यात्रा एक ऐसा शब्द है जिसका नाम आते ही एक जगह से दूसरी जगह जाने का एहसास होता है, परन्तु यदि गहराई से सोचा जाए तो हर प्राणी अपनी यात्रा पर है, या यूँ कहा जाए की यात्रा एक प्राणी के जीवन का शाश्वत सत्य है जो कभी रुकता नहीं निरन्तर चलता रहता है, प्राणी के जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा लौकिक जीवन की एक पूर्ण यात्रा मानी जाती है। मेरी इस यात्रा ब्लॉग में मेरे द्वारा की गयी छोटी - छोटी यात्राओं के संग्रह का एक छोटा सा प्रयास है, हरि गोविन्द मिश्र - 7985126489
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021
प्रयागराज की यात्रा भाग -1
रविवार, 23 अगस्त 2020
माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 3
माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 3
शिवलिंग के बाईं ओर माता पार्वती की आकृति है। यह आकृति ध्यान की मुद्रा में है। माता पार्वती की मूर्ति के साथ ही में गौरी कुण्ड है, जो हमेशा पवित्र जल से भरा रहता है। शिवलिंग के बाईं ओर ही भगवान कार्तिकेय की आकृति भी साफ़ दिखाई देती है। कार्तिकेय की प्रतिमा के ऊपर भगवान गणेश की पंचमुखी आकृति है। शिवलिंग के पास ही में राम दरबार है। गुफ़ा के अन्दर ही हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृति बनी हुई है। गुफ़ा के ऊपर की ओर छहमुखी शेषनाग, त्रिशूल आदि की आकृति साफ़ दिखाई देती है। साथ-ही-साथ सुदर्शन चक्र की गोल आकृति भी स्पष्ट दिखाई देती है। गुफ़ा के दूसरे हिस्से में महालक्ष्मी, महाकाली, सरस्वती के पिण्डी रूप में दर्शन होते हैं। हम लोग लगभग आधा घंटा गुफा में रहे उसके बाद बाहर निकल आये।
बाहर आकर दुकान से सामान लिया और दुकान पर बैठ कर चाय पिया गया और नास्ता किया उसके बाद वापस रनसू की की ओर वापस चल दिए। बीच में दूध गंगा नदी के पास रुके और बच्चो ने पानी में खूब आनंद लिया, हम लोग भी पानी में घुसकर एक बड़े पत्थर पर बैठ कर पानी में तैरती मछलियों को काफी देर तक देखते रहे, उसके बाद फिर रंसू की ओर चल दिए और लगभग 2 बजे रन सू पहुंच गए। अब हम लोगों को जम्मू जाना था जो यहां से लगभग 100 किलोमीटर था, गाड़ी के ड्राईवर ने कहा कि रास्ते में एक दो मंदिर और पड़ेंगे वहां भी दर्शन करते हुए आपको शाम तक जम्मू स्टेशन पहुंचा देंगे। इस प्रकार शाम को पांच बजे हम लोग जम्मू पहुंच गए, सभी लोग थके हुए थे तो जिस प्लेट फार्म पर ट्रेन आने वाली थी उसी पर एक बेंच पर डेरा जमाया गया और कुछ लोग नीचे चद्दर बिछा कर आराम किए, ट्रेन अपने निर्धारित समय से 15 मिनट देरी से जम्मू से चल दी और अगले दिन शाम तक हम लोग अपने घर पहुंच गए, इस तरह हम लोगों की मा वैष्णो देवी की यात्रा समाप्त हुई। ये यात्रा मैंने 2009 में की थी लेकिन लिखने का मौका अब मिला क्योंकि उस समय मै ब्लॉग नहीं लिखता था, ब्लॉग लिखना मैंने 2019 में शुरू किया और मार्च से लेकर अब तक कोई यात्रा नहीं हो पाई थी सोचा कि जो यात्राएं पहले की गई है क्यों न उनको लिखा जाए, फोटो कुछ उस समय मोबाइल से लिए गए थे और कुछ गूगल से, लॉक डाउन के बाद होने वाली यात्रा भी जल्दी ही आएगी।
मंगलवार, 11 अगस्त 2020
माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग - 2
