गुरुवार, 14 अगस्त 2025

अधूरे सपने "राज और अनु की अधूरी प्रेम कहानी"

राज और अनु की अधूरी प्रेम कहानी



राज, एक लगभग 37 वर्षीय पुरुष, अपनी उम्र से कुछ अधिक थका हुआ और अनुभवों से परिपक्व दिखता था। वह एक छोटे से गाँव के पास स्थित निजी विद्यालय में शिक्षक था। वहाँ की ज़िंदगी साधारण थीसुबह स्कूल जाना, बच्चों को पढ़ाना, शाम को खेतों की सैर करना और रात को परिवार के साथ चुपचाप बैठकर भोजन करना।

राज की शादी को 16 साल हो चुके थे। उसकी पत्नी सविता एक सधी हुई गृहिणी थी। 
उनके दो बच्चे थेएक बेटा जो बारहवी कक्षा में पढ़ता था और एक बेटी जो दसवीं में थी।
घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी, लेकिन राज के भीतर एक खालीपन था, जिसे न वह 
किसी से कह सकता था और न ही समझा सकता था।
राज का सपना था कि वह आगे की पढाई पूरी करे। कभी पारिवारिक जिम्मेदारियों के 

कारण पढ़ाई अधूरी रह गई थी। लेकिन अब वह एक बार फिर अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरा करना चाहता था, क्योंकि पढ़ाई पूरी होने के बाद उसे अपने विद्यालय में तरक्की मिलने की संभावना थी एवं ट्यूशन में भी पैसा बढ़ सकता था, वैसे भी उसकी बचपन से इच्छा थी कि वह उच्च शिक्षा ले कर अपना भविष्य बनाएगा। अब जब बच्चे थोड़े बड़े हो गए थे और घर की

जिम्मेदारियाँ थोड़ी कम हुईं, तो राज ने ठान लिया कि अब वह अपनी अधूरी पढ़ाई को 
पूरा करेगा।

कुछ ही दिनों में उसने एक नज़दीकी शहर के कॉलेज में प्रवेश ले लिया। वहाँ का माहौल उसके गाँव से बिल्कुल अलग थाभीड़-भाड़, युवा ऊर्जा, तेज़ रफ्तार ज़िंदगी।

कॉलेज के पहले ही दिन राज की नज़र अनु पर पड़ी। अनु एक तेज़-तर्रार, हँसमुख और बेहद आकर्षक युवती थी। उसकी उम्र लगभग 25 वर्ष रही होगी। वह भी उसी कक्षा में थी, जहाँ राज ने दाखिला लिया था। दोनों की दुनिया बिल्कुल अलग थी, लेकिन भाग्य ने उन्हें एक ही राह पर ला खड़ा किया।

पहली बार जब अनु ने राज से सवाल पूछा था, तब राज थोड़ा झिझका था। लेकिन अनु की सहजता ने उसे खोल दिया। दोनों की बातों का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ।

राज और अनु की दोस्ती धीरे-धीरे गहराने लगी। अनु को राज का सरल स्वभाव, जीवन के प्रति गहराई और उसकी आँखों में छिपा दर्द बहुत आकर्षित करता था। वहीं, राज को अनु की मासूमियत, जिज्ञासा और जीवन के प्रति उत्साह ने खींच लिया था।

कॉलेज के प्रोजेक्ट, लाइब्रेरी की पढ़ाई, और फिर चाय की दुकानों पर बैठ कर दुनिया की बातें करनायह सब अब रोज़ की दिनचर्या बन चुका था। धीरे-धीरे उनके रिश्ते में कुछ ऐसा जुड़ने लगा था जो सिर्फ दोस्ती से कहीं ज़्यादा था।

समय बीतता गया। राज और अनु अब लगभग हर दिन एक-दूसरे के साथ समय बिताने लगे थे। क्लास के बाद लाइब्रेरी में घंटों साथ पढ़ना, फिर कॉलेज कैंटीन में बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ जीवन की बातें करना उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया था।

एक दिन दोनों साथ-साथ कॉलेज से निकलकर पास ही स्थित नदी किनारे जा पहुँचे। वहाँ बहती ठंडी हवा, शाम का सुनहरा आसमान और आसपास के शांत वातावरण में दोनों की बातचीत पहले से भी अधिक भावुक और आत्मीय हो गई।

अनु ने पूछा,
राज सर... आपको कभी ये नहीं लगता कि आपने अपनी ज़िंदगी बहुत जल्दी तय कर ली थी?”

