"बीस
साल बाद... राजेश और अनु की अधूरी कहानी"
राजेश और अनु की पहली
मुलाक़ात कॉलेज के पहले दिन हुई थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी का वह खूबसूरत परिसर,
हरे-भरे पेड़, क्लासेस की भीड़, और उस भीड़ में अनु... एक सादा सी लड़की,
काली चोटी और माथे पर बिंदी। राजेश को
पहली ही नज़र में कुछ खास महसूस हुआ।
अनु,
पढ़ाई में तेज़ और स्वभाव से शर्मीली,
जबकि राजेश थोड़ा मस्तीखोर था, लेकिन दिल का साफ़। दोनों एक ही सेक्शन
में थे और ग्रुप प्रोजेक्ट में साथ आए।
धीरे-धीरे
दोस्ती गहराती गई। कैंटीन में एक साथ बैठना, नोट्स शेयर करना, लाइब्रेरी में चुपचाप घंटों एक-दूसरे के
पास बैठना... राजेश को लगने लगा था कि वो अनु से प्यार करने लगा है।
लेकिन
अनु ने कभी कुछ नहीं कहा। उसके मन में भी राजेश के लिए कुछ था, लेकिन संस्कारी परिवार की बेटी होने के
नाते उसने अपने जज़्बात छुपा लिए।
कॉलेज का आख़िरी साल
था। फेयरवेल के दिन, राजेश
ने सोच लिया था कि आज वो अनु से अपने दिल की बात कहेगा। लेकिन जब उसने अनु को
ढूँढा, तो वो किसी और लड़के
के साथ खड़ी थी – सौरभ
नाम था उसका। अनु मुस्कुरा रही थी, लेकिन
राजेश की दुनिया उस पल बिखर गई।
अनु
दरअसल सिर्फ दोस्ताना व्यवहार कर रही थी, लेकिन राजेश ने वो इशारे गलत समझ लिए। उसने बिना कुछ कहे कॉलेज
छोड़ दिया और अनु से संपर्क तोड़ लिया।
अनु
को कुछ समझ नहीं आया। राजेश अचानक कैसे दूर हो गया? उसने कई बार कॉल करने की कोशिश की,
लेकिन राजेश ने जवाब नहीं दिया।
राजेश की ज़िन्दगी ने
एक नया मोड़ लिया। वह एक आईटी कंपनी में चला गया, फिर अमेरिका में नौकरी लग गई। परिवार ने
उसकी शादी करा दी। लेकिन दिल में कहीं न कहीं अनु की याद हमेशा बनी रही।
उधर
अनु ने भी एमए किया, फिर
एक कॉलेज में प्रोफेसर बन गई। घर वालों ने जबरदस्ती उसकी भी शादी कर दी। लेकिन वो
रिश्ता ज़्यादा दिन नहीं चला, पति
ने उसे समझा नहीं और तलाक हो गया।
अनु
अकेली हो गई, लेकिन
उसने हार नहीं मानी। बच्चों को पढ़ाती रही, समाज सेवा में लग गई। फिर भी राजेश की
यादें कभी पूरी तरह नहीं मिट सकीं।
एक दिन फेसबुक पर
राजेश ने अनु की प्रोफाइल देखी। वही मुस्कान, वही सादगी... राजेश ने वर्षों बाद पहली
बार दिल से कुछ महसूस किया। उसने हिम्मत कर के फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी।
अनु
ने रिक्वेस्ट एक्सेप्ट की, और
पहले मैसेज में सिर्फ इतना लिखा –
“इतने साल क्यों लगाए?”
राजेश
की आंखें नम हो गईं। दोनों ने बातें शुरू कीं – पुराने कॉलेज के दिनों की, उन चाय की दुकानों की, लाइब्रेरी की खामोशियों की।
फिर
एक दिन तय हुआ – “चलो मिलते हैं।”
नई दिल्ली के एक शांत
कैफे में, बीस साल बाद राजेश और
अनु आमने-सामने बैठे थे। उम्र का असर दोनों के चेहरे पर था, लेकिन आंखों में वही चमक थी।
राजेश
ने पूछा,
“क्या तुम भी मुझे उसी तरह चाहती थीं
जैसे मैं तुम्हें?”
अनु
ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया –
“हाँ, लेकिन मैंने कभी कहा नहीं। तुमने क्यों
चुप्पी साध ली थी?”
राजेश
ने गहरी सांस ली –
“गलतफहमी थी, सोचा तुम किसी और को पसंद करती हो। अगर
तब पूछ लेता...”
“तो शायद आज ज़िन्दगी कुछ और होती,”
अनु ने कहा।
लेकिन
उनके चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था, बस
एक शांति थी। एक अधूरी कहानी के दो किरदारों ने एक-दूसरे को माफ़ कर दिया था।
राजेश अब तलाकशुदा
था। अनु भी अकेली थी। दोनों की ज़िन्दगियाँ अलग-अलग रास्तों से होकर फिर से एक
मोड़ पर आकर रुकी थीं।
राजेश
ने अनु से पूछा –
“क्या हम दोबारा दोस्त बन सकते हैं?”
