्भ गृह की परिकर्मा आदि की और वहा स्थित अन्य मंदिरों का भी दर्शन किया , परिसर के बगल में ही भीष्म जी की शर शैया पर लेटी हुई प्रतिमा है उसका भी दर्शन किया गया, अब तक अँधेरा हो गया था और अब अपने तम्बू में जाने का समय था तो हम लोगों ने फिर एक बार शेषनाग और नाग वासुकी जी को प्रणाम किया और जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए छमा मांगी और फिर वापस माँ गंगा के तट पर लगे तम्बू की तरफ चल दिए, करीब एक घंटा की यात्रा के बाद हम लोग अपने तम्बू में पहुच गए, इस बीच मैंने उन लोगों को बहुत करीब से देखा जो लोग महीने भर से कल्पवास कर रहे थे और सारे मोह माया से मुक्त हो कर माँ गंगा के पावन तट पर रह कर भगवत भाव से भजन कीर्तन करते है, बड़ा सुन्दर जीवन है उनका, मैंने भी मन ही मन में निश्चय किया की मै भी आने वाले समय में कल्पवास करूँगा और इस सुख का अनुभव करूँगा
तम्बू में पहुच कर भोजन आदि किया गया और उसके बाद मै मुख्य मार्ग पर टहलने आ गया जहा एक जगह भगवान राम की सुन्दर कथा चल रही थी , करीब एक घंटा कथा सुनने के बाद पुनः तम्बू में आ गया और इस प्रकार दूसरे दिन की यात्रा पूरी हुई
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021
प्रयागराज की यात्रा भाग -1
प्रयागराज की यात्रा भाग -1
यात्रा का दिनाँक 12 फरवरी 2021
रविवार, 23 अगस्त 2020
माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 3
माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 3
शिवलिंग के बाईं ओर माता पार्वती की आकृति है। यह आकृति ध्यान की मुद्रा में है। माता पार्वती की मूर्ति के साथ ही में गौरी कुण्ड है, जो हमेशा पवित्र जल से भरा रहता है। शिवलिंग के बाईं ओर ही भगवान कार्तिकेय की आकृति भी साफ़ दिखाई देती है। कार्तिकेय की प्रतिमा के ऊपर भगवान गणेश की पंचमुखी आकृति है। शिवलिंग के पास ही में राम दरबार है। गुफ़ा के अन्दर ही हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृति बनी हुई है। गुफ़ा के ऊपर की ओर छहमुखी शेषनाग, त्रिशूल आदि की आकृति साफ़ दिखाई देती है। साथ-ही-साथ सुदर्शन चक्र की गोल आकृति भी स्पष्ट दिखाई देती है। गुफ़ा के दूसरे हिस्से में महालक्ष्मी, महाकाली, सरस्वती के पिण्डी रूप में दर्शन होते हैं। हम लोग लगभग आधा घंटा गुफा में रहे उसके बाद बाहर निकल आये।
बाहर आकर दुकान से सामान लिया और दुकान पर बैठ कर चाय पिया गया और नास्ता किया उसके बाद वापस रनसू की की ओर वापस चल दिए। बीच में दूध गंगा नदी के पास रुके और बच्चो ने पानी में खूब आनंद लिया, हम लोग भी पानी में घुसकर एक बड़े पत्थर पर बैठ कर पानी में तैरती मछलियों को काफी देर तक देखते रहे, उसके बाद फिर रंसू की ओर चल दिए और लगभग 2 बजे रन सू पहुंच गए। अब हम लोगों को जम्मू जाना था जो यहां से लगभग 100 किलोमीटर था, गाड़ी के ड्राईवर ने कहा कि रास्ते में एक दो मंदिर और पड़ेंगे वहां भी दर्शन करते हुए आपको शाम तक जम्मू स्टेशन पहुंचा देंगे। इस प्रकार शाम को पांच बजे हम लोग जम्मू पहुंच गए, सभी लोग थके हुए थे तो जिस प्लेट फार्म पर ट्रेन आने वाली थी उसी पर एक बेंच पर डेरा जमाया गया और कुछ लोग नीचे चद्दर बिछा कर आराम किए, ट्रेन अपने निर्धारित समय से 15 मिनट देरी से जम्मू से चल दी और अगले दिन शाम तक हम लोग अपने घर पहुंच गए, इस तरह हम लोगों की मा वैष्णो देवी की यात्रा समाप्त हुई। ये यात्रा मैंने 2009 में की थी लेकिन लिखने का मौका अब मिला क्योंकि उस समय मै ब्लॉग नहीं लिखता था, ब्लॉग लिखना मैंने 2019 में शुरू किया और मार्च से लेकर अब तक कोई यात्रा नहीं हो पाई थी सोचा कि जो यात्राएं पहले की गई है क्यों न उनको लिखा जाए, फोटो कुछ उस समय मोबाइल से लिए गए थे और कुछ गूगल से, लॉक डाउन के बाद होने वाली यात्रा भी जल्दी ही आएगी।
