सोमवार, 2 दिसंबर 2019

मथुरा , भरतपुर , मेंहदीपुर बालाजी , आगरा दर्शन भाग - 4

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आज मथुरा में हम लोगों का दूसरा दिन था और आज गोकुल, नंदगाव, वरसाने आदि घूमने  का कार्यक्रम था तो हम लोग सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर फ्रेश होने के बाद नीचे सड़क पर आ गए, जैसा की सभी जानते है वहाँ टैक्सी वालों ने हम लोगों को घेर  लिया सभी अपना अपना किराया एवं घूमने का रूट बताने लगे, पहले तो इन तीनों जगहों के लिए 2200 रु मांग रहे थे लेकिन थोड़ी बार्गेनिंग करने पर एक इको  स्पोर्ट गाड़ी वाला 1600 रू में घुमाने  के लिए तैयार हो गया, हम लोगों ने भी देर न करते हुए अपना अपना स्थान ग्रहण कर लिया और अब पहला पड़ाव गोवर्द्धन जी का दर्शन था।

 गाड़ी सभी लोगों को  लेकर चल दी एवं कुछ दूर जाकर उसने एक पेट्रोल पंप पर तेल भराया उसके बाद हम लोगों की गाड़ी हाईवे पर फर्राटा भरने लगी सभी लोग वहुत खुश थे, महिलाओं की टोली भजन गाने लगी जिसमे हम लोग भी शामिल हो गए और कब गोवर्द्धन  पहुँच गए पता ही नहीं चला, जब ड्राइवर ने गाड़ी रोकी और बोला की जाईये और गोवर्धन जी का दर्शन कीजिये तब हम लोगों को पता चला की हम लोग गोवर्धन जी पहुंच गए है , ड्राइवर ने बताया की आप लोग दर्शन करके मंदिर से थोड़ा आगे चौराहे पर आ जाइएगा मैं वही मिलुंगा उसने अपना  मोबाइल न. भी दिया।  हम लोग चूकि गोवर्धन जी पहली बार आये थे इसलिए बहुत ज्यादा जानकारी थी नहीं तो हम लोग मंदिर ना जाकर गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर चल दिए, कुछ दूर जाने के बाद गलती का एहसास हुआ तो फिर वापस आये एवं लोगों से पूछकर मंदिर पहुंचे, दर्शन से पहले फूल दूध इत्यादि ख़रीदा गया उसके बाद लाइन में लग गए।
 रविवार होने के कारन भीड़ बहुत थी किसी तरह धक्का मुक्की करते हुए अंदर पहुंचे, फूल दूध चढाने के बाद मंदिर परिसर में बैठकर  कुछ देर श्रद्धा पूर्वक मंदिर का अवलोकन किया गया एवं उसके बाद बाहर निकले, बहुत सारे लोग गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कर रहे थे, जानकारी करने पर पता चला की परिक्रमा करने में ३-४ घंटे लगेंगे जो कि हम लोगों के पास था नहीं, तो फिर कभी परिक्रमा करने की सोंच कर हम लोग अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगे, समय लगभग  10 बजे का था एक मिठाई की दुकान पर गरमा गरम जलेबी छन रही थी तो सभी ने आधा किलो जलेबी पर हमला बोल् दिया उसके बाद कचौरी भी खायी गयी अंत में चाय पीकर तृप्ति शांत हुई और फिर हम लोग गाड़ी की तरफ बढ़ गए, लेकिन जहाँ ड्राइवर ने बताया था वहाँ उसकी गाड़ी नहीं दिखी तो हम लोगों ने उसे फ़ोन किया तो पता चला  की ओ आधा किलोमीटर आगे खड़ा है, खैर हम लोग पैदल चल कर गाड़ी तक पहुंच गए उसके बाद अब हम लोगों का अगला पड़ाव राधा रानी का गांव वरसाने था।