सुबह के समय दर्शन करने के लिए भीड़ कुछ ज्यादा थी, सभी लोग पूर्ण श्रद्धा भाव से माता का जैकारा लगाते हुए आगे बढ़ते रहे और करीब आठ बजे गुफा के बाहर लगी माँ की विशाल प्रतिमा के दर्शन हुए, लाइन धीरे चलने लगी किन्तु अब कोई जल्दी नहीं थी, हर कोई माँ का गुणगान करता हुआ मन में माँ की प्रतिमा को वसा लेना चाहता था, कुछ देर बाद हम लोग भी गुफा में प्रवेश किये अब तो भक्तो का उत्साह दुगना हो चुका था और मुझे तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे शरीर की सारी थकान दूर हो चुकी है, एक ऐसी अलौकिक शीतलता का आभास हुआ जिसका शब्दो में बर्णन कर पाना संभव नहीं है, कुछ देर बाद माँ की पिंडी के पास पहुंच गए पुजारी जी ने बताया की ये माँ महाकाली (दाएं), माँ महासरस्वती (मध्य) और मां महालक्ष्मी (बाएं) विराजमान है कुछ सेकण्ड ही दर्शन हुआ उसके बाद आगे बढ़ा दिए गए, माँ के पिंडी की अलौकिक छटा को आँखों में बसाते हुए आगे बढ़ गए, उसके बाद मंदिर परिसर से निकलते समय प्रसाद और नारियल लिया गया और नीचे स्थित दाहिने तरफ अन्य मंदिरो का दर्शन किया गया, जिसमे शिव लिंग जिस पर प्राकृतिक रूप से पहाड़ी से जल गिरता रहता था अपने आप में अद्भुत था।
अब तक लगभग नौ बज चुके थे, वहां से दर्शन करने के पश्चात एक दुकान पर बैठ कर जलपान किया गया और उसके बाद लाकर से सामान निकाल कर ऊपर आ गए जहाँ से भैरो घाटी की चढ़ाई शुरु होती है, ऐसी मान्यता है की जब तक भैरो बाबा के दर्शन नहीं किये जाते है तब तक माँ वैष्णो देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है, भवन से भैरो घाटी की दूरी वैसे तो साढ़े तीन किलोमीटर की है परन्तु ये खड़ी चढ़ाई है इसलिए इसमें थकान ज्यादा होती है, हम लोगों ने दस बजे चढ़ाई शुरु की और करीब एक बजे भैरो घाटी पहुच गए, थोड़ी देर आराम करने के बाद हाथ मुह धोकर प्रसाद लेकर बाबा भैरो नाथ का दर्शन किया गया और दर्शन के बाद दोपहर का भोजन भी वही किया गया और कुछ देर तक मोबाइल से फोटोग्राफी की गयी
यात्रा का चौथा दिन 30 सितम्बर 2009 दिन बुधवार
भैरो घाटी से करीब तीन बजे वापसी की यात्रा प्रारंभ हुई और लगभग सात बजे हम लोग अर्ध्कुमारी पहुच गए, चूकी हम लोगों के साथ बच्चे और महिलाये थी इसलिए हम लोग बहुत आराम से चल रहे थे, अब तक सभी लोग बहुत थक चुके थे और ये निर्णय लिया गया की रात यही रुका जाये और सुबह यहाँ से चला जायेगा, किराये पर कम्बल लेकर एक साफ सुथरी जगह देखकर डेरा जमाया गया, जिसको जो खाना था खाया और फिर सो गए, अगले दिन सुबह चार बजे उठने के बाद फ्रेश होकर कम्बल आदि जमा करने के बाद 6 बजे अर्ध्कुमारी से नीचे की यात्रा शुरु हुई और रुकते चलते 11 बजे तक हम लोग कटरा पहुच गए, और नहा धोकर खाना खाकर सो गए, शाम को 4 बजे उठने के बाद कटरा नगर घूमने गए, कटरा की गलियों में घूमते हुए कुछ सामानों की खरीददारी की गयी और कल शिवखोड़ी जाने के लिए एक गाड़ी भी 2500 रूपये में तय कर ली गयी जो कल सुबह 6 बजे तक आ जायेगी और शिवखोड़ी दर्शन कराने के बाद जम्मू स्टेशन पर छोड़ देगी, जहाँ से रात में हम लोगों की वापसी की ट्रेन है
सोमवार, 3 अगस्त 2020
माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग – 1
माँ वैष्णो देवी की यात्रा भाग – 1
यात्रा का दिनांक 27 सितम्बर 2009 दिन रविवार
ये यात्रा मैंने बहुत पहले की थी और जब से करोना के कारण
लाक डाउन हुआ तब से कोई भी यात्रा नहीं हो पाई तो सोचा की जो यात्राये पहले की जा
चुकी है उन्ही को क्यों न स्मृतियों के आधार पर करोना काल में लिखकर यात्रा का
आनंद लिया जाय I
बात उन दिनो की है जब मैं गोरखपुर में रहता था, माँ वैष्णो देवी