मंगलवार, 11 अगस्त 2020
माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 2
सुबह के समय दर्शन करने के लिए भीड़ कुछ ज्यादा थी, सभी लोग पूर्ण श्रद्धा भाव से माता का जैकारा लगाते हुए आगे बढ़ते रहे और करीब आठ बजे गुफा के बाहर लगी माँ की विशाल प्रतिमा के दर्शन हुए, लाइन धीरे चलने लगी किन्तु अब कोई जल्दी नहीं थी, हर कोई माँ का गुणगान करता हुआ मन में माँ की प्रतिमा को वसा लेना चाहता था, कुछ देर बाद हम लोग भी गुफा में प्रवेश किये अब तो भक्तो का उत्साह दुगना हो चुका था और मुझे तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे शरीर की सारी थकान दूर हो चुकी है, एक ऐसी अलौकिक शीतलता का आभास हुआ जिसका शब्दो में बर्णन कर पाना संभव नहीं है, कुछ देर बाद माँ की पिंडी के पास पहुंच गए पुजारी जी ने बताया की ये माँ महाकाली (दाएं), माँ महासरस्वती (मध्य) और मां महालक्ष्मी (बाएं) विराजमान है कुछ सेकण्ड ही दर्शन हुआ उसके बाद आगे बढ़ा दिए गए, माँ के पिंडी की अलौकिक छटा को आँखों में बसाते हुए आगे बढ़ गए, उसके बाद मंदिर परिसर से निकलते समय प्रसाद और नारियल लिया गया और नीचे स्थित दाहिने तरफ अन्य मंदिरो का दर्शन किया गया, जिसमे शिव लिंग जिस पर प्राकृतिक रूप से पहाड़ी से जल गिरता रहता था अपने आप में अद्भुत था।
अब तक लगभग नौ बज चुके थे, वहां से दर्शन करने के पश्चात एक दुकान पर बैठ कर जलपान किया गया और उसके बाद लाकर से सामान निकाल कर ऊपर आ गए जहाँ से भैरो घाटी की चढ़ाई शुरु होती है, ऐसी मान्यता है की जब तक भैरो बाबा के दर्शन नहीं किये जाते है तब तक माँ वैष्णो देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है, भवन से भैरो घाटी की दूरी वैसे तो साढ़े तीन किलोमीटर की है परन्तु ये खड़ी चढ़ाई है इसलिए इसमें थकान ज्यादा होती है, हम लोगों ने दस बजे चढ़ाई शुरु की और करीब एक बजे भैरो घाटी पहुच गए, थोड़ी देर आराम करने के बाद हाथ मुह धोकर प्रसाद लेकर बाबा भैरो नाथ का दर्शन किया गया और दर्शन के बाद दोपहर का भोजन भी वही किया गया और कुछ देर तक मोबाइल से फोटोग्राफी की गयी
यात्रा का चौथा दिन 30 सितम्बर 2009 दिन बुधवार
भैरो घाटी से करीब तीन बजे वापसी की यात्रा प्रारंभ हुई और लगभग सात बजे हम लोग अर्ध्कुमारी पहुच गए, चूकी हम लोगों के साथ बच्चे और महिलाये थी इसलिए हम लोग बहुत आराम से चल रहे थे, अब तक सभी लोग बहुत थक चुके थे और ये निर्णय लिया गया की रात यही रुका जाये और सुबह यहाँ से चला जायेगा, किराये पर कम्बल लेकर एक साफ सुथरी जगह देखकर डेरा जमाया गया, जिसको जो खाना था खाया और फिर सो गए, अगले दिन सुबह चार बजे उठने के बाद फ्रेश होकर कम्बल आदि जमा करने के बाद 6 बजे अर्ध्कुमारी से नीचे की यात्रा शुरु हुई और रुकते चलते 11 बजे तक हम लोग कटरा पहुच गए, और नहा धोकर खाना खाकर सो गए, शाम को 4 बजे उठने के बाद कटरा नगर घूमने गए, कटरा की गलियों में घूमते हुए कुछ सामानों की खरीददारी की गयी और कल शिवखोड़ी जाने के लिए एक गाड़ी भी 2500 रूपये में तय कर ली गयी जो कल सुबह 6 बजे तक आ जायेगी और शिवखोड़ी दर्शन कराने के बाद जम्मू स्टेशन पर छोड़ देगी, जहाँ से रात में हम लोगों की वापसी की ट्रेन है