राज मुस्कराया, लेकिन उसकी मुस्कान में एक अधूरापन था।
हर किसी की ज़िंदगी में कुछ अधूरा रह ही जाता है, अनु। शायद मेरी ज़िंदगी की अधूरी चीज़ें अब तुम्हारे सवालों में मुझे घूरती हैं।

अनु चुप हो गई। लेकिन उसकी आँखें बोल रही थींबहुत कुछ।

अनु को राज के साथ एक अजीब-सी मानसिक शांति मिलती थी और राज को अनु की मौजूदगी में फिर से जीने का अहसास होता था।

अनु रोज़ स्कूटी से कॉलेज आती थी और छुट्टी होने के बाद वह राज को स्कूटी पर अपने पीछे बैठाकर पूरा शहर घुमाती, उसी स्कूटी से वे दोनों कभी कहीं नदी के किनारे या कहीं पार्क में जाकर बैठते और एक-दूसरे को महसूस करते।

एक शाम, नदी के किनारे बैठकर दोनों चुपचाप बहते पानी को देख रहे थे। वह क्षण ऐसा था जब शब्दों की ज़रूरत नहीं थी। अनु ने कहा, “राज, क्या आपने कभी महसूस किया है कि हम दोनों जब साथ होते हैं तो समय रुक सा जाता है?”

धीरे-धीरे दोनों को यह अहसास हुआ कि यह रिश्ता अब सिर्फ दोस्ती तक सीमित नहीं रहा। अनु के मन में राज की परिपक्वता, उसके जीवन के अनुभव और उसका शांत स्वभाव दिल में जगह बना चुका था। वहीं राज को अनु की सादगी, मासूम मुस्कान और उम्मीदों से भरी बातें किसी खोए हुए स्वप्न की तरह लगती थीं।

एक शाम, जब सूरज ढल रहा था और चारों तरफ़ हलकी पीली रौशनी फैली हुई थी, अनु ने राज की आँखों में देखा और कहा, "आपसे बात करके लगता है जैसे मैं खुद को जानने लगी हूँ।"

राज की आँखें भर आईं उसने पहली बार किसी से महसूस किया कि उसे समझा गया है।

राज जानता था कि वह विवाहित है। यह समाज, उसकी जिम्मेदारियाँ, उसका परिवारयह सब उसे अनु से दूर रहने के लिए कहता था। लेकिन दिल कहाँ मानता है?

राज ने देखा, उसकी आँखों में वही सवाल था, जो वर्षों से उसकी आत्मा में बसा हुआ था, पर जो उसने कभी पूछा नहीं। उसने धीरे से कहा, “हाँ, और कभी-कभी मुझे डर लगता है कि ये सब सपना है... जो एक दिन टूट जाएगा।

पर यह दुनिया इतनी सरल नहीं होती। राज का विवाहित होना, उम्र का अंतर, और समाज की सीमाएँ ये सब उन्हें अक्सर भीतर से कचोटते थे। अनु को यह मालूम था, फिर भी वह हर दिन राज से जुड़ती गई।

एक दिन जब दोनों मंदिर गए, तो अनु ने बिना कुछ कहे राज के हाथ में हाथ रख दिया। राज की आँखें नम हो गईं। उसने सिर्फ इतना कहा,

ये साथ अगर पाप है, तो मैं इसे हर जनम दोहराना चाहूँगा।

अब राज और अनु के बीच वह सब कुछ था, जो एक गहरे प्रेम संबंध में होता हैसम्मान, स्नेह, संवाद और मौन समझ।

उनके प्रेम में गहराई थी, लेकिन इसके साथ ही एक दीवार भी थी सामाजिक बंधन और नैतिक मर्यादा। राज शादीशुदा था। उसकी पत्नी और बच्चे थे। अनु इस सच्चाई से अंजान नहीं थी, लेकिन दिल पर किसी का ज़ोर नहीं चलता।

एक ओर वे एक-दूसरे को महसूस करते थे, दूसरी ओर उन्हें समाज की सख़्त सीमाएँ बार-बार याद दिलाती थीं कि उनका रिश्ता कभी पूर्ण नहीं हो सकता।

छुट्टियों में वे पास के किसी पार्क में मिलते, कभी नदियों के किनारे बैठते, कभी मंदिरों में घंटों तक चुपचाप बैठ जाते। वहाँ न कोई सवाल होते, न जवाबबस एक साथ होने की तसल्ली होती।

अनु ने राज के लिए एक डायरी लिखनी शुरू की थी, जिसमें वह हर दिन उसके बारे में अपने भावनाएँ दर्ज करती थी। और राज? वह अपनी पुरानी कविताएँ अनु को पढ़कर सुनाता थावे कविताएँ जो उसने कभी किसी को नहीं सुनाईं।

दोनों ने तीन साल के भीतर डिग्री पूरी कर ली थी। अब राज के लिए कॉलेज आने का कोई बहाना नहीं था, राज को वापस अपने गाँव लौटना था अनु अब आगे एम.ए. करना चाहती थी। उनके रास्ते अलग थे... लेकिन उनके दिल अभी भी एक-दूसरे के साथ थे।

