मंगलवार, 19 नवंबर 2019

मथुरा, मेहंदीपुर बालाजी, आगरा यात्रा - भाग - 2

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मथुरा जाने के लिए पटना कोटा एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से लगभग 2 घण्टे देरी से चल रही थी, लखनऊ तक आते-आते ढाई घंटा देर हो गई , खैर ट्रैन आयी सभी लोग अपने आरक्षित बर्थ पर जगह ले कर लेटने की कोशिश करने लगे , चूँकि रात का समय था इसलिए लेटने के आलावा और कुछ हो भी नहीं सकता था, लेटे - लेटे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला, उजाला होने से पहले एक बार नींद खुली लेकिन जगह कौन सी थी ये पता नहीं चल पाया, ट्रैन पहुंचने के निर्धारित समय में करीब दो घंटे का समय था इसलिए एक बार फिर नींद की आगोश में चले गए, एक स्टेशन पर शोर
गुल से नींद खुली तो पता चला कि अभी फ़िरोज़ाबाद आया है, अब नींद पूरी हो चुकी थी और अब अपनी सीट पर बैठ कर बाहर के मनोरम दृश्यों का आनन्द लेने का समय था , तो मैंने देर न करते हुए अपनी पोजीशन ले ली जहाँ से सुंदर दृश्य दिखाई पड़ रहे थे, ट्रेन साढ़े 8 बजे आगरा पहुँची लेकिन जगह जगह रुकने से मन खिन्न हो रहा था अब ट्रेन तो ट्रेन ठहरी चलेगी तो अपने हिसाब से। करीब साढ़े 9 बजे हम लोग मथुरा स्टेशन पर उतर गए उसके बाद अब समस्या थी होटल या धर्मशाला ढूढने की जो कि अपने आप में एक बड़ा कठिन काम होता है। सभी महिलाओं एवं बच्चों को स्टेशन के बाहर बैठाकर हम पुरुष लोग होटल की तलाश में बाहर निकले, बाहर निकलते ही दलालों की गिद्ध नजर हम लोगों पर पड़ी तुरन्त एक से बढ़िया एक कमरा दिलाने की बात कहकर अपनी तरफ खीचने लगे, हम लोग किसी तरह उनसे जान छुड़ाकर मुख्य सड़क पर आये पिता जी एक दो बार यहाँ आ चुके थे इसलिए उन्हें सब पता था, पिछली बार जहां वे रुके थे ओ मुस्कान होटल था वहां पता किया गया तो कोई ढंग का कमरा खाली नहीं था, तो हम लोग उसके पीछे बने कुछ अन्य होटलों में गये जहाँ कमरे तो पसंद आये लेकिन किराया नहीं समझ मे आया, थोड़ा और आगे जाने पर दाहिने हाथ गली में आगे बढ़ने पर कुछ धर्मशाला बने हुए थे उसमे पता किया गया तो पहली मंजिल पर एक बड़ा कमरा मिल गया जिसमें दो बेड पड़े हुये थे एवं कुछ अन्य बेड भी पड़ सकते थे बाथरूम भी कमरे के बाहर ही बने थे और साफ सुथरे थे तो वही फाइनल कर दिया गया, किराया 6 सौ रुपये एक दिन का था जो कि अपने बजट में भी था।

कमरा लेने के बाद सभी लोग कमरे पर आ गये एवं नहाने धोने में करीब एक घंटा लग गया उसके बाद चाय नास्ता किया गया , कमरे से बाहर निकलते - निकलते बारह बज गए , सभी लोग सड़क पर आए वहां से कोई गाड़ी लेकर घूमने का कार्यक्रम था, बाहर आते ही गाड़ी वालों ने घेर लिया, हम लोगों ने एक इको स्पोर्ट गाड़ी एक हजार रुपये में तय की जो हम लोगों को गोकुल, जन्म भूमि, वृन्दावन में स्थित सारे मंदिर घुमाते हुये वापस धर्मशाला तक छोड़ देगा, सबसे पहले गोकुल की यात्रा आरम्भ हुई, मथुरा जी से आगे बढ़ने पर यमुना जी पड़ती है, जब गाड़ी यमुना पुल  पर पहुंची तो मै  आज  से साढ़े पांच हजार साल पहले के समय में चला  गया जब भगवान कृष्ण अपने ग्वाल बालों के साथ  यमुना के किनारे बाल क्रीड़ा कर रहे थे, मन आनंद से प्रफुल्लित हो रहा था सब कुछ साफ - साफ दिख रहा था की अचानक गाड़ी के तेज हार्न से वर्तमान समय में लौटना पड़ा, हुवा ये की गोकुल से पहले भयंकर जाम लगा हुवा था जिसके कारण  सभी गाड़ी वाले हार्न बजाकर जाम  से निकलने की कोशिश कर रहे थे , कुछ देर बाद जाम से निकलने में कामयाबी मिली और हम लोग गोकुल  की पावन   नगरी में पहुंच गए

                             गोकुल में उतरने के बाद जैसे ही आगे बढे एक पण्डे ने पकड़ लिया और वहाँ  के बारे में बताते  हुए  गोकुल की गलियों में घुमाने के लिए साथ चल दिया, वह वहां के मुख्य मंदिरों के बारे में बताते एवं दर्शन कराते  हुए नन्द भवन की ओर ले गया जहाँ सभी लोगो ने पूजा पाठ किया एवं दान दक्षिणा देकर मंदिर से बाहर निकले उसके बाद घुमाने वाले पंडे को भी मेहनताना देकर स्वयं बाजार में घूमने निकल पड़े। अब सभी लोगों को भूख लग रही थी जिसके लिए एक दुकान पर गोकुल की लस्सी का स्वाद लिया गया तथा उसके कुछ आगे बढ़ने पर एक ठेले पर गर्मागर्म पकौड़े एवं चटनी का आनन्द लिया गया जिससे शरीर को कुछ राहत मिली उसके बाद फिर वापस मथुरा की और चल दिये अब अगला पड़ाव जन्म भूमि थी।


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