रविवार, 3 अगस्त 2025

"दो साल का इंतज़ार – एक कर्मचारी की अंतरवेदना"

 

                                          "दो साल का इंतज़ार एक कर्मचारी की अंतरवेदना"

 




 

हर सुबह समय पर दफ्तर पहुँचना, बॉस के ताने सुनना, लक्ष्य पूरा करना, और फिर उम्मीद करना कि शायद इस बार सैलरी बढ़ेगी यह कहानी किसी एक कर्मचारी की नहीं, बल्कि उस तबके की है जो अपना जीवन दफ्तर की चारदीवारी में खपा देता है, पर बदले में सम्मान, प्रगति या संवेदनाएं बहुत कम पाता है।
आज की यह कहानी है राजेश की एक मध्यमवर्गीय कर्मचारी जिसकी तनख्वाह दो सालों से नहीं बढ़ी और दिल में सुलगती रही एक अनकही वेदना...


राजेश कुमार एक सामान्य कार्यालय सहायक था दिल्ली के करोल बाग़ में स्थित "गोयल एंड संस ट्रे़डिंग कंपनी" में काम करता था। उम्र करीब 38 साल की थी। शादी को आठ साल हो चुके थे और एक छह साल की बेटी थी तन्वी।

राजेश सुबह 7 बजे उठता, बेटी को स्कूल भेजता, और 9 बजे तक ऑटो पकड़कर ऑफिस पहुँच जाता।
उसका काम था फ़ाइलें सहेजना, दस्तावेज़ों की फोटोकॉपी कराना, मेल्स चेक करना, और जब-जब मालिक बुलाएँ दौड़कर जाना।
वो न कभी देर से आता, न छुट्टी लेता। एक तरह से दफ्तर में सबका भरोसेमंद आदमी बन चुका था।

लेकिन सच्चाई यह थी कि उसकी मासिक तनख्वाह अब भी 14,500 रुपये ही थी वही जो दो साल पहले थी।

घर में बेटी बड़ी हो रही थी, स्कूल की फीस, दूध, किराया, सिलेंडर, मोबाइल रिचार्ज, दवा सबका खर्च बढ़ चुका था।
लेकिन तनख्वाह वही पुरानी।

राजेश ने पहली बार 2023 में तनख्वाह बढ़ाने का निवेदन किया था।

उस दिन वह मालिक के केबिन में गया
"सर, दो साल हो गए, तनख्वाह में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। घर का खर्च बहुत बढ़ गया है।"

मालिक ने चश्मा नीचे खिसकाते हुए कहा
"राजेश, कंपनी भी अभी घाटे में चल रही है। तुम्हें पता है ना, कोरोना का असर अब तक गया नहीं। थोड़ा और इंतज़ार करो।"

राजेश चुप हो गया। बाहर आकर वह उसी कॉफी मशीन के पास खड़ा हो गया, जहाँ उसकी जेब में एक 10 रुपये का सिक्का बाकी था एक चाय और एक पैकेट पार्ले-जी के लिए।

धीरे-धीरे ऑफिस में नए चेहरे आने लगे।
ऋचाएक नई अकाउंट असिस्टेंट आई, जिसकी शुरुआती तनख्वाह 25,000 रुपये थी।
अंकित, एक मैनेजमेंट ट्रेनी – ₹30,000 लेकर आया।

राजेश सब कुछ देखता रहा। वह जानता था कि वह इतना पढ़ा-लिखा नहीं, पर उसके अनुभव, मेहनत और वफादारी को आखिर कोई कीमत क्यों नहीं?

एक दिन वह ऋचा से बोला
"आपकी सीट के नीचे जो पुरानी LAN वायरें हैं, उनमें से एक टूट चुकी है, कल IT वालों को बुलवा दूँगा।"
ऋचा मुस्कुरा कर बोली – "सर आप तो सब जानते हैं। आप इतने सालों से हैं ना यहाँ?"