राज अक्सर सप्ताहांत में अनु से मिलने आता। अनु भी कभी-कभी उसके शहर के नज़दीक किसी मेला, पुस्तक मेला या सांस्कृतिक कार्यक्रम में जाती, जहाँ वे चुपचाप मिलते और चंद घंटों के लिए एक-दूसरे की दुनिया बन जाते।

लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, उनके रिश्ते की वास्तविकता ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया। अनु के माता-पिता अब उसके विवाह की चर्चा करने लगे थे। वहीं राज को समाज में कुछ लोगों की निगाहें चुभने लगी थीं।

एक दिन अनु ने राज से कहा,
क्या हम हमेशा यूँ ही मिलते रहेंगे, या कभी साथ रह भी पाएँगे?”

राज ने गहरी साँस ली और कहा,
अगर मेरा बस चलता, तो मैं सारी दुनिया से लड़कर तुम्हें अपना बना लेता। लेकिन मैं वो व्यक्ति नहीं जो किसी को छोड़कर किसी और के साथ नई शुरुआत कर सके। मैं अधूरा हूँ, अनु। और मैं तुम्हें भी अधूरा नहीं बनाना चाहता।

तीन साल हो चुके थे। अनु अब अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी और 
दूसरे शहर में उसकी नौकरी भी लग चुकी थी, एक स्कूल मैं  टीचर 

बन गई थी, घरवालों ने उसका रिश्ता एक अच्छे परिवार में तय कर दिया था। शादी की तारीख भी तय हो गई थी।

एक दिन, अनु ने राज से कहा — "हमें अब रुक जाना चाहिए। यह रिश्ता जितना खूबसूरत है, उतना ही दर्द भी देता है। मैं अब खुद को खोती जा रही हूँ।"

राज चुप रहा। वह जानता था कि अनु सही कह रही है। उसने कहा — "शायद हम इस जन्म में साथ नहीं, पर हर जन्म में तुझे ढूंढता रहूँगा।"

शादी से एक दिन पहले अनु और राज एक बार आखिरी बार मिले। वही पुराना मंदिर, वही नदी किनारा... और वही चुप्पी।

वे घंटों चुप बैठे रहे। फिर अनु ने मुस्कुराते हुए कहा — "आपका साथ एक सपना था, जो अब मेरी यादों में हमेशा के लिए बस गया है।"

राज ने उसकी आँखों को देखा एक उम्र बीत गई उस पल में। वे दोनों अलग हो गए, लेकिन उनका प्रेम कभी समाप्त नहीं हुआ। वह हमेशा जीवित रहा उन ख़ामोश रास्तों में, उन पुरानी किताबों के पन्नों में, उन मंदिर की घंटियों में, और उस नदी की बहती धार में।

राज ने अनु को उसकी डायरी वापस दी, जिसे वह हमेशा अपने पास रखता था।

अनु की आँखों से आँसू रुक नहीं रहे थे। उसने राज से बस इतना कहा,
आप मेरे पहले और आखिरी प्यार हैं। मैं कभी आपको भुला नहीं पाऊँगी।

राज ने अनु की ओर देखा और कहा,
मैं अधूरा था, अधूरा ही रहूँगा। लेकिन तुम्हारा प्यार मुझे पूरा बना गया।

अनु की शादी हो चुकी थी। अब वह एक नए शहर में अपने पति के साथ बस चुकी थी। और जीवन किसी भी सामान्य स्त्री की तरह उसने भी समझौतों और आदतों में ढलना सीख लिया था।

वहीं दूसरी ओर, राज भी अपने गाँव लौट चुका था। वही पुराना स्कूल, वही बच्चे, वही दिनचर्या... पर अब कुछ अलग था। पहले वह शाम को बच्चों को पढ़ाने के बाद मंदिर जाता था, अब वह नदी किनारे जाकर चुपचाप बैठा करता।

समय बीतता रहा, लेकिन न राज ने अनु को भुलाया, और न अनु कभी राज की यादों से बाहर निकली।

राज ने कई बार अनु को पत्र लिखे, लेकिन कभी भेज नहीं सका। वह जानता था कि अनु अब किसी और की पत्नी थी। वही अनु, जिसके साथ उसने सपने देखे थे। जिन रास्तों पर वे साथ चले थे, वहाँ अब सिर्फ यादें रह गई थीं।

उधर अनु ने भी अपनी डायरी लिखना बंद नहीं किया था। उसके हर पन्ने में राज थाउसकी हँसी, उसकी आँखों की उदासी, उसकी बातें, और सबसे ज़्यादा उसकी चुप्पी।

उसने एक बार अपने पति से कहा भी था,
क्या आपको कभी ऐसा महसूस हुआ है कि कोई और अब भी आपके दिल में ज़िंदा है?”
पति मुस्कराया था, शायद वह कुछ समझ गया था, या शायद नहीं।

दस  साल बीत चुके थे।

एक बार राज को पास के शहर में एक शिक्षक सम्मेलन में बुलाया गया। सम्मेलन के बाद उसने सोचा कुछ देर शहर के मेलों में घूम ले। वह किताबों की एक प्रदर्शनी में गया।

वहीं, अनु अपने पति और बच्चे के साथ उसी प्रदर्शनी में आई थी।

राज एक किताब उलट रहा था, तभी किसी ने पीछे से आवाज़ दी
राज सर...?”

