राज और अनु की अधूरी प्रेम कहानी
राज, एक लगभग 37 वर्षीय पुरुष, अपनी उम्र से कुछ अधिक थका हुआ और
अनुभवों से परिपक्व दिखता था। वह एक छोटे से गाँव के पास स्थित निजी विद्यालय में
शिक्षक था। वहाँ की ज़िंदगी साधारण थी—सुबह स्कूल जाना, बच्चों को पढ़ाना, शाम को खेतों की सैर करना और रात को परिवार के साथ चुपचाप
बैठकर भोजन करना।
राज की शादी को 16 साल हो चुके थे। उसकी पत्नी सविता एक सधी हुई गृहिणी थी। उनके दो बच्चे थे—एक बेटा जो बारहवी कक्षा में पढ़ता था और एक बेटी जो दसवीं में थी।घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी, लेकिन राज के भीतर एक खालीपन था, जिसे न वह किसी से कह सकता था और न ही समझा सकता था।राज का सपना था कि वह आगे की पढाई पूरी करे। कभी पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण पढ़ाई अधूरी रह गई थी। लेकिन अब वह एक बार फिर अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरा करना चाहता था, क्योंकि पढ़ाई पूरी होने के बाद उसे अपने विद्यालय में तरक्की मिलने की संभावना थी एवं ट्यूशन में भी पैसा बढ़ सकता था, वैसे भी उसकी बचपन से इच्छा थी कि वह उच्च शिक्षा ले कर अपना भविष्य बनाएगा। अब जब बच्चे थोड़े बड़े हो गए थे और घर की
जिम्मेदारियाँ थोड़ी कम हुईं, तो राज ने ठान लिया कि अब वह अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरा करेगा।
कुछ ही दिनों में
उसने एक नज़दीकी शहर के कॉलेज में प्रवेश ले लिया। वहाँ का माहौल उसके गाँव से
बिल्कुल अलग था—भीड़-भाड़,
युवा ऊर्जा, तेज़ रफ्तार ज़िंदगी।
कॉलेज के पहले ही दिन
राज की नज़र अनु पर पड़ी। अनु एक तेज़-तर्रार, हँसमुख और बेहद आकर्षक युवती थी। उसकी
उम्र लगभग 25 वर्ष
रही होगी। वह भी उसी कक्षा में थी, जहाँ
राज ने दाखिला लिया था। दोनों की दुनिया बिल्कुल अलग थी, लेकिन भाग्य ने उन्हें एक ही राह पर ला
खड़ा किया।
पहली बार जब अनु ने
राज से सवाल पूछा था, तब
राज थोड़ा झिझका था। लेकिन अनु की सहजता ने उसे खोल दिया। दोनों की बातों का
सिलसिला यहीं से शुरू हुआ।
राज और अनु की दोस्ती
धीरे-धीरे गहराने लगी। अनु को राज का सरल स्वभाव, जीवन के प्रति गहराई और उसकी आँखों में
छिपा दर्द बहुत आकर्षित करता था। वहीं, राज को अनु की मासूमियत, जिज्ञासा और जीवन के प्रति उत्साह ने
खींच लिया था।
कॉलेज के प्रोजेक्ट,
लाइब्रेरी की पढ़ाई, और फिर चाय की दुकानों पर बैठ कर दुनिया
की बातें करना—यह
सब अब रोज़ की दिनचर्या बन चुका था। धीरे-धीरे उनके रिश्ते में कुछ ऐसा जुड़ने लगा
था जो सिर्फ दोस्ती से कहीं ज़्यादा था।
समय बीतता गया। राज
और अनु अब लगभग हर दिन एक-दूसरे के साथ समय बिताने लगे थे। क्लास के बाद लाइब्रेरी
में घंटों साथ पढ़ना, फिर
कॉलेज कैंटीन में बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ जीवन की बातें करना उनकी दिनचर्या
में शामिल हो गया था।
एक दिन दोनों साथ-साथ
कॉलेज से निकलकर पास ही स्थित नदी किनारे जा पहुँचे। वहाँ बहती ठंडी हवा, शाम का सुनहरा आसमान और आसपास के शांत
वातावरण में दोनों की बातचीत पहले से भी अधिक भावुक और आत्मीय हो गई।
अनु ने पूछा,
“राज सर... आपको कभी ये नहीं लगता कि
आपने अपनी ज़िंदगी बहुत जल्दी तय कर ली थी?”