राजेश मुस्कराया, लेकिन उस मुस्कान के पीछे एक आह थी – "हाँ, इतने सालों से हूँशायद इसलिए ही सब कुछ सह रहा हूँ।"

राजेश की पत्नी, नीलिमा, एक घरेलू महिला थी। कभी शिकायत नहीं करती थी, लेकिन हर महीने की 28 तारीख़ को वह धीरे से पूछती
"इस बार कुछ बढ़ा क्या?"

राजेश हँसकर टाल देता – "नहीं, पर अगली बार पक्का।"

वह जानता था कि अगली बार कभी नहीं आती

एक दिन बेटी तन्वी बोली
"पापा, इस बार मेरे बर्थडे पर हम स्कूल में चॉकलेट बाँटेंगे ना? सोहम ने पाँच-पाँच डेयरी मिल्क दी थी सबको।"

राजेश का गला भर आया। उसने हँसते हुए कहा
"बिलकुल, इस बार तेरे लिए बड़ी वाली चॉकलेट लाएँगे।"

वह जानता था कि इसके लिए उसे अगले हफ्ते की राशन लिस्ट से कुछ सामान कम करना पड़ेगा।

एक दिन ऑफिस में एक मीटिंग बुलाई गई कंपनी ने कुछ लोगों की सैलरी में बढ़ोतरी की घोषणा की।
राजेश का नाम उसमें नहीं था।

उसने खुद को शांत रखने की कोशिश की, लेकिन जब मालिक ऑफिस से निकल रहे थे, तो वह पूछ बैठा
"सर, मेरी सैलरी दो साल से नहीं बढ़ी, क्या मेरी मेहनत में कमी है?"

मालिक ने चौंक कर देखा
"अरे राजेश! तुमसे कौन नाराज़ है? पर तुम्हारे जैसे लोग तो कंपनी की रीढ़ हैं, तुम चलते रहो... बाकी सब देख लेंगे।"

राजेश ने सिर झुका लिया। यह जवाब नहीं था बस एक मीठा धोखा था।

उसी रात, राजेश छत पर बैठा था। आसमान में चाँद था, और दिल में गुस्सा, दर्द और एक टूटती उम्मीद।
उसने मन ही मन लिखा

जब सबकी तनख्वाह बढ़ी, मेरी नहीं
शायद मैं इतना अनमोल हूँ कि मेरी कीमत तय नहीं हो सकती।
या शायद मैं इतना साधारण हूँ कि कोई देखता ही नहीं।

उसने कागज़ को मोड़ा और जेब में रख लिया।

अगले दिन राजेश ने तय कर लिया वह अब खुद को और नहीं सताएगा

उसने एक पुराना कंप्यूटर कोर्स सर्च किया, जिसे वह ऑनलाइन रात में सीख सकता था
हर दिन ऑफिस से आकर वह एक घंटा सीखता, नोट्स बनाता।

तीन महीने बाद उसने एक नई कंपनी में डाटा एंट्री ऑपरेटर की जॉब के लिए आवेदन किया।

इंटरव्यू में पूछा गया
"आपका अनुभव?"
राजेश बोला – "10 साल का ऑफिस मैनेजमेंट, फाइलिंग, ईमेल, ग्राहक संवाद, और अब डाटा बेसिक स्किल्स।"

उसे जॉब मिल गई ₹21,000 की सैलरी पर।

राजेश ने इस्तीफा दिया।
मालिक चौंके
"तुम जा रहे हो? अचानक?"

राजेश शांत स्वर में बोला
"सालों से सोच रहा था, आज हिम्मत जुटाई है। धन्यवाद, आपने बहुत कुछ सिखाया, पर अब खुद को भी कुछ देना चाहता हूँ।"

वह चला गया बिना नाराज़गी के, बिना तकरार के। सिर्फ एक आत्म-सम्मान और सीख लेकर।

यह कहानी सिर्फ राजेश की नहीं, हर उस व्यक्ति की है जो वर्षों तक बिना शिकायत काम करता है, सिर्फ इस उम्मीद में कि शायद कोई उसकी मेहनत देखेगा।

पर याद रखिए
अगर आप खुद को नहीं पहचानते, तो कोई और क्यों पहचानेगा?
सम्मान माँगा नहीं जाता, कमाया जाता है पर कभी-कभी उसके लिए जगह भी बदलनी पड़ती है।

 

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