अनु
ने उसकी आंखों में देखा –
“शायद दोस्त से कुछ ज़्यादा भी।”
राजेश और अनु अब हर
रविवार मिलते हैं। वे पुराने किस्से दोहराते हैं, साथ चलते हैं, और जीवन के उस खालीपन को भरते हैं जिसे
बीस साल पहले नियति ने उनके बीच खड़ा कर दिया था।
प्यार
के रिश्ते हमेशा परफेक्ट नहीं होते, लेकिन कुछ रिश्ते... देर से सही, मुकम्मल ज़रूर होते हैं।
राजेश
और अनु के बीच अब एक स्थिर, गहरी
समझ बन चुकी थी।
हर रविवार की मुलाकात, कभी किताबों की दुकान में, कभी पुराने कॉलेज की कैंटीन के पास की
चाय की दुकान पर… अब
एक आदत बन गई थी।
राजेश
ने एक दिन कहा,
“अनु, ज़िन्दगी हमें दोबारा साथ लाई है…
क्या अब भी हम
इंतज़ार करें?”
अनु
ने मुस्कराते हुए पूछा,
“क्या कहना चाहते हो?”
“शादी?”
राजेश ने धीरे से कहा।
अनु
चुप रही। उसका चेहरा गंभीर हो गया।
“राजेश, मैं भी चाहती हूँ… पर डरती हूँ।”
“किससे?”
“समाज से नहीं, खुद से। अगर फिर से कुछ टूट गया तो?
अब संभालने की ताक़त
नहीं रही।”
राजेश
ने उसका हाथ थामा और कहा,
“अब हम बच्चे नहीं हैं अनु। अब हम हर
टूटे टुकड़े को जोड़ना जानते हैं।”
राजेश का बेटा रचित और बेटी प्रिया,
अमेरिका में पढ़ते थे। अनु के माता-पिता
अब इस दुनिया में नहीं थे, लेकिन
उसकी एक छोटी बहन थी, जो
जयपुर में रहती थी।
राजेश
ने बच्चों को धीरे-धीरे अपनी और अनु की बात बताई।
रचित ने एक लंबी चुप्पी के बाद कहा,
“पापा, क्या आप खुश हैं?”
राजेश
ने सिर्फ “हाँ” कहा।
“तो हमें और क्या चाहिए?”
प्रिया ने वीडियो कॉल पर मुस्कराते हुए
कहा।
उधर
अनु की बहन ने भी कहा –
“दीदी, अब तो आपने हमेशा दूसरों के लिए जिया।
अब खुद के लिए जी लो।”
राजेश और अनु,
दोनों 50 की उम्र पार कर चुके थे।
दूसरी शादी को लेकर समाज अब भी उलटफेर
से भरपूर था, लेकिन
कुछ लोगों ने साथ भी दिया।
राजेश
का पुराना दोस्त विनय बोला –
“यार, प्यार की कोई उम्र नहीं होती।”
तो
वहीं अनु की सहेली मधु ने कहा –
“तुम्हारी आँखों में वो चमक फिर से दिख
रही है जो कॉलेज में थी।”
कहने
वालों ने कहा भी –
“अब इस उम्र में क्या शादी?”
लेकिन दोनों ने किसी की नहीं सुनी।
अनु ने शर्त रखी –
“बड़ी-बड़ी रोशनी नहीं चाहिए, दिखावा नहीं चाहिए। सिर्फ वो लोग हों
जिनसे हम जुड़े हैं।”
राजेश
ने सहमति में सिर हिलाया।
दिल्ली
के एक छोटे से मंदिर में, 22 लोगों
की उपस्थिति में, सिंपल-सी
शादी हुई।
न संगीत, न DJ, बस मंत्र, आशीर्वाद और कुछ भीगी हुई पलकें।
राजेश
ने मांग में सिंदूर भरते हुए कहा –
“अब और खोने का डर नहीं, क्योंकि अब हम साथ हैं।”
अनु
की आंखों से आंसू बहने लगे, लेकिन
इस बार वो आंसू दर्द के नहीं, संतोष
के थे।
दोनों ने नोएडा में
एक फ्लैट लिया – छोटा
सा, लेकिन बहुत सलीके से
सजा हुआ।
दीवारों
पर पुरानी कॉलेज की तस्वीरें थीं, किताबों
की शेल्फें थीं, और
किचन में अनु के हाथ की बनी चाय की खुशबू।
राजेश
अब फुलटाइम काम नहीं करता था। वो कभी-कभी ऑनलाइन क्लासेस लेता, तो अनु समाज सेवा में लगी रहती।
शामें
अक्सर बालकनी में बैठकर बीती ज़िन्दगी को याद करते हुए बीततीं।
एक दिन अनु ने पूछा –
“राजेश, तुम्हें कभी अफसोस होता है कि हमने
ज़्यादा वक्त एक साथ नहीं बिताया?”
राजेश
ने मुस्कराकर जवाब दिया –
“अफसोस नहीं, शुक्रगुज़ार हूँ कि ज़िन्दगी ने दोबारा
मौका दिया।”
अनु
बोली –
“काश हम कॉलेज में ही हिम्मत कर लेते…”
“शायद तब हम इतने समझदार नहीं थे। आज हम
अधूरी कहानी को पूरा कर पा रहे हैं – ये ही बहुत है।”
समय बीतता रहा। दोनों
ने मिलकर एक किताब लिखी –
“बीस साल बाद”
जिसमें उन्होंने अपने जीवन की सच्ची
प्रेम कहानी बताई।
वो
किताब सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। लाखों लोगों ने पढ़ा और कहा –
“ये कहानी हमें उम्मीद देती है।”
राजेश
और अनु अब भी साथ हैं – किताबों,
यादों और एक-दूसरे के प्रेम में।
उनकी
कहानी साबित करती है कि —
“प्रेम अगर सच्चा हो, तो समय चाहे जितना भी बीत जाए, वो वापस लौट आता है… अधूरी कहानी कभी खत्म नहीं होती,
वो कहीं न कहीं पूरी
हो ही जाती है।”
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