बुधवार, 6 अगस्त 2025

बीस साल बाद...

 

                                    "बीस साल बाद... राजेश और अनु की अधूरी कहानी"

 



राजेश और अनु की पहली मुलाक़ात कॉलेज के पहले दिन हुई थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी का वह खूबसूरत परिसर, हरे-भरे पेड़, क्लासेस की भीड़, और उस भीड़ में अनु... एक सादा सी लड़की, काली चोटी और माथे पर बिंदी। राजेश को पहली ही नज़र में कुछ खास महसूस हुआ।

अनु, पढ़ाई में तेज़ और स्वभाव से शर्मीली, जबकि राजेश थोड़ा मस्तीखोर था, लेकिन दिल का साफ़। दोनों एक ही सेक्शन में थे और ग्रुप प्रोजेक्ट में साथ आए।

धीरे-धीरे दोस्ती गहराती गई। कैंटीन में एक साथ बैठना, नोट्स शेयर करना, लाइब्रेरी में चुपचाप घंटों एक-दूसरे के पास बैठना... राजेश को लगने लगा था कि वो अनु से प्यार करने लगा है।

लेकिन अनु ने कभी कुछ नहीं कहा। उसके मन में भी राजेश के लिए कुछ था, लेकिन संस्कारी परिवार की बेटी होने के नाते उसने अपने जज़्बात छुपा लिए।

कॉलेज का आख़िरी साल था। फेयरवेल के दिन, राजेश ने सोच लिया था कि आज वो अनु से अपने दिल की बात कहेगा। लेकिन जब उसने अनु को ढूँढा, तो वो किसी और लड़के के साथ खड़ी थी सौरभ नाम था उसका। अनु मुस्कुरा रही थी, लेकिन राजेश की दुनिया उस पल बिखर गई।

अनु दरअसल सिर्फ दोस्ताना व्यवहार कर रही थी, लेकिन राजेश ने वो इशारे गलत समझ लिए। उसने बिना कुछ कहे कॉलेज छोड़ दिया और अनु से संपर्क तोड़ लिया।

अनु को कुछ समझ नहीं आया। राजेश अचानक कैसे दूर हो गया? उसने कई बार कॉल करने की कोशिश की, लेकिन राजेश ने जवाब नहीं दिया।

राजेश की ज़िन्दगी ने एक नया मोड़ लिया। वह एक आईटी कंपनी में चला गया, फिर अमेरिका में नौकरी लग गई। परिवार ने उसकी शादी करा दी। लेकिन दिल में कहीं न कहीं अनु की याद हमेशा बनी रही।

उधर अनु ने भी एमए किया, फिर एक कॉलेज में प्रोफेसर बन गई। घर वालों ने जबरदस्ती उसकी भी शादी कर दी। लेकिन वो रिश्ता ज़्यादा दिन नहीं चला, पति ने उसे समझा नहीं और तलाक हो गया।

अनु अकेली हो गई, लेकिन उसने हार नहीं मानी। बच्चों को पढ़ाती रही, समाज सेवा में लग गई। फिर भी राजेश की यादें कभी पूरी तरह नहीं मिट सकीं।

एक दिन फेसबुक पर राजेश ने अनु की प्रोफाइल देखी। वही मुस्कान, वही सादगी... राजेश ने वर्षों बाद पहली बार दिल से कुछ महसूस किया। उसने हिम्मत कर के फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी।

अनु ने रिक्वेस्ट एक्सेप्ट की, और पहले मैसेज में सिर्फ इतना लिखा
इतने साल क्यों लगाए?”

राजेश की आंखें नम हो गईं। दोनों ने बातें शुरू कीं पुराने कॉलेज के दिनों की, उन चाय की दुकानों की, लाइब्रेरी की खामोशियों की।

फिर एक दिन तय हुआ चलो मिलते हैं।

नई दिल्ली के एक शांत कैफे में, बीस साल बाद राजेश और अनु आमने-सामने बैठे थे। उम्र का असर दोनों के चेहरे पर था, लेकिन आंखों में वही चमक थी।

राजेश ने पूछा,
क्या तुम भी मुझे उसी तरह चाहती थीं जैसे मैं तुम्हें?”

अनु ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया
हाँ, लेकिन मैंने कभी कहा नहीं। तुमने क्यों चुप्पी साध ली थी?”

