बुधवार, 10 जून 2020

उज्जैन, ओंकारेश्वर एवं ममलेश्वर यात्रा भाग - 4

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उज्जैन, ओंकारेश्वर एवं ममलेश्वर यात्रा भाग - 4

यात्रा का दिनाँक 13/08/2018


आज यात्रा का आखिरी दिन था और कल की यात्रा से सीख लेते हुए हम लोगों ने समय का विशेष ध्यान रखा और रात मे ही प्लान तैयार कर लिया था कि आज उज्जैन में स्थित सारे मंदिर एवं प्रमुख स्थानों की यात्रा सुनियोजित तरीके से किया जायेगा, सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्म से निवृत्त हो कर सबसे पहले नीचे  उतरकर चाय पिया गया और वहीं पर एक टाटा मैजिक वाले से पूरा उज्जैन घूमने के लिए 6 सौ रूपये में तय कर लिया गया जिसमे वह सभी छोटे बड़े मंदिरो का दर्शन कराएगा। 

गढ़कालिका मंदिर   

सबसे पहले गढ़ कालिका मंदिर में दर्शन के लिए गए, यह उज्जैन का एक लोकप्रिय एवं प्रमुख मंदिर है, यहाँ देवी की पूजा की जाती है जो महा  कवि कालीदास जी की  ईस्ट देवी मानी जाती है
, मंदिर में दर्शन पूजन किया गया एवं कुछ देर विश्राम किया गया उसके बाद मंगलनाथ मंदिर का दर्शन करने के लिए चल दिए। 

मंगल नाथ मंदिर   

मंगल नाथ मंदिर उज्जैन का एक प्रमुख मंदिर है, उज्जैन  में मंगल ग्रह की जन्म भूमि होने के कारण इसका विशेष महत्त्व है, जिन लोगों की कुंडली में मंगल का दोष होता है उन लोगों को विशेष कर यहाँ आने की सलाह दी जाती है, एवं यहाँ पर पुजारी एवं विशेषज्ञों के द्वारा मंगल ग्रह की शांति के लिए विशेष पूजा कराई है, मंगल नाथ मंदिर पृथ्वी का केंद्र मन जाता है और कर्क रेखा भी यहाँ से गुजरती है जिसके कारन महत्त्व और बढ़ जाता है, हम लोग भी गाड़ी से उतरने के बाद मंदिर में गए और दर्शन किये, थोड़ी देर मंदिर परिसर में विश्राम किया गया, रुकने की इच्छा तो और भी हो रही थी लेकिन गाड़ी वाला जल्दी मचाये रहता था ओ चाहता था की हम लोग तुरंत जाये और तुरंत  वापस आ जाये, किन्तु ऐसा कैसे संभव था, इतनी दूर से हम लोग दर्शन करने गए थे और  ठीक से दर्शन भी न किया जाये तो क्या फायदा।

काल  भैरव मंदिर

काल  भैरव जी का मंदिर महाकाल के संरक्षक काल भैरव को समर्पित है, यह शिप्रा नदी के तट पर स्थित है और उज्जैन के सबसे व्यस्ततम मंदिरों में है, यहाँ प्रसाद के रूप में मदिरा चढ़ाई जाती है, पुजारी भक्त से शराब की बोतल लेकर उसमे से कुछ शराब कटोरी में निकल कर काल भैरव जी के मुख के सम्मुख ले जाता है और कुछ ही देर में शराब गायब हो जाती है, शेष बचा शराब भक्त जन अपने साथ प्रसाद के रूप में ले जाते है और उसका सेवन करते है। हम लोगों ने भी भैरव जी का दर्शन किया और अपने अपराध के लिए क्षमा माँगी क्योंकि हम लोगों में से कोई भी शराब का सेवन नहीं करता था इसलिए हम लोगों ने बिना प्रसाद चढ़ाये ही दर्शन किया,  उसके बाद चौबीस खम्भा मंदिर  दर्शन के लिए गए। 