के बारे में बहुत लोगों से सुना था लेकिन अभी तक दर्शन का सौभाग्य नहीं मिला था,
बहुत दिनों से विचार बन रहा था की माता के दर्शन करने के लिए जाये, कई लोगों से
वहा जाने एवं दर्शन करने के बारे में जानकारिया इकट्ठा की और अंत में फाइनल हो गया की अब माँ के दर्शन
के लिए जाना है, नौ जून 2009 को सबका रिजेर्वशन हो गया और एक भारी भरकम समूह तैयार हो गया जिसमे मेरे माता पिता,
मै मेरी पत्नी और तीनों बच्चे मेरे मामा मामी मेरी मौसी और मेरी माँ की बुवा जी
कुल मिलाकर 11 लोग यात्रा के लिए तैयार हो
गए और 27 सितम्बर का गोरखपुर से जम्मू का रेजेर्वशन हो गया I
अभी यात्रा में बहुत समय था और इस बीच बहुत सारे परिवर्तन
हुए पहला ये की मै गोरखपुर से लखनऊ आ गया और एक नई कंपनी में नौकरी ज्वाइन कर ली,
बहुत दिनों से प्रयास रत था की लखनऊ में नौकरी मिल जाये तो बच्चो की पढाई लिखाई के
लिए अच्छा रहेगा और माँ वैष्णो देवी के आशीर्वाद से जुलाई में ही मै लखनऊ आ गया,
नौकरी अभी नई थी इसलिए मै अकेला ही लखनऊ में रहकर नौकरी करने लगा और महीने में एक
दो बार छुट्टी मिलने पर गोरखपुर चला जाता था इस प्रकार समय का पहिया घूमता रहा और
कुछ दिनों तक माँ के दरबार में जाने का ध्यान ही नहीं रहा, सितम्बर के पहले हफ्ते
में मेरे मामा जी ने याद दिलाया तो ध्यान आया की अरे हम लोगों को तो 27 तारीख को
ट्रेन पकडनी है I
शुक्रवार, 24 जुलाई 2020
मेरी धार्मिक यात्राये
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बुधवार, 10 जून 2020
उज्जैन, ओंकारेश्वर एवं ममलेश्वर यात्रा भाग - 4
उज्जैन, ओंकारेश्वर एवं ममलेश्वर यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
उज्जैन, ओंकारेश्वर एवं ममलेश्वर यात्रा भाग - 4
यात्रा का दिनाँक 13/08/2018
आज यात्रा का आखिरी दिन था और कल की यात्रा से सीख लेते हुए हम लोगों ने समय का विशेष ध्यान रखा और रात मे ही प्लान तैयार कर लिया था कि आज उज्जैन में स्थित सारे मंदिर एवं प्रमुख स्थानों की यात्रा सुनियोजित तरीके से किया जायेगा, सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्म से निवृत्त हो कर सबसे पहले नीचे उतरकर चाय पिया गया और वहीं पर एक टाटा मैजिक वाले से पूरा उज्जैन घूमने के लिए 6 सौ रूपये में तय कर लिया गया जिसमे वह सभी छोटे बड़े मंदिरो का दर्शन कराएगा।
गढ़कालिका मंदिर
सबसे पहले गढ़ कालिका मंदिर में दर्शन के लिए गए, यह उज्जैन का एक लोकप्रिय एवं प्रमुख मंदिर है, यहाँ देवी की पूजा की जाती है जो महा कवि कालीदास जी की ईस्ट देवी मानी जाती है
रविवार, 31 मई 2020
यात्रा - पड़ाव - यात्रा ( कभी न समाप्त होने वाली ) भाग -1
यात्रा की शुरुवात का दिनाँक 16 / 04 / 2019
यात्रा एक ऐसा शब्द है जिसका नाम आते ही एक जगह से दूसरी जगह जाने का एहसास होता है, परन्तु यदि गहराई से सोचा जाए तो हर प्राणी अपनी यात्रा पर है, या यूँ कहा जाए की यात्रा एक प्राणी के जीवन का शाश्वत सत्य है जो कभी रुकती नहीं निरन्तर चलती रहती है, प्राणी के जन्म से लेकर बचपन तक की यात्रा, बचपन से लेकर जवानी तक की यात्रा, जवानी से लेकर बुढ़ापे तक की यात्रा और अन्त में जीवन की अन्तिम यात्रा और इस प्रकार एक प्राणी का जीवन चक्र पूरा हो जाता है। यात्रा के बीच में एक बहुत महत्वपूर्ण समय आता है जिसे पड़ाव कहा जाता है, वैसे यात्रा का उद्देश्य ही होता है पड़ाव तक पहुंचना, पड़ाव तक पहुंच कर प्राणी कुछ समय के लिए ठहर सा जाता है , परन्तु पड़ाव भी यात्रा का ही एक हिस्सा होता है, पड़ाव कभी छोटा तो कभी बड़ा होता है, यात्रा का जितना आनंद चलते रहने में आता है उससे कही ज्यादा आनंद पड़ाव में बिताये गए समय में आता है और फिर पड़ाव जब उबाऊ हो जाता है तो अगली यात्रा पर चलने का समय आ जाता है।
