रविवार, 23 अगस्त 2020

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 3

 

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 


यात्रा का पाँचवाँ  दिन 01   अक्टूबर  2009 दिन गुरुवार 

आज यात्रा का अंतिम दिन था, जिसमे शिव खोड़ी की यात्रा के बाद वापस जम्मू से ट्रैन पकड़ना था।  सुबह जल्दी उठकर फ्रेश होकर गाड़ी वाले को फ़ोन किया तो ओ बोला की मै रास्ते में हू और पांच मिनट में पहुंच जाऊँगा।  हम लोगों ने सामान पहले ही पैक कर लिया था और अब कमरे से निकल कर रिसेप्शन पर आ गए, होटल वाले का बिल भुगतान किया उसके बाद सड़क पर आ गए, कुछ ही देर में गाड़ी भी आ गई।  सभी लोग गाड़ी में सामान रखने  के बाद बैठ गए, उसके बाद गाड़ी कटरा बस अड्डा होते हुए शिव खोड़ी जाने वाले मार्ग  पर पहुंच गई।  कुछ देर बाद पहाड़ी रास्तो पर गाड़ी चलने लगी और सभी लोग पहाड़ पर चलते हुए रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर - सुन्दर पहाड़ों को देख कर रोमांचित होने लगे।  

कटरा से शिव खोड़ी की दूरी लगभग 75 किलोमीटर है  जो जम्मू के रियासी जिले में पड़ता है और रास्ता भी पहाड़ी और रोमांच से भरपूर है, वैसे तो इस यात्रा में लगभग दो घंटे लगते है, किन्तु हम लोग रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर दृश्यों का आनंद लेते और मंदिरो के दर्शन करते हुए चल रहे थे इसलिए समय ज्यादा  लग रहा था।  सबसे पहले बाबा अगहर जित्तो की  मूर्ति के पास रुके, उसके बाद बाबा धनसार में रुके, उसके बाद   हम लोग एक प्रमुख मंदिर नौ देवी में रुके, जिसके बारे में मान्यता है की यहाँ नौ देविया एक  साथ विराजमान है, और  एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है, मंदिर के नीचे ही एक पतली सी जलधारा बहती है जिसका पानी बहुत स्वच्छ और साफ है, गुफा काफी सकरी है जिसमें अंदर एक साथ दो तीन लोग ही जा पाते है, हम लोगों ने भी प्रसाद लेकर जलधारा में पैर धोया और उसके बाद दर्शन किये। 
   


यह चित्र मंदिर के द्वार का है जो गूगल से लिया गया है 


इस तरह हम लोग 10 बजे रनसू पहुंच गए, यहाँ से शिव खोड़ी की पैदल यात्रा साढ़े तीन किलोमीटर की है, सामान  हम लोगों ने गाड़ी में ही छोड़ दिया, एक छोटे से बैग में मतलब भर का सामान लेकर बाबा के दर्शन के लिए चल दिए। यहाँ से जब शिवखोड़ी के लिए आगे बढ़ते हैं, तो रास्ते में एक नदी पड़ती है। नदी का जल दूध जैसा सफेद होने की वजह से इसे दूध गंगा भी कहते हैं। करीब दो घंटे की यात्रा के बाद हम लोग बाबा के भवन तक पहुंचे, शिवखोड़ी स्थान पर पहुँचते ही सामने एक गुफ़ा दिखाई देती है। गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए लगभग 60 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। गुफ़ा में प्रवेश करते ही लोगों के मुख से  बरबस ही जय बाबा  बर्फानी और ॐ नमः शिवाय का उद्घोष  होने लगता है।   वहां पर हाथ पैर धोने के बाद सामान एक दुकान पर रख दिए और लाइन में लग गए।  थोड़ी ही देर में उस जगह पहुंच गए जहाँ से बाबा की गुफा  प्रारम्भ होती है।  गुफ़ा का मुहाना काफ़ी बड़ा है। यह 20 फीट चौड़ा और 25  फीट ऊँचा है। गुफ़ा के मुहाने पर शेषनाग की आकृति के दर्शन होते है और यहाँ पर भी अमरनाथ की तरह कबूतरों का जोड़ा दिख जाता है, हम  सभी लोग एक जगह पर बैठ गए, इस समय इतनी शांति मिली की जिसका वर्णन करना बहुत मुश्किल है, जीवन में पहली बार इस तरह का एहसास हुआ,  सारी थकान जैसे पल भर में दूर हो गई और मन में एक नई ऊर्जा का संचार हो गया।  