 गोवर्धन से चलते समय मन में एक कसक रह गई थी कि हम लोग परिक्रमा नहीं कर पाए, गाड़ी वाले से हम लोग पहले बात किये होते तो कर सकते थे यही एक चूक हो गई, गाड़ी वाले ने बताया था कि वापसी में लौटने में शाम हो जाएगी लेकिन उसने हम लोगों को मथुरा साढ़े तीन बजे तक छोड़ दिया, खैर अब इसी बहाने एक बार फिर आने का मौका मिलेगा ये सोच कर हम लोग वरसाने की यात्रा के आनंद में शामिल हो गए, रास्ते भर फिर भजन कीर्तन से समय का पता नहीं चला और हम लोग वरसाने पहुंच गए, सामान आदि सब गाड़ी में ही रख दिया गया एक छोटा झोला लेकर हम लोग राधा रानी का दर्शन करने के लिए चल दिए, वहाँ आस पास के कुछ लड़के बाइक से भी लोगों को  मंदिर तक पहुँचा रहे थे और बेरोजगारी में कुछ कमी कर रहे थे, जिन लोगों को सीढ़िया चढ़ने में  परेशानी थी उनके लिए अच्छा विकल्प था, हम लोग सीढ़ियों से चलकर मंदिर तक पहुंचे उसमे भी काफी आनंद आया, वैसे मेरे हिसाब से तीर्थ यात्रा में कुछ पैदल चलना चाहिए उसका एक अलग आनंद होता है। .मंदिर परिसर में भीड़ बहुत थी, हम लोगों ने धैर्य पूर्वक दर्शन किया एवं ऊपर से कुछ फोटो शूट किया थोड़ी देर विश्राम करने के बाद फिर वापस हो लिए, रास्ते में एक जगह पानी एवं पेड़ा लेकर जलपान किया गया एवं फिर गाड़ी की तरफ चल दिए।
अब अगला पड़ाव नंदगांव था, अब तक लगभग 12 बज चुके थे, अगस्त के महीने की गर्मी और उमस अपना रूप दिखा रहा था, खैर सभी लोग यात्रा का आनंद उठा रहे थे क्योंकि जीवन में पहली बार यहाँ आने का मौका मिला था फिर न जाने कब दुबारा दर्शन का सौभाग्य मिले इसलिए आज के दिन का भरपूर आनंद लिया जा रहा था, कुछ देर की यात्रा के बाद हम लोग नंदगांव पहुंच गए, नन्द बाबा का घर भी कुछ उचाई पर है, मुख्य मार्ग से अंदर जाने पर सीढिया मिलती है जिसके द्वारा ऊपर जाया जाता है, हम लोग पहले से ही लेट हो गए थे और मंदिर बंद होने में कुछ ही समय शेष था, अतः तेजी से पैर बढ़ाते हुए हम लोग मंदिर तक पहुंच गए, मंदिर परिसर में पहले से काफी भीड़ थी, हम लोग भी पीछे खड़े हो गए, मंदिर बंद हो जाने की जल्दी में हर व्यक्ति जल्दी से जल्दी दर्शन कर लेना चाहता था, मैंने भी बगल से घुसने का प्रयास किया, कुछ लोगों ने शोर गुल किया लेकिन फिर भी मै अंदर घुसने में सफल हो गया, हालांकि इस तरह से अंदर घुसने का अफसोस भी हुआ लेकिन दर्शन के लालच में ऐसा करना पड़ा, यहाँ पण्डे पुजारियों का बोल बाला था वे सब ग्रुप में बैठाकर पैसे के हिसाब से दर्शन एवं पूजन करा रहे थे, खैर हम लोगों ने भी यथा शक्ति दान देकर दर्शन पूजन किया एवं वहां से   आगे बढे तो एक जगह वाटर कूलर दिखाई पड़ा जहाँ पानी पीकर हम लोगों ने प्यास बुझाई एवं बोतल भी भर लिया, उसके बाद मंदिर परिसर में बने बरामदे में ही चद्दर बिछा कर बैठ गए एवं कुछ जल जलपान किया गया, कुछ देर बैठने के बाद हम लोग सीढ़ियों से बरामदे के ऊपर चले गए जहाँ से नंद गांव बहुत ही सुन्दर दिखाई पड़  रहा था, ऊपर ही एक पंडित जी नन्द गांव के बारे में अपने भक्तों को कुछ बता रहे थे हम लोग भी थोड़ी देर रुक कर सुनने लगे और उसी समय मेरे दिमाग में एक सवाल आया जो की मैंने पंडित जी से कर लिया, मैंने पूछा कि नन्द बाबा तो गोकुल में रहते थे तो नन्द गांव यहाँ कैसे हो गया तो पंडित जी ने बताया की, गोकुल में कंश के भय से नन्द बाबा ने अपना  निवास यहाँ बना लिया था, कुछ देर टहलने के बाद हम लोग अपनी गाड़ी के पास पहुंच गए, अभी  ढाई  बज रहे थे और हम लोगों की यात्रा पूरी हो गई थी और अब वापस मथुरा की तरफ प्रस्थान करना था, ड्राइवर को भी जल्दी थी तो हम लोग गाड़ी में बैठकर मथुरा की तरफ चल दिए, रास्ते में सोते जागते, गाते  बजाते हम लोग लगभग साढ़े तीन  बजे मथुरा पहुंच गए, अब कमरे पर पहुंच कर थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर प्रेम मंदिर जाने का कार्यक्रम बन गया, तो चलिए थोड़ा आराम करते है उसके बाद प्रेम  मंदिर का दर्शन किया जायेगा।   