सोमवार, 3 अगस्त 2020
माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग – 1
माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग – 1
यात्रा का दिनांक 27 सितम्बर 2009 दिन रविवार
ये यात्रा मैंने बहुत पहले की थी और जब से करोना के कारण
लाक डाउन हुआ तब से कोई भी यात्रा नहीं हो पाई तो सोचा की जो यात्राये पहले की जा
चुकी है उन्ही को क्यों न स्मृतियों के आधार पर करोना काल में लिखकर यात्रा का
आनंद लिया जाय I
बात उन दिनो की है जब मैं गोरखपुर में रहता था, माँ वैष्णो देवी
के बारे में बहुत लोगों से सुना था लेकिन अभी तक दर्शन का सौभाग्य नहीं मिला था,
बहुत दिनों से विचार बन रहा था की माता के दर्शन करने के लिए जाये, कई लोगों से
वहा जाने एवं दर्शन करने के बारे में जानकारिया इकट्ठा की और अंत में फाइनल हो गया की अब माँ के दर्शन
के लिए जाना है, नौ जून 2009 को सबका रिजेर्वशन हो गया और एक भारी भरकम समूह तैयार हो गया जिसमे मेरे माता पिता,
मै मेरी पत्नी और तीनों बच्चे मेरे मामा मामी मेरी मौसी और मेरी माँ की बुवा जी
कुल मिलाकर 11 लोग यात्रा के लिए तैयार हो
गए और 27 सितम्बर का गोरखपुर से जम्मू का रेजेर्वशन हो गया I
अभी यात्रा में बहुत समय था और इस बीच बहुत सारे परिवर्तन
हुए पहला ये की मै गोरखपुर से लखनऊ आ गया और एक नई कंपनी में नौकरी ज्वाइन कर ली,
बहुत दिनों से प्रयास रत था की लखनऊ में नौकरी मिल जाये तो बच्चो की पढाई लिखाई के
लिए अच्छा रहेगा और माँ वैष्णो देवी के आशीर्वाद से जुलाई में ही मै लखनऊ आ गया,
नौकरी अभी नई थी इसलिए मै अकेला ही लखनऊ में रहकर नौकरी करने लगा और महीने में एक
दो बार छुट्टी मिलने पर गोरखपुर चला जाता था इस प्रकार समय का पहिया घूमता रहा और
कुछ दिनों तक माँ के दरबार में जाने का ध्यान ही नहीं रहा, सितम्बर के पहले हफ्ते
में मेरे मामा जी ने याद दिलाया तो ध्यान आया की अरे हम लोगों को तो 27 तारीख को
ट्रेन पकडनी है I
शुक्रवार, 24 जुलाई 2020
मेरी धार्मिक यात्राये
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विंध्याचल की यात्रा
इस यात्रा को शुरु से पढने के लिए यहाँ क्लिक करें विंध्याचल की यात्रा आज यात्रा का तीसरा दिन था, दो दिन प्रयागराज में स्नान एवं भर्मण के बा...
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यात्रा का दिनाँक 13 अक्टूबर 2017 दोस्तों आज मैं आप लोगों को लखनऊ से नैमिषारायण तक की बाइक यात्रा कराऊंगा जो कि मैंने अपने एक मित्र ...
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बहुत दिनों से कहीं घूमने का कार्यक्रम नहीं बन पाया था इसलिए मैं बैचैन सा रहता था , हम प्राइवेट नौकरी वालों के पास न पैसा होता हैं और न ही...
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यात्रा का तीसरा दिन 29 सितम्बर 2009 दिन मंगलवार हम लोग कमरे से करीब सात बजे माँ के दरबार में जाने के लिए निकले, माँ का जयकारा लगात...