चौबीस खम्भा मंदिर    

चौबीस खम्भा मंदिर 9 वी या 10 वी शताब्दी का बना ऐतिहासिक मंदिर है, प्रवेश द्वार पर देवी देवताओं की प्रतिमाये बनी   हुई है, प्राचीन सभयता को सजोये ये मंदिर अपने आप में विशेष महत्त्व रखता  है, हम लोगों ने भी गर्भ गृह में स्थापित प्रतिमा का दर्शन किया और मंदिर की परिक्रमा करके कुछ देर विश्राम किया, बाहर निकलने पर खानपान की दुकानों पर सभी लोगों ने अपनी - अपनी पसंद का नास्ता किया और फिर चल दिए भर्तहरि  गुफा देखने के लिए। 

भर्तहरि  गुफा 

ऐसी मान्यता है की महाराजा विक्रमादित्य के सौतेले भाई भर्तहरि इन्ही गुफाओं में बैठ कर तपस्या करते थे, वैसे ये स्थान प्राकृतिक रूप से भी बहुत मनोरम है, यहाँ पर कई गुफाये बानी हुई है, हम लोगों ने भी इसकी मनोरम छवि का रसपान किया और गुफा में अंदर जाने की कोशिश की लेकिन भीड़ होने के कारण अंदर ऑक्सीजन की काफी कमी थी जिसके कारण मै अंदर नहीं जा सका, बच्चे जरूर अंदर तक दर्शन कर आये, कुछ  देर गुफा के पास निर्मित मंदिर के पास विश्राम किया और फिर चल दिए संदीपनी  आश्रम देखने के लिए। 


संदीपनी  आश्रम 

संदीपनी आश्रम में हरियाली भरपूर है यहाँ  बैठकर फूल पत्ती एवं हरियाली का आनंद लेना  अच्छा लगता है, संदीपनी आश्रम में श्री कृष्ण एवं बलराम जी ने अध्ययन किया था इसलिए यहाँ का महत्व बढ़ जाता है, वैसे हम लोग जब वहाँ पहुंचे तो परम आनंद एवं शांति का अनुभव हुआ, पूरा टहला घूमा गया एवं बगीचे में थोड़ी देर बैठे लेकिन ड्राइवर की जल्दी के कारण वहाँ से निकलना पड़ा, उसके बाद हम लोग अपने अड्डे पर पहुंचे, अब तक हम लोगों को भूख लग गयी थी, सभी लोगों ने हरी सिद्धि मंदिर के पास स्थित एक होटल में खाना खाया और फिर कमरे पर आराम करने के लिए चले गए। 

शाम 4 बजे उठने के बाद नीचे आकर चाय पिया गया एवं बगल में स्थित चार धाम मंदिर एवं वैष्णो माता मंदिर का दर्शन किया गया एवं काफी देर तक वहाँ बैठकर बातचीत करते रहे, बीच - बीच में फोटोग्राफी भी होती रहती थी, करीब 7 बजे वहाँ से निकले और टहलते हुए विक्रम टीला एवं माता हरि सिद्धी का दर्शन किया गया, अब तक 9 बज गए उसके बाद खाना खाकर कमरे पर चले आये, हम लोगों की सुबह 5 बजे की ट्रैन थी इसलिए साढ़े 3 बजे का अलार्म लगाकर सो गए, सुबह उठने के बाद फ्रेश होकर सामान लेकर नीचे  आ गए, थोड़ी देर में एक ऑटो मिल गया और उज्जैन स्टेशन लाकर छोड़ दिया, सवा 5 बजे ट्रेन भी आ गई, सभी लोगों ने  अपनी - अपनी बर्थ  पर सामान रखा और एक बार फिर बाबा महाकाल का ध्यान किया, प्रार्थना की  और फिर आने की इच्छा लिए हुए आपस में बातचीत करते हुए वापसी की यात्रा के  आनंद  में खो गए। 

ट्रेन सभी स्टेशनों से होते हुए सुबह करीब साढ़े 3 बजे लखनऊ पहुँची, स्टेशन से बाहर निकल कर एक ऑटो बुक किया गया और लगभग 5 बजे अपने घर पहुँच गए, इस तरह एक सुखद यात्रा सम्पूर्ण हुई। 



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