राजेश ने गहरी सांस ली
गलतफहमी थी, सोचा तुम किसी और को पसंद करती हो। अगर तब पूछ लेता...

तो शायद आज ज़िन्दगी कुछ और होती,” अनु ने कहा।

लेकिन उनके चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था, बस एक शांति थी। एक अधूरी कहानी के दो किरदारों ने एक-दूसरे को माफ़ कर दिया था।

राजेश अब तलाकशुदा था। अनु भी अकेली थी। दोनों की ज़िन्दगियाँ अलग-अलग रास्तों से होकर फिर से एक मोड़ पर आकर रुकी थीं।

राजेश ने अनु से पूछा
क्या हम दोबारा दोस्त बन सकते हैं?”

अनु ने उसकी आंखों में देखा
शायद दोस्त से कुछ ज़्यादा भी।

राजेश और अनु अब हर रविवार मिलते हैं। वे पुराने किस्से दोहराते हैं, साथ चलते हैं, और जीवन के उस खालीपन को भरते हैं जिसे बीस साल पहले नियति ने उनके बीच खड़ा कर दिया था।

प्यार के रिश्ते हमेशा परफेक्ट नहीं होते, लेकिन कुछ रिश्ते... देर से सही, मुकम्मल ज़रूर होते हैं।

राजेश और अनु के बीच अब एक स्थिर, गहरी समझ बन चुकी थी।
हर रविवार की मुलाकात, कभी किताबों की दुकान में, कभी पुराने कॉलेज की कैंटीन के पास की चाय की दुकान परअब एक आदत बन गई थी।

राजेश ने एक दिन कहा,
अनु, ज़िन्दगी हमें दोबारा साथ लाई हैक्या अब भी हम इंतज़ार करें?”

अनु ने मुस्कराते हुए पूछा,
क्या कहना चाहते हो?”

शादी?”
राजेश ने धीरे से कहा।

अनु चुप रही। उसका चेहरा गंभीर हो गया।
राजेश, मैं भी चाहती हूँपर डरती हूँ।

किससे?”

समाज से नहीं, खुद से। अगर फिर से कुछ टूट गया तो? अब संभालने की ताक़त नहीं रही।

राजेश ने उसका हाथ थामा और कहा,
अब हम बच्चे नहीं हैं अनु। अब हम हर टूटे टुकड़े को जोड़ना जानते हैं।

 

राजेश का बेटा रचित और बेटी प्रिया, अमेरिका में पढ़ते थे। अनु के माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं थे, लेकिन उसकी एक छोटी बहन थी, जो जयपुर में रहती थी।

राजेश ने बच्चों को धीरे-धीरे अपनी और अनु की बात बताई।
रचित ने एक लंबी चुप्पी के बाद कहा,
पापा, क्या आप खुश हैं?”

राजेश ने सिर्फ हाँ कहा।

तो हमें और क्या चाहिए?”
प्रिया ने वीडियो कॉल पर मुस्कराते हुए कहा।

उधर अनु की बहन ने भी कहा
दीदी, अब तो आपने हमेशा दूसरों के लिए जिया। अब खुद के लिए जी लो।

राजेश और अनु, दोनों 50 की उम्र पार कर चुके थे।
दूसरी शादी को लेकर समाज अब भी उलटफेर से भरपूर था, लेकिन कुछ लोगों ने साथ भी दिया।

राजेश का पुराना दोस्त विनय बोला
यार, प्यार की कोई उम्र नहीं होती।

तो वहीं अनु की सहेली मधु ने कहा
तुम्हारी आँखों में वो चमक फिर से दिख रही है जो कॉलेज में थी।

कहने वालों ने कहा भी
अब इस उम्र में क्या शादी?”
लेकिन दोनों ने किसी की नहीं सुनी।

अनु ने शर्त रखी
बड़ी-बड़ी रोशनी नहीं चाहिए, दिखावा नहीं चाहिए। सिर्फ वो लोग हों जिनसे हम जुड़े हैं।

राजेश ने सहमति में सिर हिलाया।

दिल्ली के एक छोटे से मंदिर में, 22 लोगों की उपस्थिति में, सिंपल-सी शादी हुई।
न संगीत, DJ, बस मंत्र, आशीर्वाद और कुछ भीगी हुई पलकें।

राजेश ने मांग में सिंदूर भरते हुए कहा
अब और खोने का डर नहीं, क्योंकि अब हम साथ हैं।