राज मुस्कराया,
लेकिन उसकी मुस्कान में एक अधूरापन था।
“हर किसी की ज़िंदगी में कुछ अधूरा रह ही
जाता है, अनु। शायद मेरी
ज़िंदगी की अधूरी चीज़ें अब तुम्हारे सवालों में मुझे घूरती हैं।”
अनु चुप हो गई। लेकिन
उसकी आँखें बोल रही थीं—बहुत
कुछ।
अनु को राज के साथ एक अजीब-सी
मानसिक शांति मिलती थी और राज को अनु की मौजूदगी में फिर से जीने का अहसास होता
था।
अनु रोज़ स्कूटी से कॉलेज आती थी और छुट्टी होने के बाद वह राज को स्कूटी पर अपने पीछे बैठाकर पूरा शहर घुमाती, उसी स्कूटी से वे दोनों कभी कहीं नदी के किनारे या कहीं पार्क में जाकर बैठते और एक-दूसरे को महसूस करते।
एक शाम, नदी के किनारे बैठकर दोनों चुपचाप बहते
पानी को देख रहे थे। वह क्षण ऐसा था जब शब्दों की ज़रूरत नहीं थी। अनु ने कहा,
“राज, क्या आपने कभी महसूस किया है कि हम
दोनों जब साथ होते हैं तो समय रुक सा जाता है?”
धीरे-धीरे दोनों को
यह अहसास हुआ कि यह रिश्ता अब सिर्फ दोस्ती तक सीमित नहीं रहा। अनु के मन में राज
की परिपक्वता, उसके
जीवन के अनुभव और उसका शांत स्वभाव दिल में जगह बना चुका था। वहीं राज को अनु की
सादगी, मासूम मुस्कान और
उम्मीदों से भरी बातें किसी खोए हुए स्वप्न की तरह लगती थीं।
एक शाम, जब सूरज ढल रहा था और चारों तरफ़ हलकी पीली
रौशनी फैली हुई थी, अनु ने राज की आँखों में देखा और कहा,
"आपसे बात करके लगता है जैसे मैं खुद को जानने लगी हूँ।"
राज की आँखें भर आईं — उसने पहली बार किसी से महसूस किया कि उसे
समझा गया है।
राज जानता था कि वह
विवाहित है। यह समाज, उसकी
जिम्मेदारियाँ, उसका
परिवार—यह सब उसे अनु से दूर
रहने के लिए कहता था। लेकिन दिल कहाँ मानता है?
राज
ने देखा, उसकी आँखों में वही सवाल था, जो
वर्षों से उसकी आत्मा में बसा हुआ था, पर जो उसने कभी पूछा
नहीं। उसने धीरे से कहा, “हाँ, और
कभी-कभी मुझे डर लगता है कि ये सब सपना है... जो एक दिन टूट जाएगा।”
पर यह दुनिया इतनी सरल नहीं होती। राज का विवाहित होना, उम्र का अंतर, और समाज की
सीमाएँ — ये सब उन्हें अक्सर भीतर से
कचोटते थे। अनु को यह मालूम था, फिर भी वह हर दिन राज से जुड़ती
गई।
एक दिन जब दोनों मंदिर गए, तो अनु ने बिना कुछ कहे राज के हाथ में हाथ रख दिया। राज की आँखें नम हो गईं। उसने सिर्फ इतना कहा,
“ये साथ अगर पाप है, तो मैं इसे हर जनम दोहराना चाहूँगा।”
अब राज और अनु के बीच
वह सब कुछ था, जो
एक गहरे प्रेम संबंध में होता है—सम्मान,
स्नेह, संवाद और मौन समझ।
उनके प्रेम में गहराई थी, लेकिन इसके साथ ही एक दीवार भी थी —
सामाजिक बंधन और नैतिक मर्यादा। राज शादीशुदा था। उसकी पत्नी और
बच्चे थे। अनु इस सच्चाई से अंजान नहीं थी, लेकिन दिल पर
किसी का ज़ोर नहीं चलता।
एक ओर वे एक-दूसरे को महसूस
करते थे, दूसरी ओर
उन्हें समाज की सख़्त सीमाएँ बार-बार याद दिलाती थीं कि उनका रिश्ता कभी पूर्ण
नहीं हो सकता।
छुट्टियों में वे पास
के किसी पार्क में मिलते, कभी
नदियों के किनारे बैठते, कभी
मंदिरों में घंटों तक चुपचाप बैठ जाते। वहाँ न कोई सवाल होते, न जवाब—बस एक साथ होने की तसल्ली होती।
अनु ने राज के लिए एक
डायरी लिखनी शुरू की थी, जिसमें
वह हर दिन उसके बारे में अपने भावनाएँ दर्ज करती थी। और राज? वह अपनी पुरानी कविताएँ अनु को पढ़कर
सुनाता था—वे कविताएँ जो उसने
कभी किसी को नहीं सुनाईं।
दोनों ने तीन साल के भीतर डिग्री पूरी कर ली थी। अब राज के लिए कॉलेज आने का कोई बहाना नहीं था, राज को वापस अपने गाँव लौटना था। अनु अब आगे एम.ए. करना चाहती थी। उनके रास्ते अलग थे... लेकिन उनके दिल अभी भी एक-दूसरे के साथ थे।