कुछ देर रुकने के बाद हम लोगों ने भी गुफा  में प्रवेश किया, ये एक 800 फिट  लम्बी, 3  फिट  चौड़ी और लगभग 6  से 8  फिट  ऊँची गुफा है, जिसमे जगह जगह से पानी की बूंदे गिरती रहती है, कमजोर दिल वाले अंदर जाने से घबराते  है, उनके लिए बाहर  से एक रास्ता बनाया गया है, जिसमे बिना गुफा में प्रवेश किये ही वे अन्दर मुख्य हाल तक पहुंच जाते है, गुफा से प्रवेश करने वालों का निकास द्वार भी वही रास्ता है।  हम लोग भोले शंकर का जै कारा लगाते  हुए गुफा में प्रवेश कर गए शुरू में डर लग रहा था लेकिन ॐ नमः शिवाय का जप करते हुए  चलते रहे और सारा डर समाप्त हो गया  और अंदर हाल में पहुंचने के बाद तो सब भूल गया, गुफा की भव्यता अकथनीय और अकल्पनीय है।  वहाँ पुजारी जी बता रहे थे , गुफा में  भगवान शंकर का 4 फीट ऊँचा शिवलिंग है। इसके ठीक ऊपर गाय के चार थन बने हुए हैं, जिन्हें कामधेनु के थन कहा जाता है। इनमें से निरंतर जल गिरता रहता है।


शिवलिंग के बाईं ओर माता पार्वती की आकृति है। यह आकृति ध्यान की मुद्रा में है। माता पार्वती की मूर्ति के साथ ही में गौरी कुण्ड है, जो हमेशा पवित्र जल से भरा रहता है। शिवलिंग के बाईं ओर ही भगवान कार्तिकेय की आकृति भी साफ़ दिखाई देती है। कार्तिकेय की प्रतिमा के ऊपर भगवान गणेश की पंचमुखी आकृति है। शिवलिंग के पास ही में राम दरबार है। गुफ़ा के अन्दर ही हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृति बनी हुई है। गुफ़ा के ऊपर की ओर छहमुखी शेषनाग, त्रिशूल आदि की आकृति साफ़ दिखाई देती है। साथ-ही-साथ सुदर्शन चक्र की गोल आकृति भी स्‍पष्‍ट दिखाई देती है। गुफ़ा के दूसरे हिस्से में महालक्ष्मी, महाकाली, सरस्वती के पिण्डी रूप में दर्शन होते हैं। हम लोग लगभग आधा घंटा गुफा में रहे उसके बाद बाहर निकल आये। 