अनु की आंखों से आंसू बहने लगे, लेकिन इस बार वो आंसू दर्द के नहीं, संतोष के थे।

दोनों ने नोएडा में एक फ्लैट लिया छोटा सा, लेकिन बहुत सलीके से सजा हुआ।

दीवारों पर पुरानी कॉलेज की तस्वीरें थीं, किताबों की शेल्फें थीं, और किचन में अनु के हाथ की बनी चाय की खुशबू।

राजेश अब फुलटाइम काम नहीं करता था। वो कभी-कभी ऑनलाइन क्लासेस लेता, तो अनु समाज सेवा में लगी रहती।

शामें अक्सर बालकनी में बैठकर बीती ज़िन्दगी को याद करते हुए बीततीं।

एक दिन अनु ने पूछा
राजेश, तुम्हें कभी अफसोस होता है कि हमने ज़्यादा वक्त एक साथ नहीं बिताया?”

राजेश ने मुस्कराकर जवाब दिया
अफसोस नहीं, शुक्रगुज़ार हूँ कि ज़िन्दगी ने दोबारा मौका दिया।

अनु बोली
काश हम कॉलेज में ही हिम्मत कर लेते…”

शायद तब हम इतने समझदार नहीं थे। आज हम अधूरी कहानी को पूरा कर पा रहे हैं ये ही बहुत है।

समय बीतता रहा। दोनों ने मिलकर एक किताब लिखी
बीस साल बाद
जिसमें उन्होंने अपने जीवन की सच्ची प्रेम कहानी बताई।

वो किताब सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। लाखों लोगों ने पढ़ा और कहा
ये कहानी हमें उम्मीद देती है।

राजेश और अनु अब भी साथ हैं किताबों, यादों और एक-दूसरे के प्रेम में।

उनकी कहानी साबित करती है कि

प्रेम अगर सच्चा हो, तो समय चाहे जितना भी बीत जाए, वो वापस लौट आता हैअधूरी कहानी कभी खत्म नहीं होती, वो कहीं न कहीं पूरी हो ही जाती है।


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रविवार, 3 अगस्त 2025

"दो साल का इंतज़ार – एक कर्मचारी की अंतरवेदना"

 

                                          "दो साल का इंतज़ार एक कर्मचारी की अंतरवेदना"

 




 

हर सुबह समय पर दफ्तर पहुँचना, बॉस के ताने सुनना, लक्ष्य पूरा करना, और फिर उम्मीद करना कि शायद इस बार सैलरी बढ़ेगी यह कहानी किसी एक कर्मचारी की नहीं, बल्कि उस तबके की है जो अपना जीवन दफ्तर की चारदीवारी में खपा देता है, पर बदले में सम्मान, प्रगति या संवेदनाएं बहुत कम पाता है।
आज की यह कहानी है राजेश की एक मध्यमवर्गीय कर्मचारी जिसकी तनख्वाह दो सालों से नहीं बढ़ी और दिल में सुलगती रही एक अनकही वेदना...


राजेश कुमार एक सामान्य कार्यालय सहायक था दिल्ली के करोल बाग़ में स्थित "गोयल एंड संस ट्रे़डिंग कंपनी" में काम करता था। उम्र करीब 38 साल की थी। शादी को आठ साल हो चुके थे और एक छह साल की बेटी थी तन्वी।

राजेश सुबह 7 बजे उठता, बेटी को स्कूल भेजता, और 9 बजे तक ऑटो पकड़कर ऑफिस पहुँच जाता।
उसका काम था फ़ाइलें सहेजना, दस्तावेज़ों की फोटोकॉपी कराना, मेल्स चेक करना, और जब-जब मालिक बुलाएँ दौड़कर जाना।
वो न कभी देर से आता, न छुट्टी लेता। एक तरह से दफ्तर में सबका भरोसेमंद आदमी बन चुका था।

लेकिन सच्चाई यह थी कि उसकी मासिक तनख्वाह अब भी 14,500 रुपये ही थी वही जो दो साल पहले थी।

घर में बेटी बड़ी हो रही थी, स्कूल की फीस, दूध, किराया, सिलेंडर, मोबाइल रिचार्ज, दवा सबका खर्च बढ़ चुका था।
लेकिन तनख्वाह वही पुरानी।