राज पलटा, उसकी आँखें अनु से मिलीं। वक़्त जैसे थम गया।

अनु के हाथ में एक छोटी बच्ची थी, और उसके पति पास में खड़े थे। लेकिन उस क्षण जैसे सब अदृश्य हो गया।

राज के होंठ थरथरा उठे,
तुम...?”

अनु ने मुस्कुराकर कहा,
मैं जानती थी, एक दिन ज़रूर मिलेंगे।

अनु ने अपने पति से इशारा किया और कहा,
आप बच्ची को लेकर थोड़ी देर वहाँ बैठिए, मैं सर से बात करके आती हूँ।

राज और अनु पास के एक पेड़ के नीचे बैठे।

आप पहले जैसे ही हैं,” अनु ने कहा।

और तुम... पहले से भी सुंदर,” राज ने धीरे से उत्तर दिया।

कुछ पल दोनों चुप रहे।

राज ने पूछा,
कैसी हो?”

अनु ने आँखें नीची कर लीं,
ठीक हूँ... पर अधूरी।

राज की आँखें भर आईं,
मैं भी।

अनु ने एक छोटा सा लिफाफा राज को दिया।

इसमें मेरी आखिरी डायरी के कुछ पन्ने हैं। जो तुमसे कहना चाहा, पर कह नहीं पाई।

राज ने वह लिफाफा धीरे से अपने दिल से लगाया।

क्या हम फिर मिलेंगे?” राज ने पूछा।

अनु ने सिर हिला दिया,
अब नहीं... शायद अगले जन्म में। लेकिन अगर मिलें, तो अधूरे न रहना।

राज ने पहली बार अनु का हाथ धीरे से थामा, और कहा,
अधूरा था, तुमसे मिला, थोड़ी देर के लिए ही सही... पूरा महसूस किया।

अनु उठी, उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन मुस्कान भी थी।

राज उसी रात गाँव लौट आया। अब वह पहले से अधिक गहरा और शांत हो गया था। अनु की आखिरी डायरी उसके जीवन की सबसे कीमती धरोहर बन गई थी।

वहीं अनु भी, अपने जीवन की गाड़ी में, सब कुछ निभा रही थीपर राज की यादों का हिस्सा बनकर।

समाज की जंजीरें उन्हें बाँध नहीं सकीं, क्योंकि जो रिश्ता आत्मा से जुड़ता है, वह कागज़ों पर नहीं लिखा जा सकता।

वे अधूरे थे, लेकिन उनके बीच जो थावह प्रेम था। और प्रेम कभी अधूरा नहीं होता।


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रविवार, 10 अगस्त 2025

एक रात का इंतज़ार

 एक रात का इंतज़ार







सर्दियों की एक लंबी रात थी। दिसंबर की हवा में कंपकंपाहट थी, और आसमान में बादल लुका-छिपी खेल रहे थे। शहर का वो छोटा सा रेलवे स्टेशन, जो दिन में भीड़-भाड़ और शोर से दूर रहता था, रात में और भी ज्यादा खामोश और ठंडा हो जाता था। स्टेशन के वेटिंग रूम की बत्ती हल्की पीली थी, जो दीवारों पर एक पुरानी थकान की तरह फैल रही थी।

रात के लगभग 9 बज रहे थे जब मनोज स्टेशन पर पहुँचा। उम्र रही होगी करीब पचास साल। सिर पर सफेद बाल, गले में मफलर, हाथ में एक छोटा बैग। चेहरा गंभीर लेकिन थका हुआ नहींबल्कि ऐसा जैसे किसी गहरी सोच में डूबा हो। वह वेटिंग रूम के कोने में पड़ी एक लकड़ी की बेंच पर बैठ गया और एक लंबी साँस ली।

मनोज लखनऊ जा रहा था। उसकी ट्रेन सुबह चार बजे थी। वह घर से जल्दी निकल आया थादरअसल, निकलना ज़रूरी भी था। घर का माहौल ऐसा हो गया था कि वहाँ रहना अब बोझ लगता था। पत्नी से रिश्ता अब सिर्फ औपचारिक था, और बच्चों की अपनी दुनिया थी। उसे लगता था कि अब वह घर में एक पुराना सामान बन गया हैजिसका होना न होना एक जैसा।