राज अक्सर सप्ताहांत
में अनु से मिलने आता। अनु भी कभी-कभी उसके शहर के नज़दीक किसी मेला, पुस्तक मेला या सांस्कृतिक कार्यक्रम
में जाती, जहाँ वे चुपचाप मिलते
और चंद घंटों के लिए एक-दूसरे की दुनिया बन जाते।
लेकिन जैसे-जैसे समय
बीता, उनके रिश्ते की
वास्तविकता ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया। अनु के माता-पिता अब उसके विवाह
की चर्चा करने लगे थे। वहीं राज को समाज में कुछ लोगों की निगाहें चुभने लगी थीं।
एक दिन अनु ने राज से
कहा,
“क्या हम हमेशा यूँ ही मिलते रहेंगे,
या कभी साथ रह भी पाएँगे?”
राज ने गहरी साँस ली
और कहा,
“अगर मेरा बस चलता, तो मैं सारी दुनिया से लड़कर तुम्हें
अपना बना लेता। लेकिन मैं वो व्यक्ति नहीं जो किसी को छोड़कर किसी और के साथ नई
शुरुआत कर सके। मैं अधूरा हूँ, अनु।
और मैं तुम्हें भी अधूरा नहीं बनाना चाहता।”
तीन साल हो चुके थे। अनु अब अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी और दूसरे शहर में उसकी नौकरी भी लग चुकी थी, एक स्कूल मैं टीचर बन गई थी, घरवालों ने उसका रिश्ता एक अच्छे परिवार में तय कर दिया था। शादी की तारीख भी तय हो गई थी।
एक दिन, अनु ने राज से कहा — "हमें अब रुक जाना चाहिए। यह रिश्ता जितना खूबसूरत है, उतना ही दर्द भी देता है। मैं अब खुद को खोती जा रही हूँ।"
राज चुप रहा। वह जानता था कि
अनु सही कह रही है। उसने कहा — "शायद हम
इस जन्म में साथ नहीं, पर हर जन्म में तुझे ढूंढता
रहूँगा।"
शादी से एक दिन पहले
अनु और राज एक बार आखिरी बार मिले। वही पुराना मंदिर, वही नदी किनारा... और वही चुप्पी।
वे घंटों चुप बैठे रहे। फिर अनु
ने मुस्कुराते हुए कहा — "आपका साथ
एक सपना था, जो अब मेरी यादों में हमेशा के लिए बस गया
है।"
राज ने उसकी आँखों को देखा — एक उम्र बीत गई उस पल में। वे दोनों अलग हो
गए, लेकिन उनका प्रेम कभी समाप्त नहीं हुआ। वह हमेशा जीवित
रहा — उन ख़ामोश रास्तों में, उन
पुरानी किताबों के पन्नों में, उन मंदिर की घंटियों में,
और उस नदी की बहती धार में।
राज ने अनु को उसकी
डायरी वापस दी, जिसे
वह हमेशा अपने पास रखता था।
अनु की आँखों से आँसू
रुक नहीं रहे थे। उसने राज से बस इतना कहा,
“आप मेरे पहले और आखिरी प्यार हैं। मैं
कभी आपको भुला नहीं पाऊँगी।”
राज ने अनु की ओर
देखा और कहा,
“मैं अधूरा था, अधूरा ही रहूँगा। लेकिन तुम्हारा प्यार मुझे पूरा बना
गया।”
अनु की शादी हो चुकी
थी। अब वह एक नए शहर में अपने पति के साथ बस चुकी थी। और
जीवन किसी भी सामान्य स्त्री की तरह उसने भी समझौतों और आदतों में ढलना सीख लिया
था।
वहीं दूसरी ओर,
राज भी अपने गाँव लौट चुका था। वही
पुराना स्कूल, वही
बच्चे, वही दिनचर्या... पर
अब कुछ अलग था। पहले वह शाम को बच्चों को पढ़ाने के बाद मंदिर जाता था, अब वह नदी किनारे जाकर चुपचाप बैठा
करता।
समय बीतता रहा,
लेकिन न राज ने अनु को भुलाया, और न अनु कभी राज की यादों से बाहर
निकली।
राज ने कई बार अनु को
पत्र लिखे, लेकिन कभी भेज नहीं
सका। वह जानता था कि अनु अब किसी और की पत्नी थी। वही अनु, जिसके साथ उसने सपने देखे थे। जिन
रास्तों पर वे साथ चले थे, वहाँ
अब सिर्फ यादें रह गई थीं।
उधर अनु ने भी अपनी
डायरी लिखना बंद नहीं किया था। उसके हर पन्ने में राज था—उसकी हँसी, उसकी आँखों की उदासी, उसकी बातें, और सबसे ज़्यादा उसकी चुप्पी।
उसने एक बार अपने पति
से कहा भी था,
“क्या आपको कभी ऐसा महसूस हुआ है कि कोई
और अब भी आपके दिल में ज़िंदा है?”