बाहर आकर दुकान से सामान लिया और  दुकान पर बैठ कर चाय पिया गया और नास्ता  किया उसके बाद वापस रनसू की   की ओर वापस चल दिए। बीच में दूध गंगा नदी के पास रुके और बच्चो ने पानी में खूब आनंद लिया, हम लोग भी पानी में घुसकर एक बड़े पत्थर पर बैठ कर पानी में तैरती मछलियों को काफी देर तक देखते रहे, उसके बाद फिर रंसू की ओर चल दिए और लगभग 2 बजे रन सू पहुंच गए। अब हम लोगों को जम्मू जाना था जो यहां से लगभग 100 किलोमीटर था, गाड़ी के ड्राईवर ने कहा कि रास्ते में एक दो मंदिर और पड़ेंगे वहां भी दर्शन करते हुए आपको शाम तक जम्मू स्टेशन पहुंचा देंगे। इस  प्रकार शाम को पांच बजे हम लोग जम्मू पहुंच गए, सभी लोग थके हुए थे तो जिस प्लेट फार्म पर ट्रेन आने वाली थी उसी पर एक बेंच पर डेरा जमाया गया और कुछ लोग नीचे चद्दर बिछा कर आराम किए, ट्रेन अपने निर्धारित समय से 15 मिनट देरी से जम्मू से चल दी और अगले दिन शाम तक हम लोग अपने घर पहुंच गए,  इस तरह हम लोगों की मा वैष्णो देवी की यात्रा समाप्त हुई। ये यात्रा मैंने 2009 में की थी लेकिन लिखने का मौका अब मिला क्योंकि उस समय मै  ब्लॉग नहीं लिखता था, ब्लॉग लिखना मैंने 2019 में शुरू किया और मार्च से लेकर अब तक कोई यात्रा नहीं हो पाई थी सोचा कि जो यात्राएं पहले की गई है क्यों न उनको लिखा जाए, फोटो कुछ उस समय मोबाइल से लिए गए थे और कुछ गूगल से, लॉक डाउन के बाद होने वाली यात्रा भी जल्दी ही आएगी।





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मंगलवार, 11 अगस्त 2020

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 2


यात्रा का तीसरा  दिन 29  सितम्बर 2009 दिन मंगलवार 

हम लोग कमरे से करीब सात बजे माँ के दरबार में जाने के लिए निकले, माँ का जयकारा लगाते हुए और भजन गाते हुए पूरे उत्साह में हम लोगों की टोली चल रही थी जिसमे बच्चे सबसे आगे चल रहे थे, कुछ दूर चलने के बाद थकान महसूस होने लगी तो एक दुकान से सभी लोगों ने डंडा लिया जिसके सहारे चढ़ाई करने में आसानी होती है और डंडे के सहारे चलते हुए बाणगंगा नदी पर पहुंच गए, चेक पोस्ट पर सिक्योरिटी चेक होने के बाद आगे बढे,  बाणगंगा नदी के किनारे बैठकर नदी के जल को निहारते हुए असीम सुख का आनंद महसूस हुआ कुछ बच्चों ने वहाँ नहाया भी और जी भरकर अठखेलिया की उसके बाद फिर आगे की यात्रा शुरू हो गयी, चूकि हम लोगों की टोली में महिलाये और बच्चे ज्यादा थे तो ओ जगह - जगह रुकते हुए चल रहे थे, बीच - बीच में थकान होने पर कुछ देर कही अच्छी जगह देखकर बैठ जाते और आराम करने लगते इसलिए चढ़ाई में समय ज्यादा  लग रहा था ।

हम लोग 4 बजे अर्धकुमारी पहुंचे और सबसे पहले दर्शन की  पर्ची ली गई, इस समय सभी लोग बहुत थक चुके थे तो फ्रेश होकर हाल के बाहर एक जगह चद्दर बिछा कर आराम करने लगे, वही पर सभी लोगों ने होटल में जाकर खाना खाया और आराम करते करते सो गए, शाम को 6 बजे नींद खुली तब तक अर्द्धकुमारी में दर्शन का समय भी हो गया था, माँ का दर्शन किया गया और थोड़ी देर बाद लगभग साढ़े सात बजे भवन की ओर प्रस्थान किया गया, अर्द्धकुमारी से भवन तक की चढ़ाई हम लोगों ने साढ़े तीन घंटे में पूरी  कर ली और लगभग ग्यारह बजे माता के भवन तक पहुँच गए, सभी लोग काफी थके  हुए थे तो रात्रि में विश्राम कर सुबह 4 बजे दर्शन का निर्णय लिया गया, पास में ही स्थित दुकान से छोला पूड़ी, कढ़ी चावल और राजमा चावल खाया गया और स्टोर से कम्बल लेकर एक जगह देखकर बिछाकर सो गए, सुबह 4 बजे उठे और नहा धोकर तैयार  होने के बाद सामान रखने के लिए लॉकर की तलाश हुई, लॉकर में सामान रखने के बाद प्रसाद लिया गया उसके बाद  लिए लाइन में लग गए, अब तक लगभग साढ़े 6 बज चुके थे। 