स्टेशन की घड़ी ने साढ़े नौ बजाए। तभी वेटिंग रूम का दरवाज़ा फिर से खुला।

हल्के कदमों से एक महिला अंदर आई। उम्र रही होगी तीस-पैंतीस साल के आसपास। लंबी, सादी सलवार-कमीज़ पहने, कांधे पर बैग टांगे हुए। बाल खुले हुए, हल्के-से उलझे, और चेहरा... थका हुआ, लेकिन आँखों में एक खास तरह की चमक।

उसका नाम था किरण

वह ग्वालियर जा रही थी, सुबह तीन बजे की ट्रेन थी। थोड़ी हिचकिचाहट के साथ उसने कोने की बेंच पर जगह ली। मनोज ने उसकी ओर एक नजर डाली, फिर अपनी किताब खोल ली। लेकिन दिमाग अब किताब में नहीं था। उस औरत की आंखों में एक अजीब सी बेचैनी थी जो मनोज को अपनी ओर खींच रही थी।

कुछ मिनटों की चुप्पी के बाद, मनोज ने पहल की।

"ग्वालियर?"
किरण चौंकी। "जी?"
"आप ग्वालियर जा रही हैं न?"
"हाँ... सुबह तीन बजे की ट्रेन है।"

"मैं लखनऊ जा रहा हूँ। चार बजे की है।"
"अरे! तो हम दोनों को पूरी रात यहीं बितानी पड़ेगी," किरण मुस्कुरा दी।
मनोज भी मुस्कुरा दिया। "लगता है आज रात की चाय एक-दो बार पीनी पड़ेगी।"

मनोज ने अपने बैग से एक थरमस निकाला। "गरम चाय है, अगर आप चाहें तो..."

किरण थोड़ी झिझकी, लेकिन फिर मान गई। "थोड़ा-सा चलेगा। ठंड तो हड्डियों तक घुस गई है।"

चाय की चुस्कियों के साथ बातों का सिलसिला शुरू हुआ। पहले ट्रेन के बारे में, फिर शहर के बारे में, और फिर जिंदगी के बारे में।

किरण ने बताया कि वह एक स्कूल में पढ़ाती है। शादी को आठ साल हो चुके हैं, लेकिन पति एक प्राइवेट कंपनी में इतने व्यस्त रहते हैं कि हफ्तों तक ढंग से बात नहीं हो पाती। कोई शिकायत नहीं थी, लेकिन एक खामोशी थी उसकी आवाज़ में।

मनोज ने भी अपनी जिंदगी खोली। "दो बेटियाँ हैं मेरी। बड़ी अब कॉलेज में है। पत्नी से अब ज्यादा बात नहीं होती। सब कुछ है, लेकिन कुछ नहीं है।"

"हां, मैं समझ सकती हूं," किरण बोली। "कभी-कभी लगता है कि हम रिश्तों की भीड़ में खुद को खो देते हैं।"

उनकी बातें अब गहराई छू रही थीं। दोनों के बीच कोई ऐसा वादा नहीं था, कोई अपेक्षा नहीं थीबस एक रात और थोड़ी सी ईमानदारी।

वक़्त जैसे ठहर गया था। स्टेशन की दीवारें, वो पुराना फर्श, सब गवाह बन रहे थे उस नर्म मुलाकात के। किरण ने मनोज से पूछा,

"आपको कभी लगा कि आपकी ज़िंदगी कुछ और हो सकती थी?"

मनोज ने गहरी सांस ली। "हाँ, कई बार। पर अब लगता है जो है, वही किस्मत है।"

"अगर वक्त वापस लाया जा सके, तो क्या बदलते?"

"शायद खुद को थोड़ा और समझता... और किसी को दिल से चाहता।"

किरण की आंखें भीग गईं। "शायद मैं भी..."

उनकी आंखें अब ज़्यादा कह रही थीं, शब्दों से भी ज़्यादा। दो अजनबी, दो कहानियाँ, एक स्टेशन, और एक रात का समय। क्या यही था इत्तेफाक़? या किस्मत की कोई चाल?

घड़ी ने एक बजा दिया था। स्टेशन पर सन्नाटा था। कुछ लोग इधर-उधर लेटे हुए थे, कुछ अख़बार ओढ़े नींद में थे।

किरण और मनोज अब एक-दूसरे के बगल में बैठ चुके थे। मनोज ने अपना शॉल उसके कंधे पर रख दिया।

"आपको ठंड लग रही है।"

"और आपको?"

