शनिवार, 23 नवंबर 2019

मथुरा , भरतपुर , मेंहदीपुर बालाजी , आगरा दर्शन भाग - 3

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गोकुल नगरी पूरी घूमने एवं नास्ता पानी करने के बाद हम लोगो की गाड़ी जन्मभूमि की तरफ चल दी, फिर उसी यमुना जी के पुल से वापस आना हुआ  जहाँ मैं  द्वापर में चला गया था, एक बार फिर जाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुआ  और देखते - देखते पुल  पार हो गया,  करीब आधे घंटे की यात्रा के बाद हम लोग श्री कृष्ण जन्म भूमि पर पहुंच चुके थे , गाड़ी से उतरने के बाद सबसे पहले उस पवित्र भूमि की मिटटी को माथे से लगाया जहाँ हमारे आराध्य का जन्म हुवा था, जन्मभूमि में मोबाइल, पर्स इत्यादि ले जाना वर्जित है तो उसके लिए बाहर  बने क्लॉक रूम में सब जमाकर रशीद लेकर
लाइन में लग गए, आज शनिवार  छुट्टी होने के कारण हर जगह भीड़  बहुत जयादा थी, अंदर पहुंचने पर जन्मभूमि में प्रवेश से पहले वासुदेव, देवकी बंदी गृह की एक झांकी बनी हुई थी, झांकी से गुजरते हुए वही दृश्य दिखाई दे रहे थे जो श्री कृष्ण जी के जन्म के समय था, सबकुछ एकदम नेचुरल लग रहा था, झांकी से निकलने के बाद जन्मभूमि में प्रवेश का रास्ता था, आगे बढ़ने पर पतली गली से गुजरते हुए उस जगह पहुँच गए जहाँ हमारे आराध्य बाल रूप में प्रगट हुए थे, उस स्थान पर पहुंचने पर आँखे अनायास बरसने लगी, कुछ ऐसा महसूस हो रहा था जिसको बयां करना शायद अपने बस में नहीं है
                                         जन्मभूमि का दर्शन करने के बाद हम लोगों  ने बाहर निकलकर अन्य मंदिरों का दर्शन किया एवं उसके पश्चात मंदिर परिसर में स्थित दुकान से प्रसाद के लिए पेड़ा ख़रीदा एवं जलपान किया, कुछ समय तक मंदिर परिसर में बैठकर एवं घूमकर बिताया एवं उसके बाद बाहर निकल कर क्लॉक रूम से मोबाइल एवं बैग आदि वापस लिया और फिर गाड़ी वृन्दावन की तरफ चल दी, सप्ताहांत होने के कारन भीड़ हर तरफ थी, कुछ समय की यात्रा के बाद गाड़ी वृन्दावन की सीमा में  प्रवेश कर चुकी थी, हर तरफ जाम होने के कारन गाड़ी किसी तरह बांके विहारी मंदिर के पहुंची, ड्राइवर ने कहा की आप लोग अपना जूता - चप्पल यहीं उतर दीजिये नहीं तो वहाँ आपलोगों  को इसे रखने में दिक्कत होगी, हम लोगों ने ऐसा ही किया  

                                                    जैसा कि हम सभी जानते हैं की  वृन्दावन प्राचीन काल में एक वन क्षेत्र था जो काफी दूरी  में फैला हुआ था, वर्तमान में हम देखते है तो हमें कहीं वन नहीं दिखाई पड़ता है समय के साथ परिवर्तन होता गया और आज हम वृन्दावन को एक शहर के रूप में देखते है, परन्तु द्वापर में भगवन श्री कृष्ण उसी वन क्षेत्र में अपनी गौओ को चराते थे एवं राधा जी  के साथ रास  रचाते थे

हम लोग  पहले बांके विहारी जी का दर्शन करने के लिए चल दिए, कुछ दूर आगे  जाने पर मंदिर के लिए दाहिने हाथ मोड़ से आगे जाने पर भयंकर भीड़ का पता चला, पतली सी गली में आने एवं जाने से रास्ता अवरुद्ध हो जा रहा था, लेकिन हम लोगों को दर्शन करना था इसलिए किसी तरह घुस कर भीड़ का हिस्सा वन गए, धक्का मुक्की करते हुए कुछ दूर आगे बढ़ने पर गलती का एहसास हो गया, हुआ ये की अब मंदिर बंद होने में आधा घंटा ही बचा था इसलिए हर आदमी जल्दी से जल्दी अंदर घुसकर दर्शन करना चाहता था इसलिए माहौल एकदम   भयानक हो गया था, हम लोगों  को एहसास हो गया कि बच्चों एवं महिलाओं के साथ अंदर पहुंचना मुश्किल है फिर हम लोग किसी तरह से भीड़ से बाहर निकले तब जान में जान आई भीड़ के बीच में तो लगता था दम  घुट जायेगा, हम लोगों ने बाहर से ही बांके बिहारी जी को प्रणाम किया और फिर अगले पड़ाव निधि वन की तरफ बढ़ गए

निधि वन में प्रवेश करते हुए बड़ी ख़ुशी हो रही थी कि आज मैं उस स्थान पर जा रहा हू जहाँ मेरे कन्हैया रास रचाते थे, अंदर पहुंचकर मिटटी को माथे से लगाया और निधि वन में भर्मण करने लगे, सुरक्षा कर्मियों से बात करने पर पता चला की यहाँ किसी को रात में रुकने की आज्ञा नहीं है क्योंकि रात में अभी भी भगवान श्री  कृष्ण राधा रानी जी के साथ यहाँ विचरते है, आज के आधुनिक वैज्ञानिक युग में इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है, लेकिन यदि आध्यात्मिक तरीके से सोचे तो  भगवान हर जगह हर समय हमारे साथ है तो निधि वन में भी विचरण करते होंगे, ऐसा विश्वास करना बिलकुल गलत नहीं है, हम लोगों  ने वहुत बारीकी से निधि वन का भर्मण किया और पूरे  समय दिमाग में यही चलता रहा कि रात में जब भगवान और राधा रानी विचरण करते होंगे तो कैसा लगता होगा

निधि वन  से निकलने के बाद हम लोग जहाँ गाड़ी खड़ी थी उस तरफ चल दिए लेकिन रास्ता भूल गए  कुछ पूछ ताछ के बाद हम लोग गाड़ी के पास तक पहुंच गए तब तक लगभग साढ़े सात बज चुके थे अब अगला  पड़ाव प्रेम मंदिर था, रास्ते में  जाम होने के कारण प्रेम मंदिर पहुंचते - पहुंचते मंदिर का द्वार बंद हो गया, सड़क पर भयंकर भीड़ की स्थिति थी सड़क से इसपर से उसपर जाने में काफी मसक्कत करनी पड़ी, रास्ते में हम लोग गाड़ी से उतारकर पैदल मंदिर तक गये, गेट के  सामने खड़े हो कर सेल्फी आदि लेकर गाड़ी के आने का इन्तजार करने लगे, लगभग 400 मीटर आने में गाड़ी को आधे घंटे लग गए, गाड़ी आयी सभी लोग गाड़ी में सवार होकर अब अपने अड्डे यानि की धर्मशाला की तरफ चल दिए, रात में लगभग 10  बजे हम लोग अपने अड्डे पर पहुंच गए उसके बाद बाहर ही एक होटल में 60 रुपए थाली का खाना खाने  के बाद सभी लोग सोने की तैयारी करने लगे अब कल हम लोग गोवर्धन, नंदगाव एवं वरसाने की यात्रा करेंगे


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