शुक्रवार, 24 जनवरी 2020

मथुरा , भरतपुर , मेंहदीपुर बालाजी , आगरा दर्शन भाग - 5

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कल का दिन हम लोगों केलिए काफी थकान भरा रहा लेकिन सब कुछ अच्छा रहा, अब आज हम लोग वृन्दावन में वैष्णो देवी मंदिर, इस्कान मंदिर, बांके विहारी मंदिर, काँच का मंदिर आदि का दर्शन करते हुए गोकुल से आगे चौरासी खम्भा एवं पुराने गोकुल जायेंगे। 
सुबह उठने के बाद सभी लोग नहा धोकर फ्रेश हो गए एवं कमरे पर ही चाय पी  गयी   उसके बाद नीचे  सड़क पर आकर टैक्सी का इंतजाम किया गया, एक टैक्सी वाला 1200  रूपये में ये सारे स्थान घुमाने के लिए तैयार हो गया, सभी लोग गाड़ी में बैठ गए और सबसे पहला पड़ाव था वैष्णों माता मंदिर। 
मथुरा की सड़कों से निकल कर हम लोग वृन्दावन जाने वाले रोड पर आ गए और कुछ देर बाद वैष्णों माता मंदिर पहुंच गए, अंदर पहुंच कर सबसे पहले टिकट लिया गया उसके बाद अपना सामान लाकर में रखा गया तत्पश्चात मंदिर के अंदर प्रवेश किया गया।  ये मंदिर भी लगभग वैष्णों माता मंदिर के समान बना हुआ है एवं बहुत ही अच्छी कारीगरी का नमूना है, यहाँ पहुंच कर पहाड़ों वाली माता के दर्शन किये गए एवं कलाकृतियों का बारीकी से निरिक्षण किया गया इन सबमे लगभग डेढ़ से दो घंटे लग गए, चूकि आज बचे हुए बाकी जगहों को देखना था इसलिए थोड़ी जल्दी भी थी।  
अब हम लोगो का अगला पड़ाव इस्कॉन मंदिर था, वापस सभी लोग गाड़ी में बैठ गए और कुछ देर की यात्रा के बाद इस्कॉन मंदिर पहुंच गए, कुछ लोग इसे अंग्रेज मंदिर के नाम से भी जानते है, उसका एक कारन ये भी है की यहाँ विदेशी पर्यटक काफी संख्या में होते है एवं कई विदेशी तो पूर्ण रूप से यहाँ रह कर भगवन श्री कृष्ण की सेवा एवं भजन आदि  किया करते है।   हम लोगों ने भी इस्कॉन मंदिर में दर्शन किया, थोड़ी देर विश्राम किया और फिर बाहर निकल आये, जहाँ एक जगह तहरी का भंडारा चल रहा था हम लोगों ने भी प्रसाद लिया एवं पानी पिया मन को काफी शांति मिली उसके बाद अगले पड़ाव श्री बांके विहारी जी का दर्शन करने के लिए चल दिए। 
बांके विहारी मंदिर तक पहुंचने में गगभग साढ़े गयारह बज गए थे, आज फिर दर्शन के लिए गए, गली के बाहर भयंकर भीड़, हर व्यक्ति मंदिर में प्रवेश कर दर्शन का पुण्य लेना चाहता था, लेकिन भीड़ के कारन अफरातफरी का माहौल हो गया था, मेरे ग्रुप के लोग अलग अलग हो गए, किसी तरह भीड़ से बाहर निकल कर सड़क पर आगे बढे थोड़ी दूर जाने पर मंदिर का एक और गेट का पता चला, यहाँ भीड़ कुछ कम थी, मै मेरी पत्नी और छोटी बेटी तीनो एक साथ थे बाकी लोग अलग हो गए थे, हम लोगों को मंदिर में प्रवेश मिल गया लेकिन मंदिर में  अंदर भी काफी भीड़ थी दूर से ही दर्शन मिला उसके बाद हम लोग भी बाहर आ गए, अब बिछड़े हुए लोगों  से सम्पर्क किया गया और कुछ देर बाद सभी लोग मिल गए। अब तक लगभग साढ़े बारह बज गए थे, काँच का मंदिर देखने का सपना भी अधूरा रहा, बाहर से ही देख कर संतोष करना पड़ा।  
अब अगला पड़ाव गोकुल में छूटे हुए मंदिरो  का दर्शन करना था उसके लिए सभी लोग फिर गाड़ी में सवार हुए और चौरासी खम्भा मंदिर महावन जाने के लिए निकल लिए, कुछ देर की यात्रा के बाद हम लोग चौरासी खम्भा मंदिर पहुंच गए, सड़क के दाहिने हाथ पर भगवान परशुराम का एक छोटा सा मंदिर है , पहले उनका दर्शन किया गया, शास्त्रों के अनुसार परशुराम जी भी विष्णु भगवान के ही अवतार थे लेकिन परशुराम जी का मंदिर यदा कदा ही देखने को मिलता है।  परशुराम जी का मंदिर देखने के बाद बाये हाथ पर चौरासी खम्भा मंदिर जाने के लिए रास्ता है, कुछ दूर पैदल चलकर हम लोग नन्द बाबा के घर यानि चौरासी खम्भा मंदिर पहुंच गए यहाँ पर उपस्थित पुजारी ने पूजा इत्यादि कराया एवं बताया की आगे कुछ दूरी पर पुराने गोकुल नगरी  के अवशेष भी देखने को मिल जायेंगे, चौरासी खम्भा में दर्शन के बाद हम लोग वापस मथुरा के लिए चल दिए रास्ते में एक जगह भंडारा चल रहा था जहाँ हम लोगों ने भी प्रसाद ग्रहण किया उसके बाद मथुरा की तरफ चल दिए, रास्ते  में एक जगह काफी संख्या में मोर एवं हिरन भी देखने को मिले, कुछ देर उनसे मिलने के बाद फिर वापस अपने अड्डे पर पहुंच कर आराम किया गया एवं करीब साढ़े छ बजे हम लोग वहाँ से चेक आउट करके मथुरा स्टेशन पर आ गए, वहाँ से रात में नौ बजे की ट्रैन थी जिसमे हम सभी लोगों का आरक्षण था  



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