"आपके पास तो मैं बैठा हूँ न," मनोज ने मुस्कुराकर कहा।

उनके बीच कोई स्पर्श नहीं हुआ, लेकिन एहसास गहराने लगा था। दिल की दीवारें गिरने लगी थीं।

"अगर ये रात कभी खत्म न हो..." किरण ने कहा।

"तो शायद हम हमेशा यहाँ रह जाएं," मनोज ने जवाब दिया।

वक्त जैसे रुक गया था। स्टेशन के बाहर की ठंड अब उन्हें महसूस नहीं हो रही थी। वो वेटिंग रूम जैसे किसी और ही दुनिया का हिस्सा बन गया था। मनोज की आँखों में एक गहराई थी और क़िरण के लबों पर एक मुस्कान। बिना कहे, बिना छुए, दोनों एक-दूसरे के बहुत क़रीब आ गए थे।

किरण ने धीरे से कहा,
"
शायद ये रात हमेशा याद रहेगी।"

"मैं दुआ करूँगा कि तुम्हारी ज़िंदगी में फिर कभी ऐसा अकेलापन ना आए," मनोज ने कहा।

"और अगर कभी आए, तो शायद कोई और वेटिंग रूम मिल जाए," क़िरण ने मुस्कुराते हुए कहा।

 रात के ढाई बजे चुके थे। अनाउंसमेंट हुआ: "गाड़ी संख्या 12156, ग्वालियर जाने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर  एक  पर आ रही है।"

किरण ने चुपचाप अपना बैग उठाया। उसकी आँखों में कुछ टूटता हुआ सा था।

"आपसे मिलकर अच्छा लगा," उसने कहा।

"आपसे बात करके लगा जैसे सालों बाद किसी ने सुना," मनोज बोला।

कुछ पल चुप्पी छाई रही। किरण ने कहा, "न नंबर लिया, न दिया... अजीब हैं हम।"

"शायद यही सही है। अगर दोबारा मिलना लिखा होगा, तो मिलेंगे।"

दोनों ने एक-दूसरे का नाम जाना, दिल की बातें साझा कीं, एक रात में एक रिश्ता बनाया, लेकिन न कोई नंबर मांगा, न कोई वादा किया।

बस एक याद छोड़ दीएक छोटी सी मुलाक़ात, एक ठंडी रात, और एक वेटिंग रूम की दीवारों के बीच सजी एक अधूरी कहानी।

किरण की ट्रेन आई। वह चढ़ गई, खिड़की से बाहर देखामनोज खड़ा था, मुस्कराता हुआ, लेकिन आँखों में नमी थी।

ट्रेन चल पड़ी।

मनोज खामोशी से बेंच पर बैठ गया। एक घंटे बाद उसकी ट्रेन आई। वह चढ़ गया, खिड़की के पास बैठा और रात के उस छोटे स्टेशन को देखता रहा, जहाँ उसे एक ऐसा रिश्ता मिला, जिसे नाम देना मुमकिन नहीं था।

कोई प्रेम नहीं था, कोई वादा नहीं था, लेकिन एक एहसास था जो ज़िंदगी भर साथ रहने वाला था।

कई साल बाद...

मनोज रिटायर हो चुका था। एक दिन अख़बार पढ़ते वक्त उसने एक लेख पढ़ा—"रिश्तों की परिभाषा बदलती है, पर कुछ रिश्ते समय की सीमाओं से परे होते हैं।"

उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह उठा, अपनी पुरानी डायरी खोली, और एक पेज पर लिखा:

"एक रात, एक स्टेशन, एक औरतजिससे मैं कभी दोबारा नहीं मिला, लेकिन जिसने मुझे जिंदगी भर का साथ दे दियाबिना वादा, बिना नाम, बिना पहचान।"

यही थी उनकी अधूरी लेकिन सबसे सच्ची कहानी – ‘एक रात का इंतज़ार

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बुधवार, 6 अगस्त 2025

बीस साल बाद...

 

                                    "बीस साल बाद... राजेश और अनु की अधूरी कहानी"

 



राजेश और अनु की पहली मुलाक़ात कॉलेज के पहले दिन हुई थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी का वह खूबसूरत परिसर, हरे-भरे पेड़, क्लासेस की भीड़, और उस भीड़ में अनु... एक सादा सी लड़की, काली चोटी और माथे पर बिंदी। राजेश को पहली ही नज़र में कुछ खास महसूस हुआ।

अनु, पढ़ाई में तेज़ और स्वभाव से शर्मीली, जबकि राजेश थोड़ा मस्तीखोर था, लेकिन दिल का साफ़। दोनों एक ही सेक्शन में थे और ग्रुप प्रोजेक्ट में साथ आए।

धीरे-धीरे दोस्ती गहराती गई। कैंटीन में एक साथ बैठना, नोट्स शेयर करना, लाइब्रेरी में चुपचाप घंटों एक-दूसरे के पास बैठना... राजेश को लगने लगा था कि वो अनु से प्यार करने लगा है।

