शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

अधूरी धूप

कभी-कभी ज़िंदगी के अंतिम मोड़ पर भी दिल धड़कना नहीं भूलता। उम्र चाहे जो भी हो, प्यार, अपनापन और आत्मीयता की चाह कभी नहीं मिटती। यह कहानी है एक ऐसे ही इंसान की जो उम्र के ढलते पड़ाव पर खड़ा था, लेकिन उसके जीवन में एक नई रोशनी आईथोड़ी सी अधूरीथोड़ी सी धूप जैसी।

68 वर्षीय विष्णु नारायण शर्मा, जयपुर के एक पुराने मोहल्ले में अकेले रहते थे। पत्नी सावित्री पिछले पाँच सालों से बीमार थीं अल्ज़ाइमर और चलने-फिरने की क्षमता खो चुकी थीं। बेटा राहुल, अमेरिका में नौकरी करता था। दो पोतियाँ थीं, जिनकी तस्वीरें हर साल दीवाली पर कार्ड के साथ आती थीं।

विष्णु जी एक सेवानिवृत्त स्कूल प्रिंसिपल थे। जीवन भर अनुशासन, मर्यादा और कर्तव्य का पाठ पढ़ाया था। मगर अब, सुबह की चाय, अख़बार और शाम को मंदिर तक ही दिन सिमट गया था। घर की दीवारें जैसे बोलती नहीं थीं, सिर्फ गूंजती थीं।

एक रविवार को मोहल्ले के सामुदायिक भवन में एक आर्ट एग्ज़िबिशन लगी थी। विष्णु जी ऐसे आयोजनों में अक्सर नहीं जाते थे, लेकिन उस दिन जाने क्यों मन किया।

एक कोने में एक पेंटिंग ने उन्हें रोक लिया एक वृद्ध वृक्ष के नीचे बैठी एक लड़की, जिसकी आंखों में नमी थी, लेकिन चेहरे पर शांति।
यह आपने बनाई है?” – उन्होंने पास खड़ी लड़की से पूछा।
जी।” – मुस्कराई प्रियंका मेहता, उम्र लगभग 34 वर्ष।

वो कलाकार थी, अकेली रहती थी और अपनी कला के माध्यम से जीवन के दुख-सुख व्यक्त करती थी। उनका संवाद वहीं से शुरू हुआ।

अब प्रियंका हफ्ते में दो-तीन बार मिलने आने लगी। कभी चित्र लेकर, कभी केवल बातचीत के लिए।
विष्णु जी उसे पुराने लेखक, साहित्य, कला के महान विचारक बताते। कभी कभार, उनके स्वर में ठहराव की जगह उत्साह झलकने लगता।

एक दिन प्रियंका ने पूछा
आपको लगता है, मैं किसी की कमी पूरी कर रही हूं?”
विष्णु जी मुस्कराए
नहींतुम मुझे वह दे रही हो, जो मेरे पास कभी था ही नहीं जीवन का रंग।

 

सावित्री जी, जो अब अधिकतर चुप ही रहतीं, एक शाम प्रियंका को देखकर बोलीं,
तुम कौन हो? मेरी बहू?”
प्रियंका चौंकी। विष्णु जी ने धीरे से उन्हें शांत किया।
रात को प्रियंका ने पहली बार आंखों में आँसू लेकर पूछा
आपकी पत्नी…?”
मैंने कभी उनसे प्रेम नहीं कियाबस शादी हुई, जीवन बीता। पर उन्होंने मुझे निभायाअब मेरी जिम्मेदारी है कि मैं उन्हें अंत तक संभालूं।

प्रियंका की आंखों में एक तीखी सच्चाई तैरने लगी यह प्रेम, यह रिश्ता, यह साथसब एकतरफा भी हो सकता है।


कॉलोनी में बातें फैलने लगीं
उस बूढ़े के घर रोज़ आती है।
बुढ़ापे में आशिक़ बना है।
घर में बीवी है और बाहर…!”

एक दिन कॉलोनी के एक बुज़ुर्ग ने ताना मारा
गुरुजी, अब यह उम्र प्रेम करने की है?”
विष्णु जी मुस्कराए
प्रेम की कोई उम्र नहीं होतीपर शायद समझ की होती है।

प्रियंका अब असहज रहने लगी थी। वो जानती थी कि वह समाज के उस दायरे को पार कर चुकी है, जिसे लोग मर्यादाकहते हैं। लेकिन वह यह भी जानती थी कि विष्णु जी के साथ बिताए हर पल ने उसे संवार दिया था।

एक दिन उसने कहा
क्या आपको कभी लगता है कि मैं आपके जीवन में गलत समय पर आई?”
विष्णु जी बोले
तुम गलत समय पर नहीं आईशायद मैं ही तुम्हारे जीवन में देर से आया।

एक सुबह विष्णु जी उठे तो प्रियंका का एक लिफाफा दरवाज़े पर था

प्रिय विष्णु जी,
आपसे मिला तो जाना कि जीवन केवल सांसों का नाम नहीं, अनुभवों और भावनाओं का समंदर है।
मैं आपके साथ हर सुबह जीना चाहती थीलेकिन मैं नहीं चाहती कि आपकी दुनिया और अधिक टूटे।
शायद हमारा प्रेम समाज के लिए प्रेमनहीं, ‘पापहै।
मैं जा रही हूंलेकिन मेरी बनाई एक पेंटिंग छोड़ गई हूं जिसमें आप और मैं हैं, एक अधूरी धूप की तरह।

प्रियंका

प्रियंका चली गई थी। लेकिन हर सुबह, विष्णु जी चाय के साथ उस पेंटिंग को देखते जिसमें वही वृक्ष था और नीचे दो परछाइयाँएक बूढ़ीएक जवानऔर बीच में धूप की एक लकीर।

सावित्री अब बहुत कम बोलती थीं। कुछ ही महीनों में उनका देहांत हो गया।

5 साल बीत गए। एक आर्ट एग्ज़िबिशन में एक पेंटिंग लगी थी
"
अधूरी धूप"कलाकार: प्रियंका मेहता।
वह चित्र था एक वृद्ध व्यक्ति का, जिसके पीछे एक परछाई खड़ी थी, लेकिन चेहरे पर शांति थी।

भीड़ में एक 73 वर्षीय व्यक्ति खड़ा मुस्कुरा रहा था।

प्रेम केवल जवानी का अधिकार नहींयह उस उम्र में भी सांस ले सकता है जब लोग जीवन से थक चुके होते हैं।
यह कहानी समाज के बने-बनाए ढाँचों को चुनौती देती है कि क्या प्रेम को उम्र, स्थिति या समाज के चश्मे से नापा जाना चाहिए?

कभी-कभी, अधूरी धूप भी जीवन को रोशन कर देती है

 

कोई टिप्पणी नहीं:

अधूरी धूप

कभी-कभी ज़िंदगी के अंतिम मोड़ पर भी दिल धड़कना नहीं भूलता। उम्र चाहे जो भी हो , प्यार , अपनापन और आत्मीयता की चाह कभी नहीं मिटती। यह कहानी ...