आज यात्रा का दूसरा दिन था, सुबह उठकर गंगा जी मे स्नान, पूजा आदि करने के बाद मिश्रा जी ने कहा कि आज श्री सोमेश्वर महादेव मंदिर चलते हैं, जो यमुना नदी (नैनी का पुल ) पार कर अरैल गांव में पड़ता है। यहाँ के लोगों में श्री सोमेश्वर महादेव की बड़ी मान्यता है, ऐसा माना जाता है कि इस शिव लिंग की स्थापना स्वयं चंद्र देव ने अपने छय रोग से मुक्ति के लिये की थी और उसके बाद भगवान शिव की घोर तपस्या की, चन्द्र देव की तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और दक्ष प्रजापति के श्राप से मुक्त किया, तभी से यहाँ भगवान सोमेश्वर महादेव की पूजा अर्चना में लोगों की बड़ी आस्था हैं।
मिश्रा जी ने एक ऑटो वाले से 1000 रूपये में बात करके चलना तय किया, हम सभी 10 लोग थे और इस हिसाब से एक आदमी का 100 रूपये का खर्चा हुआ, कुछ देर बाद ऑटो वाला आ गया और सभी लोग उसमे सवार होकर भगवन सोमेश्वर का दर्शन करने के लिए चल दिए I ऑटो वाला मेला परिसर से निकल कर प्रयागराज की सडकों से होता हुआ नैनी के पुल से गुजरने लगा, नैनी का पुल अपने आप में एक उच्च तकीनीकी का उदहारण है जिसके बीच में कोई पिलर नहीं है और जो ह्य्द्रोलिक तारों से जुड़ा हुआ है, चूकी मै प्रयागराज दूसरी बार आया था और नैनी का पुल पहली बार देख रहा था तो मेरे लिए बड़े उत्सुकता का विषय था ,
नैनी का पुल पार करने के करीब पांच किलोमीटर आगे अरैल गाँव है जहाँ भगवन सोमेश्वर महादेव का मंदिर है , करीब एक घंटे की यात्रा के बाद हम लोग वहां पहुच गए, सभी लोगों ने प्रसाद और जल लेकर भगवान सोमेश्वर का दर्शन और पूजन किया, भगवन सोमेश्वर के साथ यहाँ माँ लक्ष्मी - भगवन गणेश, हनुमान जी , नाग नागेश्वर, नंदी एवं माँ काली की भी प्रतिमाये है, हम लोगों ने सभी देवताओ का पूजन, अर्चन एवं ध्यान किया और थोड़ी देर वहां विश्राम किया, शरीर एवं मन की सारी थकान दूर हो गई, वहां से आने की इच्छा तो नहीं हो रही थी लेकिन ऑटो वाले को देर हो रही थी तो हम लोग श्री सोमेश्वर को प्रणाम करके वापस चल दिए
यही पर एक और मंदिर दिखा त्रिवेणी धाम, माँ गंगा , माँ यमुना और माँ सरस्वती जी का मंदिर, यहाँ भी हम लोगों ने पूजा अर्चना किया और उसके बाद वापसी के लिए ऑटो में बैठ कर चल दिए , आते समय हम लोगों ने नैनी के पुल को ठीक से नहीं देखा था तो विचार बना की वापसी में इसको ठीक से देखा जायेगा , पुल पर पहुच कर ऑटो वाले को रुकने का निर्देश दिया और फिर फोटो आदि खीचा उसके बाद फिर ऑटो में बैठ कर चल दिए , वापसी में माँ आलोपी का भी दर्शन किया गया और अंत में अपने तम्बू में आ गए
भोजन आदि करके कुछ देर विश्राम किया गया , मिश्रा जी ने बताया की पीछे की तरफ शाम चार बजे से सात बजे तक बहुत अछी कथा होती है वहां चला जायेगा, शाम को हम लोग फिर अपने तम्बू से निकल कर मुख्य सड़क तक आये, मैंने मिश्रा जी से कहा की हम लोग नाग वासुकी जी का दर्शन करना चाहते है तो उन्होंने कहा ठीक है आप लोग पांच नंबर पुल पार करके सीधे दाहिने हाथ की तरफ चले जाईये करीब एक किलोमीटर पर नाग वासुकी का मंदिर है, मै और श्री मती जी पैदल ही चल दिए और करीब पैतालीस मिनट की यात्रा के बाद नागवासुकी मंदिर पहुच गए
नाग वासुकी मंदिर की महिमा
यह एक प्राचीन मंदिर है जिसमे शेषनाग और नागों के राजा वासुकी जी की मूर्ति विराजमान है, ऐसी मान्यता है की प्रयागराज आने वाला हर व्यक्ति जब तक नाग वासुकी का दर्शन नहीं कर लेता तब तक उसका प्रयाग दर्शन अधुरा माना जाता है, जन श्रुति के अनुसार जब औरंगजेब भारत में मंदिरों को तोड़ रहा था तब ओ यहाँ भी आया था और जैसे ही उसने तलवार चलाई तो नागो के राजा वासुकी का भयानक रूप सामने आ गया जिसे देखकर ओ बेहोश हो गया, यह एक अति प्राचीन मंदिर है, जो यहाँ आकर दर्शन कर लेता है ओ कालसर्प दोष से मुक्त हो जाता है, श्रावण मॉस में तो यहाँ भारी भीड़ होती है और बहुत सारे लोग कालसर्प दोष की पूजा आदि करवाते है
हम लोगों ने बाहर से ही मंदिर का दर्शन किया क्योकि उस समय मंदिर का गर्भ गृह बंद था, बाहर से ही शेषनाग और नाग वासुकी जी का दर्शन किया और मन में ही पूजन किया और काफी देर तक वहां बैठ कर ध्यान किया, मंदिर परिसर से कुम्भ मेला का दृश्य बड़ा ही सुन्दर दिख रहा था, गर्भ गृह की परिकर्मा आदि की और वहा स्थित अन्य मंदिरों का भी दर्शन किया , परिसर के बगल में ही भीष्म जी की शर शैया पर लेटी हुई प्रतिमा है उसका भी दर्शन किया गया, अब तक अँधेरा हो गया था और अब अपने तम्बू में जाने का समय था तो हम लोगों ने फिर एक बार शेषनाग और नाग वासुकी जी को प्रणाम किया और जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए छमा मांगी और फिर वापस माँ गंगा के तट पर लगे तम्बू की तरफ चल दिए, करीब एक घंटा की यात्रा के बाद हम लोग अपने तम्बू में पहुच गए, इस बीच मैंने उन लोगों को बहुत करीब से देखा जो लोग महीने भर से कल्पवास कर रहे थे और सारे मोह माया से मुक्त हो कर माँ गंगा के पावन तट पर रह कर भगवत भाव से भजन कीर्तन करते है, बड़ा सुन्दर जीवन है उनका, मैंने भी मन ही मन में निश्चय किया की मै भी आने वाले समय में कल्पवास करूँगा और इस सुख का अनुभव करूँगा
तम्बू में पहुच कर भोजन आदि किया गया और उसके बाद मै मुख्य मार्ग पर टहलने आ गया जहा एक जगह भगवान राम की सुन्दर कथा चल रही थी , करीब एक घंटा कथा सुनने के बाद पुनः तम्बू में आ गया और इस प्रकार दूसरे दिन की यात्रा पूरी हुई