लेकिन अनु ने कभी कुछ नहीं कहा। उसके मन में भी राजेश के लिए कुछ था, लेकिन संस्कारी परिवार की बेटी होने के नाते उसने अपने जज़्बात छुपा लिए।

कॉलेज का आख़िरी साल था। फेयरवेल के दिन, राजेश ने सोच लिया था कि आज वो अनु से अपने दिल की बात कहेगा। लेकिन जब उसने अनु को ढूँढा, तो वो किसी और लड़के के साथ खड़ी थी सौरभ नाम था उसका। अनु मुस्कुरा रही थी, लेकिन राजेश की दुनिया उस पल बिखर गई।

अनु दरअसल सिर्फ दोस्ताना व्यवहार कर रही थी, लेकिन राजेश ने वो इशारे गलत समझ लिए। उसने बिना कुछ कहे कॉलेज छोड़ दिया और अनु से संपर्क तोड़ लिया।

अनु को कुछ समझ नहीं आया। राजेश अचानक कैसे दूर हो गया? उसने कई बार कॉल करने की कोशिश की, लेकिन राजेश ने जवाब नहीं दिया।

राजेश की ज़िन्दगी ने एक नया मोड़ लिया। वह एक आईटी कंपनी में चला गया, फिर अमेरिका में नौकरी लग गई। परिवार ने उसकी शादी करा दी। लेकिन दिल में कहीं न कहीं अनु की याद हमेशा बनी रही।

उधर अनु ने भी एमए किया, फिर एक कॉलेज में प्रोफेसर बन गई। घर वालों ने जबरदस्ती उसकी भी शादी कर दी। लेकिन वो रिश्ता ज़्यादा दिन नहीं चला, पति ने उसे समझा नहीं और तलाक हो गया।

अनु अकेली हो गई, लेकिन उसने हार नहीं मानी। बच्चों को पढ़ाती रही, समाज सेवा में लग गई। फिर भी राजेश की यादें कभी पूरी तरह नहीं मिट सकीं।

एक दिन फेसबुक पर राजेश ने अनु की प्रोफाइल देखी। वही मुस्कान, वही सादगी... राजेश ने वर्षों बाद पहली बार दिल से कुछ महसूस किया। उसने हिम्मत कर के फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी।

अनु ने रिक्वेस्ट एक्सेप्ट की, और पहले मैसेज में सिर्फ इतना लिखा
इतने साल क्यों लगाए?”

राजेश की आंखें नम हो गईं। दोनों ने बातें शुरू कीं पुराने कॉलेज के दिनों की, उन चाय की दुकानों की, लाइब्रेरी की खामोशियों की।

फिर एक दिन तय हुआ चलो मिलते हैं।

नई दिल्ली के एक शांत कैफे में, बीस साल बाद राजेश और अनु आमने-सामने बैठे थे। उम्र का असर दोनों के चेहरे पर था, लेकिन आंखों में वही चमक थी।

राजेश ने पूछा,
क्या तुम भी मुझे उसी तरह चाहती थीं जैसे मैं तुम्हें?”

अनु ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया
हाँ, लेकिन मैंने कभी कहा नहीं। तुमने क्यों चुप्पी साध ली थी?”

राजेश ने गहरी सांस ली
गलतफहमी थी, सोचा तुम किसी और को पसंद करती हो। अगर तब पूछ लेता...

तो शायद आज ज़िन्दगी कुछ और होती,” अनु ने कहा।

लेकिन उनके चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था, बस एक शांति थी। एक अधूरी कहानी के दो किरदारों ने एक-दूसरे को माफ़ कर दिया था।

राजेश अब तलाकशुदा था। अनु भी अकेली थी। दोनों की ज़िन्दगियाँ अलग-अलग रास्तों से होकर फिर से एक मोड़ पर आकर रुकी थीं।

राजेश ने अनु से पूछा
क्या हम दोबारा दोस्त बन सकते हैं?”

अनु ने उसकी आंखों में देखा
शायद दोस्त से कुछ ज़्यादा भी।

राजेश और अनु अब हर रविवार मिलते हैं। वे पुराने किस्से दोहराते हैं, साथ चलते हैं, और जीवन के उस खालीपन को भरते हैं जिसे बीस साल पहले नियति ने उनके बीच खड़ा कर दिया था।

प्यार के रिश्ते हमेशा परफेक्ट नहीं होते, लेकिन कुछ रिश्ते... देर से सही, मुकम्मल ज़रूर होते हैं।

राजेश और अनु के बीच अब एक स्थिर, गहरी समझ बन चुकी थी।
हर रविवार की मुलाकात, कभी किताबों की दुकान में, कभी पुराने कॉलेज की कैंटीन के पास की चाय की दुकान परअब एक आदत बन गई थी।

राजेश ने एक दिन कहा,
अनु, ज़िन्दगी हमें दोबारा साथ लाई हैक्या अब भी हम इंतज़ार करें?”