राजेश ने पहली बार 2023 में तनख्वाह बढ़ाने का निवेदन किया था।

उस दिन वह मालिक के केबिन में गया
"सर, दो साल हो गए, तनख्वाह में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। घर का खर्च बहुत बढ़ गया है।"

मालिक ने चश्मा नीचे खिसकाते हुए कहा
"राजेश, कंपनी भी अभी घाटे में चल रही है। तुम्हें पता है ना, कोरोना का असर अब तक गया नहीं। थोड़ा और इंतज़ार करो।"

राजेश चुप हो गया। बाहर आकर वह उसी कॉफी मशीन के पास खड़ा हो गया, जहाँ उसकी जेब में एक 10 रुपये का सिक्का बाकी था एक चाय और एक पैकेट पार्ले-जी के लिए।

धीरे-धीरे ऑफिस में नए चेहरे आने लगे।
ऋचाएक नई अकाउंट असिस्टेंट आई, जिसकी शुरुआती तनख्वाह 25,000 रुपये थी।
अंकित, एक मैनेजमेंट ट्रेनी – ₹30,000 लेकर आया।

राजेश सब कुछ देखता रहा। वह जानता था कि वह इतना पढ़ा-लिखा नहीं, पर उसके अनुभव, मेहनत और वफादारी को आखिर कोई कीमत क्यों नहीं?

एक दिन वह ऋचा से बोला
"आपकी सीट के नीचे जो पुरानी LAN वायरें हैं, उनमें से एक टूट चुकी है, कल IT वालों को बुलवा दूँगा।"
ऋचा मुस्कुरा कर बोली – "सर आप तो सब जानते हैं। आप इतने सालों से हैं ना यहाँ?"

राजेश मुस्कराया, लेकिन उस मुस्कान के पीछे एक आह थी – "हाँ, इतने सालों से हूँशायद इसलिए ही सब कुछ सह रहा हूँ।"

राजेश की पत्नी, नीलिमा, एक घरेलू महिला थी। कभी शिकायत नहीं करती थी, लेकिन हर महीने की 28 तारीख़ को वह धीरे से पूछती
"इस बार कुछ बढ़ा क्या?"

राजेश हँसकर टाल देता – "नहीं, पर अगली बार पक्का।"

वह जानता था कि अगली बार कभी नहीं आती

एक दिन बेटी तन्वी बोली
"पापा, इस बार मेरे बर्थडे पर हम स्कूल में चॉकलेट बाँटेंगे ना? सोहम ने पाँच-पाँच डेयरी मिल्क दी थी सबको।"

राजेश का गला भर आया। उसने हँसते हुए कहा
"बिलकुल, इस बार तेरे लिए बड़ी वाली चॉकलेट लाएँगे।"

वह जानता था कि इसके लिए उसे अगले हफ्ते की राशन लिस्ट से कुछ सामान कम करना पड़ेगा।

एक दिन ऑफिस में एक मीटिंग बुलाई गई कंपनी ने कुछ लोगों की सैलरी में बढ़ोतरी की घोषणा की।
राजेश का नाम उसमें नहीं था।

उसने खुद को शांत रखने की कोशिश की, लेकिन जब मालिक ऑफिस से निकल रहे थे, तो वह पूछ बैठा
"सर, मेरी सैलरी दो साल से नहीं बढ़ी, क्या मेरी मेहनत में कमी है?"

मालिक ने चौंक कर देखा
"अरे राजेश! तुमसे कौन नाराज़ है? पर तुम्हारे जैसे लोग तो कंपनी की रीढ़ हैं, तुम चलते रहो... बाकी सब देख लेंगे।"

राजेश ने सिर झुका लिया। यह जवाब नहीं था बस एक मीठा धोखा था।

उसी रात, राजेश छत पर बैठा था। आसमान में चाँद था, और दिल में गुस्सा, दर्द और एक टूटती उम्मीद।
उसने मन ही मन लिखा

जब सबकी तनख्वाह बढ़ी, मेरी नहीं
शायद मैं इतना अनमोल हूँ कि मेरी कीमत तय नहीं हो सकती।
या शायद मैं इतना साधारण हूँ कि कोई देखता ही नहीं।