सुबह के समय दर्शन करने के लिए भीड़ कुछ ज्यादा  थी, सभी लोग पूर्ण श्रद्धा भाव से माता का जैकारा लगाते हुए आगे बढ़ते रहे और करीब आठ बजे गुफा के बाहर लगी माँ की विशाल प्रतिमा के दर्शन हुए, लाइन  धीरे चलने लगी किन्तु अब कोई जल्दी नहीं थी, हर कोई माँ का गुणगान करता हुआ मन में माँ की प्रतिमा को वसा लेना चाहता था, कुछ देर बाद हम लोग भी गुफा में प्रवेश किये अब तो भक्तो का उत्साह दुगना हो चुका  था और मुझे तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे शरीर की  सारी थकान दूर हो चुकी है, एक ऐसी अलौकिक शीतलता का आभास हुआ जिसका  शब्दो में बर्णन  कर पाना संभव नहीं है, कुछ देर बाद माँ की पिंडी के पास पहुंच गए पुजारी जी ने बताया की ये  माँ महाकाली (दाएं), माँ महासरस्वती  (मध्य) और मां महालक्ष्मी (बाएं) विराजमान  है कुछ सेकण्ड ही दर्शन हुआ उसके बाद आगे बढ़ा दिए गए, माँ के पिंडी की अलौकिक छटा को आँखों में बसाते हुए आगे बढ़ गए, उसके बाद मंदिर परिसर से निकलते समय प्रसाद और नारियल लिया गया और नीचे स्थित दाहिने तरफ  अन्य मंदिरो का दर्शन किया गया, जिसमे शिव लिंग जिस पर प्राकृतिक रूप से पहाड़ी से जल गिरता रहता था अपने आप में अद्भुत था।
 

अब तक लगभग नौ बज चुके थे,  वहां से दर्शन करने के पश्चात एक दुकान पर बैठ कर जलपान किया गया और उसके बाद लाकर से सामान निकाल कर ऊपर आ गए जहाँ  से भैरो घाटी की चढ़ाई शुरु होती है,  ऐसी मान्यता है की जब तक भैरो बाबा के दर्शन नहीं किये जाते है तब तक माँ वैष्णो देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है, भवन से भैरो घाटी की दूरी वैसे तो साढ़े तीन किलोमीटर की है परन्तु ये खड़ी चढ़ाई है इसलिए इसमें थकान ज्यादा होती है, हम लोगों ने दस बजे चढ़ाई शुरु की और करीब एक बजे भैरो घाटी पहुच गए, थोड़ी देर आराम करने के बाद हाथ मुह धोकर प्रसाद लेकर बाबा भैरो नाथ का दर्शन किया गया और दर्शन के बाद दोपहर का भोजन भी वही किया गया और कुछ देर तक मोबाइल से फोटोग्राफी की गयी 

यात्रा का चौथा   दिन 30  सितम्बर 2009 दिन बुधवार 

भैरो घाटी से करीब तीन बजे वापसी की यात्रा प्रारंभ हुई और लगभग सात बजे हम लोग अर्ध्कुमारी पहुच गए, चूकी हम लोगों के साथ बच्चे और महिलाये थी इसलिए हम लोग बहुत आराम से चल रहे थे, अब तक सभी लोग बहुत थक चुके  थे और ये निर्णय लिया गया की रात यही रुका जाये और सुबह यहाँ से चला जायेगा, किराये पर कम्बल लेकर एक साफ सुथरी जगह देखकर डेरा जमाया गया, जिसको जो खाना था खाया और फिर सो गए, अगले दिन सुबह चार बजे उठने के बाद फ्रेश होकर कम्बल आदि जमा करने के बाद 6 बजे अर्ध्कुमारी से नीचे की यात्रा शुरु हुई और रुकते चलते 11 बजे तक हम लोग कटरा पहुच गए, और नहा धोकर खाना खाकर सो गए, शाम को 4 बजे उठने  के बाद कटरा नगर घूमने  गए, कटरा की गलियों में घूमते हुए कुछ सामानों की खरीददारी की गयी और कल शिवखोड़ी जाने के लिए एक गाड़ी भी 2500 रूपये में तय कर ली गयी जो कल सुबह 6 बजे तक आ जायेगी और शिवखोड़ी दर्शन कराने के बाद जम्मू स्टेशन पर छोड़ देगी, जहाँ  से रात में हम लोगों की वापसी की ट्रेन है  