पति मुस्कराया था, शायद वह कुछ समझ गया था, या शायद नहीं।
दस साल बीत चुके थे।
एक बार राज को पास के
शहर में एक शिक्षक सम्मेलन में बुलाया गया। सम्मेलन के बाद उसने सोचा कुछ देर शहर
के मेलों में घूम ले। वह किताबों की एक प्रदर्शनी में गया।
वहीं, अनु अपने पति और बच्चे के साथ उसी
प्रदर्शनी में आई थी।
राज एक किताब उलट रहा
था, तभी किसी ने पीछे से
आवाज़ दी—
“राज सर...?”
राज पलटा, उसकी आँखें अनु से मिलीं। वक़्त जैसे थम
गया।
अनु के हाथ में एक
छोटी बच्ची थी, और
उसके पति पास में खड़े थे। लेकिन उस क्षण जैसे सब अदृश्य हो गया।
राज के होंठ थरथरा
उठे,
“तुम...?”
अनु ने मुस्कुराकर
कहा,
“मैं जानती थी, एक दिन ज़रूर मिलेंगे।”
अनु ने अपने पति से
इशारा किया और कहा,
“आप बच्ची को लेकर थोड़ी देर वहाँ बैठिए,
मैं सर से बात करके आती हूँ।”
राज और अनु पास के एक
पेड़ के नीचे बैठे।
“आप पहले जैसे ही हैं,”
अनु ने कहा।
“और तुम... पहले से भी
सुंदर,” राज ने धीरे से उत्तर
दिया।
कुछ पल दोनों चुप
रहे।
राज ने पूछा,
“कैसी हो?”
अनु ने आँखें नीची कर
लीं,
“ठीक हूँ... पर अधूरी।”
राज की आँखें भर आईं,
“मैं भी।”
अनु ने एक छोटा सा
लिफाफा राज को दिया।
“इसमें मेरी आखिरी
डायरी के कुछ पन्ने हैं। जो तुमसे कहना चाहा, पर कह नहीं पाई।”
राज ने वह लिफाफा
धीरे से अपने दिल से लगाया।
“क्या हम फिर मिलेंगे?”
राज ने पूछा।
अनु ने सिर हिला दिया,
“अब नहीं... शायद अगले जन्म में। लेकिन
अगर मिलें, तो अधूरे न रहना।”
राज ने पहली बार अनु
का हाथ धीरे से थामा, और
कहा,
“अधूरा था, तुमसे मिला, थोड़ी देर के लिए ही सही... पूरा महसूस
किया।”
अनु उठी, उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन मुस्कान भी थी।
राज उसी रात गाँव लौट
आया। अब वह पहले से अधिक गहरा और शांत हो गया था। अनु की आखिरी डायरी उसके जीवन की
सबसे कीमती धरोहर बन गई थी।
वहीं अनु भी, अपने जीवन की गाड़ी में, सब कुछ निभा रही थी—पर राज की यादों का हिस्सा बनकर।
समाज की जंजीरें
उन्हें बाँध नहीं सकीं, क्योंकि
जो रिश्ता आत्मा से जुड़ता है, वह
कागज़ों पर नहीं लिखा जा सकता।
वे अधूरे थे, लेकिन उनके बीच जो था—वह प्रेम था। और प्रेम कभी अधूरा नहीं
होता।
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