उसने कागज़ को मोड़ा और जेब में रख लिया।

अगले दिन राजेश ने तय कर लिया वह अब खुद को और नहीं सताएगा

उसने एक पुराना कंप्यूटर कोर्स सर्च किया, जिसे वह ऑनलाइन रात में सीख सकता था
हर दिन ऑफिस से आकर वह एक घंटा सीखता, नोट्स बनाता।

तीन महीने बाद उसने एक नई कंपनी में डाटा एंट्री ऑपरेटर की जॉब के लिए आवेदन किया।

इंटरव्यू में पूछा गया
"आपका अनुभव?"
राजेश बोला – "10 साल का ऑफिस मैनेजमेंट, फाइलिंग, ईमेल, ग्राहक संवाद, और अब डाटा बेसिक स्किल्स।"

उसे जॉब मिल गई ₹21,000 की सैलरी पर।

राजेश ने इस्तीफा दिया।
मालिक चौंके
"तुम जा रहे हो? अचानक?"

राजेश शांत स्वर में बोला
"सालों से सोच रहा था, आज हिम्मत जुटाई है। धन्यवाद, आपने बहुत कुछ सिखाया, पर अब खुद को भी कुछ देना चाहता हूँ।"

वह चला गया बिना नाराज़गी के, बिना तकरार के। सिर्फ एक आत्म-सम्मान और सीख लेकर।

यह कहानी सिर्फ राजेश की नहीं, हर उस व्यक्ति की है जो वर्षों तक बिना शिकायत काम करता है, सिर्फ इस उम्मीद में कि शायद कोई उसकी मेहनत देखेगा।

पर याद रखिए
अगर आप खुद को नहीं पहचानते, तो कोई और क्यों पहचानेगा?
सम्मान माँगा नहीं जाता, कमाया जाता है पर कभी-कभी उसके लिए जगह भी बदलनी पड़ती है।

 

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बुधवार, 30 जुलाई 2025

"धूप की छाँव"

 

                          (एक विवाहित यात्री और उसकी अविवाहित प्रेमिका की त्रासद कहानी)




प्रेम... एक ऐसा शब्द जो इंसान के दिल की गहराइयों से निकलता है, पर जब वह परिस्थितियों की दीवारों से टकराता है, तो सिर्फ खामोशी और दर्द पीछे रह जाता है।

यह कहानी है आरव और सिया की।

एक विवाहित पुरुष और एक अविवाहित युवती की, जिनका प्यार किसी उपन्यास से कम नहीं था, लेकिन उनका अंत... बेहद त्रासद और यादों में जज़्ब हो जाने वाला।
जयपुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले आरव की शादी को 17 साल हो चुके थे। पत्नी स्मिता एक घरेलू महिला थीं, और उनका 15 साल का बेटा आदित्य पढ़ाई में अच्छा था। सब कुछ "ठीक" चल रहा था लेकिन सिर्फ बाहर से।
उन दोनों की तन्हाई, उनका शौक और बातें धीरे-धीरे एक ऐसे रिश्ते में बदलने लगीं जो समाज की परिभाषाओं में "गलत" थी, लेकिन उनकी आत्माओं के लिए "सही"।
अगर अगले जन्म में हम मिले... तो मैं तुम्हें खोने नहीं दूँगा।
आरव और सिया की कहानी गलत नहीं थी, बस पूरी नहीं हो सकी

आरव शर्मा, 42 वर्ष के एक अनुभवी ट्रैवल ब्लॉगर थे। उन्होंने भारत के हर कोने की यात्रा की थी पहाड़, समुद्र, मरुस्थल, किलों और जंगलों में।

आरव का दिल धीरे-धीरे अकेला हो गया था। यात्राओं में वह खुद को तलाशता था, लेकिन कहीं न कहीं एक खालीपन उसके जीवन में था, जिसे कोई नहीं भर पाया।

मनाली की बर्फ़ से ढकी वादियों में, आरव एक नई ट्रैवल सीरीज़ की शूटिंग कर रहे थे। उसी समय, एक लड़की कैमरे के सामने मुस्कराते हुए खड़ी थी सिया, उम्र 26 वर्ष, फोटोग्राफर और पर्वतीय पर्यटन की शौकीन।

"आप आरव शर्मा हैं ना? मैंने आपके लेह-लद्दाख वाले वीडियो देखे हैं," – सिया ने मुस्कराते हुए कहा।