कटरा में ऐसे कई लोग मिले जो अपने यहाँ से जाकर वहां  की प्राकृतिक सुन्दरता से प्रभावित होकर वही बस गए है और अपना रोजी रोजगार कर रहे है, ऐसे ही एक कानपुर के दूबे  जी मिले जो वहां ट्रेवल एजेंसी चलाते है, हम लोगों ने उन्ही की गाड़ी हायर की थी, काफी मिलन सार  और सहयोगी व्यक्ति थे, कटरा बाज़ार घूमते और खरीददारी करते करीब 9 बज गए, उसके बाद हम लोग एक होटल पर खाना खाकर अपने कमरे पर आ गए और कल की तैयारी करने के बाद सो गए 






 





सोमवार, 3 अगस्त 2020

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग – 1

माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग – 1

यात्रा का दिनांक 27 सितम्बर 2009 दिन रविवार

ये यात्रा मैंने बहुत पहले की थी और जब से करोना के कारण लाक डाउन हुआ तब से कोई भी यात्रा नहीं हो पाई तो सोचा की जो यात्राये पहले की जा चुकी है उन्ही को क्यों न स्मृतियों के आधार पर करोना काल में लिखकर यात्रा का आनंद लिया जाय I
बात उन दिनो की है जब मैं गोरखपुर में रहता था, माँ वैष्णो देवी के बारे में बहुत लोगों से सुना था लेकिन अभी तक दर्शन का सौभाग्य नहीं मिला था, बहुत दिनों से विचार बन रहा था की माता के दर्शन करने के लिए जाये, कई लोगों से वहा जाने एवं दर्शन करने के बारे में जानकारिया इकट्ठा  की और अंत में फाइनल हो गया की अब माँ के दर्शन के लिए जाना है, नौ जून 2009 को सबका रिजेर्वशन हो गया और एक भारी  भरकम समूह तैयार हो गया जिसमे मेरे माता पिता, मै मेरी पत्नी और तीनों बच्चे मेरे मामा मामी मेरी मौसी और मेरी माँ की बुवा जी कुल  मिलाकर 11 लोग यात्रा के लिए तैयार हो गए और 27 सितम्बर का गोरखपुर से जम्मू का रेजेर्वशन  हो गया I
अभी यात्रा में बहुत समय था और इस बीच बहुत सारे परिवर्तन हुए पहला ये की मै गोरखपुर से लखनऊ आ गया और एक नई कंपनी में नौकरी ज्वाइन कर ली, बहुत दिनों से प्रयास रत था की लखनऊ में नौकरी मिल जाये तो बच्चो की पढाई लिखाई के लिए अच्छा रहेगा और माँ वैष्णो देवी के आशीर्वाद से जुलाई में ही मै लखनऊ आ गया, नौकरी अभी नई थी इसलिए मै अकेला ही लखनऊ में रहकर नौकरी करने लगा और महीने में एक दो बार छुट्टी मिलने पर गोरखपुर चला जाता था इस प्रकार समय का पहिया घूमता रहा और कुछ दिनों तक माँ के दरबार में जाने का ध्यान ही नहीं रहा, सितम्बर के पहले हफ्ते में मेरे मामा जी ने याद दिलाया तो ध्यान आया की अरे हम लोगों को तो 27 तारीख को ट्रेन पकडनी है I

विंध्याचल की यात्रा

इस यात्रा को शुरु से पढने के लिए यहाँ क्लिक करें  विंध्याचल की यात्रा आज यात्रा का तीसरा दिन था, दो दिन प्रयागराज में स्नान एवं भर्मण के बा...