कल हम लोग प्रेम मंदिर के गेट तक पहुँच कर मंदिर बंद होने के कारन वापस आ गए थे प्रेम मंदिर की भव्यता  को देखते हुए आज इच्छा थी कि वहा  चल कर आराम से दर्शन किया जायेगा एवं वहाँ कुछ देर बैठा जायेगा इसलिए   कमरे पर थोड़ी देर आराम करने के बाद हम लोग फिर प्रेम मंदिर जाने के लिए निकल गए, सड़क पर कई ऑटो  वालो  से बात की गई अंत में एक ऑटो वाला 400 रूपये में जाने और आने के लिए तैयार हुआ, हम सभी लोग ऑटो में बैठकर प्रेम मंदिर जाने के लिए चल दिए लेकिन दुर्भाग्य आज भी पीछा नहीं छोड़ रहा था, पुरे शहर में जाम लगा हुआ था किसी तरह हम लोग प्रेम मंदिर से तीन किलोमीटर पहले जहाँ से बाये हाथ मंदिर के लिया मुडा  जाता है वहाँ पुलिस वालों ने रोक दिया, बोला कि जाम होने के कारन उधर कोई वाहन नहीं जाने दिया जा रहा है , काफी कोशिश करने के बाद भी जब कोई चारा नहीं दिखा तो हम लोंगो ने ऑटो वाले को वहीं छोड़ दिया और मंदिर तक पैदल चलने का विचार बनाया, पद यात्रा चालू होने के कुछ ही देर बाद बच्चे एवं महिलाओँ ने भड़ास निकलना शुरू कर दिया, मई कह रही थी बहुत भीड़ है मत चलो लेकिन माने नहीं अब अपने साथ - साथ सबको दौड़ा रहे है, मेरी श्रीमती जी तो कुछ जयादा ही गुस्सा हो रही थी क्योंकि ये प्लानिंग मेरी और शुक्ला जी की थी बाकि लोग आधे अधूरे मन से चल रहे थे। करीब एक घंटे की पद यात्रा के बाद हम लोग प्रेम मंदिर पहुंच गए, लेकिन मंदिर के बाहर गेट पर इतनी भीड़ थी कि अंदर घुसना ही मुश्किल था, काफी धक्का मुक्की के बाद हम लोग भी प्रवेश कर पाए, अंदर भी कही खड़े होने या बैठने की जगह नहीं थी और गर्मी  हाल था, अब मुझे भी दुःख हो रहा था अंदर जाकर दर्शन करना तो बहुत दूर था तो हम लोगो ने बाहर से ही मंदिर की परिक्रमा की और कुछ फोटो शोटो खींचा उसके बाद बाहर निकल आये, बाहर निकलने के बाद जिसका डर था वही हुआ, अब यहाँ से कोई भी साधन मथुरा जाने के लिए नहीं मिल रहा था, जो भी ऑटो आता ओ या तो रिज़र्व आता या पहले से भरा हुआ आता, सभी लोगों का गुस्सा मेरे और शुक्ला जी के ऊपर निकल रहा था, लेकिन अब क्या किया जा सकता था, काफी देर तक इंतजार करने के बाद जब कोई साधन नहीं मिला तो हम लोग पैदल ही मथुरा की तरफ जाने वाले मार्ग पर चलने लगे, लग रहा था अब पैदल ही मथुरा तक जाना पड़ेगा या फिर रात यही कही रुकना पड़ेगा, यही सोचते हुए दुखी मन से सभी लोग चलते जा रहे थे तभी सामने से एक खाली ऑटो वाला आता दिखाई दिया, रोककर पूछने पर वो मथुरा जाने के लिया तैयार हो गया, किसी तरह हम लोगों की जान में जान आयी, सभी लोग उस ऑटो में सवार होकर रहत की सांस ले रहे थे, करीब पैतालीस मिनट की यात्रा के बाद हम लोग मथुरा अपने अड्डे तक पहुंच गए उसके बाद खाना वगैरह खा कर सो गए।
अब कल की यात्रा भरतपुर की होनी थी लेकिन वहां के कुछ स्थानीय लोगों ने बताया की वहाँ कुछ खास नहीं है तो बुजुर्गों ने कहा की कल भी हम लोग बाकी बचे स्थानों पर यहाँ घूमेंगे और बाद बालाजी का दर्शन करने के लिए जायेंगे

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