वो मुस्कान, उस क्षण आरव को कुछ ऐसा महसूस करवा गई जो सालों से खो गया था।

धीरे-धीरे, उनके बीच बातें बढ़ीं कैमरे, ट्रैवल गियर, मौसम, पहाड़, और फिर... ज़िंदगी की बातों तक।

 

आरव और सिया की मुलाकातें बढ़ने लगीं। वे साथ-साथ ट्रेकिंग करते, कैम्प फायर में कहानियाँ बाँटते और फोटोग्राफ़ी के क्षणों में एक-दूसरे को समझने लगे।

सिया को पता था कि आरव शादीशुदा हैं। लेकिन वो भी अकेली थी। उसका अतीत उसे रिश्तों से दूर कर चुका था।

एक रात, कसोल की एक ढाबे में दोनों बैठे थे। बाहर बारिश हो रही थी, और ढाबे की खिड़की से आती रौशनी में सिया की आँखें चमक रही थीं।

"क्या आपको कभी लगता है कि आप अकेले हैं?" सिया ने पूछा।

आरव ने हल्की मुस्कान दी — “हर वो इंसान जो हर दिन हँसता है, कहीं न कहीं सबसे ज्यादा टूटा होता है।

उस रात, उन्होंने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा। कोई शब्द नहीं बोले, कोई वादा नहीं किया... लेकिन उस स्पर्श में एक पूरी दुनिया थी।

जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ी, उनका रिश्ता और गहरा होता गया। लेकिन हर बार जब आरव घर लौटते, उनका दिल दो हिस्सों में बँट जाता एक जो सिया की तरफ खिंचता था, और एक जो स्मिता और बेटे की ज़िम्मेदारियों से बँधा था।

सिया भी जानती थी कि यह रिश्ता स्थायी नहीं हो सकता।

"मैं नहीं चाहती कि किसी और का घर टूटे," – सिया कहती।

लेकिन दिल... कहाँ समाज की सीमाओं को मानता है?

2022 की सर्दियों में, उन्होंने साथ में स्पीति वैली की यात्रा की योजना बनाई। यह उनकी आख़िरी यात्रा थी हालांकि उन्होंने तब तक यह नहीं जाना था।

हिमालय की ऊँचाइयों पर, सफेद बर्फ़ के बीच, दोनों ने अपने जीवन की सबसे खूबसूरत तस्वीरें लीं। सिया ने एक वीडियो बनाया — “Love in the Lost Mountains” — जिसमें उसने अपने दिल के भाव व्यक्त किए।

उसी रात, आरव ने सिया से कहा — “मैं सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ।

सिया की आँखों में आँसू थे।

नहीं आरव... जो सिर्फ़ दिल से सही हो, वो ज़िंदगी से सही नहीं हो सकता।

यात्रा के अंतिम दिन, जब वे कीलॉन्ग से मनाली लौट रहे थे, उनका वाहन एक बर्फीले मोड़ पर फिसल गया। गाड़ी खाई में गिर गई।

जब लोगों ने रेस्क्यू किया सिया की मौत हो चुकी थी

आरव गंभीर घायल थे।

आरव ने महीनों अस्पताल में बिताए। वह टूट चुके थे। न केवल हड्डियाँ, बल्कि आत्मा भी।

घर लौटने पर स्मिता ने कुछ नहीं पूछा। वह सब समझ चुकी थीं शायद आरव की आँखों में छिपी सिया की परछाई पढ़ चुकी थीं।

आरव ने ट्रैवल ब्लॉगिंग छोड़ दी।

सिया की याद में उसने एक किताब लिखी धूप की छाँव, जिसमें उन्होंने सब कुछ लिखा सच्चाई, ग़लती, प्रेम, अपराधबोध औरविछोह।

अब आरव पहाड़ों में नहीं जाते, लेकिन हर साल 15 दिसंबर को वो एक चिट्ठी लिखते हैं सिया के नाम।

सिया, तुम धूप की तरह मेरी ज़िंदगी में आईं, और छाँव की तरह छीन ली गईं।

प्रेम हमेशा नैतिकता और समाज की सीमाओं के बीच फँसा रहता है।

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❤️ Love Now Days – एक आधुनिक प्रेमकहानी

   ❤️ Love Now Days – एक आधुनिक प्रेमकहानी दिल्ली का ठंडा जनवरी महीना था। मेट्रो स्टेशन पर लोगों की भीड़ लगी हुई थी। हर किसी के हाथ में मोबा...