यात्रा का पाँचवाँ दिन 01 अक्टूबर 2009 दिन गुरुवार
आज यात्रा का अंतिम दिन था, जिसमे शिव खोड़ी की यात्रा के बाद वापस जम्मू से ट्रैन पकड़ना था। सुबह जल्दी उठकर फ्रेश होकर गाड़ी वाले को फ़ोन किया तो ओ बोला की मै रास्ते में हू और पांच मिनट में पहुंच जाऊँगा। हम लोगों ने सामान पहले ही पैक कर लिया था और अब कमरे से निकल कर रिसेप्शन पर आ गए, होटल वाले का बिल भुगतान किया उसके बाद सड़क पर आ गए, कुछ ही देर में गाड़ी भी आ गई। सभी लोग गाड़ी में सामान रखने के बाद बैठ गए, उसके बाद गाड़ी कटरा बस अड्डा होते हुए शिव खोड़ी जाने वाले मार्ग पर पहुंच गई। कुछ देर बाद पहाड़ी रास्तो पर गाड़ी चलने लगी और सभी लोग पहाड़ पर चलते हुए रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर - सुन्दर पहाड़ों को देख कर रोमांचित होने लगे।
कटरा से शिव खोड़ी की दूरी लगभग 75 किलोमीटर है जो जम्मू के रियासी जिले में पड़ता है और रास्ता भी पहाड़ी और रोमांच से भरपूर है, वैसे तो इस यात्रा में लगभग दो घंटे लगते है, किन्तु हम लोग रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर दृश्यों का आनंद लेते और मंदिरो के दर्शन करते हुए चल रहे थे इसलिए समय ज्यादा लग रहा था। सबसे पहले बाबा अगहर जित्तो की मूर्ति के पास रुके, उसके बाद बाबा धनसार में रुके, उसके बाद हम लोग एक प्रमुख मंदिर नौ देवी में रुके, जिसके बारे में मान्यता है की यहाँ नौ देविया एक साथ विराजमान है, और एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है, मंदिर के नीचे ही एक पतली सी जलधारा बहती है जिसका पानी बहुत स्वच्छ और साफ है, गुफा काफी सकरी है जिसमें अंदर एक साथ दो तीन लोग ही जा पाते है, हम लोगों ने भी प्रसाद लेकर जलधारा में पैर धोया और उसके बाद दर्शन किये।
यह चित्र मंदिर के द्वार का है जो गूगल से लिया गया है
इस तरह हम लोग 10 बजे रनसू पहुंच गए, यहाँ से शिव खोड़ी की पैदल यात्रा साढ़े तीन किलोमीटर की है, सामान हम लोगों ने गाड़ी में ही छोड़ दिया, एक छोटे से बैग में मतलब भर का सामान लेकर बाबा के दर्शन के लिए चल दिए। यहाँ से जब शिवखोड़ी के लिए आगे बढ़ते हैं, तो रास्ते में एक नदी पड़ती है। नदी का जल दूध जैसा सफेद होने की वजह से इसे दूध गंगा भी कहते हैं। करीब दो घंटे की यात्रा के बाद हम लोग बाबा के भवन तक पहुंचे, शिवखोड़ी स्थान पर पहुँचते ही सामने एक गुफ़ा दिखाई देती है। गुफ़ा में प्रवेश करने के लिए लगभग 60 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। गुफ़ा में प्रवेश करते ही लोगों के मुख से बरबस ही जय बाबा बर्फानी और ॐ नमः शिवाय का उद्घोष होने लगता है। वहां पर हाथ पैर धोने के बाद सामान एक दुकान पर रख दिए और लाइन में लग गए। थोड़ी ही देर में उस जगह पहुंच गए जहाँ से बाबा की गुफा प्रारम्भ होती है। गुफ़ा का मुहाना काफ़ी बड़ा है। यह 20 फीट चौड़ा और 25 फीट ऊँचा है। गुफ़ा के मुहाने पर शेषनाग की आकृति के दर्शन होते है और यहाँ पर भी अमरनाथ की तरह कबूतरों का जोड़ा दिख जाता है, हम सभी लोग एक जगह पर बैठ गए, इस समय इतनी शांति मिली की जिसका वर्णन करना बहुत मुश्किल है, जीवन में पहली बार इस तरह का एहसास हुआ, सारी थकान जैसे पल भर में दूर हो गई और मन में एक नई ऊर्जा का संचार हो गया।