मित्रों आज मैं ऐसी ही एक यात्रा के पड़ाव बारे में लिखने से अपने आपको रोक नहीं पा रहा हूँ जिसका मै स्वयं भी हिस्सा था, तो मित्रों समय व्यर्थ न करते हुए चलिए चलते है यात्रा के एक छोटे से पड़ाव पर।
इस यात्रा की शुरुआत पिछले वर्ष अप्रैल के महीने से होती है, जब मैं ऑफिस में बैठा काम कर रहा था, अचानक मेरे मोबाइल की घंटी बजी, फोन उठाने पर दूसरी तरफ से किसी लड़की की आवाज आयी जो किसी बीमा से सम्बंधित काम के लिए बता रही थी, बात चीत करने पर मै उसके द्वारा बताये गए काम को करने के लिए उत्सुक हो गया, कुछ फार्मलिटी बताई और आगे की कार्यवाई के लिए अपने प्रतिनिधि को मेरे पास भेजने के लिए कह कर फोन रख दिया।
दो - तीन दिनों के बाद एक सज्जन राजेंद्र चौधरी जी मेरे पास आये और सारी फार्मलिटी पूरी हो गयी, काम के सिलसिले में ही मेरा और राजेंद्र जी का मिलना हुआ करता था, वे कभी - कभी मेरे ऑफिस में भी आते थे तो इस तरह से उनसे एक मित्रवत सम्बन्ध हो गया था, एक दिन बातों ही बातों में पता चला की ओ भी मेरे गृह जनपद गोरखपुर के ही रहने वाले है, घर से दूर रहने वाले लोगों में गृह जनपद के लोगों के प्रति लगाव और बढ़ जाता है, तो इस प्रकार हम लोगों की मित्रता और भी प्रगाढ़ हो गयी।
एक दिन राजेंद्र जी से मुलाकात हुई तो उन्होंने पूछा सर कहीं मकान किराये पर मिल जायेगा, वे अभी जहाँ रहते थे शायद वहाँ कुछ दिक्कत हो रही थी, संयोग वश उस समय मेरे घर का नीचे का पोर्शन खाली था, मैंने उन्हें बताया की मेरे यहाँ ही एक बार देख लें और यदि पसंद आये तो ठीक है नहीं तो दूसरा कोई मकान देखा जायेगा, अगले रविवार को ही राजेन्द्र जी मकान देखने आ गए, मकान देखने के बाद कुछ देर मेरे यहाँ बैठे रहे चाय पानी हुआ उसके बाद चले गए।
मेरा घर जिस जगह है ओ अभी अविकसित एरिया है तो सड़क की स्थिति कुछ दूर तक ठीक नही है, वैसे मुझे उम्मीद थी की मकान उन्हें पसंद नहीं आएगा, लेकिन दो दिन बाद वे मेरे ऑफिस आये और बोले कि मकान मुझे पसंद है और मैं अगले रविवार को उसमे शिफ्ट करूँगा, मैंने कहा ठीक है, अगले रविवार यानि 05 जून 2019 को वे अपना सामानआदि लाकर शिफ्ट हो गए। संयोग कहा जाए या कुछ और दूसरे ही दिन पम्प हाउस (पानी का सप्लाई जहाँ से आता है ) का मोटर जल गया, जून के महीने में पानी का न होना भयंकर पीड़ा दायक होता है, खैर वैकल्पिक तौर पर काम चलाऊ पानी की व्यवस्था की गयी और दो दिन बाद मोटर भी सही हो गया।
क्रमशः
विंध्याचल की यात्रा
इस यात्रा को शुरु से पढने के लिए यहाँ क्लिक करें विंध्याचल की यात्रा आज यात्रा का तीसरा दिन था, दो दिन प्रयागराज में स्नान एवं भर्मण के बा...
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बहुत दिनों से कहीं घूमने का कार्यक्रम नहीं बन पाया था इसलिए मैं बैचैन सा रहता था , हम प्राइवेट नौकरी वालों के पास न पैसा होता हैं और न ही...
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यात्रा का तीसरा दिन 29 सितम्बर 2009 दिन मंगलवार हम लोग कमरे से करीब सात बजे माँ के दरबार में जाने के लिए निकले, माँ का जयकारा लगात...