अनु ने मुस्कराते हुए पूछा,
क्या कहना चाहते हो?”

शादी?”
राजेश ने धीरे से कहा।

अनु चुप रही। उसका चेहरा गंभीर हो गया।
राजेश, मैं भी चाहती हूँपर डरती हूँ।

किससे?”

समाज से नहीं, खुद से। अगर फिर से कुछ टूट गया तो? अब संभालने की ताक़त नहीं रही।

राजेश ने उसका हाथ थामा और कहा,
अब हम बच्चे नहीं हैं अनु। अब हम हर टूटे टुकड़े को जोड़ना जानते हैं।

 

राजेश का बेटा रचित और बेटी प्रिया, अमेरिका में पढ़ते थे। अनु के माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं थे, लेकिन उसकी एक छोटी बहन थी, जो जयपुर में रहती थी।

राजेश ने बच्चों को धीरे-धीरे अपनी और अनु की बात बताई।
रचित ने एक लंबी चुप्पी के बाद कहा,
पापा, क्या आप खुश हैं?”

राजेश ने सिर्फ हाँ कहा।

तो हमें और क्या चाहिए?”
प्रिया ने वीडियो कॉल पर मुस्कराते हुए कहा।

उधर अनु की बहन ने भी कहा
दीदी, अब तो आपने हमेशा दूसरों के लिए जिया। अब खुद के लिए जी लो।

राजेश और अनु, दोनों 50 की उम्र पार कर चुके थे।
दूसरी शादी को लेकर समाज अब भी उलटफेर से भरपूर था, लेकिन कुछ लोगों ने साथ भी दिया।

राजेश का पुराना दोस्त विनय बोला
यार, प्यार की कोई उम्र नहीं होती।

तो वहीं अनु की सहेली मधु ने कहा
तुम्हारी आँखों में वो चमक फिर से दिख रही है जो कॉलेज में थी।

कहने वालों ने कहा भी
अब इस उम्र में क्या शादी?”
लेकिन दोनों ने किसी की नहीं सुनी।

अनु ने शर्त रखी
बड़ी-बड़ी रोशनी नहीं चाहिए, दिखावा नहीं चाहिए। सिर्फ वो लोग हों जिनसे हम जुड़े हैं।

राजेश ने सहमति में सिर हिलाया।

दिल्ली के एक छोटे से मंदिर में, 22 लोगों की उपस्थिति में, सिंपल-सी शादी हुई।
न संगीत, DJ, बस मंत्र, आशीर्वाद और कुछ भीगी हुई पलकें।

राजेश ने मांग में सिंदूर भरते हुए कहा
अब और खोने का डर नहीं, क्योंकि अब हम साथ हैं।

अनु की आंखों से आंसू बहने लगे, लेकिन इस बार वो आंसू दर्द के नहीं, संतोष के थे।

दोनों ने नोएडा में एक फ्लैट लिया छोटा सा, लेकिन बहुत सलीके से सजा हुआ।

दीवारों पर पुरानी कॉलेज की तस्वीरें थीं, किताबों की शेल्फें थीं, और किचन में अनु के हाथ की बनी चाय की खुशबू।

राजेश अब फुलटाइम काम नहीं करता था। वो कभी-कभी ऑनलाइन क्लासेस लेता, तो अनु समाज सेवा में लगी रहती।

शामें अक्सर बालकनी में बैठकर बीती ज़िन्दगी को याद करते हुए बीततीं।

एक दिन अनु ने पूछा
राजेश, तुम्हें कभी अफसोस होता है कि हमने ज़्यादा वक्त एक साथ नहीं बिताया?”

राजेश ने मुस्कराकर जवाब दिया
अफसोस नहीं, शुक्रगुज़ार हूँ कि ज़िन्दगी ने दोबारा मौका दिया।

अनु बोली
काश हम कॉलेज में ही हिम्मत कर लेते…”

शायद तब हम इतने समझदार नहीं थे। आज हम अधूरी कहानी को पूरा कर पा रहे हैं ये ही बहुत है।

समय बीतता रहा। दोनों ने मिलकर एक किताब लिखी
बीस साल बाद
जिसमें उन्होंने अपने जीवन की सच्ची प्रेम कहानी बताई।

वो किताब सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। लाखों लोगों ने पढ़ा और कहा
ये कहानी हमें उम्मीद देती है।

राजेश और अनु अब भी साथ हैं किताबों, यादों और एक-दूसरे के प्रेम में।

उनकी कहानी साबित करती है कि

प्रेम अगर सच्चा हो, तो समय चाहे जितना भी बीत जाए, वो वापस लौट आता हैअधूरी कहानी कभी खत्म नहीं होती, वो कहीं न कहीं पूरी हो ही जाती है।


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