कुछ देर रुकने के बाद हम लोगों ने भी गुफा में प्रवेश किया, ये एक 800 फिट लम्बी, 3 फिट चौड़ी और लगभग 6 से 8 फिट ऊँची गुफा है, जिसमे जगह जगह से पानी की बूंदे गिरती रहती है, कमजोर दिल वाले अंदर जाने से घबराते है, उनके लिए बाहर से एक रास्ता बनाया गया है, जिसमे बिना गुफा में प्रवेश किये ही वे अन्दर मुख्य हाल तक पहुंच जाते है, गुफा से प्रवेश करने वालों का निकास द्वार भी वही रास्ता है। हम लोग भोले शंकर का जै कारा लगाते हुए गुफा में प्रवेश कर गए शुरू में डर लग रहा था लेकिन ॐ नमः शिवाय का जप करते हुए चलते रहे और सारा डर समाप्त हो गया और अंदर हाल में पहुंचने के बाद तो सब भूल गया, गुफा की भव्यता अकथनीय और अकल्पनीय है। वहाँ पुजारी जी बता रहे थे , गुफा में भगवान शंकर का 4 फीट ऊँचा शिवलिंग है। इसके ठीक ऊपर गाय के चार थन बने हुए हैं, जिन्हें कामधेनु के थन कहा जाता है। इनमें से निरंतर जल गिरता रहता है।
शिवलिंग के बाईं ओर माता पार्वती की आकृति है। यह आकृति ध्यान की मुद्रा में है। माता पार्वती की मूर्ति के साथ ही में गौरी कुण्ड है, जो हमेशा पवित्र जल से भरा रहता है। शिवलिंग के बाईं ओर ही भगवान कार्तिकेय की आकृति भी साफ़ दिखाई देती है। कार्तिकेय की प्रतिमा के ऊपर भगवान गणेश की पंचमुखी आकृति है। शिवलिंग के पास ही में राम दरबार है। गुफ़ा के अन्दर ही हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृति बनी हुई है। गुफ़ा के ऊपर की ओर छहमुखी शेषनाग, त्रिशूल आदि की आकृति साफ़ दिखाई देती है। साथ-ही-साथ सुदर्शन चक्र की गोल आकृति भी स्पष्ट दिखाई देती है। गुफ़ा के दूसरे हिस्से में महालक्ष्मी, महाकाली, सरस्वती के पिण्डी रूप में दर्शन होते हैं। हम लोग लगभग आधा घंटा गुफा में रहे उसके बाद बाहर निकल आये।
बाहर आकर दुकान से सामान लिया और दुकान पर बैठ कर चाय पिया गया और नास्ता किया उसके बाद वापस रनसू की की ओर वापस चल दिए। बीच में दूध गंगा नदी के पास रुके और बच्चो ने पानी में खूब आनंद लिया, हम लोग भी पानी में घुसकर एक बड़े पत्थर पर बैठ कर पानी में तैरती मछलियों को काफी देर तक देखते रहे, उसके बाद फिर रंसू की ओर चल दिए और लगभग 2 बजे रन सू पहुंच गए। अब हम लोगों को जम्मू जाना था जो यहां से लगभग 100 किलोमीटर था, गाड़ी के ड्राईवर ने कहा कि रास्ते में एक दो मंदिर और पड़ेंगे वहां भी दर्शन करते हुए आपको शाम तक जम्मू स्टेशन पहुंचा देंगे। इस प्रकार शाम को पांच बजे हम लोग जम्मू पहुंच गए, सभी लोग थके हुए थे तो जिस प्लेट फार्म पर ट्रेन आने वाली थी उसी पर एक बेंच पर डेरा जमाया गया और कुछ लोग नीचे चद्दर बिछा कर आराम किए, ट्रेन अपने निर्धारित समय से 15 मिनट देरी से जम्मू से चल दी और अगले दिन शाम तक हम लोग अपने घर पहुंच गए, इस तरह हम लोगों की मा वैष्णो देवी की यात्रा समाप्त हुई। ये यात्रा मैंने 2009 में की थी लेकिन लिखने का मौका अब मिला क्योंकि उस समय मै ब्लॉग नहीं लिखता था, ब्लॉग लिखना मैंने 2019 में शुरू किया और मार्च से लेकर अब तक कोई यात्रा नहीं हो पाई थी सोचा कि जो यात्राएं पहले की गई है क्यों न उनको लिखा जाए, फोटो कुछ उस समय मोबाइल से लिए गए थे और कुछ गूगल से, लॉक डाउन के बाद होने वाली यात्रा भी जल्दी ही आएगी।